प्रेस की समस्याओं को छोड़कर सभी मामलों पर बोलते हैं जस्टिस काटजू
कुछ समय पहले तक लोगों की आम धारणा थी कि जस्टिस मार्कंडेय काटजू अच्छे आदमी हैं तथा अच्छे और कठोर फैसले सुनाते हैं. लोगों को देश के बजबजा चुके सिस्टम में काटजू राहत पहुंचाते नजर आते थे. रिटायरमेंट के बाद जस्टिस काटजू को जब पीसीआई यानी प्रेस काउंसिल आफ इंडिया का अध्यक्ष बनाया गया तो लगा कि इस नख-दंत विहीन संस्था से कम से कम पत्रकारों को राहत मिलेगी. जस्टिस काटजू ईमानदारी से सारी बातों को देखेंगे और गलत करने वाले अखबारों-संस्थानों को नसीहत देंगे, पत्रकारों के हितों की रक्षा करेंगे.
पर जल्द ही लोगों के सारे अरमान और सोच पर पानी फिर गया. जस्टिस काटजू पत्रकारों तथा देशवासियों को ही बेवकूफ बताना शुरू कर दिया. अपने बात एवं व्यवहार से ऐसा दिखाने लगे जैसे वे कांग्रेस के बड़े शुभचिंतक हैं. इसका एक उदाहरण बताए देते हैं, जब तक ममता बनर्जी यूपीए की सहयोगी थीं, जस्टिस काटजू तारीफ करते थे, पर ममता के यूपीए से अलग होते ही काटजू ने उनके खिलाफ बयान जारी कर दिया. समझने वालों को समझ में आ गया कि काटजू साहब की नजर में ममता बनर्जी अचानक विलेन क्यों हो गईं?
वैसे भी जस्टिस काटजू जब से पीसीआई के चेयरमैन बने हैं तब से उन्होंने प्रेस से जुड़ा ऐसा कोई काम नहीं किया जो चर्चा का विषय बन सके. तमाम लोगों ने प्रेस और अखबारों से जुड़ी अपनी शिकायतें पीसीआई को भेजी पर ज्यादातर पर कोई कार्रवाई ही नहीं हुई. जब तेजतर्रार माने जाने वाले जस्टिस काटजू के कार्यकाल में लोगों की शिकायतें नहीं सुनी जा रही हैं तो अन्य लोगों के कार्यकाल में ये संस्थाएं कितनी कारगर रही होंगी भगवान जाने. यानी काटजू साहब प्रेस से जुड़ी बातों या समस्याओं को छोड़कर दुनिया की सारी समस्याओं पर उवाच करते हैं, बोलते हैं. नीचे देखिए-पढिए और सोचिए उनके बयान पर.
भारत, पाक में अल्पसंख्यकों का सम्मान नहीं : काटजू
नई दिल्ली : भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू ने आज कहा कि भारत और पाकिस्तान एक सभ्य समाज की कसौटी पर खरे नहीं उतरे हैं क्योंकि दोनों देशों में अल्पसंख्यकों का सम्मान नहीं किया जाता। काटजू ने कहा, ‘‘हर सभ्य समाज के लिए एक परीक्षा होती है जिसमें यह देखा जाता है कि वह अल्पसंख्यकों के साथ किस तरह पेश आता है। जब तक अल्पसंख्यक गरिमा एवं आदर के साथ न रहें, यह कहा जा सकता है कि यह एक सभ्य समाज नहीं है और इस कसौटी पर भारत और पाकिस्तान खरे नहीं उतरे हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमने अल्पसंख्यकों का सम्मान नहीं किया- 1984 में सिखों के साथ क्या हुआ, 2002 में मुसलमानों के साथ क्या हुआ। कश्मीरी पंडितों के साथ क्या हुआ। पाकिस्तान के हिंदू भारत आ रहे हैं क्योंकि वहां वह गरिमा के साथ नहीं जी पा रहे हैं। न तो ईसाई, अहमदिया और शिया..न तो भारत एक सभ्य समाज है और न ही पाकिस्तान एक स5य समाज है । हम दोनों अपने अल्पसंख्यकों का सम्मान नहीं करते।’’ काटजू पाकिस्तानी वकील अवैस शेख की किताब ‘सरबजीत सिंहः ए केस ऑफ मिसटेकन आइडेंटिटी’ के विमोचन पर आयोजित एक समारोह को संबोधित कर रहे थे शेख ही सरबजीत सिंह के वकील हैं। (एजेंसी)
Written by B4M Team
कुछ समय पहले तक लोगों की आम धारणा थी कि जस्टिस मार्कंडेय काटजू अच्छे आदमी हैं तथा अच्छे और कठोर फैसले सुनाते हैं. लोगों को देश के बजबजा चुके सिस्टम में काटजू राहत पहुंचाते नजर आते थे. रिटायरमेंट के बाद जस्टिस काटजू को जब पीसीआई यानी प्रेस काउंसिल आफ इंडिया का अध्यक्ष बनाया गया तो लगा कि इस नख-दंत विहीन संस्था से कम से कम पत्रकारों को राहत मिलेगी. जस्टिस काटजू ईमानदारी से सारी बातों को देखेंगे और गलत करने वाले अखबारों-संस्थानों को नसीहत देंगे, पत्रकारों के हितों की रक्षा करेंगे.
पर जल्द ही लोगों के सारे अरमान और सोच पर पानी फिर गया. जस्टिस काटजू पत्रकारों तथा देशवासियों को ही बेवकूफ बताना शुरू कर दिया. अपने बात एवं व्यवहार से ऐसा दिखाने लगे जैसे वे कांग्रेस के बड़े शुभचिंतक हैं. इसका एक उदाहरण बताए देते हैं, जब तक ममता बनर्जी यूपीए की सहयोगी थीं, जस्टिस काटजू तारीफ करते थे, पर ममता के यूपीए से अलग होते ही काटजू ने उनके खिलाफ बयान जारी कर दिया. समझने वालों को समझ में आ गया कि काटजू साहब की नजर में ममता बनर्जी अचानक विलेन क्यों हो गईं?
वैसे भी जस्टिस काटजू जब से पीसीआई के चेयरमैन बने हैं तब से उन्होंने प्रेस से जुड़ा ऐसा कोई काम नहीं किया जो चर्चा का विषय बन सके. तमाम लोगों ने प्रेस और अखबारों से जुड़ी अपनी शिकायतें पीसीआई को भेजी पर ज्यादातर पर कोई कार्रवाई ही नहीं हुई. जब तेजतर्रार माने जाने वाले जस्टिस काटजू के कार्यकाल में लोगों की शिकायतें नहीं सुनी जा रही हैं तो अन्य लोगों के कार्यकाल में ये संस्थाएं कितनी कारगर रही होंगी भगवान जाने. यानी काटजू साहब प्रेस से जुड़ी बातों या समस्याओं को छोड़कर दुनिया की सारी समस्याओं पर उवाच करते हैं, बोलते हैं. नीचे देखिए-पढिए और सोचिए उनके बयान पर.
भारत, पाक में अल्पसंख्यकों का सम्मान नहीं : काटजू
नई दिल्ली : भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू ने आज कहा कि भारत और पाकिस्तान एक सभ्य समाज की कसौटी पर खरे नहीं उतरे हैं क्योंकि दोनों देशों में अल्पसंख्यकों का सम्मान नहीं किया जाता। काटजू ने कहा, ‘‘हर सभ्य समाज के लिए एक परीक्षा होती है जिसमें यह देखा जाता है कि वह अल्पसंख्यकों के साथ किस तरह पेश आता है। जब तक अल्पसंख्यक गरिमा एवं आदर के साथ न रहें, यह कहा जा सकता है कि यह एक सभ्य समाज नहीं है और इस कसौटी पर भारत और पाकिस्तान खरे नहीं उतरे हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमने अल्पसंख्यकों का सम्मान नहीं किया- 1984 में सिखों के साथ क्या हुआ, 2002 में मुसलमानों के साथ क्या हुआ। कश्मीरी पंडितों के साथ क्या हुआ। पाकिस्तान के हिंदू भारत आ रहे हैं क्योंकि वहां वह गरिमा के साथ नहीं जी पा रहे हैं। न तो ईसाई, अहमदिया और शिया..न तो भारत एक सभ्य समाज है और न ही पाकिस्तान एक स5य समाज है । हम दोनों अपने अल्पसंख्यकों का सम्मान नहीं करते।’’ काटजू पाकिस्तानी वकील अवैस शेख की किताब ‘सरबजीत सिंहः ए केस ऑफ मिसटेकन आइडेंटिटी’ के विमोचन पर आयोजित एक समारोह को संबोधित कर रहे थे शेख ही सरबजीत सिंह के वकील हैं। (एजेंसी)
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