मध्य प्रदेश की मंडी में मीडिया का मोलभाव
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मध्य प्रदेश में अघोषित तौर पर ही नहीं बल्कि अजीब तरीके से प्रेस पर सेंसरशिप लागू कर दी गई है। यह सेंसरशिप कुछ ऐसा है कि भाजपा या सरकार के पक्ष वाले संस्थानों को विज्ञापनों से लादा जा रहा है जबकि अन्य मुंह ताकने पर मजबूर हैं। मध्य प्रदेश में भले ही अपराधियों, भ्रष्टाचारियों और बलात्कारियों के मामले हर रोज उजागर हो रहे हैं लेकिन विकास और जन कल्याण के क्षेत्र में व्याप्त भारी निराशा के बाद भी भाजपा ने जनसंपर्क विभाग की पीठ पर सवार होकर चुनाव की वैतरणी पार करने की व्यूह रचना की है। इसी के तहत सबसे पहले अखबारों को सरकारी विज्ञापन का चाबुक दिखाकर अपने कब्जे में करने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया गया है।
जनसंपर्क विभाग के सर्वाधिक रसूखदार और अमीर अपर संचालक लाजपत आहूजा को इसी रणनीति के अंतर्गत हाल ही में विज्ञापन के साथ-साथ समाचार शाखा का प्रभार भी सौंपा गया है। दरअसल इन्हीं दो शाखाओं में जनसंपर्क विभाग समाहित है। प्रदेश के इतिहास में पहली बार इस तरह विज्ञापन और समाचार शाखा एक ही अधिकारी के हाथों में सौंपी जा रही है।
यूं तो जनसंपर्क विभाग में कई अपर संचालक हैं, किंतु लाजपत आहूजा भारतीय जनता पार्टी का सर्वाधिक चहेता अधिकारी है। फर्क इतना ही है कि वह भाजपा के कार्यालय दीनदयाल परिसर की बजाय जनसंपर्क संचालनालय में बैठते है। भाजपा सरकार के नौ वर्ष के कार्यकाल में सरकारी विज्ञापन के कुबेर के खजाने की चाबी कमोबेश आहूजा की जेब में ही रही है। पूर्व मुख्य सचिव राकेश साहनी भी इस अधिकारी के साथ बहुत कृपालु थे। फलस्वरूप अघोषित रिश्तों के कारण उनके कार्यकाल में तो इसकी सभी उंगलिया घी में डूबी रहती थीं।
सरकारी विज्ञापनों को एक '' काले धंधे '' में परिवर्तित करने में लाजपत आहूजा का बड़ा योगदान रहा है। सरकारी विज्ञापन के बल पर कई '' कुछ '' तथाकथित बैठकबाज पत्रकारों को करोड़पति बनाने का श्रेय इसी अधिकारी को है। भाजपा को यह अधिकारी इतना रास आ गया है कि जनसंपर्क विभाग चाहे किसी भी मंत्री के पास क्यों न रहा हो, ढे़र सारी शिकायतों के बाद भी कोई उसके अंगदी पैर को विज्ञापन शाखा से एक इंच भी हिला नहीं पाया। पत्रिका अथवा अखबार की १०० प्रतियां छपवाकर २५ से लेकर ५० हजार तक का सरकारी विज्ञापन झटक लेने का गोरखधंधा आहूजा के कार्यकाल में ही पनपा है और अब तो वह पूरे शबाब पर है। लोग आहूजा को जनसंपर्क विभाग में '' ला और आर्डर'' का जनक भी कहते हैं। अब तो हजारों तथाकथित पत्रकार आहूजा की कृपा की ही रोटी खा-पचा रहे हैं।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने आरोप लगाया है कि भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे लाजपत आहूजा को विज्ञापन और समाचार शाखा का एक साथ प्रभार भाजपा के मुख्यालय में बनी गुप्त रणनीति के तहत सौंपा गया है। समाचार शाखा के प्रभारी अपर संचालक के रूप में आहूजा अब हर दिन निगरानी रखेगा कि किस अखबार ने भाजपा और उसकी सरकार के बारे में क्या तथा कैसा छापा है। यह निश्चित है कि जो अखबार नकारात्मक समाचारों और टिप्पणियों के द्वारा भाजपा सरकार की विफलताओं को जनता के सामने लाने का दुस्साहस करेंगे, उन्हें आहूजा की विज्ञापनी कृपा के लिए निश्चित ही तरसना पड़ेगा। अब आहूजा के जरिये राज्य सरकार का एक ही सूत्र काम करेगा-च्च्भाजपा और उसकी सरकार के भले की बात छापो, अन्यथा रस्ता नापो। भविष्य में रात को दिन और स्याह को सफेद बताने वाले अखबारों को ही सरकारी विज्ञापन मिलेंगे, जनसंपर्क विभाग की इस नई प्रशासनिक व्यवस्था ने बड़ी बेशर्मी के साथ यह तय कर दिया है। कांग्रेस इसको भाजपा सरकार द्वारा लादी गई ''अघोषित सेंसरशिप'' मानती है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने आगे कहा है कि जनसंपर्क विभाग के बजट में विज्ञापन मद में हर साल जो अरबों का प्रावधान किया जाता है, वह सरकार की योजनाओं और सुविधाओं को जन-जन तक पहुंचाने के लिए है। जनसंपर्क विभाग इस बजट से यह बुनियादी काम न करते हुए भारतीय जनता पार्टी को चुनावी लाभ पहुंचाने वाले विज्ञापन जारी करके शासकीय धन का आपराधिक दुरूपयोग कर रहा है। दरअसल यह बजट जनसंपर्क विभाग का खुद का न होकर विभिन्न विकास विभागों के प्रचार मद को काटकर जनसंपर्क विभाग को स्व. अर्जुनसिंह के मुख्य मंत्री काल में सौंपा गया बजट है। इस निर्णय के पीछे उद्देश्य यह था कि जनसंपर्क विभाग योजना मूलक प्रचार करेगा, किंतु विज्ञापनों के जरिए ऐसे प्रचार की बजाय अधिकांश बजट मुख्य मंत्री और मंत्रियों तथा भाजपा की छवि सुधारने पर खर्च हो रहा है।
sabhar - visfot news network