Advocate Bharat Sen |
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बैतूल । मेरी सलाह उन लोगो के लिए काम की हो सकती हैं जो कि अदालत में कोई मुकदमा दायर करने जा रहे हैं अथवा कोई मुकदमें का सामना करने जा रहे हैं। अगर आप कभी उन लोगो से मिले हो जो कि अदालत में मुकदमा हार चुके हैं या फिर वो जो कहते हैं कि हमे न्याय नहीं मिला तो जरा तकलीफ करके उनके पूरे मामले और परिस्थितियों का आंकलन करे तो आपको समझ में बहुत कुछ आ जायेगा।
इस संबंध में कुछ अपना अनुभव बताना आवश्यक समझता हूं। मुकदमा जीतने के लिए स्पष्ट दृष्टि और शक्ति इन दो चीजो का होना आवश्यक हैं। मामले में स्पष्टता का अर्थ हैं कि आपको यह पता होना चाहिए कि इस मुकदमे को जीतने के लिए किस रास्ते पर चलना हैं और कितनी तेजी से आगे बढऩा हैं।
मैं जब मुकदमें में पैरवी करने के लिए जाता हूं उससे पहले मैं विगत 10 वर्षो के सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के पूर्व फैसलो का अध्ययन करता हूं। मुझे विषय वस्तु के निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए करीब एक या दो महीनो का समय लग जाता हैं। मैं जानता हूं कि अदालत में मै उस लड़ाई को कभी नहीं जीत सकता जिसे मैने दिमाग में न जीत ली हो। मैं पहले लड़ाई को दिमाग में जीत लेता हूं और पूर्व आंकलन कर लेता हूं कि मैं इस तरह से चलूंगा तो परिणाम को पा सकता हूं।
मैने जब परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 की धारा 138 में पैरवी की शुरूआत की तो मुझे कानून के अतिरिक्त ज्यादा कुछ नहीं आता था। चैंक बाउंस के मामले में आरोपी को प्रभावी प्रतिरक्षा प्रदान करना ही मेरा लक्ष्य था। इसलिए मैंने मुकदमो से रिहाई का रास्ता खोजने के लिए सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसलो को पढऩा चालू किया। आज मैंने चैंक बाउंस के मामलो में 2008 से 2016 तक के पूर्व फैसलो का पढ़ डाला हैं। अब स्थिति यह हैं कि मै केवल चैंक बाउंस के मुकदमो में केवल आरोपी की ओर से सफलता पूर्वक पैरवी करता हूं।
अदालत में सफलता के लिए रोड मैप एकदम साफ होना चाहिए और आगे जाकर नक्षा बदलना भी नहीं चाहिए। अदालत में अंतिम बहस के दौरान मैं अदालत में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के उन फैसलो को पेश करता हूं और हमेशा अपनी लिखित बहस में उन पूर्व फैसलो का उल्लेख अवश्य करता हूं जिनके आधार पर मैने मुकदमें में पैरवी की हैं। आप आश्चर्य करेंगे कि इसका लाभ अदालत के फैसले में दिखाई पड़ता हैं। मुकदमा आप तभी जीतेंगे जब जीत आपका और आपके अधिवक्ता का मिशन बन जाए।
यह काम उन अधिवक्ताओं के लिए बेहद कठिन हो सकता हैं जो कि अदालत में परंपरागत् रूप में पैरवी करते हैं और हर तरह का मुकदमा लड़ते हैं जिसके चलते उनके पास क्षमता से अधिक मुकदमें होते हैं। इस तरह से कानून विशेष में अधिवक्ता को विशेषज्ञता हासिल नहीं हो पाती हैं और एक विशेष पहचान स्थापित नहीं हो पाती हैं। इसका नुक्सान अंत: पक्षकार को उठाना पड़ता हैं जो कि मुकदमा जीत सकता था लेकिन हार जाता हैं।