कलैक्टर को कटींग भिजवाने की आड़ में होता है ब्लेकमेलिंग सौदेबाजी का खेल
बैतूल// रामकिशोर पंवार ( टाइम्स ऑफ क्राइम)
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मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले का जन सम्पर्क कार्यालय में भले ही सहायक सूचना अधिकारी की पदस्थापना हो जाती हैं लेकिन पूरा जन सम्पर्क कार्यालय एवं जिले में पीआरओ बन कर एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ही अवैध चौथ वसूली का कार्य एक दो नहीं बल्कि पूरे एक दशक से अधिक समय से कर रहा है। भोपाल में बैठे जन सम्पर्क विभाग के आला अफसरो का कथित मुंह लगा जन सम्पर्क विभाग का चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी अपने आप को कर्मचारी संघ का नेता बता कर जहां एक ओर प्रशासन पर अपनी कथित पहुंच का दबाव बना कर उन्हे ब्लेकमेल कर रहा हैं वही दुसरी ओर वह यह तय करता हैं कि जिले में किस पत्रकार की $खबर की कतरन कलैक्टर तक पहुंचाई जाए या नहीं। सबसे शर्मनाक बात तो यह हैं कि जन सम्पर्क विभाग के अभी तक के अधिकारी उसके सामने पानी भरते है और जो उसकी बात नहीं मानता हैं तो उसे वह पत्रकारो से आपस में लड़वा देता है या फिर जिला प्रशासन से उसे उलझा देता हैं। दो पूर्व जन सम्पर्क अधिकारियों का हश्र भी इसी चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी की नीति और रीति के चलते हुआ था। बैतूल में पदस्थ रहे सहायक संचालक जन सम्पर्क श्री धौलपुरिया का पूर्व कलैक्टर चन्द्रहास दुबे एवं अरूण भटट से विवाद के पीछे का षडय़ंत्र भी इसी कर्मचारी की ही देन है। पत्रकार गगनदीप खरे एवं रजत परिहार के बीच कथित वाद विवाद को हवा देकर इसी कर्मचारी रूपी नेता ने दोनो को लड़वा दिया। इस घटना का दुखद पहलू यह रहा कि श्री धौलपुरिया के कहने पर एक कर्मचारी की शिकायत पर दोनो पत्रकारो के खिलाफ शासकीय कार्य में बाधा एवं अनुसूचित जाति जन जाति प्रताडऩा अधिनियम के तहत प्रकरण दर्ज करवाया गया। कलैक्टर से विवा के चलते श्री धौलपुरिया की जल्दी से बिदाई हो गई। इसी कड़ी में बीते दो वर्षो से प्रशासन एवं पत्रकारों के बीच मध्यस्थता कर रहे सहायक सूचना अधिकारी गुलाब सिंह मर्सकोले एवं बैतूल कलैक्टर के बीच विवाद का बीज बोने में इसी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की कथित भूमिका रही। बताया जाता हैं कि जन सम्पर्क कार्यालय में लिपीक के अभाव में कार्यालय की लेखा शाखा का कार्य एपीआरओ श्री मर्सकोले ने इस कर्मचारी नेता को न देकर एक अन्य चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को दे रखा था जिसके चलते विभाग की आतंरिक कलह बाजार में आने लगी। लाल बंगले को खाली करवाने की कलैक्टर की तथाकथित एपीआरओ से बातचीत को भी इसी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी द्वारा सार्वजनिक कर पत्रकारो को आपस में ही एक दुसरे से उलझा कर लाल बंगले को खाली करवाने को लेकर हुई कथित सौदेबाजी की कहानी गढ़ कर प्रशासन और पत्रकारों के बीच एक लम्बी चौड़ी दिवार खीच कर दोनो को आपस में लड़वा कर एपीआरओं को मोहरा बना कर उसे कलैक्टर के विवाद में बलि का बकरा बना दिया गया। सूत्रो का तो यहां तक कहना हैं कि पिछले छै माह से बैतूल आने का लालयीत वर्तमान एपीआरओ एवं इस कर्मचारी नेता के बीच हुई कथित सौदेबाजी के चलते सोची समझी साजिश के तहत एक षडय़ंत्र रचा गया। जिसके लिए कलैक्टर को मोहरा बना कर जानबुझ का लाल हवेली का मामला उछाला गया। अपने विभाग की गोपनीयता से लेकर एसडीएम और कलैक्टर के द्वारा लाल बंगले को खाली करवाने के गोपनीय शासकीय पत्रों को सार्वजनिक कर एक ओर कलैक्टर के कथित विरोधी पक्ष के पत्रकारो को भड़काने का काम किया गया वही दुसरी सवर्ण जाति के कुछ पत्रकारों के साथ मिल कर कलैक्टर को आदिवासी एपीआरओ मर्सकोले के खिलाफ इस कदर भड़काया गया कि कलैक्टर और एपीआरओं के बीच हुए विवाद ने सवर्ण जाति के एपीआरओं के रास्ते का कांटा बना आदिवासी एपीआरओं को बलि का बकरा बनना पड़ा। पूरे मामले के कुछ रोचक तथ्य यह सामने आए थे कि एपीआरओं को पता चल चुका था कि चर्तुथ श्रेणी कर्मचारी जन सम्पर्क कार्यालय से प्रतिदिन होने वाली कंटिगो को कलैक्टर के कार्यालय भेजने के पूर्व संबधित विभाग के कर्मचारियों को फोन लगा कर डराता एवं धमकाता था कि यदि उनके खिलाफ छपी कतरने कलैक्टर तक पहुंचा दी गई तो उनकी नौकरी पर आफत आ जाएगी। कलैक्टर तक वे ही कतरने भेजी जाती थी जिसमें कुछ मिला न हो। समय - समय पर कलैक्टर एवं एपीआरओं के बीच चले शीतयुद्ध का इस चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ने भरपुर फायदा उठाया और आज भी वहीं कार्य कर रहा हैं। अब बैतूल जन सम्पर्क कार्यालय का वर्तमान सवर्ण जाति के एपीआरओं के आने के बाद एक बार फिर दलित एवं आदिवासी तथा पिछड़े वर्ग के पत्रकारो के साथ वहीं होगा जो अभी तक नहीं हुआ था। अब बैतूल जन सम्पर्क कार्यालय में अधिमान्यता से लेकर विज्ञापन तक की दुकाने लगेगी और चपरासी से लेकर अधिकारी तक मिल बाट कर माल कमायेंगें।