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मप्र में हालात बेकाबू हैं। इस आंदोलन की कमान पूरी तरह किसानों के युवा लडक़ों के हाथ में हैं। किसानों के इन नौजवान लडक़ों में यह गुस्सा सिर्फ फसल के सही दाम नहीं मिलनेे के कारण ही नहीं है, इस गुस्से के दूसरे भी कई कारण हैं, जिन पर भी गौर करना आज जरूरी है, तभी हम आक्रामक होते किसान आंदोलन को शांत कराने का रास्ता खोज पाएंगे।
किसान आंदोलन के रूप में जो गुस्सा दिखाई दे रहा है, उसके लिए आंदोलनकारियों के प्रति शिवराज सरकार का दमनकारी रवैया मुख्य कारण है। गौर कीजिए बीत 5-7 सालो से मप्र की राजधानी भोपाल को प्रदेश की जनता के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है, आंदोलनों के लिए पहले से आरक्षित पार्कों, स्थानों और मैदानों में धरने, प्रदर्शनों की परमीशन शिवराज सिंह की सरकार नहीं देती है, दबाव के बाद यदि परमीशन दे भी दी जाती है, तब कुछ घंटे बाद ही उन्हें पुलिस खदेड़ देती है। बीते 5-7 सालों में भोपाल में हर आंदोलनकारी को पीटा गया है। किसानों को दौड़ा-दौड़ाकर मारा गया, उनके बेटे-बेटे-बेटियां जो न्यूनतम वेतन से भी कम पर सरकार की चाकरी कर रहे हैं, उन्हें खदेड़ा गया और जेलों में डाल दिया गया।
किसानों के अलावा जिन्हें शिवराज सिंह की सरकार ने भोपाल की सडक़ों पर मारा-पीटा है उनमें अध्यापक, अतिथि शिक्षक, संविदाकर्मी, पंचायत सचिव, आंगनबाड़ीकर्मी, रसोईए, आशा-ऊषा कार्यकर्ता, अतिथि विद्वान, एंबूलेंस 108 के कर्मचारी, प्रेरक आदि ऐसा कोई तबका नहीं बचा, जिसमें शिवराज सिंह ने भोपाल में मारा न हो। बीते सालों में शिवराज सिंह सरकार ने भोपाल में जिन-जिन को मारा-पीटा है, वे सभी किसानों के ही बेटे-बेटियां हैं, जो आज भोपाल में हुई अपनी पिटाई का बदला ले रहे हैं, तब तिलमिलाने की क्या जरूरत है शिवराज सिंहजी।
किसान आंदोलन भविष्य में और भी आक्रामक होगा, जिसकी वजह आंदोलन के छठवें दिन भी सरकार ने किसानों की नाराजगी के प्रमुख कारणों पर चर्चा नहीं की है। मप्र का किसान अपनी फसल के लाभकारी मूल्य एवं कर्जे माफी के साथ-साथ अपने बेटे-बेटियों के लिए रोजगार की मांग भी कर रहा है।
किसानों के जो बेटे जींस पहने आंदोलन में नजर आ रहे वे सरकार से पूछ रहे हैं कि 7 साल से मप्र में नौकरियां क्यों नहीं निकाली गईं, यहां तक कि हर साल निकलने वाली शिक्षकों की नौकरी भी 7 साल से नही निकलीं। मोदी एवं शिवराज सरकार के नौकरियों पर लगा दिया गया स्थाई प्रतिबंध भी किसानों एवं उनके बेटे-बेटियों की नाराजगी का प्रमुख कारण हैं। खेती तभी लाभ का धंधा बन सकती है, जब किसानों के बेटे-बेटियों के लिए खेती के साथ-साथ नौकरियों का भी बंदोवस्त किया जाए, पहले ऐसा होता आया है।
शिवराज सरकार 2-5 हजार रुपए महीने में जिन युवाओं से काम ले रही है, वे युवा भी किसानों के ही बेटे हैं, यह बीते 10-12 साल से सरकार से मांग कर रहे हैं कि उन्हें सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाए तथा जिंदा रहने लायक वेतन की व्यवस्था की जाए।
शिवराज सिंह सरकार ने किसानों के इन बेटे-बेटियों की यह जरूरी मांग पर 10-12 साल में गौर तक नहीं किया है, जबकि यह लोग सैकड़ों बार भोपाल में लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात सरकार तक पहुंचाते रहे हैं, लेकिन सरकार इन्हें भोपाल से खदेड़ती रही है। शिवराज सरकार के इसी रवैए ने मप्र की जनता के गुस्से को बढ़ाया है, जो आज किसान आंदोलन के रूप में पूरा देश देख रहा है।
संभल जाईए शिवराज सिंहजी, आपने भोपाल में जिन-जिन को खदेड़ा है, वे सभी आने वाले दिनों में सूद समेत हिसाब किताब बराबर करेंगे।