उजाला बांटने वालों की ये कैसी अंधेरगर्दी
कर्मचारी मेरा कहना नहीं मानते - डीई
हरदा से जितेन्द्र अग्रवाल : 80851 99183 की रिपोर्ट....
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इसके पीछे का गणित समझने के लिए आप अपना ही बिजली का बिल देखिये। आप घरेलू उपभोक्ता हैं ? आपने जितनी बिजली जलाई है, क्या उतने का ही बिल आया है। नहीं, आप गफलत मे हैं। आंकलित खपत के रूप में जितने भी युनिट चढ़ाये गये हैं, उनका बिल आप क्यों भरें ? आपने यह बिजली जलाई ही नहीं। विभाग के मीटर रीडरों द्वारा प्रतिमाह रीडिंग नहीं ली जाती और मन से ही रीडिंग लिख दी जाती है। जब मीटर बाहर लगा है तो सही रीडिंग क्यों नहीं लिखते ? कई जगह तो मीटर अभी भी मकानों के अंदर लगे हुए हैं। जो गलत बिल बनें है, उन्हें सुधारने के लिए भी विभाग को डेढ़ माह का समय कम पड़ रहा है। डेढ़ माह पहले दिया गया आवेदन पर समाचार लिखे जाने तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है।
यह वही रीडिंग है, जो आंकलित खपत के रूप में आपसे वसूली की जा रही है। वास्तव में जिन्होंने बिजली चोरी की है, या अफसरों ने करवाई है, उनका हिस्सा आप पर मढ़ दिया गया है। साफ शब्दों में कहें तो हरदा के बड़े अधिकारी आपको ईमानदारी की सजा दे रहे हैं। कम्प्यूटराईज्ड वितरण होने के बाद बिजली विभाग हरदा जिले के लिए बिजली एक निश्चित मात्रा में डाल देता है। जितनी बिजली डाली जाती है, कार्यपालन यंत्री और डिविजनल इंजीनियर को उतना पैसा भरना अनिवार्य होता है। ऐसे में बिजली चोरी नहीं करवा सकते। लेकिन सूत्र बताते हैं कि अफसरों ने कर्मचारियों को एजेन्ट के रूप में इस्तेमाल किया है, ये बिजली चोरी करवाते हैं। इसका पैसा आंकलित खपत के रूप में ईमानदर उपभोक्ताओं के माथे मढ़ दिया जाता है।
हाल ही में बिजली विभाग के दफ्तर में बैठे डीई के पास रोजाना सैकड़ों गरीब बिल लेकर पहुंच रहे हैं। जिनके बिजली बिल में 100-200 यूनिट आंकलित खपत जोड़ दी गई है। गरीब बस्तियों के बुजुर्ग भी समूह बनाकर डीई को बता आये, कि उनके साथ अन्याय हो रहा है। शिवराज ने गेहूं , चावल और नमक तक का ध्यान रखा। लेकिन बिजली वाले तो अंधेर कर रहे हैं। गरीबों के साथ उजाला बांटने वालों की ये कैसी अंधेरगर्दी है ? क्या इन पर लगाम नहीं लग सकती ? इन्हें कैसी छूट दे दी गई है। नियामक अयोग क्यों गरीबों के साथ खिलवाड़ कर रहा है। हाल ही में कई उदाहरण तो ऐसे भी आए हैं, कि बिजली का मीटर लगा ही नहीं, और उपभोक्ताओं को बिजली बिल देना शुरू कर दिया गया है। बिजली के खंबे तो गांधी छाप नोटों के बल पर आसानी से उखड़ जाते हैं। लगभग साल भर पहले ही जो खंबे लगाए गए थे, प्रभावशाली लोगों ने ले देकर उन खंबो को हटवा दिया। स्थिति यहां पैसा फेंक, तमाशा देख जैसी हो गई है। अफसर कलम के सिपाही कम, और डमरू बजाने वाले मदारी ज्यादा नजर आ रहे हैं। यदि बिजली विभाग के अधिकारियेां को रवैया ऐसा ही रहा तो कमल पटैल के प्रति मतदाताओं की नाराजगी भी बढ़ती जायेगी। कहीं ऐसा न हो कि अटल ज्योति जलाने से पहले ही ये अफसर भ्रष्टाचार की आंधी लाकर उसे बुझा दें। स्थानीय विधायक सारा घटनाक्रम चुपचाप देख रहे हैं। वे भी आगामी माह से पहले विद्युत मंडल में तबादलों का सैलाब लाकर इन्हें इतनी दूर छोड़ आयेंगे, जहां से हरदा की परछाई भी नहीं दिखेगी।
डीई सुमित अग्रवाल का कहना है कि जो बिल दिया है, उसे भरना ही पड़ेगा। चाहे आपको उपभोक्ता फोरम, कोर्ट, थाना जहां जाना है वहां जायें, ये नहीं सुधरेगा। मेरे पास इतने चक्कर लगाने से तो अच्छा है कि संबंधित के पास जाते तो शायद सुधर जाता। मेरे पास आने से कोई फायदा नहीं। मेरे अधीनस्थ कर्मचारी ही मेरा कहना नहीं मान रहे हैं।