राधा वल्लभ शारदा है सत्ता का दलाल - आदित्य नारायण उपाध्याय
राधा वल्लभ शारदा है सत्ता का दलाल -
आदित्य नारायण उपाध्याय
सरकार ने जनता से बेहतर संवाद स्थापित करने के लिए जनता के खजाने से दो सौ करोड़ रुपयों से अधिक की धनराशि मुहैया कराई है. इस धनराशि का लाभ प्रदेश के दूरदराज अंचल के पत्रकारों तक भी पहुंचे इसके लिए पत्रकार पंचायत के माध्यम से उचित तंत्र विकसित किया जा सकता है।पत्रकार पंचायत की इस पहल का पत्रकारों ने स्वागत किया है।
वे पत्रकार वास्तव में सत्ता के दलाल
साथियो पत्रकार पंचायत का स्वागत करने के लिए बुलाई गई पत्रकार वार्ता को प्रतिवादडॉटकॉम ने जस का तस प्रस्तुत कर दिया है. आप भी इसे देख सकते हैं और जान सकते हैं कि पत्रकार पंचायत किस तरह प्रदेश के आम नागरिकों के हित में है.
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राधा वल्लभ शारदा है सत्ता का दलाल -
आदित्य नारायण उपाध्याय
सरकार ने जनता से बेहतर संवाद स्थापित करने के लिए जनता के खजाने से दो सौ करोड़ रुपयों से अधिक की धनराशि मुहैया कराई है. इस धनराशि का लाभ प्रदेश के दूरदराज अंचल के पत्रकारों तक भी पहुंचे इसके लिए पत्रकार पंचायत के माध्यम से उचित तंत्र विकसित किया जा सकता है।पत्रकार पंचायत की इस पहल का पत्रकारों ने स्वागत किया है।
वे पत्रकार वास्तव में सत्ता के दलाल
साथियो पत्रकार पंचायत का स्वागत करने के लिए बुलाई गई पत्रकार वार्ता को प्रतिवादडॉटकॉम ने जस का तस प्रस्तुत कर दिया है. आप भी इसे देख सकते हैं और जान सकते हैं कि पत्रकार पंचायत किस तरह प्रदेश के आम नागरिकों के हित में है.
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सत्ता का दलाल कौन : पत्रकार पंचायत के बहाने रोटियां सेंकने की जुगत
भड़ास पर भोपाल से अरशद अली ख़ान की रिपोर्ट.
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भोपाल। लम्बे समय से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह विभिन्न वर्गों की पंचायतें आयोजित करके झुनझुने थमाने का काम कर रहे हैं. इसी क्रम में मुख्यमंत्री ने श्रमजीवी पत्रकार संघ के एक कार्यक्रम में पत्रकारों की पंचायत बुलाने की भी घोषणा कर डाली। इसी के साथ कुछ पत्रकारों को बैठे ठाले सरकार की भांडगिरी का अवसर मिल गया है। कुछ पत्रकारों ने मुख्यमंत्री की पत्रकार पंचायत के समर्थन में मोर्चा खोल दिया और पत्रकार पंचायत का विरोध करने वालों को सत्ता का दलाल घोषित कर दिया जबकि सच्चाई ये है कि अभी तक किसी भी पत्रकार ने पत्रकार पंचायत का खुलेआम विरोध ही नही किया है, इसलिए मनगढ़त तरीके से किसी को सत्ता का दलाल बताने का कोई औचित्य समझ से परे है।
वास्तविकता तो यह है कि पत्रकार पंचायत का समर्थन करने वाले लोग ही सत्ता की दलाली कर रहे हैं। पत्रकार पंचायत का समर्थन करने वाले इस बहाने मुख्यमंत्री और सरकार की भांडगिरी करने का कोई भी मौका हाथ से जाने देना नहीं चाहते। दरअसल यह लोग पत्रकार पंचायत का समर्थन करके अपनी रोटियां सेंकना चाहते हैं। वह यह भूल रहे हैं कि जिन शिवराज सिंह को वह पत्रकारों का हितैषी बता रहे हैं, पत्रकारिता का सबसे अधिक नुकसान उन्हीं के शासन काल में हुआ है। सच छापने वालों की इस सरकार में क्या गत बनती है इसका उदहारण हम राज एक्सप्रेस के जरिए देख चुके हैं। सभी जानते हैं कि राज ग्रुप का मॉल इसलिए नहीं टूटा था कि उसका निर्माण अवैध था, बल्कि इस लिए टूटा था क्योंकि उसने सरकार को आईना दिखाने का साहस दिखाया था। सरकार की यह कार्यवाही शिवराज सिंह के लिए फायदे का सौदा साबित हुई और प्रदेश के लगभग सभी बड़े समाचार पत्रों ने सरकार के समक्ष घुटने टेक दिए। फिर ऐसे मुख्यमंत्री से पत्रकारों के भले की उम्मीद कैसे की जा सकती है।
जहां तक पंचायतों का सवाल है तो अभी तक विभिन्न वर्गों की हुई पंचायतों का अनुभव अच्छा नहीं रहा है। किसान, मज़दूर, हम्माल और कोटवार आदि की हालत पंचायतों के बाद भी क्या है, किसी से छिपी नहीं है। मुख्यमंत्री इन सभी वर्गों की पंचायतें बुला चुके हैं, फिर यह कैसे मान लिया जाए कि पत्रकार पंचायत बुलाने से पत्रकारों का कुछ भला हो जाएगा। पंचायत बुलाने के पीछे अगर मुख्यमंत्री की मंशा पत्रकारों की समस्याओं से रू-ब-रू होना है तो क्या अपने आप को किसान पुत्र और आम आदमी कहने वाले मुख्यमंत्री को इतना भी नहीं पता की पत्रकारों की समस्याएं क्या हैं? अपने 6 वर्षों के कार्यकाल में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अगर आमजन की समस्याओं को नही समझ पाए तो इससे बड़ा दुर्भाग्य कुछ नहीं हो सकता।
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अरशद भाई आपसे अफसाना लिखने की उम्मीद नहीं की जाती है। पत्रकार पंचायत का विरोध करने वालों की खबर लिंक करके दी है. फेसबुक पर इस कतरन को आसानी से पढ़ा जा सकता है। पंचायत में चर्चा करने से कौन बच रहा है इसे आप आसानी से समझ सकते हैं। हमारे बारे में आप अच्छी तरह जानते हैं कि हम सत्ता के दलालों को बेनकाब करने में सबसे आगे रहते हैं।
अरशद भाई की रिपोर्ट आलोक सिंघई की प्रतिक्रिया
बड़ी हैरत की बात है कि खुद को वरिष्ठ कहने वाले बहुत से पत्रकारों का तर्क है कि पत्रकार तो सरकार का विरोधी होता है उसे सरकारी कार्यक्रमों का स्वागत नहीं करना चाहिए। जबकि सच ये है कि पत्रकार कभी किसी का विरोधी नहीं होता,विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका का विरोध तो वो कभी करता ही नहीं। वह केवल सच का सच्चा समर्थक होता है। सच की तथ्यात्मक पैरवी करते हुए अक्सर वह लोकतंत्र के इन तीनों स्तंभों या किसी एक पक्ष का विरोधी नजर आ सकता है। संवाद संदेशों का पूरे तरीके से कारगर न होने के कारण ये हालत बन जाते हैं ।
आपकी चापलूसी या भटैती की परिभाषा के अनुसार तो जज जब तथ्यों के आधार पर किसी अपराधी को दंड देता है तो क्या उसे अपराधी का विरोधी और सरकार का चापलूस कहा जा सकता है।कार्यपालिका जब सुशासन के लिए किसी बिल्डर का अतिक्रमण हटाती है तो क्या उसे जनता का दुश्मन और सरकार का चापलूस माना जा सकता है,हां ये बात जरूर है कि कई बार कई नासमझ अखबार एसे मुद्दों पर भी प्रशासन की कार्रवाई का ओछा विरोध करते हैं और अपनी विश्वसनीयता खंडित कर लेते हैं, यही नहीं अतिक्रमण कारी लोग ऊपरी मन से उनकी तारीफ करते हैं पर भीतरी मन से वे भी जानते हैं कि वे गलत थे और उन्होंने अखबार का बेजा इस्तेमाल किया है। इसी प्रकार जरूरी नहीं कि पत्रकार सरकार के हर कदम का विरोध ही करे तभी उसकी भूमिका कारगर होगी।
जनता की चुनी सरकार यदि कोई फैसला लेती है तो क्या उसका विरोध या समर्थन गुणानुक्रम में नहीं होना चाहिए। आपके तर्कों के मुताबिक पत्रकार पंचायत का समर्थन करने वाले पत्रकार सरकार की भटैती कर रहे हैं। क्या अपने इस तर्क के समर्थन में आप कोई तथ्य भी दे सकते हैं। यदि आपके पास कोई तथ्य नहीं है तो कृपया गाल बजाने के लिए अनर्गल प्रलाप न करें। मेरे पास एसे ढेरों तथ्य हैं जिनके आधार पर मैं ये साबित कर सकता हूं कि पत्रकार पंचायत का विरोध करने वालों में कुछ वे हैं जो इस मामले की गंभीरता नहीं समझ रहे और कुछ सत्ता के दलाल हैं। सत्ता के इन दलालों के खिलाफ मेरे पास ठोस तथ्य हैं जिनके आधार पर इन्हें सत्ता का दलाल साबित किया जा सकता है। न केवल जनता के सामने बल्कि अदालत के सामने भी।
हमारा निवेदन है कि पत्रकार को चोर दरवाजे से सरकारी सहयोग देकर उसे चोर, दलाल, ब्लैकमेलर बनाने की परंपरा बंद होनी चाहिए। हमें चौथे स्तंभ का अस्तित्व स्वीकार करना ही होगा और उसे सहयोग देने के लिए आवश्यक कदम उठाने ही होंगे। ये हम नहीं कहते बल्कि भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष जस्टिस मार्केण्डेय काटजू भी आज चौथे स्तंभ की शान बढ़ाने के लिए मुहिम चला रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यदि अपनी सरकार पर लगने वाले तमाम आरोपों की बौछार के बीच पत्रकार पंचायत बुलाने का साहस दिखा रहे हैं तो क्या जरूरी है कि केवल शंकाओं और कुतर्कों के आधार पर उनकी पहला का विरोध किया जाए।हम पत्रकार पंचायत को सफल बनाएं और फिर तथ्यों के आधार पर गलत बातों का विरोध करें तभी तो हम बेहतर सामाजिक संवाद स्थापित कर सकते हैं और लोकतंत्र को मजबूत बना सकते हैं।उम्मीद है कि आप अपनी और अपने साथियों की राय में कुछ न कुछ सुधार अवश्य करेंगे।
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सबका मान बढ़ाएगी पत्रकारों की महापंचायत
भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पत्रकारों की पंचायत बुलाने की घोषणा करके सत्ता के गलियारों में हलचल मचा दी है। प्रदेश के पत्रकारों के अलावा पूरे हिंदुस्तान में पत्रकारिता की नई परिभाषा लिखने के उनके इस अंदाज ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि मध्यप्रदेश वास्तव में राजनीति की प्रयोगशाला है जहां से पूरे देश के सुशासन के फार्मूले तैयार हो रहे हैं।पत्रकारों की समस्याओं के समाधान खोजने की इस पहल का हम प्रदेश के पत्रकारों की ओर से स्वागत करते हैं और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का अभिनंदन करते हैं। इसके साथ साथ हम पत्रकारों से अपील भी करते हैं कि वे आगे बढ़कर अपने सुझाव सरकार तक पहुंचाएं ताकि पत्रकारों की पंचायत का आयोजन सफल हो और पत्रकारों की बेहतरी के नए तरीके लागू किये जा सकें।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इस घोषणा से सत्ता के दलालों के पेट में मरोड़ शुरु हो गई है। उन्हें लग रहा है कि यदि मुख्यमंत्री जी प्रदेश के आम पत्रकारों से सीधे जुड़ जाएंगे तो उनकी पोल खुल जाएगी कि किस तरह वे अब तक झूठी सूचनाएं फैलाकर सरकार को गुमराह करते रहे हैं। पत्रकारों की इस पंचायत का स्वागत करने के लिए आज प्रदेश के पत्रकारों की ओर से श्री आदित्य नारायण उपाध्याय, श्री ओम प्रकाश हयारण और श्री आलोक सिंघई ने प्रेस वार्ता आयोजित की। उन्होंने बताया कि इस मुद्दे पर पत्रकारों के विचार सरकार तक पहुंचाने के लिए पांच सदस्यीय कमेटी बनाई गई है जो पत्रकारों की ओर से मिलने वाले सुझाव एकत्रित करेगी।प्रदेश के पत्रकार ये सुझाव ईमेल या पत्र के माध्यम से भेज सकते हैं। ये ईमेल patrakarpanchayat@yahoo.in पर भेजे जा सकते हैं।पत्र व्यवहार के लिए प्रेस इंफार्मेशन सेंटर, ऊपरी भूतल-7,अलकनंदा काम्पलेक्स, इंदिरा प्रेस काम्पलेक्स, जोन-1, एमपी नगर भोपाल के पते पर अपनी प्रतिक्रियाएं भेजी जा सकती हैं.पत्रकारों की समस्याओं और सुझावों को बिंदुवार रूप में संकलित करके सरकार तक पहुंचाया जाएगा.इस जानकारी में सुझाव भेजने वाले पत्रकार का नाम, पता, फोन नंबर ,मोबाईल नंबर,और ई मेल पता भी दर्शाया जाएगा।
पत्रकारों ने बताया कि माननीय मुख्यमंत्री महोदय ने पत्रकारों की समस्याओं पर विचार करने और प्रदेश में स्वस्थ संवाद का तंत्र कायम करने की दिशा में जो रुचि दिखाई है वह सराहनीय है। हाल ही में पत्रकार भवन को बारह सालों बाद पहली बार पत्रकारों की समिति को सौंपा गया है। इससे प्रदेश के पत्रकारों को राजधानी में एक बार फिर अपना स्थायी मंच मिल गया है। उन्होंने बताया कि भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष जस्टिस मार्केंण्डेय काटजू ने कई मंचों पर पत्रकारिता की स्थितियों पर क्षोभ व्यक्त किया है। उनका प्रयास है कि देश में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को मजबूती प्रदान की जाए और उसे संवैधानिक आधार प्रदान किया जाए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भारतीय प्रेस परिषद की उसी मंशा के अनुरूप पत्रकारों से संवाद करने और प्रेस को मजबूत आधार प्रदान करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं।
पत्रकार पंचायत का स्वागत करने वाले पत्रकारों का मानना है कि भारत गणराज्य के संविधान में कानून बनाने का अधिकार भले ही संसद को दिया गया हो पर उन कानूनों की स्थापना का मार्गदर्शन राज्य सरकार के पास सुरक्षित है। इस लिहाज से राज्यों को देश की सत्ता में सबसे ऊंचा दर्जा प्रदान किया गया है। एक राज्य यदि किसी सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए कोई कानून बनाता है या कोई प्रावधान करता है तो वह उदाहरण पूरे देश में लागू किया जा सकता है। मध्यप्रदेश में पत्रकार पंचायत के माध्यम से राज्य सरकार जो प्रावधान करने का प्रयास करेगी वे आगे चलकर चौथे स्तंभ को मजबूती देने वाले कानून की शक्ल अख्तियार करेंगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ही मार्गदर्शन में भ्रष्टाचारियों की संपत्ति राजसात करने का कानून राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद लागू हो चुका है।
पत्रकारों की समस्याओं से सरकार को अवगत कराने के इन प्रयासों में ये तथ्य भी उजागर किया गया है कि वर्तमान सरकार ने जनसंपर्क विभाग का बजट पांच गुना बढ़ाकर लगभग दो सौ करोड़ रुपए कर दिया है। इससे प्रदेश की पत्रकारिता को मजबूत आधार प्रदान किया जा रहा है। सरकार अपने इन प्रयासों से बेहतर जनसंवाद कायम करने जा रही है। इसके बावजूद सत्ता के दलाल इस बजट को अवैधानिक तरीकों से हथियाने में जुटे हैं,जिससे सरकार के प्रयासों का लाभ पत्रकारों को नहीं मिल पा रहा है। पत्रकार पंचायत के माध्यम से इस बजट के बेहतर वितरण की व्यवस्था की जा सकेगी। इससे पत्रकारों की समस्याएं तो दूर होंगी ही साथ में सरकार को भी सुशासन कायम करने में सहयोग मिलेगा. व्यवस्था मे सुधार के इन प्रयासों से सबसे ज्यादा लाभान्वित प्रदेश के वे साढ़े छह करोड़ लोग होंगे जिनके लिए सरकार करीब 165 कल्याणकारी योजनाएं चला रही है. अब तक कुशासन के चलते इन योजनाओं की राशि का अधिकतर हिस्सा फिजूलखर्ची में बर्बाद हो जाता था,लेकिन बेहतर संवाद के तंत्र के कारण जनता को योजनाओं का लाभ ठीक तरह दिलाया जा सकेगा.
पत्रकार पंचायत के आव्हान की गंभीरता को न समझकर जो सत्ता के दलाल इसे चौथे स्तंभ की बेईज्जती बता रहे हैं उनकी मंशा को बेनकाब करने के लिए पत्रकार पंचायत का आयोजन बहुत जरूरी है। जो लोग पत्रकारों की पंचायत को आज चौथे स्तंभ का अपमान बता रहे हैं वे इस पंचायत के आयोजन में सबसे अग्रिम कतार में बैठे नजर आएंगे। पत्रकारों की पंचायत से डरने वाले लोग वही हैं जिन्होंने अब तक लोकतंत्र के नाम पर चलने वाली बजट की लूट की मलाई खाई है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को सशक्त बनाने का एसा अभिनव प्रयोग अब तक देश में पहले कभी नहीं हुआ है। माननीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस साहसिक पहल के लिए बधाई के पात्र हैं।
आदित्य नारायण उपाध्याय ओम प्रकाश हयारण आलोक सिंघई
9893021069 9893044445 9425376322
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