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नरसिंहपुर से सलामत खान की रिपोर्ट..
(टाइम्स ऑफ क्राइम) प्रतिनिधि से संपर्क:- 9424719876
जैसे-तैसे करके वर्षो से जर्जर पड़ी सड़क यदि बन भी जाती है तो टेंट और पंडाल लगाने वाले व्यवसायी इस नई बनी सड़क पर बड़े-बड़े छेदकर उसकों छलनी करने से नहीं चूकते। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि इस समस्या से सभी लोग परिचित होते हुए भी इसे रोकने का किसी भी स्तर पर कोई प्रयास नहीं हो रहा है।
जिला मुख्यालय नरसिंहपुर भी ऐसा ही समस्या के मकडज़ाल में फंसा नजर आ रहा है। वैसे भी यहाँ के मार्ग का सुधार कार्य भागीरथी प्रसास के बाद होता हैै परंतु उसकी हालत एक-दो वर्ष के अंदर ज्यों की त्यों हो जाती है। जिसकी पुनरावृत्ति सामाजिक, धार्मिक अथवा राजनीतिक गतिविधियों में वर्ष भर होती रहती है। पण्डाल लगाने सड़क पर किये जा रहे इन छेदों में से ज्यादातर छेद तिरछे हो जाते हैंं, जो कुछ माह के अंदर खासा गड्ïढ़ा बना देते है। इसके चलते नगर के गांधी चौराहे से स्टेशनगंज तक बाहरी मार्ग सहित जगह-जगह पेंच उधड़े दिखाई देने लगते हैै। फिर सड़क की उक्त दशा को लेकर निंदा, मांग, शिकवा-शिकायतों का दौर शुरू हो जाता हैै। इसके लिये संबंधित विभाग के साथ-साथ स्थानीय निकाय पर निशाना साधकर शब्द बाणों से हमला कर दिया जाता हैै, जिसमें इनके सैद्घांतिक विरोधियों की प्रमुख भूमिका रहती हैै।
हालांकि सड़कों को क्षतिग्रस्त करना न केवल व्यावहारिक तौर पर गलत है बल्कि दण्डनीय अपराध भी है। जिसके लिए प्रशासन को नियमानुसार कार्र्रवाई करना चाहिए परंतु इस प्रकार की करतूतों को नजरंदाज कर दिया जाता है। यह तो रही प्रशासनिक उदासीनता की बात, इसके विपरीत इस मसले को लेकर विरोध प्रकट कर शोर-शराबा करने वाले लोगों में ऐसों की संख्या कम नहीं है जो सड़क को क्षति पहुंचाने में कुछ हद तक स्वयं भी दोषी है।
मुख्य मार्ग या आम अंदरूनी सड़क के किनारे जिस घर में आरम्भिक वैवाहिक रस्म शादी, जन्मदिन जैसे समारोह आयोजित होते हैैं, आमंत्रित अतिथियों या बारात, जयमाला कार्यक्रम, डिनर आदि के लिये सड़क का बड़ा भाग घेरकर पण्डाल लगवाना आम बात है। इसके लिये लोहे के पाईप लगाये जाते हैै जिनके लिये मजबूत आधार देने सड़क में गहरे गड्ïढे बनाये जाते हैं। यह गड्ïढे लोहे के बड़े मोटे और नोंकदार सब्बल को घन से पीट-पीटकर बनाये जाते हैैं। इस बीच यदि सब्बल तिरछी हो जाती है तो सड़क के उस हिस्से की बुनियाद कमजोर हो जाती है फिर उस हिस्से को उधडऩे में ज्यादा समय नहीं लगता। शादी या दूसरे कार्यक्रमों के संपन्न होने के बाद लोग सड़क पर अपने द्वारा पहुंचाई गई क्षति को देखना गंवारा नहीं करते। टेंट वाले भी अपना किराया वसूलकर पण्डाल सहित चलते बनते हैैं। इस समस्या के जनक यदि स्वयं इसके प्रति गंभीरता बरतें तो सालभर में जगह-जगह सड़कों में होने वाले गड्ïढे नजर नहीं आयेंगे एवं वह लंबे समय तक चमचमाती रहेगी। बहरहाल इस समस्या से निजात पाने हेतु ऐसे बड़े ड्रम जिनमें कंक्रीट होने के साथ पण्डाल पाईप लगाने की व्यवस्था हो, की आवश्यकता है जो टेंट व्यवसायी पूरी कर सकते हैं, अन्यथा यदि हर साल सड़क सुधार हो तो भी वह लंबी रेस का घोड़ा साबित नहीं हो पायेगी।