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(भोपाल // टाइम्स ऑफ क्राइम)
पासजबलपुर सिविक सेंटर की भूमि हासिल करने के लिए सारी हदें पार करते हुए दैनिक भास्कर प्रबंधन ने भूमि खरीदने से पहले ही नक्शा पास करा लिया। संभवत: यह प्रदेश का पहला ऐसा मामला होगा जिसमें भूमि के स्वामित्व और कब्जे के बिना ही नक्शा पास करा लिया गया। दैनिक भास्कर के अवैध कार्य में नगर तथा ग्राम निवेश कार्यालय ने भरपूर सहयोग दिया। नगर तथा ग्राम निवेश कार्यालय में इसके लिए बकायदा डायरेक्टर राकेश अग्रवाल के नाम से गलत शपथ पत्र देकर कानून को ताक पर रख दिया गया।
वर्ष 2007 में अनुज्ञा, 2008 में भूमि का
पंजीयनसिविक सेंटर में बहुमंजिला भवन के निर्माण के लिए भास्कर प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर राकेश अग्रवाल के शपथ पत्र पर भवन निर्माण की अनुज्ञा के लिए 10 मई 2007 को आवेदन किया गया। आवेदन पर 3 अक्टूबर 2007 को पत्र क्रमांक 1855 के द्वारा ले-आउट स्वीकृति की अनुज्ञा जारी हुई। जबकि इस तारीख में दैनिक भास्कर के पास उक्त जमीन का मालिकाना हक ही नहीं था।जबलपुर विकास प्राधिकरण ने 2006 में एकतरफा कार्रवाई करते हुए पंचनामा के द्वारा भूमि का कब्जा भी वापस ले लिया था। आश्चर्यजनक बात है कि इसके चार माह बाद उक्त भूमि की लीजडीड का पंजीयन हुआ। जबलपुर विकास प्राधिकरण ने 30 जनवरी 2008 को कैलाश अग्रवाल प्रबंध संचालक दैनिक भास्कर के नाम से लीजडीड का निष्पादन किया। लीजडीड का विधिवत पंजीयन पंजीयक कार्यालय में पुस्तक क्रमांक ए-1, ग्रंथ क्रमांक 23 के पृष्ठ क्रमांक 99 से 103 पर अंकित किया गया।
अनुज्ञा और पंजीयन में नाम का फेर
जेडीए ने जनवरी 2008 में सिविक सेंटर की भूमि का पंजीयन कैलाश अग्रवाल प्रबंध संचालक दैनिक भास्कर के नाम से किया। जबकि चार माह पूर्व ही नगर तथा ग्राम निवेश कार्यालय से भास्कर प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड के नाम से अनुज्ञा प्राप्त कर ली गई। नक्शे और लीजडीड में स्वामित्व के अंतर को मिटाने के लिए 17 अपे्रल 2008 को मात्र 100 रूपए के स्टाम्प पर शुद्धि विलेख कराया गया। इसमें भी शासन और जेडीए को स्टाम्प शुल्क और ट्रांसफर फीस की लाखों रूपए की राशि का चूना लगाया गया।
जमीन न पट्टा फिर भी नक्शा पासस्वत: निरस्त होने का प्रावधान
भास्कर प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड के नाम से नगर तथा ग्राम निवेश कार्यालय द्वारा जारी अनुज्ञा में स्पष्ट लिखा है कि किसी प्रकार के विवाद की स्थिति में अनुज्ञा स्वत: ही निरस्त हो जाएगी। इसको दरकिनार करते हुए नगर निगम एवं अन्य विभाग में इसी अनुज्ञा का उपयोग किया गया।
ऎसे चला घटनाक्रम
- 17 जून 2003- जेडीए ने विश्वम्भर दयाल अग्रवाल के वारिसानों के नाम से लीजडीड का निष्पादन किया। लीजडीड का बकायदा पंजीयन कराया गया।
- 30 जनवरी 2008- पुरानी लीज के वैधानिक निरस्तीकरण के बगैर दूसरी लीजडीड का निष्पादन हुआ। दूसरी लीजडीड कैलाश अग्रवाल प्रबंध संचालक दैनिक भास्कर के नाम से पंजीकृत कराई गई।
- 25 मार्च 2008- सिविक सेंटर की उक्त भूमि पर भास्कर प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड के नाम से अनापत्ति प्रमाण पत्र मांगा गया। सिडबी से ऋण के लिए इसकी आवश्यकता बताई।
- 17 अपे्रल 2008- सौ रूपए के स्टाम्प पर शुद्धि विलेख का पंजीयन कराया गया। इसमें दैनिक भास्कर के स्थान पर "भास्कर प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड", जोड़ दिया गया।
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वहीं प्रथम और दूसरा अध्याय भी पाठकों को उपलब्ध कराया है अब इस अंक में आपको बीच का एक अध्याय प्रस्तुत कर रहे है जो इस किताब का प्रकाशित अंश है......
कलिनायक किताब में प्रकाशित***************************************************************************
तीसरा अध्याय
*************************ग्वालियर का फर्जीवाड़ा
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वह शतरंज का बाजीगर बन गया था।कारण कि, उसकी शतरंजंज के नियम-कायदे वह खुदुद अपने हिसाब से, तय करने लगा था। केवल उसका घोड़ा... ढाई घर तिरछा नहीं,बल्कि जहां चाहे, वहां वार करता था। उसने शतरंज की अपने मन मुताबिक गोटियां फिट कर दीं तो शह और मात की झड़ी लग गई और उसके सारे विरोधी धूल चाटने लगे। वे सफेद खानों पर चारों खाने चित्त हो गए, मगर वह तो काले खानों पर तांडव मचाता मोहरों को मसलता हुआ खुश होता रहा। यह शतरंज का अनूठा खेल कोई और नहीं, कलिनायक खेल रहा था।
निशाने पर ग्वालियर
- हर अध्याय में आपको रमेश के अलग-अलग दुर्गणों का ज्ञान होगा। इस अध्याय में आप पढगं़े कि पतैंरेबाज रमशे के पास ''काण्डों'' को अजंाम देने का दमखम है। बिना इसके ग्वालियर पर कब्जा करना कठिन था। ग्वालियर में किये गये काण्डों को सही-सही गिन पाना आसान नहीं है। पते की बात यह है कि रमेश के काले कारनामें, जिसे वह सतरंगी सपने मानता है, इनको कितने अक्षरों, शब्दों, वाक्यों में पिरोया गया, शायद ही गिना जा सके। हम इस अध्याय में आपको इसकी एक झलक एट ए ग्लांस दिखा रहे हैं:-
- सिंिधया राजघराने की नगरी ग्वालियर से सचं ालित कम्पनी-भास्कर पब्लिकेशन एंड एलाइड इंडस्ट्रीज, की स्थापना द्वारका प्रसाद के द्वारा की गई थी।
- इस अध्याय में दिए गए तथ्यों की सच्चाई के सबूतों का अवलोकन करने के लिए दस्तावेजों का संलग्न सीडी में संकलन किया गया है। इससे ''कलिनायक'' की ''करतूतों'' के प्रमाणों से मुखातिब हुआ जा सकता है।
- करतूतें खोलने से पहले आपको बता दिया जाए कि इस कम्पनी में द्वारका प्रसाद के परिवार के व्यक्तियों के दो गुट बन गए थे। एक गुट द्वारका प्रसाद, उनकी अर्धांगनी किशोरी देवी, और उनसे पैदा हुई हेमलताके अलावा द्वारका प्रसाद के अनुज विशम्भर दयाल का था। और दूसरा गुट द्वारका प्रसाद की पहली पत्नी कस्तूरी देवी के पुत्र रमेश, रमेश की पत्नी शारदा और रमेश की हॉं में हॉं मिलाने वाले खासमखास देवेन्द्र तिवारी का था। ये सब रमेशी शतरंज के माहिर खिलाड़ी थे।अब रमेशचन्द्र की नजर इस कंपनी पर पड़-गड़ गई।
रमेश की चाहतकर लं ग्वालियर मु_ी में
- शुरू-शुरू में कम्पनी में रमेश का गुट अल्पमत में था। रमेश-पक्ष का वजन तो कम था। मगर लिप्सा का प्रेशर कुकर उसके दिमाग में फटने को तैयार था। इसलिए रमेश अपने पिता को हटाकर कम्पनी का मालिक बनना चाहता था। कंपनी का मालिक बनने तक जनाब का हाल-बेहाल था।
- ग्वालियर का भी बनू... मै मालिक,
- अब उसका ये नया एजेंडा था। अपने हड़पिया मंसूबे को पुरा करने के लिए जरूरी था कि रमेश गटुका कम्पनी में बहुमत हो। मौजूदा हाल में रमेश अपने बाप, बहन और चाचा के शेयर तो हड़प नहीं सकता था। समस्या का मगरमच्छ मुंॅह फैलाए खड़ा था। समस्या ये थी कि कम्पनी का मालिक कैसे बना जाये? कौन सी शतरंजी चाल चली जाए कि कपंनी जबड़े में जकड़ लें ? आखिरकार कैसे आए॥
मालिक बनू तो बनू कैसे?
बहुमत में आने के लिए आखिर क्या करें? इसे कहते हैं- कुर्सी की वासना। अपने नापाक उद्देश्य की पूर्ति हेतु उल्टी गंगा बहाने में विशेषज्ञ रमेश ने कूट-योजनापूर्वक कम्पनी पर कब्जा करने के लिए क्या षड्यंत्र रचा,उसने कैसी चालें चलीं, कैसे षडय़ंत्रों की गटरगंगा वही, आइये पाठकों, आप भी इसे जानिए:-ग्वालियर में बिछी बिसात, औैर यह थी रमेश की पहली सफलशतरंजी चाल... हड़पने के लिएशेयर कैपिटल बढ़ाकर, अकेले हड़पे वे सारे शेयर और बन बैठा मालिकहसबसे पहले रमेश ने मनमाने (Arbitrary) गैरकानूनी (illegal) और गलत (Wrongfull) तरीके से शेयर कैपिटल को बढ़ाया।हदस से तीस पर आया रमेेश-वह सन् 1987 के जुलाई माह का नौवा दिन था। जब रमेश ने अपने पिता की गरै हाजिरी में आयोजित मीटिंग में कम्पनी की शेयर कैपिटल दस हजार से बढ़ाकर तीस हजार कर दी।- रमेश ने ग्वालियर की कंपनी के अतिरिक्त शेयर किसी को जानकारी दिये बिना जारी कर दिये। और बाद में बढ़े हुए ये 6,603 शेयर किसी भी अन्य शेयर होल्डर को ऑफर नहीं किये।
- वो सारे के सारे शेयर अपने माता-पिता, बहन या चाचा के नहीं बल्कि रमेश ने खुद अपने नाम पर आवंटित कर दिये। इस तरह खुद रमेश ने ही उन शेयरों को खरीद लिया।ग्वालियर की बिसात में रमेश की पहली चाल ने ही बाजी पलट दी:-सारे शेयर हड़प कर, कम्पनी अपनी बनाईरमेश ने यह सब फर्जीगिरी इसलिए की ताकि वह बढ़े हुए शेयर अपने नाम पर कर कपं नी पर अपना सिक्का जमा सके। हड़पे शेयेयरों की बदौलत रमेश गुट बहुमत में आ गया और रमेश के पिता का गटु अल्पमत में आ गया। वाह-वाह....क्या अनूठी चाल चली। खुद ही विक्रेता और खुद ही ग्राहक।
- गैर कानूनी जोड़ तोड़ से कानून हुआ आहत
- यही वो शातिर तरीका था...जिससे चतुर रमेश ने कंपनी-एक्ट और आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन के सारे प्रावधानों को धता बता कर गैरकानूनी तरीके से ग्वालियर की कंपनी को अपने कब्जे में ले लिया। कपट का ऐसा प्रहार कि, कानून हुआ तार-तार।
- पिता का गुट मेमने की तरह मिमियाता और हाथ मलता रह गया। इस प्रकार रमेश के पहले ही वार ने मचाया हाहाकार। आस्तीन के सांप से डसे, अल्पमत का तो यही हश्र होना था कि उसके प्यादे पिट जाएं, उसके साथ इससे कम कुछ हो ही नहीं सकता था।
- इस तरह दैनिक भास्कर ग्वालियर का साम्राज्य हड़पने की रमेश की काली इच्छा पूरी हो गई तो एसेे रमेश औैरंगजेबी अंदाज में कम्पनी का सर्वेसर्वा बन बैठा।
लगातार.....- .नोट:- इस द्वंद युद्ध के पीछे की जानकारी का भी हम शीघ्र खुलासा करेंगे। इस खबर पर कमेन्टस हमारी बेबसाइट www.tocnewsindia. blogspot.com एवं timesofcrime@gmail.com पर भेज सकते है। वहीं जानकारी साझा करने के लिए संपर्क कर सकते हं।