TOC News , 7 Jun. 2017
मंदसौर: मध्य प्रदेश के मंदसौर में कर्फ्यू लगने के बाद हालात काबू में हैं. कल आंदोलन हिंसक होने के बाद गोली चलने से पांच लोगों की मौत हो गई थी. मारे गए किसानों के परिजनों को दिए जाने वाला मुआवजा बढ़ा कर एक करोड़ कर दिया गया है. इसके बाद भी सीएम शिवराज चौहान की मुश्किलें कम नहीं हो रहीं. शिवराज ने अब कांग्रेस पर किसानों को भड़काने का आरोप लगाया है.
आज किसान संगठनों ने मध्य प्रदेश बंद बुलाया है और कांग्रसे भी इसका समर्थन कर रही है. मंदसौर फिलहाल शांत हैं. मंदसौर में कर्फ्यू की नौबत हिंसा के बाद आई. पिपरियामंडी बही चौपाटी पर उपद्रवियों की तरफ से आगजनी की गई. पांच जून को भी उपद्रवियों ने ट्रकों का सामान लूट लिया गया था. उपद्रवी जिस जगह से निकले वहां दुकानें तोड़ी गईं और छोटे-छोटे दुकानदार यहां तक की महिलाओं की दुकानों तक को लूट लिया गया.
मंदसौर जिले में आंदोलनकारियों ने रेलवे फाटक तोड़ दिया और पटरियां उखाड़ने की भी कोशिश की. जिसके बाद मंदसौर और राजस्थान के चित्तौड़ शहर के बीच रेल सेवा ठप हो गई है. इसके बाद प्रशासन ने मंदसौर, रतलाम और उज्जैन में इंटरनेट सेवा पूरी तरीके से बंद कर दी गई है.
इसी के बाद कल प्रदर्शनकारी और सुरक्षाबल आमने-सामने आए. इसके बाद दोनों ओर से पथराव हुआ और फिर गोलियां चली, जिसमें पांच किसानों की मौत हो गई. प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि गोलियां सीआरपीएफ की तरफ से चलीं वहीं राज्य सरकार कह रही है कि उसने गोली चलाने के आदेश ही नहीं दिए.
वहीं मामले को बढ़ता देख राज्य सरकार ने जांच के आदेश दे दिए हैं. साथ ही शिवराज सिंह ने कल रात आनन फानन में अपने घर पर प्रेस कॉन्फ्रेस बुला कर मारे गए किसानों के परिजनों के लिए मुआवजे की रकम को बढ़ाकर एक करोड़ कर दिया.
किसानों की मौत के बाद इस मुद्दे पर मध्य प्रदेश की राजनीति गरमा गई है. कांग्रेस ने गोलीकांड पर शिवराज सरकार को घेर लिया है. शहडोल में पोल खोल चौपाल का आयोजन किया गया जिसमें मध्य प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने इसे राज्य के इतिहास का काला दिन बताया. वहीं सरकार और कांग्रेस दोनों एक दूसरे को इसके लिए जिम्मेदार मान रहे हैं.
मध्य प्रदेश में दो जून से किसान आंदोलन कर रहे हैं. मध्य प्रदेश के किसानों की मांग है कि उन्हें उनकी फसलों की सही कीमत मिले और कर्जमाफी हो. तीन जून को शिवराज सिंह चौहान ने किसानों से मिलकर मामला सुलझने का दावा किया था. जिसके बाद एक धड़े ने आंदोलन वापस भी ले लिया था. लेकिन बाकी किसान विरोध प्रदर्शन पर अड़े रहे. सवाल ये है कि क्या बातचीत से ये मामला नहीं सुलझाया जा सकता था?