भोपाल के न्यू मार्केट इलाके में बन रहे सीबीडी प्रोजेक्ट पर इस बार मध्यप्रदेश की सत्ता के अलंबरदारों ने जोरदार हमला बोला है। विधानसभा में इस परियोजना में धांधलियों के आरोप लगाते हुए ठेके को निरस्त करने और मामले की सीबीआई जांच कराए जाने की मांग की जा रही है। सदन में सरकार पर जानकारियां छुपाने का आरोप लगाते हुए आज विपक्ष ने सदन की कार्रवाई नहीं चलने दी। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद इस प्रोजेक्ट के कामकाज में जो तेजी आई थी उसे ताजा राजनैतिक हस्तक्षेप ने धीमा कर दिया है। इसके बावजूद सरकार पर इस प्रोजेक्ट को जल्दी से जल्दी पूरा कराने का दबाव है।
बाहिरी निवेश को बुलाने की जद्दोजहद कर रही राज्य सरकार को देश के कई व्यापारिक संगठनों ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि इस कारोबार में राजनैतिक हस्तक्षेप नहीं रुका तो भविष्य में कोई बड़ा व्यापारिक घराना मध्यप्रदेश की धरती पर कदम नहीं रखेगा। हालांकि कांग्रेस और भाजपा के आलाकमान ने भी अपने क्षत्रपों को सीमाओं में रहने की हिदायत दी है लेकिन कोई आरामदायक समझौते की उम्मीद में दोनों दलों के दिग्गज मामले को गरमा रहे हैं।
विपक्ष के आरोपों के जवाब में आवास मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने बताया कि न्यू मार्केट के नजदीक 15 एकड़ जमीन के लिए 338करोड़ रुपए का आफर स्वीकृत हुआ था। शासन से अनुमोदित आरएफपी डाक्यूमेंट की कंडिका 1.41और विकास अनुबंध की कंडिका जी के परिपालन में यह अनुबंध मेसर्स दीपमाला इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी के साथ किया गया था। लीज डीड पर 17,60,30,400 रुपए का मुद्रांक शुल्क और 12,57,36000 रुपए का पंजीयन शुल्क भी वसूल किया गया है। इसलिए विपक्ष जो आरोप लगा रहा है कि 100 रुपए के स्टाम्प पर सेलडीड बनाई गई है ये आरोप असत्य है।
उन्होंने बताया कि उस भूमि पर 192 जी टाईप आवास और शासकीय सरदार पटैल मिडिल स्कूल और 366 वृक्ष मौजूद थे। उन्हें दुबारा बनाया जा रहा है। इस भूमि के उपयोग के लिए राष्ट्रीय स्तर पर विज्ञापन प्रकाशित किए गए थे। शासन ने 225 करोड़ रुपए का आफसेट मूल्य निर्धारित किया था लेकिन उसे 338 करोड़ का आफर प्राप्त हुआ। इस भूमि पर निर्माण कार्य के लिए नगर निगम भोपाल, नगर तथा ग्राम निवेष विभाग और पर्यावरणीय अनुमतियां नियमानुसार प्राप्त की गईं हैं। खनिज विभाग ने 160,000 घन मीटर पत्थर के परिवहन की अनुज्ञा प्रदान की है। कंपनी ने खनिज मद में कुल 56,00,000 रुपए की रायल्टी जमा की है. इसलिए कोई कार्रवाई करने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता।
सरकार के सामने सबसे बड़ी समस्या तो ये है कि अनुबंध की शर्तो में यह कहा गया है कि यदि सरकार ये सौदा निरस्त करती है तो उसे हर्जाने के रूप में 175 करोड़ रुपए कंपनी को लौटाने होंगे। उस पर वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाईजेशन और इंडियन इंडस्ट्रीज आफ कामर्स का दबाव है कि वह अपने अनुबंध को कारगर रखते हुए कंपनी का निर्माण कार्य समय सीमा में पूरा नहीं करा पाती है तो भविष्य में देश के तमाम ब़डे निवेशक मध्यप्रदेश में निवेश नहीं करेंगे। सरकार की ढुलमुल नीतियों के चलते कंपनी को हर दिन करोड़ों रुपए की हानि हो रही है और उसकी परियोजना लागत तेजी से बढ़ती जा रही है। जब इस परियोजना के टेंडर हो रहे थे तब मध्यप्रदेश के निर्माण ठेकेदारों ने टेंडर तो जमा किए थे लेकिन बोली में भाग नहीं लिया था। दबाव की इस नीति में लगभग सभी ने तय कर लिया था कि जब तीन बोलीदार नहीं होंगे तो टेंडर स्वमेव रद्द हो जाएगा। इसके जबाव में गेमन इंडिया लिमिटेड और उसकी सहयोगी कंपनी मेसर्स दीपमाला इंफ्रास्ट्रक्चर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके सरकार को आवश्यक निर्देश जारी करने का निवेदन किया। माननीय उच्च न्यायालय ने सरकार को निर्देश दिए कि जब प्रदेश में कोई सक्षम निर्माता ही नहीं है जो टेंडर में परियोजना पूरी करने का दावा करे तो सरकार एक सक्षम निर्माता को काम करने से कैसे रोक सकती है। इसके बाद गेमन इंडिया की ये परियोजना प्रारंभ हो सकी।
अब जबकि प्रदेश के दिग्गज राजनेता और प्रभावशाली लोग इस परियोजना में अपनी हिस्सेदारी की कोशिश में लगे हैं तब लगभग सभी राजनीतिक दलों के सक्रिय लोग भी लाभ पाने वालों की सूची में अपना नाम दर्ज कराने की होड़ में जुट गए हैं। उनका कहना है कि इस परियोजना को शासन ने बहुत सस्ते दामों पर मंजूरी दे दी है। राजधानी का ये इलाका बहुत मंहगा है। इसलिए इस सौदे को निरस्त किया जाए। इसमें शामिल लोगों की भूमिका की जांच सीबीआई से कराई जाए। सौदे को दुबारा टेंडर बुलाकर आज के दामों पर हरी झंडी दी जाए तभी प्रदेश के लोगों का हित हो सकेगा।
विपक्ष की ये मांग कितनी भी उचित क्यों न हो लेकिन तयशुदा व्यावसायिक मापदंडों के मुताबिक अनुबंध होने के बाद सौदा निरस्त करना या उसमें हीला हवाली करना स्वस्थ व्यापारिक प्रतिस्पर्धा तो कतई नहीं कहा जा सकता। अब ये मध्यप्रदेश की सरकार को तय करना है कि उसके राज में तालिबानी दबाव की नीति सफल होगी या फिर निवेशकों को आकर्षित करने के लिए वह अपनी शर्तों पर टिकी रहने वाली सरकार की पहचान बनाना पसंद करेगी।
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