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(डॉ. शशि तिवारी)
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सभी धर्म एवं गुरू सदियों से केवल एक ही शिक्षा देते आये है कि झूठ मत बोलो, अच्छे कर्म करो, नेकी करो आदि आदि हमारे वेद और पुराणों में गुरू का महत्व भगवान से भी ऊपर है विश्वास का नाम ही गुरू है जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है, इस जाते हुए वर्ष में भी विश्वास पर ही विश्वासघात हुआ है फिर बात चाहे धर्म गुरू आशाराम की हो, नारायण स्वामी की हो, न्याय के क्षेत्र में जस्टिस ए.के. गांगुली की हो, मीडिया के क्षेत्र में तरूण तेजपाल की हो, या संस्कृति, संस्कार शिक्षा के सरस्वती शिशु मंदिर के शिक्षक से राजनेता बने पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा की हो। यहां मुझे खड़कसिंह और साधू की बात अनायास ही याद आ रही है कि अब ऐसा किसी के साथ मत करना नहीं तो साधू से जनता का विश्वास उठ जायेगा। आज सभी ने केवल और केवल विश्वास की प्रतिमा को न केवल खण्डित किया है बल्कि कलंकित भी किया है।
आज आदमी अच्छी शिक्षा पाता ही इसीलिए है कि ताकि वह अपनी जीवन का यापन अच्छी नौकरी, व्यापार के साथ सदमार्ग एवं मेहनत कर आगे बढ़ सके। यूं तो शिव भोले भण्डारी है वहीं प्रदेश के मुखिया ने अपने पूर्ण वृद्धि विवेक से पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा को एक साथ कई विभाग मसलन तकनीकी शिक्षा, उच्चशिक्षा, खनिज धर्म धर्मस्य एवं जनसंपर्क जैसे भारी भरकम विभाग शायद इसी विश्वास के साथ दिये होंगे कि सब कुछ पाक-साफ चलेगा और काफी हद तक उनकी सोच एवं चयन सही भी था। क्योंकि उसूल, संस्कृति के साथ नवपीढ़ी को गढ़ने वाला शिक्षक से उपयुक्त कोई और हो भी नहीं सकता था, एक शिक्षक चाणक्य रहा जिसने अपनी शिक्षा से एक साधारण से बालक को राजा बना न केवल अत्याचारी, घमण्डी राजा धनानंद का नाश किया बल्कि नंदवंश को ही मिटा दिया। इसी के साथ अर्थशास्त्र एवं नीति शास्त्र में भी नए कीर्तिमान भी स्थापित किये। वहीं जाते वर्ष में प्रदेश का सबसे बड़ा घोटाला ’’व्यापम घोटाला’’ 2013 इतिहास के पन्ने में एक काले अध्याय के रूप में जाना जावेगा। प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री नारी शक्ति सुश्री उमाभारती ने व्यापम घोटाले के बिहार के चारा घोटालें से भी बड़ा घोटाला माना हैै। यदि एक आदमी चोरी करता है तो केवल अपने को ही नुकसान पहुंचाता है। लेकिन लाखों, करोड़ों युवा होनहार शिवराज के भांजे-भांजिओं, बहिनों, भाईयों के भविष्य को तबाब करने का खेल व्यापम के माध्यम से मेडिकल, इंजीनियरिंग, पुलिस भर्ती, वनरक्षक, पटवारी, नापतोल निरीक्षण, संविदा शिक्षक, एवं अन्य तमाम परीक्षाओं के माध्यम से न केवल युवा पीढ़ी को तबाह कर दिया बल्कि कई परिवारों को भी बर्बादी के कगार पर लाकर खडा कर दिया है। इस फर्जीवाड़े से कई लोगों की शादियां अब अभिशाप बन गई। इस फर्जीवाड़े ने पूरी युवा पीढ़ी को मिटाने एवं प्रतिभाओं का कत्ल करने का भी गुनाह किया है, वास्तव में जिसे डॉक्टर, इंजीनयिर, पुलिस, अधिकारी वन देश सेवा करना चाहिये था, वे दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर है जिन्हें ठोकर खाना चाहिए वे मलाई खा रहे हैं। यह कृत्य ’राजद्रोह’ से कम नहीं है। इतने मासूम, निरीह लोगों की लगी हाय हाय यू ही व्यर्थ नहीं जायेगी, वाकई में एम.पी. अजब है जहां फर्जी बाड़े की बाढ़ है फिर चाहे व्यापम से उत्पन्न फर्जी डॉक्टर हो पुलिस थानेदार आरक्षक हो, पटवारी हो, अधिकारी या कर्मचारी हो फर्जी की अर्जी में एस.टी.एफ. की जितनी भी तारीफ की जाए कम है विशेषतः सुधीर कुमार शाही जिनके दृढ़ इरादों से ही न केवल फर्जीवाड़ा उजागर हुआ बल्कि कई रसूखदार भी बेनकाब हुए हैं, और कुछ बाकी है।
‘‘एक न्यूज पोर्टल के माध्यम से लक्ष्मीकांत शर्मा कहते हैं कि यदि उन्हें जेल जाना पड़ा तो वे अकेले नहीं जायेंगे अन्य भी मेरे साथ जेल यात्रा करेंगे।’’
यूं तो देश की आजादी के लिये कई दीवानें जेल गए और उन्हें समाज सम्मान की नजरों से भी देखता है लेकिन कुकर्मों की सजा में जेल गए लोग उन्हें केवल हैय, हिकारत दृष्टि से ही देखा जायेगा फिर चाहे वह कितना ही प्रभावशाली व्यक्ति ही क्यों न हो। यदि लक्ष्मीकांत शर्मा पाक साफ है, दाढ़ी में तिनका नहीं है तो क्यों नहीं उमाभारती की तरह सामने आ सच का सामना कर लोगों की घिग्गी बांधते? क्यों नहीं पूरा सच बताते? क्यों ओरों के लिए अपनी स्वच्छ छबि एवं दामन पर बेवजह आरोपों के दाग लगवा रहे हैं? क्यों नहीं बंगले पर पदस्थ सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों की जांच करवाने की स्वतः घोषणा करते हैं? यह भी कडवा सच है कि कोई भी प्रतिष्ठान फिर वापस नहीं आते? हो सकता है लक्ष्मीकांत शर्मा निर्दोष हो, निष्कलंक हो, लेकिन फिर भी भारतीय कानून के मुताबिक अपने ऊपर लगे झूठे आरोपों को सिद्ध करने की जिम्मेदारी आरोपी की ही होती है? यह भी कटु सत्य हैं? एक बार 1500 करोड़ का घोटाला तो कम हो सकता है लेकिन करोड़ों युवाओं की जिंदगी में जहर घोलने का ये घोटाला कभ भी किसी सूरत में क्षम्य नहीं हो सकता, यह अन्य अपराधों से भी बड़ा ’’महाआपराध’’ है। होना तो यह भी चाहिए कि इस घोटाले में जब राशि का उपयोग फर्जीवाडे के शिकार युवाओं के लिए स्वरोजगार स्थापित करने में करना चाहिए।
यूं तो हमारे देश में ढेरों कानून, ढेरों आयोग एवं जांच एजेन्सीयां है लेकिन फिर भी ये जिम्मेदार एजेन्सीयां केवल इसी बात का इन्तजार करती है कि कोई शिकायत करे तो हम जांच करे! चूंकि लक्ष्मीकांत एवं अन्य जवाबदेह अधिकारी निशोन पर हैं तो ऐसे में क्यों नहीं जांच एजेंसीयां मंत्री बंगले पर पदस्थ सभी अधिकारी एवं कर्मचारियों को स्वयं संज्ञान ले जांच के घेरे में ले लेती? आखिर ये अपने कर्तव्यों का निर्वाहन कब करेंगी।
हालांकि तीसरी पारी की शुरूआत में शिवराज ने अपने पुराने एवं नये गणों को नसीहत दे रखी है कि अपने स्टाफ में स्वच्छ छवि के लोगों को ही रखें। होना तो यह भी चाहिये मंत्री स्टाफ में स्थापना के पहले और बाद में अर्जित संपत्ति का खुलासा प्रतिवर्ष होना चाहिए जो कानूनन भी सही है आखिर पारदर्शी एवं जवाबदेह प्रशासन देने की जो बात है।