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इंदौर। प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग के अमले पर नसबंदी के लक्ष्य को पूरा करने को लेकर मारामारी किस हद तक है इसका जीता जागता उदाहरण है प्रदेश के दो जिलों में दो गर्भवती महिलाओं की नसबंदी होना। स्वास्थ्य विभाग की करतूत की शिकार हुई इन महिलाओं में से एक महिला की हालत गंभीर है, जबकि विभाग अपनी करतूत की लीपापोती में जुट गया है।
अलीराजपुर के रोड़दा गांव की रहने वाली दातीबाई पति कालिया [28] को 29 जनवरी को अलीराजपुर जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। दातीबाई गर्भवती थी एवं अचानक उसे रक्तस्त्राव होने लगा था। डॉक्टरों ने जांच की तो पता चला कि दातीबाई की नसबंदी कर दी गई थी। डेढ़ महीने पहले इसी अस्पताल में दाती बाई रुटीन चेकअप के लिए आई थी। जहां नसबंदी शिविर चल रहा था। उसी दौरान अनपढ दातीबाई को बहला फुसलाकर उसकी नसबंदी कर दी गई। उस वक्त दातीबाई के तीन माह का गर्भ था। अस्पताल में भर्ती होने के बाद बुधवार को दातीबाई की हालत खराब होने लगी एवं उसका गर्भपात करना पड़ा। अधिक रक्तस्त्राव होने की वजह से दातीबाई की जान बचाने के लिए खून की बोतलें चढ़ानी पड़ी। फिलहाल दातीबाई की हालत गंभीर बनी हुई है। अलीराजपुर सिविल अस्पताल के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी वीएस बघेल ने पूरी घटना की जांच की बात कहते हुए पल्ला झाड़ लिया, जबकि पूरा स्वास्थ्य महकमा मामले की लीपापोती में लगा हुआ है।
वहीं मंदसौर में संगीता बैरागी नामकी महिला की 31 जनवरी को सीतामऊ में लगे नसबंदी शिविर में नसबंदी कर दी गई। जिसके बाद संगीता की हालत भी दातीबाई की तरह हो गई। अत्यधिक रक्सस्त्राव के चलते मंदसौर जिला अस्पताल में संगीता को भर्ती कराया गया। जहां उसका गर्भपात हो गया। मंदसौर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी एसएस वर्मा ने संगीता की नसबंदी करने को तो गलत माना मगर अपने विभाग की गलती मानने की बजाय वो इसमें संगीता के परिवार की सहमति बताने लगे, जबकि परिवार कल्याण कार्यक्रम के नियम के मुताबिक अगर महिला गर्भवती है तो उसकी स्वीकृति के बाद भी नसबंदी नहीं की जा सकती।