भोपाल//अनिल शाक्य (टाइम्स ऑफ क्राइम)
1। तथाकथित भ्रष्टाचार में संलिप्त आयुर्वेद चिकित्सक एस.एन.श्रीवास्तव। 2. विभागीय आयुक्त के पास चल रही भ्रष्टाचार की जांच।
सीहोर जिले में तथा-कथित भ्रष्टाचार के मामले में जनता के हाथों, लात जूते खाने वाला जिला आयुर्वेद अधिकारी सह अधीक्षक डॉ. एस.एन. श्रीवास्तव जो कि वर्तमान में रायसेन जिले के मोकलवाड़ा विंध्याचल भवन में अपनी अर्जी आयुक्त के समझ प्रस्तुत सह अधीक्षक एवं जिला आयुर्वेद अधिकारी बनने की फिराक में है। सोचनीय पहलू यहां यह है कि क्या आयुक्त संचालनालय आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति एवं होम्योपैथी भोपाल भ्रष्टाचार में अंकठ डूबे इस चिकित्सक को सम्मान से नवाजते हुए उसकी हौंसला अफजाई करेंगे या अपने नीति एवं धर्म को बरकरार रखना ठीक समझेगे। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के गृह जिला सीहोर में पदस्थ रहे, जिला आयुर्वेद अधिकारी सह अधीक्षक एस।एन। श्रीवास्तव का प्रारंभिक दौर से ही विवादों से चोली दामन का साथ रहा। एक के बाद एक भ्रष्टाचार का कारनामा उनके दामन को बदनामी का बदनुमां दाग लगाए बगैर नहीं रहा है। अपनी गंदी सोच एवं भ्रष्ट नीति के कारण डॉ। श्रीवास्तव जनप्रतिनिधियों की आंखों की किरकरी बने रहे। इनके संबंध में जनशिकायतों की एक लम्बी फेहरिस्त आयुक्त कार्यालय में दर्ज है।जिसकी जांच चल रही है। जांच के परिणाम अभी आना शेष है। परिणाम स्वरूप ये महाशय अपने लिए सह अधीक्षक जिला आयुर्वेद अधिकारी बनने की दावेदारी प्रस्तुत कर रहे है। इतना ही नहीं इनके ऊपर दवाईयों की खरीद फरोख्त तथा नियुक्ति के नाम लेेन-देन का आरोप है ऐसा नहीं कि उपरोक्त चिकित्सक पर लगे आरोप झूठे हो। अगर यह चिकित्सक ईमानदार और कर्तव्य निष्ठ हो तो इनका डिमोशन ही क्यों होता इन्हें जिले का सहअधीक्षक जिला अधिकारी बनाकर ही नही भेजा जाता। आज मोकलवाड़ा में इन्हें अपनी सेवाएं देने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
- मोकलवाड़ा आयुर्वेद रहता है बंद -
कर्तव्यों के प्रति पूर्णत: उदासीन एवं लापरवाह क्षेत्रीय अधिकारी डॉ। एस।एन। श्रीवास्तव सीहोर जिला मुख्यालय की भांती यहां भी अपनी डियूटी से नदारत रहते हैं। इनकी मुख्यालय पर अनुपस्थिति में निरन्तरता बनी रहने के कारण आयुर्वेद में पहुंचने वाले मरीजों को निराश होकर लौटना पड़ता है। हालांकि इनके क्रियाकलापों की शिकायत स्थानीय ग्रामीण जन कलेक्टर समेत जिला प्रभारी मंत्री से भी कर चुके है। बावजूद इसके न तो प्रभारी मंत्री एवं न कलेक्टर ने ही इनके विरूद्ध कार्यवाही की। यही वजह थी कि भ्रष्ट चिकित्सक ने गत दिनों आयुक्त संचालनालय आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति एवं होम्योपैथी भोपाल के समक्ष लिखित आवेदन देकर स्वयं को रायसेन जिले का सह अधीक्षक एवं जिला आयुर्वेद अधिकारी बनाने की मांग की है। क्या उनकी ये मांग उस समय तक करना उचित है जब तक की उनके ऊपर चल रहे तथा कथित भ्रष्टाचार की जांच पूरी नहीं हो जाती और वह उसमें दोष मुक्त नहीं हो जाते। ऐसी स्थिति में आयुक्त महोदय को भी मामले को गंभीरता से लेकर इनकी पदोन्नति पर विचार करना होगा। क्योंकि पदोन्नति की स्थिति आयुक्त की कार्यवाही भी संदेह के घेरे में आए बगैर नहीं रहेगी।
- हराम के खाने की आदत जो है -
एस.एन. श्रीवास्तव जैसे भ्रष्ट चिकित्सक मेहनत के बूते पर कुछ हससिल करने में विश्वास नहीं रखते वह तो हराम की कमाई से पेट भरना चाहते है। यही वजह है कि उन्होंने अपने 15 दिवसीय कार्यवधि में ही लूट-खसौट शुरू कर दी। दवाइयों का वितरण शासन की और से एक दम निशुल्क है जबकि डॉ. श्रीवास्तव इसके लिए मरीजों से दवाईयों की कीमत वसूलते हैं। जो कि सरासर गलत है। ऐसी करतूतों पर उपरोक्त चिकित्सक पर न्यायिक जांच की कार्यवाही जिला कलेक्टर सुनीता त्रिपाठी के माध्यम से होनी चाहिए। जिला प्रशासन को चाहिए कि वह उपरोक्त चिकित्सक के विषय में सीहोर जिला मुख्यालय से जानकारी हासिल करें जिससे कि सच्चाई का पर्दाफाश हो सके। सीधा सा फंडा इनके जिला आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी बनने के पीछे यही हैं कि वह सम्मानित पद पर बैठकर भ्रष्टाचार कर सकें।
- 15 दिन में ये स्थिति -
सोचनीय पहलू तो यह है कि 07 जुलाई 10 को जिले के मोकलवाड़ा में पदस्थ उपरोक्त चिकित्सक ने जब अब से ही अपने भ्रष्ट तेवरों को दिखाना प्रारंभ कर दिया है तो यह आगे क्या करेंगे इसका अंदाजा अभी से लगाया जा सकता है। फिर यदि इनको आयुक्त के रहमों करम पर जिला आयुर्वेद अधिकारी सह अधीक्षक बना दिया जाता है तो फिर तो इनकी चाल-ढाल ही-बदल जाएगी। भला हो शासन-प्रभासन का जो कि इस भ्रष्ट चिकित्सक की पदोन्नति न करें।
बुराई क्या है? वर्तमान सह अधीक्षक में
वर्तमान समय में जिले को एक ईमानदार एवं कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी आयुर्वेद चिकित्सालय को डॉ. जी के शाक्य के रूप में मिला है। आयुर्वेद औषद्यालय में अभी तक के जिला आयुर्वेद अधिकारी सह अधीक्षक शिकायतों के घेरे में रहते आए हैं। उन्होंने या तो स्वयं स्थानांतरण करा लिया या फिर वे स्वयं अपनी शिकायतों को लेकर हटाए गए। कारण जो भी रहा हो आयुर्वेद औषद्यालय विवादों की स्थिति का शिकार होता आया और अन्तोगत्वा इसका लाभ मरीजों को नहीं मिल पाया। लेकिन जब से इसका कार्यभार डॉ. जी.के. शाक्य के हाथों में आया है तब से मरीजों का विश्वास आयुर्र्वेद चिकित्सा पद्धति की और बड़ा है। आज आयुष में सबसे ज्यादा भीड़ मरीजों की देखी जा रही है। डॉ. शाक्य के ही अथक प्रयासों से जिला प्रशासन ने पंचकर्म चिकित्सा पद्धति में रूचि दिखाई है। उसमें भी अभी पर्याप्त स्टॉफ की पूर्ति शेष है। बावजूद इसके डॉ. शाक्य ने दो महिला चिकित्सकों की व्यवस्था की है। प्रतिदिन मरीजों की संख्या में बढ़ोत्तरी भी डॉ. शाक्य की अभिरूचि का जीवंत उदाहरण है इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि उक्त चिकित्सक के चिकित्सीय अनुभवों का लोहा स्थानीय नागरिक भी मानते है। ऐसी स्थिति में डॉ. शाक्य का स्थान परिवर्तन होता है स्वाभाविक सी बात है कि इसका दुव्यप्रभाव भी आयुर्वेद औषद्यालय पर पढ़ेगा। च