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-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश',
सजा से बचने के लिये मन्दिर ढोकते फिर रहे और सुप्रीम कोर्ट के जिन जजों को भ्रष्टाचार के आरोपी बनाया, उन्हीं जजों से न्याय की गुहार करते फिर रहे कलकत्ता हाई कोर्ट के सजा प्राप्त जस्टिस सीएस कर्णन का हम आम लोगों द्वारा समर्थन करने का निर्णय क्या उचित था? अत: *आज हमें खुद अपनी ही समीक्षा करने का समय है!*
क्योंकि जब एक बार यह कहा गया कि सजा सुनाने वाले जजों के खिलाफ जस्टिस कर्णन द्वारा भ्रष्टाचार के आरोप लगाये गये हैं, इस कारण वे सभी जज पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं और इस कारण जस्टिस कर्णन के मामले में सुनवाई करने का नैतिक या कानूनी हक नहीं रखते। क्योंकि ऐसा करना प्राकृतिक न्याय के उस सिद्धान्त का उल्लंघन है, जिसमें कहा गया है कि कोई भी आरोपी व्यक्ति पूर्वाग्रहित होने के कारण खुद अपने ही मामले में जज नहीं हो सकता।
प्राकृतिक न्याय के इस सिद्धान्त के उल्लंधन के कारण जस्टिस कर्णन को देश के इंसाफ पसन्द लोगों का अपार समर्थन मिला, लेकिन अब जस्टिस कर्णन द्वारा उन्हीं सातों जजों से अपनी सजा के खिलाफ सुनवाई करने की वकील के मार्फत बार-बार गुहार करना क्या प्रदर्शित करता है? साफ शब्दों में सुप्रीम कोर्ट के सजा सुनाने वाले सातों जजों के न्याय में आस्था व्यक्त करना ही तो है! यदि ऐसा ही है तो फिर दलित होने के कारण भेदभाव का आरोप लगाकर सुप्रीम कोर्ट के जजों को कटघरे में खड़ा करने का क्या औचित्य था? कल तक जो जज भ्रष्ट थे, दलित के प्रति पूर्वाग्रही थे, आज वही न्यायमूर्ति कैसे हो गये?* उन्हीं जजों से न्याय की उम्मीद में जस्टिस कर्णन का वकील बार-बार सुप्रीम कोर्ट को गुहार करता फिर रहा है? यह क्या है?
*ऐसी घटनाएं साफ शब्दों में देश के आम इंसाफ पसन्द लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है! यदि वास्तव में जस्टिस कर्णन के खिलाफ दलित होने के कारण अन्याय हुआ तो इस अन्याय को राष्ट्रीय ही नहीं, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाने के लिये, सजा सुनाये जाने के दिन ही जेल में चले जाना चाहिये था। भारत के कितने लोगों ने दोषी न होते हुए भी हंसते हुए देश की खातिर फांसी का फंदा विजय का हार बनाया! इसके विपरीत दलित होने को आधार बनाकर भेदभाव और अन्याय की बात करने वाले जस्टिस कर्णन सब कुछ भूलकर सजा से येन—केन प्रकारेण बचने के लिये मन्दिर की चौखट और कथित आरोपी जजों की चौखट पर मथ्था टेकने को विवश हो गये?