Thursday, October 4, 2018

राहुल के 'हाथ' नहीं आया हाथी, कांग्रेस के लिए तीनों राज्यों में बुरी खबर?

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मायावती ने चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस से किनारा कर गठबंधन की संभावनाओं को करारा झटका दिया है. उन्होंने ऐलान किया है कि वे राजस्थान और एमपी में अकेले चुनाव लड़ेंगी. उनके इस फैसले के दूरगामी असर दिखेंगे.

नई दिल्ली.लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मात देने का सपना संजो रही थीं, लेकिन बसपा अध्यक्ष मायावती ने राहुल गांधी के सारे अरमानों पर पानी फेर दिया है. मायावती ने साफ कहा कि राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेगी. जबकि बसपा ने छत्तीसगढ़ में पहले ही कांग्रेस से बगावत कर अलग पार्टी बनाने वाले अजीत जोगी के साथ गठबंधन कर चुकी है.
मायावती के तेवर से साफ हो गया कि तीनों राज्यों में कांग्रेस के साथ बसपा गठबंधन की सारी उम्मीदें खत्म हो गई हैं. बसपा के कांग्रेस संग न आने से बीजेपी को एक बार फिर सत्ता को बचाए रखने की आस नजर आ रही है.

तीन राज्यों में होने हैं चुनाव

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इसी साल अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं. इन तीनों राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं. एमपी और छत्तीसगढ़ की सत्ता में बीजेपी 15 साल से काबिज है. इन दोनों राज्यों में कांग्रेस नेता बसपा के साथ गठबंधन की कोशिशें कर रहे थे, लेकिन बुधवार को मायावती ने सारे मंसूबों पर पानी फेर दिया है.

बसपा-कांग्रेस न होने से शिवराज की उम्मीद जागी

मध्य प्रदेश में तकरीबन 15 फीसदी दलित मतदाता हैं. 2013 में मध्यप्रदेश में बीएसपीने 230 सीटों में से 227 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. बसपा यहां 6.42 फीसदी वोट के साथ चार सीटें जीतने में सफल रही थी. राज्य में 75 से 80 सीटों पर बसपा प्रत्याशियों ने 10 हजार से ज्यादा वोट हासिल किए थे. जबकि 17 सीटें ऐसी थीं जहां बसपा उम्मीदवारों ने 35 हजार से ज्यादा वोट हासिल किए थे.

बीजेपी और कांग्रेस के बीच 8.4 फीसदी वोट शेयर का अंतर था. बीजेपी को 165 सीटें और कांग्रेस को 58 सीटें मिली थीं. ऐसे में अगर दोनों मिलकर चुनावी रण में उतरते तो शिवराज का समीकरण बिगड़ सकता था.
चित्रकूट विधानसभा सीट पर उपचुनाव में बसपा के न लड़ने का फायदा कांग्रेस को मिला था. इसी मद्देनजर कांग्रेस बसपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी जैसे पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की कोशिश कर रही थी. लेकिन मायावती बुधवार को कांग्रेस के साथ गठबंधन के कयासों पर पूर्णविराम लगा दिया है.
मध्य प्रदेश में बसपा का आधार यूपी से सटे इलाकों में अच्छा खासा है. चंबल, बुंदेलखंड और बघेलखंड के क्षेत्र में बसपा की अच्छी खासी पकड़ है. कांग्रेस के साथ बसपा का न उतरना शिवराज के लिए अच्छे संकेत माने जा रहे हैं.

राजस्थान में हाथी बिगाड़ेगा हाथ का खेल

राजस्थान में करीब 17 फीसदी दलित मतदाता हैं. राजस्थान विधानसभा की कुल 200 सीटों में बीजेपी के पास 163 सीटें हैं. 2013 में हुए चुनाव में बीजेपी ने 45.2% वोट हासिल किया था. जबकि कांग्रेस 33.1% के साथ 21 सीट और 3.4% वोट के साथ बसपा 3 सीटें जीत पाई थी. तीन सीटों पर बीएसपी रनर-अप रही और उसने बीजेपी को टक्कर दी. जबकि 2008 में बसपा ने 6 सीटें जीतने के साथ 7.6 फीसदी वोट हासिल किए थे.
दिलचस्प बात ये है कि दलितों की पार्टी कही जाने वाली बसपा को तीनों जीत सामान्य सीटों पर ही मिली थीं. जबकि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 34 सीटों में से 33 पर बीजेपी ने परचम लहराया था और एक सीट पर अन्य को जीत मिली थी.

विधानसभा चुनाव में हर बार की भांति इस बार भी 3 से 4 प्रतिशत वोट स्विंग होने की स्थिति में परिणाम काफी बदल सकता था. ऐसे में कांग्रेस चाहती है कि बसपा को मिलने वाला वोट उनको मिल जाए, ताकि बीजेपी को सीधे तौर पर सत्ता में आने से रोक सके, लेकिन मायावती ने कांग्रेस के इन अरमानों पर पानी फेर दिया है.

छत्तीसगढ़ में बीजेपी-कांग्रेस के बीच एक फीसदी का अंतर

छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के नेतृत्व में बीजेपी तीन बार से सत्ता पर काबिज है. लेकिन कांग्रेस और बीजेपी के बीच महज एक फीसदी का अंतर है. बसपा को पिछले चुनाव में 4.5 फीसदी वोट मिले थे. 2013 के चुनाव में राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने 49 सीटें जीती थीं. जबकि कांग्रेस को 39 और बसपा को एक सीट मिली थी.

साथ लड़ते तो अलग होती तस्वीर

बसपा-कांग्रेस एक साथ मिलकर चुनावी जंग में उतरते तो राज्य की राजनीतिक तस्वीर बदल जाने की संभावना थी. 2013 में बसपा और कांग्रेस एक साथ मिलकर उतरते तो नतीजे अलग होते. बीजेपी को 11 सीटों का नुकसान उठाना पड़ता और 38 सीटें मिलतीं. जबकि कांग्रेस-बसपा गठबंधन 51 सीटों के साथ सत्ता पर काबिज हो जाता. यही वजह थी कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष लगातार बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की बात रह थे, लेकिन बाजी कांग्रेस से बगावत कर अलग पार्टी बनाने वाले अजीत जोगी के हाथ लगी है.
2013 में बसपा जैजेपुर विधानसभा सीट जीतने में कामयाब रही थी. जबकि पामगढ़ और चंद्रपुर में बसपा दूसरे स्थान पर रही. इसके अलावा अलकतरा, बिलाईगढ़ और सारगंढ में बसपा उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे थे.
मायावती और जोगी के बीच हुए गठबंधन में 35 सीटें बसपा के खाते में आई हैं और 55 सीटों पर जोगी जनता कांग्रेस को मिली है. जोगी के पास जहां आदिवासी वोट है, वहीं बसपा के पास दलित मतदाताओं पर अच्छी पकड़ है. ऐसे में कांग्रेस को बसपा के अलग चुनाव लड़ने का नुकसान उठाना पड़ सकता है.

बसपा का कांग्रेस के साथ न आना राहुल गांधी के विपक्षी एकता को झटका                            

माना जा रहा है इसके चलते कांग्रेस को जहां मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में नुकसान उठाना पड़ सकता है. इसके अलावा आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ बसपा रहे, ये कहना मुश्किल है. बसपा 2019 में भी इसी तरह से अलग होकर लड़ती है तो कांग्रेस को कई राज्यों में दलित मतों का नुकसान झेलना पड़ सकता है. बीजेपी और कांग्रेस के बाद बसपा एकलौती पार्टी है जिसका आधार राष्ट्रीय स्तर पर है.

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