एपीएल का गेंहू हमारा था वो, छै माह से कहां गया उसे ढुंढो....!
- बैतूल- रामकिशोर पंवार की खास रिर्पोट
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बैतूल। अभी गोलमाल थ्री रीलिज नहीं हुई है उसके पहले ही बैतूल जिले में गोलमाल थ्री रीलिज हो जाने के बाद आमीरखान की बहुचर्चित हिन्दी फिल्म थ्री इडियट का गाना कुछ इस प्रकार गुंजने लगा है कि गेंहू हमारा था वो.....! कहां गया उसे ढुंढो......! हालाकि इस गाने के बजने के बाद भी बेसुध बैतूल जिला प्रशासन मध्यप्रदेश की सरकार अपनी महत्वाकांक्षी योजना गरीब मेलो का पुलिस परेड ग्राऊण्ड पर आयोजन कर रही है ताकि गरीबो लोगो की सरकारी योजनाओं के लाभ लेने के लिए अच्छी खासी परेड हो सके।
अभी तक आपने केवल गरीबो के ही राशन पर लोगों को हाथ साफ करते सुना होगा लेकिन जब आपको पता चले कि सम्पन्न लोगो के नाम पर जारी हुये एपीएल कार्ड धारको का ही राशन पिछले एक अप्रेल 2010 से सितम्बर 2010 तक कागजो पर ही बट गया तब आपको कैसा लगेगा...! सवाल यह उठता है कि ऐसा सब कैसे हो गया और सबंधित अधिकारी क्या करते रहे....! सवाल का जबाब भी कम चौकान्ने वाला नहीं था, अधिकारियों एवं सहकारी समितियों के संचालको ने तर्क दिया कि एपीएल के राशन का उठाव दुकानो से नहीं हो रहा था इसलिए एपीएल का पूरा गेहंू पिछले छै माह से जिले भर के ही नहीं पडौसी जिलो एवं प्रांतो के गल्ला एवं अनाज व्यापारी जिले भर की 91 सहकारी उपभोक्ता भंडारो तक पहुंचने के पहले ही व्यापारियों के गोदामो एवं बाजारो में पहुंच गया। यूं तो राज्य सरकार ने एपीएल ए बीपीएलए अंत्योदय योजनाओं के तहत गेंहू सरकारी दर पर राशन कार्ड धारको को देने की अभिनव योजना चला रही है। मध्यप्रदेश के पडौसी राज्य महाराष्ट से लगे प्रदेश के सीमावर्ती आदिवासी ाहुल्य बैतूल जिले में एक अप्रेल 2010 से जिले के एपीएल कार्ड धारको को मिलने वाले गेहूं के लिए 30 सितम्बर 2010 तक अप्रेल फूल बनाने का कार्यक्रम चलाया गया। इस महत्वाकांक्षी कार्ययोजना में जिले के खाद्य विभाग एवं जिला सहकारी बैंक के अधिनस्थ सभी छोटी - बडी 95 सहकारी समितियां लगी हुई थी। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि प्रदेश के केबीनेट मंत्री गौरीशंकर बिसेन के गृह जिले की राह का मील का पत्थर बना यह जिला अकसर इन छै माह में उनके स्वागत सत्कार में कहीं न कहीं एपीएल का गेहूं ने कोई कसर नहीं छोडी है।
लोग भले ही कुछ भी कहे लेकिन बैतूल जिले अब तक के सबसे बडे गेहूं घोटाले में बैतूल जिला मुख्यालय के भाजपा विधायक अलकेश आर्य के भाई - भतीजे भी शामिल है। वैसे तो विधायक महोदय के भाई साहब बैतूल विकासखढ की सेहरा सहकारी आदिम जाति सहकारी समिति में कार्यरत सेल्समेन है जिनका भी इस महा घोटाले में बडा हाथ और पांव बताया जा रहा है। अब सरकार आकडो की बाते करे तो पता चलता है कि जिले की 558 ग्राम पंचायतो में 1343 गांव है इसके अलावा तीन नगर पालिकाओं , पंाच नगर पंचायतो में 13 लाख 95 हजार 175 आबादी में 1 लाख 55 हजार 967 एपीएल राशन कार्ड धारक है। वैसे तो जिले में बीपीएल कार्ड धारको की संख्या 43 हजार 427 है तथा अंत्योदय योजना के कार्ड धारको की संख्या भी कम चौकान्ने वाली नहीं है। बीते छै माह में प्रति एपीएल राशन कार्ड पर औसतन 11 से 18 किलो राशन 7 रूपये के हिसाब से आवंटित किया गया।
बैतूल जिले में छै माह में प्रति राशन कार्ड प्रति माह औसतन 21 लाख 55 हजार 637 किलो एपीएल का गेंहू का आवटंन किया जाना था अब प्रतिमाह एपीएल का गेंहू का आवंटन 91 सहकारी समितियों की लगभग 5 सौ ग्रामिण क्षेत्रो एवं शहरी क्षेत्रो की गैर आदिमजाति सहकारी समितियों द्वारा संचालित उपभोक्ता दुकानो को दिया गया। अब जिला खाद्य विभाग के पास मौजूद आकडो की बाते करे तो पता चलता है कि हम यह बताने की स्थिति में नहीं है कि कितना किलो किस - किस एपीएल कार्ड पर दिया गया किस भाव में दिया गया....! राशन दुकानो के मासिक प्रतिवेदन में उपरोक्त एपीएल का पूरा गेंहू बाटा जाना प्रमाणित किया गया है। पर सच्चाई अपने आप में कम चौकान्ने वाली नहीं है क्योकि जिले के सभी शहरी क्षेत्र के अधिकारियों - कर्मचारियों - सम्पन्न लोगो को मिलने वाला एपीएल का गेहूं कागजो में खानापूर्ति तो बता दिया गया। यह पूरा मामला जिला कलैक्टर एवं जिला खाद्य विभाग के आला अफसरो से लेकर उपभोक्ता दुकानो के सेल्समेन की जानकारी में है। सब के पास अपने - अपने तर्क है इस एपीएल के गेंहू के महाघोटाले को लेकर तभी तो सब के सब एक सूर में कोई न कोई तर्क देकर अपनी जवाबदारी एवं जवाबदेही से साफ बच निकलते जा रहा है।
पूरे मामले की एक सच्चाई भी कम चौकान्ने वाली नहीं है जिसके अनुसार बैतूल जिले की ग्रामिण क्षेत्रो में कार्य करने के लिए पंजीकृत आदिम जाति सहकारी समितियां एवं शहरी क्षेत्र के धन्नासेठो एवं फर्जी तरीके से पंजीकृत उपभोक्ता भंडारो के द्वारा खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग से प्राप्त एपीएल राशन कार्ड धारको का गेंहू आम उपभोक्ता तक पहुंचा नहीं और बाजारो में जा पहुंचा। माह अप्रेल से जून तक सरकारी मूल्य पर कृषि उपज मंडियो में 12 सौ प्रति क्विंटल के हिसाब से गेंहू खरीदा गया लेकिन 15 जून 30 सितम्बर तक गेंहू का बाजारी भाव 15 सौ रूपये प्रति क्विंटल के भाव से बिका। जिले के एक शहरी क्षेत्र के सहकारी उपभोक्ता भंडार के संचालक प्रेम शंकर मालवीय के परिवार के नाम पर बडोरा मेे फलोर मिल स्थापित है। जिसकी प्रतिदिन की गेंहू खपत बैतूल जिले में सबसे अधिक है जिसकी आपूर्ति कहां से हुई यह जांच का विषय है। पूरे प्रकरण में सबसे चौकान्ने वाली जानकारी यह आई कि जिले का अधिकांश एपीएल जिले की फलोर मिलो एवं साप्ताहिक बाजारो में तो बेचा गया साथ ही पडौसी राज्य के सीमावर्ती जिलो मे भी भारी मात्रा में गेंहू की अतंरराज्यीय सीमा से कृषि उपज मंडी के बेरियरो से उनकी निकासी हुई ।
एक अप्रेल से तीस सितम्बर तक के एपीएल के गेंहू के बेभाव में बिकने के चलते कई आदिम जाति सहकारी समितियों के सेल्समेनो से लेकर जिले के कई अफसरो के न्यारे - व्यारे हो गये। बैतूल जिले के इस साल के सबसे बडे एपीएल के गेंहू घोटाले के सामने आने पर सभी अधिकारी एवं कर्मचारी किसी भी प्रकार की ब्यानबाजी देने से बच रहे है। खबर लिखे जाने तक इस महाघोटाले के चलते पूरे जिले में हडकम्प मच गई है। जिला खाद्य विभाग पूरे मामले की जांच करने एवं एक अप्रेल 2010 से 30 सितम्बर 2010 तक आंवटित एपीएल के गेंहू की 7 रूपये के बदले 11 रूपये प्रतिकिलो के हिसाब से वसूली की बात कर रहा है। मात्र चार रूपये प्रतिकिलो के हिसाब से प्रतिमाह बिके 21 लाख 55 हजार 637 किलो गेंहू के हिसाब से आंवटित छै माह 1 करोड 93 लाख 38 हजार 22 किलो गेंहू का अतिरिक्त मूल्य 4 रूपये प्रतिकिलो के हिसाब से सरकारी खजाने में जमा तो हो जायेगा लेकिन पूरे महाघोटाले में इन पंक्तियो के लिखे जाने तक न तो वसूली प्रक्रिया शुरू हो सकी है। जिला खाद्य अधिकारी श्री ठाकुर के अनुसार बैतूल जिले के चार दुकान के संचालको के खिलाफ पुलिस में एफ आई आर दर्ज कार्यवाही की गई है। अब इस महाघोटाले पर जिला खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति अधिकारी श्री ठाकुर द्वारा यह तर्क यह दिया जा रहा है कि बैतूल जिले के एपीएल के सभी राशन कार्ड धारको को बीते छै माह में दिया जाने वाला एपीएल का गेंहू बाजार में नही बेचा गया है। एपीएल पूरा का पूरा ही एपीएल का गेंहू कार्ड धारको को दिया गया है। राशन कार्ड धारको से पता कर लिया जाये....!
श्री ठाकुर इस बात को जानते है कि पौने दो लाख लोगो तक कोई एन जी ओ तो क्या भगवान भी नहीं जा सकता क्योकि आज भी कई दुकानो के पास फर्जी राशन कार्ड है। जिले में ऐसे एपीएल कार्ड धारको की भी कमी नहीं है जो कि इस दुनिया से बिदा हुये बरसो हो गये। जब बैतूल जैसे जिला मुख्यालय पर मृत लोगो को पेशंन तक मिलती आ रही थी वहां के दुरस्थ क्षेत्रो में क्या कुछ संभव नहीं है। बैतूल जिले की 13 लाख की आबादी में मात्र में 43 हजार 427 ही बीपीएल कार्ड धारक है ऐसी स्थिति में जिले में यदि औसतन माना जाये कि एक परिवार में चार सदस्य है तब भी बैतूल जिले में तीन लाख राशन कार्ड धारक होना चाहिये....! सरकारी आकडो में सवा दो लाख से ढाई लाख लोगो के राशन कार्ड बने है। जिले में नीला - पीला - सफेद कार्ड के चक्कर में सब कुछ काला बाजार हो रहा है। अब मामले के उजागर होने पर कहा जा रहा है कि इसलिए एपीएल के गेंहू की कालाबाजारी के खिलाफ उन दुकानदारो के खिलाफ वसूली की जायेगी लेकिन वह भी राजनैतिक दबाव के चलते संभव नहीं है क्योकि जिले की अधिकांश आदिम जाति सहकारी समितियां और जिला सहकारी बैंक तक सत्ताधारी दल के कब्जे में है ऐसे में अपने ही लोगो के चेहरो पर से नकाब हटाने का साहस किसी में भी नहीं है। मामले ने तूल पकडा और कांग्रेस यदि धोखे से भी कुंीाकरणी निंद्रा से जाग गई तो एपीएल राशन कार्ड के गेंहू महाघोटाले में औसतन तीस से पचास प्रतिशत दुकानो से गेंहू की तथाकथित 4 रूपये प्रति किलो के हिसाब से वसूली की जा सकती है। गरीबो के अनाज पर अमीरो का डाका तो सभी के दिलो के दिमाग पर था लेकिन एपीएल कार्ड धारक जिसमें जिले के उद्योगपति - ठेकेदार - पंूजीपति - धन्नासेठ - होटल - दुकान - कंपनी - प्रतिष्ठान के मालिको के अलावा क्लास वन टू थ्री फोर के अधिकारी एवं कर्मचारी जिन्हे राशन की दुकान का लाल - पीला - सडा गेंहू बेस्वाद लगता है आखिर उनके कार्ड का गेंहू गया कहां पर ....!
बैतूल जिले के खाद्य अधिकारी ठाकुर उपभोक्ता दुकानदारो के पक्ष में कुछ इस प्रकार कहते है कि पूरे के पूरे बेइमान या चोर नहीं है ....! लेकिन जब उनसे पुछा गया कि इमानदार भी है तो प्रमाण दीजिए तो वे बगले झांकने लगे। बरहाल बैतूल जिले से गेंहू की कालाबाजारी पर ग्रामिण एवं शहरी बैतूल की एक नकारात्मक तस्वीर यह है कि अब सरकार को गरीब के साथ - साथ अमीर मेला भी लगा कर उन्हे भी सरकारी योजनाओं की जानकारी देनाी चाहिये।