अनुज अग्रवाल @ TOC NEWS
विमुद्रीकरण के मोदी सरकार के फैसले के 50 दिन बीतते-बीतते देश में उठा भीषण तूफ़ान अब मंद हो गया है। तमाम शंकाएं, आरोपों और अफवाहों के बीच अद्भुत संयम और धैर्य के साथ देश की जनता ने जिस प्रकार सरकार का साथ दिया, यह निश्चित रूप से सराहनीय है। ऐसे में जबकि विपक्षी दलों और मीडिया के एक बड़े वर्ग ने सरकार के इस कदम के विरुद्ध एक महाअभियान ही चलाये रखा।
लोगो को उकसाया गया, भड़काया गया और बरगलाया भी गया किंतु देश की जनता नोटबंदी से हुए थोड़े से नुकसान के बाद होने वाले युग परिवर्तनकारी बदलावों के फायदों को भांप चुकी थी और देश के भ्रष्ट तंत्र के षड्यंत्रों के खिलाफ और उसमें आमूलचूल परिवर्तनों के लिए कंधे से कंधा मिलाकर सरकार के साथ खड़ी हो गयी। वास्तव में भारत में मोदी सरकार द्वारा विमुद्रीकरण का यह कदम एक बड़े व्यवस्था परिवर्तन का आगाज बन सकता है। यह जनकेन्द्रित शासन व्यवस्था की ओर सबसे सशक्त कदम है, यद्यपि हर अगले कदम पर कड़ी निगरानी और गहन बहस की मांग करता है।
अब सरकार और राजनीतिक दल चाहे या न चाहे, देश तीव्र सुधारों की ओर बढ़ चुका है। सुधारों की यह श्रृंखला अनियंत्रित सी है। नोटबंदी से मची हड़बड़ी ने सरकारी तन्त्र और बैंकिंग व्यवस्था के खोखलेपन, लुटेरे राजनेताओं, नौकरशाहों, न्यायाधीशों, सरकारी कर्मचारियों, ठेकेदारों, उद्योग-व्यापर से जुड़े लोगों, नशे के दलालों, सट्टेबाजों, हवाला कारोबारियों आदि को सबूतों सहित देश के सामने ला खड़ा किया। वास्तव में इस माफिया तन्त्र की सच्चाई लोगों को पहले भी पता थी मगर तब शीर्ष सत्ता इनके काले कारनामों के आगे घुटने टेक देती थी,
किंतु पहली बार सत्ता के शीर्ष पर खड़ा देश का प्रधानमंत्री स्वयं इन माफियाओं के सफाए, ईमानदारों के सम्मान और बेईमानों के खिलाफ कार्यवाही हेतु हुंकार भर रहा है। जैसे ही कालेधन के कुबेरों ने अपनी पुरानी करेंसी को डॉलर, सोने और नई करेंसी में बदलने के लिए हवाला कारोबारियों, बैंक कर्मियों और ज्वेलर्स आदि से बड़े स्तर पर सांठगांठ की, उनकी पोल खुलती गई और एक एक कर सब जांच एजेंसियों के कब्जे में आते जा रहे हैं। अब जनता बड़ी मछलियों यानि राजनेताओं, बड़े कारपोरेट घरानों, और बड़े नौकरशाहों के विरुद्ध बड़ी कार्यवाही करने के लिए दबाव बना रही है, जिस कारण सरकार को बड़ी मछलियों और बेनामी संपत्तियों के खिलाफ जनवरी से बड़ी मुहिम चलाने का ऐलान करना पड़ा।
नोटबंदी की घोषणा के बाद चुनाव सुधारों की मांग अपने आप ही मुख्यधारा में आ गयी। जनता राजनीतिक दलों को गिरोह अधिक समझती है। अपार धन, संपत्ति, व्यापार, बल और वैभव वाले राजनेताओं ने देश के लोकतंत्र और जनता के हितों का गला ही घोंट दिया है। अब इसमें व्यापक सुधारों की मांग उठ चुकी है जो आंदोलन में बदलती जा रही है। राजनीतिक दलों का बेनामी चंदा, बड़ी बड़ी रैलियां, अंधाधुंध चुनावी खर्च, विशेषाधिकार तो आलोचना और निंदा के पात्र बन ही रहे हैं, साथ ही सरकारी खर्च पर चुनाव कराने, दलों को आरटीआई के दायरे में आने, फर्जी राजनीतिक दलों पर रोक लगाने, लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ ही कराने की मांग जोर पकड़ चुकी है, जो अब अंजाम तक पहुंचेगी ही।
एक बड़ी आवाज कर सुधारों की भी उठ चुकी है। अब जीएसटी को लागू करना सरकार की मजबूरी बन चुकी है, साथ ही आयकर और अन्य करों की दर कम करना समय की जरूरत। सरल कर प्रणाली और निम्न दर जनता के लिए बड़ी राहत की बात होने जा रही है। नकदी आधारित अर्थव्यवस्था से कम नकदी और डिजिटल अर्थव्यवस्था के रूपांतरण से जहां गरीब का शोषण घटेगा वहीं लोग कर चुकाकर उद्योग-व्यापार चलाना पसंद करेंगे और अब तक कर चोरी करने वाले आत्मगिलानी से बाहर निकलेंगे। अब विद्यार्थियों को सिद्धान्त और व्यवहार में कोई बड़ा अंतर नहीं महसूस होगा और कुंठित समाज का निर्माण बंद होगा और आत्मगौरवान्वित समाज का निर्माण।
ऐसे ही हर क्षेत्र में सैंकड़ों अनकहे बदलावों की गवाह इस देश की जनता होने जा रही है, इसलिए सभी राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों, सरकारी कर्मचारियों और जनता से अनुरोध है कि कुछ समय के लिए अपने स्वार्थ और राजनीति छोड़ देश हित में काम करें और राष्ट्र निर्माण का जो यज्ञ जाने अनजाने में शुरू हो चुका है, इसमें अपनी अपनी आहूति दे, अन्यथा नियति आपको अप्रासंगिक और अलग थलग करने में देर नहीं लगाएगी।