Tuesday, May 29, 2012

ये सरकार है या बिजूका

 (डा. शशि तिवारी) 
 
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                 पैट्रोल बम्ब, डीजल बम्ब, गैस बम्ब, महंगाइर बम्ब, भ्रष्टाचार बम्ब, झुठेला बम्ब, मक्कारी बम्ब, विश्वासघाती बम्ब और न जाने कौन-कौन से बम्ब, लोकतंत्र में मालिक अर्थात् जनता के ऊपर गिरा तथाकथित जनप्रतिनिधि कम्पनी और पूंजीपतियों से मिल जनता को आतंकित किये हुए है। अब तो ऐसा लगता है कि किस पर जनता विश्वास करें और किस पर नहीं? आज सांपनाथ और नागनाथ दोनों ही मालिक अर्थात् जनता का खून पीने में ही आनंदित होते हैं।

                यू. पी. ए. समर्पित पार्टियां लाख चालाकी बरते लेकिन जनता की पैनी नजरों से बच नहीं सकती। इसी तरह राज्य की सरकारें भी केन्द्र की आड़ में कम्बल ठक घी पी नहीं सकती?

                आखिर ये हो क्या रहा है सरकार के आंकडे कहते हेंै महंगाई पर नियंत्रण हुआ, गरीब कम हुए, गरीबी रेखा कभी गिरी, कभी बढ़ी, विकास दर बढ़ी और न जाने क्या क्या? इसी बाबत् मंत्रियों द्वारा ढ़ेरों विदेश यात्राएं की गई, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा, संसद चलती नहीं, संसद की गरिमा पर समय-समय पर अंदर और बाहर वालों ने प्रहार किये, देश में आम आदमी की चिंता पर चिंतन लाखों कोस पीछे छूट गया है, जनता से बिना पूछे अपने ऐशो आराम के लिए पगार एवं सुविधा स्वयं भू अधिकार के तहत् जन प्रतिनिधि झपट ही लेते है, पेट भर चुका, शर्म बची नही, अब बारी आती है अर्नगल प्रलापों की, झूठी चिंता की तो, उस नौटंकी में सभी राजनीतिक दलों ने महारथ हासिल कर रखी हैं, रहा सवाल जनता का, तो वो इन जुल्मों को सहने के लिये डिसर्व करती है बल्कि उसे गुलाम रहने में ही अब मजा आने लगा है? पंचतंत्र में एक कहानी आती है कि राजा के दरबार में एक त्रिकालदर्शी पंडित ने राजा के भूत, भविष्य को देखने की सामथ्र्य थी, दुर्भाग्य से राजा का अगला जन्म सुअर योनी में होना था। राजा भी चिंतित हो इस योनि बचने का उपाय पूछा। पंडित के अनुसार आपके इस योनि में जन्म लेते ही आपका तत्काल वध कर दिया जाए तो मुक्ति हो जायेगी और अगली योनि राजा की ही होगी। राजा ने अपने पुत्रों को बुला मुक्ति के बारे में बताया। आज्ञाकारी पुत्रों ने राजा द्वारा बताया समय एवं माथे पर तिलक का चिन्ह की पहचान बताई। दुर्भाग्य से उस रात तेज बारिश के कारण पुत्रों को स्थल पर पहुंचने में देरी हो गई जैसे ही पिता को सुअर योनि में पहचान तलवार से वध करने को अग्रसर हुए तभी आवाज आई अब रहने दो अब इसी कीचड़ में मजा आ रहा है। आज ऐसी ही स्थिति कुछ-कुछ जनता की हो गई है, वह इन सभी की अब आदी सी हो गई है। एक दो दिन कुछ लोगों के साथ धरने प्रदर्शन में भडास निकालेगी, अब शायद ये नियति सी ही बन गई है।

                यहाँ उत्तराखण्ड, केरल एवं सर्वाधिक गोवा सरकार की तारीफ करना चाहूंगी जिसने लोकतंत्र के सच्चे मायने का उत्कृष्ट उदाहरण जनता को राहत दे प्रस्तुत किया। आखिर राज्य की रिया का ध्यान रखने की जवाबदेही को उन्होंने बखूबी बिना राजनीतिक ढकोसले से जो निभाया है।

                इसे विडंबना ही कहेंगे, म.प्र. के मुखिया शिवराज जनता के लिए दिन-रात एक किये हुए है, वहीं वित्त मंत्री राघवजी का वह बयान ‘‘केन्द्र सरकार पैट्रोल के दाम बढ़ाती जा रही है और हम से उम्मीद करती है कि हम टैक्स कम करें ऐसे कैसे संभव है, पैट्रोल पर टैक्स कम नही होगा।’’ यह जनता के घावों पर नमक छिड़कने जैसा ही है यह बयान म.प्र. भाजपा के लिए भविष्य में नुकसान देह साबित हो सकता है। राघव जी को यह नही ंभूलना चाहिए कि म.प्र. की जनता ने ही आपको मंत्री बनाया है, कोई आप प्रायवेट लिमिटेड कंपनी के मालिक नहीं है? जब जनता का ख्याल नहीं रख सकते वो केन्द्र सरकार को कौसने का भी इन्हें कोई अधिकार नही है? केन्द्र यदि पाप कर रहा है तो हम भी करेंगे यह कोई तर्क नहीं है। यह सरासर म.प्र. के वोटरों के साथ न केवल अत्याचार है बल्कि जघन्य अपराध भी है? राघव जी को तो घी के दिये जलाने चाहिए कि बैठे-बिठाए म.प्र.सरकार को दो रूपया प्रति लीटर का फायदा हो खजाना जो भर रहे है फिर विरोध क्यों? ये पब्लिक है सब जानती है वोट की भीख मांगते समय जनता माकूल उत्तर देगी। शिव को यहां हस्तक्षेप करना ही होगा अन्यथा केन्द्र राज्य में अंतर ही क्या रह जायेगा।

                भोपाल में तेल कंपनी इंडिया आॅयल कारर्पोरेशन का मजाक तो देखिए इनकी गलती के चलते ग्राहकों से बीते गुरूवार (24/05/12) 12ः00 बजे तक ग्राहकों से 39 पैसे ज्यादा वसूलने की बात को एक दैनिक अखबार के माध्यम से ए. के. सिंह मुख्य मण्डल प्रबंधक आई. ओ. सी. भोपाल स्वीकार कर चुके है साथ ही कहते है कि त्रुटि हुई है। साथ ही निर्देश दे रहे है कि शहर के सभी 44 पैट्रोल पम्प संचालक ग्राहकों द्वारा बिल प्रस्तुत करने पर अतिरिक्त वसूली गई राशि को वापस लौटा दे जिन्होंने 78.51 प्रति लीटर की रसीद दी है। यह सभी जानते है कि कितने लोग बिल लेते है सिवाए शासकीय वाहनों को छोड़। अब प्रश्न उठता है कि अतिरिक्त वसूला गया पैसा ग्राहकों को कैसे वापस होगा? होना तो यह चाहिए था कि रेट के निर्धारण में गलती जिस स्तर के अधिकारी से हुई पहले उसके खिलाफ वेतन से वसूली हो या उक्त अवधि में पैट्रोल संचालकों द्वारा जो अतिरिक्त राशि ली गई है को जिम्मेदार अधिकारी एकत्रित कर किसी अनाथालय, वृद्धाश्रम या चेरीटेबल अस्पताल में जमा कराने की जवाबदेही भी अब आई.ओ.सी.की हो? गलती की है तो अब सजा भी होनी चाहिए, आखिर पारदर्शिता एवं जवाबदेही का जो सवाल है।

                केन्द्र और राज्य यदि पैट्रोल से सभी करों को हटा ले तो यह 36 रूपये प्रति लीटर जनता को प्रदाय किया जा सकता है एवं इसकी भरपाई के लिए उद्योपतियों पर अन्य कर लगा पूरा कर सकती है।

                प्रणव मुखर्जी भी अब देश की जनता को बेवकूफ बनाना छोड़े कि तेल कंपनियों पर उनका नियंत्रण नहीं है, प्रणव को जनता ने भेजा है या कम्पनी ने? यह यक्ष प्रश्न उठता है चुनाव एवं चलती संसद के समय कम्पनी कीमतें क्यों नही बढ़ा पाती? ये कम्पनियां बार-बार सरकार से घाटे एवं कीमतें बढाने का अनुरोध क्यों करती रहती है? इन कंपनियों को किसने भारत की जनता पर जब चाहे चाबुक चलाने के लिए निरंकुश छोड दिया है? जब ये तेल कंपनियां अपने वार्षिक प्रतिवेदन में मुनाफा दर्शाती है फिर तेल कीमतों में वृद्धि क्यों? 2006 से आज तक कितनी ही बार अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में तेल की कीमतें कम हुई भी तब भी इन्होंने कीमतों को कम क्यों नहीं किया? सरकार ने क्या देखा? यदि कम्पनी के गलत निर्णय से भारत में आग लग सकती है तो सरकार पुनः इन तेल कम्पनियों को अपने नियंत्रण में क्यों नहीं ले सकती? आखिर सरकार किस मर्ज की दवा है? नियंत्रण न होने की बात कह देने मात्र से क्या सरकार अपने दायित्वों कत्र्तव्यों से मुक्त हो जाती है? यदि केन्द्र सरकार लाचार ही है तो केन्द्र सरकार को भंग कर 10 सालों के लिए देश में राष्ट्रपति शासन क्यों नहीं लगा देना चाहिए? चूंकि अब देश में चुने हुए जनप्रतिनिधि अपनी उपयोगिता खो चुके हैं।
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(डा. शशि तिवारी)
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