Monday, January 14, 2013

नपुंसक हाकिम, बेबस पहरेदार!


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(लिमटी खरे)
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देश ने जब आजादी की सांसे ली होंगी तब कांग्रेस के नेताओं ने खुशियों में मिठाईयां बांटीं होंगी और यह सोचा होगा कि आने वाले समय में देश उत्तरोत्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर होगा। इक्कीसवीं सदी की कल्पना करते वक्त महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के ना जाने कितने अरमान रहे होंगे। इक्कीसवीं सदी में कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी के हाथ में हैं। मानें ना मानें पर सोनिया हैं तो इटली मूल की, इसलिए देश के प्रति उनके लगाव पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक ही है। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर आतंकी कहर बरपाते हैं, संसद पर हमला होता है, कारगिल युद्ध में भारत के पहरेदार जवान अपने प्राण गंवाते हैं, हाड कपानें रक्त जमाने वाली ठण्ड में सैनिक देश की सीमा की पहरेदारी कर अपना जीवन दांव पर लगाते हैं, अपने ही देश में दुश्मन घुसकर सेना के जवानों को ना केवल मारते हैं, वरन् उसका सर काटकर ले जाते हैं, फिर भी भारत सरकार अपनी पीठ यह कहकर थपथपाती है कि हमने पाक के राजदूत को अंततः तलब कर ही लिया। सेना भूखी रखवाली कर रही है, उधर सोनिया मनमोहन के घर दावतें उड़ रही हैं। सारा देश कह रहा है

नपुंसक हाकिम, बेबस पहरेदार!

बिका है मीडिया, विपक्ष है लाचार!!

जय भारत जय जवान!!!

हो रहा भारत निर्माण!!!!

परंपराओं को उलट सकते हैं प्रणव!

माना जाता है कि भारत गणराज्य के प्रथम नागरिक यानी राष्ट्रपति बनने के बाद उसका दुबारा सक्रिय राजनीति में लौटना संभव नहीं होता है। देश के प्रथम नागरिक के रायसीना हिल्स स्थित आवास से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो वर्तमान महामहिम प्रणव मुखर्जी कुछ नया कर सकते हैं, वे अब तक की मान्य परंपराओं को उलट सकते हैं। कहा जा रहा है कि वर्ष 2014 के आम चुनावों में केंद्र में तस्वीर कुछ इस तरह होगी कि सभी को एक सूत्र में पिरोने के लिए किसी महारथी की आवश्यक्ता ही होगी। कांग्रेस के पास प्रणव मुखर्जी से अच्छा मनराखनलाल कोई दूसरा नहीं था। दादा अब रायसीना हिल्स पहुंच गए हैं, सो वे अब घोषित और प्रत्यक्ष तौर पर कांग्रेस के संकटमोचक नहीं बन पा रहे हैं। दादा के समर्थक अब भी इसी उम्मीद में हैं कि जल्द ही दादा को दुबारा रायसीना हिल्स से वापस मुख्यधारा में लाया जाए और 2014 में उन्हें 7, रेसकोर्स रोड़ पर काबिज करवा दिया जाए। कहते हैं दादा ने भी इसके लिए अपनी सहमति दे दी है और वे संवेधानिक विशेषज्ञों से सलाह मशविरे में जुट चुके हैं।

फिर जगी आड़वाणी की उम्मीदें!

राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आड़वाणी एक बार फिर मन में 7, रेसकोर्स रोड़ (भारत गणराज्य के वजीरे आज़म का सरकारी आवास) को आशियाना बनाने की बात डोलने लगी है। देश में अराजकता की स्थिति, एक के बाद एक हर मोर्चे पर असफल होती केंद्र सरकार, पाकिस्तान के हमले, दिलेरी से बढ़ती मंहगाई आदि मामलों से अब आड़वाणी को लगने लगा है कि आने वाले समय में कांग्रेस चारों खाने चित्त होने वाली है। आड़वाणी के करीबी सूत्रों का कहना है कि आड़वाणी को लगने लगा है कि सोनिया गांध्ी निश्चित तौर पर किसी ना किसी बात का बदला भारत की जनता से ले रही हैं। इन परिस्थितियों में अब भाजपा को सत्ता में आने से कोई नहीं रोक सकता है। संभवतः यही कारण है कि पिछले दिनों भाजपा के महासचिव रामलाल जो गड़करी की दूसरी पारी के लिए आड़वाणी की सहमति लेने उनके निवास पर गए थे, को बेरंग लौटा दिया। आड़वाणी जुंडाली की मानें तो अंदर ही अंदर अब आड़वाणी एक बार फिर इस बात की तैयारी में लग गए हैं कि वे अपनी छाप पीएम इन वेटिंग से वेटिंग शब्द को हटा ही दें।

चिदम्बरम का है इकबाल बुलंद

पिछले दरवाजे यानी राज्य सभा के रास्ते राजनीति करने वाले वित्त मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम का इकबाल इन दिनों जमकर बुलंद नजर आ रहा है। चिदम्बरम की पांचों उंगलियां घी में और सर कढाई में है। विश्व के सबसे प्रभावशाली और विश्वस्त समझे जाने वाले इकनोमिस्ट वीकली ने पीत पत्रकारिता के तहत तो चिदम्बरम का नाम पीएम के बतौर नहीं उछाला है। दरअसल, चिदम्बरम को सबसे अधिक भाव दे रहे हैं कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी। मनमोहन सिंह की गलत नीतियों और रीढ़ विहीन कार्यशैली से कांग्रेस का ग्राफ तेजी से नीचे गिरा है। इसीलिए अब टीम राहुल ने मनमोहन का विकल्प खोजना आरंभ कर दिया है। राहुल को मनमोहन के विकल्प के बतौर चिदम्बरम ही मुफीद बैठ रहे हैं। सरकार के लिए राहत की बात यह है कि डीएमके ने भी दक्षिण भारत के नेता को पीएम बनाने की बात की वकालत कर दी है। प्रणव मुखर्जी के रायसीना हिल्स पहुंचने के उपरांत पलनिअप्पम चिदम्बरम के 7, आरसीआर पहुंचने के मार्ग प्रशस्त हो गए हैं।

दिल्ली से खफा हैं महाराष्ट्र काडर के आईपीएस

देश के महाराष्ट्र सूबे में भारतीय पुलिस सेवा के अफसरान की तादाद सबसे ज्यादा है। इस राज्य में आईपीएस अफसरों की संख्या 300 है। इस राज्य में केंद्र के नियमों के अनुसार लगभग साठ अफसरान को केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर होना चाहिए। केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि महाराष्ट्र से महज बीस अफसर ही ने दिल्ली का रूख किया है। पता नहीं क्यों महाराष्ट्र काडर के आईपीएस अफसर दिल्ली से नाखुश हैं। यही कारण है कि आज तक आईबी, सीबीआई या रा के निदेशक पद के लिए नहीं चुने गए हैं। महाराष्ट्र मूल के सुशील कुमार शिंदे के गृह मंत्री बनते ही यह माना जा रहा था कि केंद्र में अब महाराष्ट्र काडर के अफसरों की तादाद बढ़ेगी, वस्तुतः एसा हुआ नहीं। उधर, शिंदे के करीबी सूत्रों का कहना है कि महाराष्ट्र के आईपीएस अफसर केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने के बजाए अपने सूबे विशेषकर मुंबई में ही नौकरी करने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं।

सोनिया के निर्देश पर झुके चिदम्बरम!

एफडीआई मुद्दे पर सदन में कांग्रेस की नाक बचाने के लिए हर कोई संसदीय कार्य मंत्री कमल नाथ की ही माला जप रहा है। कमल नाथ के बढ़ते कद से सबसे ज्यादा चिंतित वित्त मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम ही दिख रहे हैं। बैंकिंग और बीमा बिल के मामले में सभी दलों को साथ ना ला पाने से कांग्रेस के आला नेताओं ने चिदम्बरम को जमकर खरी खोटी सुनाई थी। सोनिया के निर्देश पर कमल नाथ ने चिदम्बरम की मदद आरंभ की और एफडीआई का मामला सुलटा। कमल नाथ का जुगाड़ तंत्र इतना मजबूत है कि वे कभी भी कुछ भी कर सकते हैं। चिदम्बरम को डर है कि कहीं सधे कदमों से आगे बढ़कर कमल नाथ खुद अगले आम चुनावों में खुद को प्रधानमंत्री का दावेदार ना घोषित करवा लें। कमल नाथ की योग्यता पर चिदम्बरम को कोई शंका नहीं है। दोनों के बीच दूरिया बढीं तो सोनिया को हस्ताक्षेप करना पड़ा। बताते हैं कि कमल नाथ और चिदम्बरम एक साथ कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र छिंदवाडा में नाथ के फार्म हाउस पर गुपचुप बैठक भी कर आए हैं।

संगमा ठोंकेगे कांग्रेस के ताबूत में कील

मेघालय में विधानसभा चुनावों का बिगुल बजते ही कांग्रेस की नींद हराम हो गई है। इसका कारण पी.ए.संगमा हैं। संगमा ने अपने नए राजनैतिक दल नेशनल पीपुल्स पार्टी की घोषणा कर दी है। संगमा का मेघालय में गजब का दबदबा है। मेघालय में वर्तमान में मुकुल संगमा के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार है, पर कांग्रेस को अब इस गढ़ को बचाना बहुत मुश्किल प्रतीत हो रहा है। कांग्रेस का मुकाबला नेशनल पीपुल्स पार्टी और यूडीएफ से है। एक सर्वेक्षण के मुताबिक नेशनल पीपुल्स पार्टी अपने प्रभाव वाले गारो हिल्स में 24 में से 20 सीटों पर कड़ी टक्कर दे रही है। सर्वेक्षण में कांग्रेस की नींद में खलल इसलिए और पड़ा है क्योंकि कहा जा रहा है कि यहां के स्थानीय आदिवासी और यहां तक कि चर्च भी संगमा के साथ कदम से कदम मिला रहे हैं। अब देखना यह है कि अगर मेघालय कांग्रेस के हाथ से जाता है तो सोनिया को कटघरे में कौन कौन खड़ा करता है?

अटल को लेकर ही बंट गई भाजपा!

भारतीय जनता पार्टी को एक मुकाम तक पहुंचाने के लिए अटल बिहारी बाजपेयी का नाम प्रमुख तौर पर लिया जाता है। प्रधानमंत्री रहते अटल बिहारी बाजपेयी ने जो काम किए हैं वे आज भी अनुकरणीय ही माने जाते हैं। पिछले दिनों अटल बिहारी बाजपेयी को भारत रत्न देने की मांग पर ही भाजपा बंटी हुई दिख रही है। भाजपा नेता यशवंत सिन्हा ने प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह को एक पत्र लिखकर अटल जी को भारत रत्न देने की मांग की। इसके बाद भाजपा को मानों सांप सूंघ गया। भाजपा ने इस मांग को आगे नहीं बढ़ाया। भाजपा अध्यक्ष नितिन गड़करी सहित किसी भी पदाधिकारी ने यशवंत सिन्हा की मांग का समर्थन नहीं किया। यह जगजाहिर है कि यह तो अटल बिहारी बाजपेयी का ही चेहरा था जिसके सहारे भाजपा ने केंद्र में तेरह दिन, तेरह माह और पांच साल तक शासन किया। भाजपा के आला नेता ही नहीं चाह रहे हैं कि अटल बिहारी बाजपेयी को भारत रत्न ना मिले।

जनसंपर्क में दलाली चरम पर!

देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में इन दिनों मीडिया बिरादरी में मध्य प्रदेश के जनसंपर्क महकमे को लेकर तरह तरह की चर्चाएं जोर पकड़ रही हैं। कहा जा रहा है कि जनसंपर्क विभाग के सेवानिवृत अधिकारियों द्वारा छोटे, मझोले अखबारों के प्रतिनिधियों को यह ऑफर दिया जा रहा है कि अगर उन्हें समाचार पत्र का मध्य प्रदेश ब्यूरो बना दिया जाए तो वे लाखों के विज्ञापनों से अखबार को लाद सकते हैं। एक अखबार मालिक के करीबी सूत्र ने नाम उजागर ना करने की शर्त पर बताया कि एक सेवानिवृत अधिकारी ने अखबार नवीस को ऑफर इस तरह का ऑफर दिया है। उधर, अनेक अनाम पत्र पत्रिकाओं के बारे में कहा जा रहा है कि सुबह भोपाल एक्सप्रेस से भोपाल पहुंचो और ले दे कर दोपहर की शताब्दी से विज्ञापन लेकर रात तक दिल्ली वापस लौट जाओ। जनसंपर्क विभाग में एसा हो रहा है या नहीं यह बात तो वे ही जानें पर जनसंपर्क मंत्री की अनुशंसाओं को रद्दी में डालने के अनेक किस्से प्रकाश मे आ रहे हैं।

प्रभात झा दिल्ली में जमने की फिराक में

एमपी के निजाम शिवराज की चाणक्य नीति के चलते मध्यप्रदेश भाजपा अध्यक्ष का पद दोबारा पाने में विफल रहे प्रभात झा अब दिल्ली में बड़ा पद पाने के लिए अपने सम्पर्काे को साधने मे लग गए हैं। उधर, झा के करीबी सूत्रों का कहना है कि झा को अंतिम समय तक अंधेरे में रखकर उनकी बिदाई कर देने से वे बेहद आहत हैं। यही कारण है कि उनकी बिदाई की संज्ञा उन्होंने पोखरण विस्फोट से कर दी थी। भाजपा के नेशनल हेडक्वार्टर के सूत्रों की मानें तो अपमान का घूंट पीकर शांत रहने वाले प्रभात झा की पहली प्राथमिकता इस समय दिल्ली में सम्मानजनक पद को पाना है। शिवराज से निपटने की रणनीति वे कुछ समय बाद बनाएंगे। उधर, आग और पानी का संतुलन बराबर रखने के लिए प्रभात झा को केन्द्रीय चुनाव समिति में शामिल किया जा सकता है। अठारह सदस्यीय केन्द्रीय चुनाव समिति में मध्यप्रदेश सेे फिलहाल थावरचंद गहलोत और प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर सदस्य हैं।


पुच्छल तारा

इंटरनेट पर इन दिनों आम आदमी की पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के सैन फ्रांसिस्को की यात्रा को लेकर चर्चाएं चल रही हैं। कहा जा रहा है कि केजरीवाल जब सैन फ्रांसिस्को पहुंचे तो वहां उन्होंने एनआरआई को लुभाने की कवायद की। संभवतः फंडिंग के लिए किए गए इस काम के बाद केजरीवाल ने कुछ वक्त बाजार में भी बिताया। एक दुकान में केजरीवाल को चूहे की कांसे की मूर्ति दिखी, उन्हें यह भा गई और उन्होने उसका दाम पूछा। दुकानदार ने चूहे का दाम तो 12 डालर बताया किन्तु इसके साथ एक कहानी के लिए सौ डालर मांगे। केजरीवाल के पास समय कम था सो उन्होंने कहानी सुनने में दिलचस्पी दिखाने के बजाए 12 डालर देकर चूहा खरीद लिया। रास्ते में चूहा उनके हाथ से गिर गया। फिर क्या था? उन्हें एक दो चार नहीं सैकड़ों चूहों ने घेर लिया। वे बचकर भागते रहे पर कोई फायदा नहीं हुआ। चूहों की तादाद लाखों में पहुंच गई। तभी वे समुद्र किनारे पहुंचे और उन्होंने चूहे को लेकर समुुद्र में फेंक दिया। फिर क्या था, चूहों ने केजरीवाल को छोड़ समुद्र की राह पकड़ ली। वे वापस उसी दुकान लोटे, लुटे पिटे हैरान परेशान केजरीवाल को देखकर दुकानदार ने पूछा साहब सौ डालर दो और कहनी भी सुन जाओ। छूटते ही केजरीवाल बोले -‘‘अरे नहीं भई, कहानी तो समझ गया, पर यह बताओ क्या भारत के नेताओं की कांसे की प्रतिमा मिल सकती है?‘‘

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