राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मुंबई सीरियल ब्लास्ट के गुनहगार याकूब मेमन की दया याचिका ठुकरा दी है. इस तरह याकूब की फांसी पर अब अंतिम मुहर लग चुकी है. याकूब को 30 जुलाई को सुबह 7 बजे फांसी दे दी जाएगी.
इस तरह साल 1993 में हुए मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन की फांसी को लेकर सस्पेंस पूरी तरह खत्म हो गया है. 30 जुलाई को फांसी टालने की याकूब की अर्जी को सुप्रीम कोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है.
दया याचिका पर गृह मंत्रालय की ओर से राय बताने खुद केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिलने पहुंचे थे. कानूनी राय देने के लिए सॉलिसीटर जनरल रंजीत कुमार भी राष्ट्रपति भवन में मौजूद रहे.
शांतनु उस वक्त सीबीआई की स्पेशल टास्क फोर्स के प्रमुख थे, जो मुंबई हमले की जांच कर रही थी. शांतनु ने कहा, 'हमारे सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तान में बसने को लेकर मेमन परिवार में ही एकमत नहीं था. उस वक्त याकूब और उसका भाई टाइगर दोनों कराची में थे. टाइगर ने कथित तौर पर याकूब ने भारत लौटने से मना किया था.' शांतनु ने बताया कि याकूब के परिवार में कुछ लोग पाकिस्तान में असुरक्षित महसूस करते थे. उन्हें डर था कि वे उस माहौल में रह नहीं कर पाएंगे और पाकिस्तानी उन पर भरोसा नहीं करेंगे.
'सजा को लेकर नहीं किया था कोई वादा'
शांतनु ने उन खबरों और दलीलों को खारिज किया, जिसमें कहा जा रहा है कि सीबाआई ने टाइगर और दाऊद इब्राहिम के बारे में जानकारी के बदले याकूब को छोड़ने जैसा कोई वादा किया था. उन्होंने कहा, 'हमनें उन्हें भारत की न्याय व्यवस्था में का भरोसा दिलाया. पहले दिन से ही उनकी हर हलचल पर हमारी नजर थी. हमें पता था कि वे कैसे आने वाले हैं और वे जहां भी आते, हम उन्हें गिरफ्तार करने के लिए तैयार थे, लेकिन हमने मेमन परिवार से कोई झूठा वादा नहीं किया गया था और न ही उन्हें धोखा दिया गया.'
पूर्व अधिकारी ने बताया कि याकूब ने लौटने के बाद अपने परिवार को भी वापस लाने में मदद की. इसमें उसके दो भाइयों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है. 11 लोगों में से सिर्फ चार लोगों को सजा सुनाई गई है. बाकी किसी को सजा नहीं सुनाई गई.
हालांकि, दलील यह भी है कि जब याकूब भारत लौटा तो बी रमन रॉ के टॉप अफसर थे. उन्होंने लिखा था कि याकूब ने जांच एजेंसियों की पूरी मदद की थी इसलिए उसे मौत की सजा नहीं दी जानी चाहिए.
परिवार को विश्वास था, टल जाएगी सजा
दूसरी ओर, याकूब के परिवार को भरोसा था कि बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले में याकूब मेमन की अर्जी पर न्याय होगा. गौरतलब है कि कोर्ट के आदेश के तहत 30 जुलाई यानी गुरुवार को याकूब को फांसी होनी है.
इस तरह साल 1993 में हुए मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन की फांसी को लेकर सस्पेंस पूरी तरह खत्म हो गया है. 30 जुलाई को फांसी टालने की याकूब की अर्जी को सुप्रीम कोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है.
दया याचिका पर गृह मंत्रालय की ओर से राय बताने खुद केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिलने पहुंचे थे. कानूनी राय देने के लिए सॉलिसीटर जनरल रंजीत कुमार भी राष्ट्रपति भवन में मौजूद रहे.
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्यूरेटिव याचिका पर दोबारा सुनवाई नहीं होगी. इस तरह याकूब फांसी के फंदे के बेहद करीब आ गया.
गृह मंत्रालय ने अपने पुराने रुख पर कायम रहते हुए फांसी की सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. गृह मंत्रालय ने अपनी सिफारिश के साथ इसे राष्ट्रपति के पास भेजा था.
नागपुर जेल के आसपास सुरक्षा कड़ी
याकूब मेमन की फांसी के मद्देनजर नागपुर जेल के आसपास सुरक्षा कड़ी कर दी गई है. जेल के आसपास के इलाके में धारा 144 लागू कर दी गई है. जेल परिसर के अंदर मीडिया के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई है. मुंबई में अलर्ट का ऐलान किया जा चुका है.
याकूब मेमन की फांसी के मद्देनजर नागपुर जेल के आसपास सुरक्षा कड़ी कर दी गई है. जेल के आसपास के इलाके में धारा 144 लागू कर दी गई है. जेल परिसर के अंदर मीडिया के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई है. मुंबई में अलर्ट का ऐलान किया जा चुका है.
जन्मदिन पर ही फांसी की सजा पर अमल
खास बात यह है कि याकूब मेमन को उसके जन्मदिन पर ही फांसी के फंदे पर झुलाया जाएगा. याकूब का जन्म 30 जुलाई, 1962 को मुंबई में हुआ था. उसकी जन्मतिथि का खुलासा उसके पासपोर्ट से हुआ है.
खास बात यह है कि याकूब मेमन को उसके जन्मदिन पर ही फांसी के फंदे पर झुलाया जाएगा. याकूब का जन्म 30 जुलाई, 1962 को मुंबई में हुआ था. उसकी जन्मतिथि का खुलासा उसके पासपोर्ट से हुआ है.
गवर्नर ने खारिज की दया याचिका
महाराष्ट्र के गवर्नर ने भी याकूब मेमन की दया याचिका खारिज कर दी. याकूब ने राष्ट्रपति के पास भी दया याचिका भेजी थी, जिसे राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया.
महाराष्ट्र के गवर्नर ने भी याकूब मेमन की दया याचिका खारिज कर दी. याकूब ने राष्ट्रपति के पास भी दया याचिका भेजी थी, जिसे राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया.
अदालत से नहीं मिली राहत
याकूब की याचिका पर तीन जजों की बेंच ने सुनवाई की. इससे पहले, मंगलवार को याकूब की याचिका पर जस्टिस एआर दवे और जस्टिस कुरियन जोसेफ के बीच मतभेद हो गया था, जिसके बाद मामला चीफ जस्टिस को भेजा गया. बुधवार को लंच के पहले याकूब के वकील राजू रामचंद्रन ने बेंच के सामने अपना पक्ष रखा. उसके बाद अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने बहस शुरू की. रोहतगी ने कोर्ट में कहा कि याकूब ने मौत की सजा पाने वाले अपराधियों को दी जाने वाली सारी स्थितियां आजमा ली हैं और उसकी सजा हर स्तर पर बरकरार रखी गई, ऐसे में अब इस दया याचिका का कोई तुक नहीं बनता.
याकूब की याचिका पर तीन जजों की बेंच ने सुनवाई की. इससे पहले, मंगलवार को याकूब की याचिका पर जस्टिस एआर दवे और जस्टिस कुरियन जोसेफ के बीच मतभेद हो गया था, जिसके बाद मामला चीफ जस्टिस को भेजा गया. बुधवार को लंच के पहले याकूब के वकील राजू रामचंद्रन ने बेंच के सामने अपना पक्ष रखा. उसके बाद अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने बहस शुरू की. रोहतगी ने कोर्ट में कहा कि याकूब ने मौत की सजा पाने वाले अपराधियों को दी जाने वाली सारी स्थितियां आजमा ली हैं और उसकी सजा हर स्तर पर बरकरार रखी गई, ऐसे में अब इस दया याचिका का कोई तुक नहीं बनता.
जानकारी के मुताबिक, जस्टिस दवे ने जहां 30 जुलाई के लिए जारी मौत के वारंट पर रोक लगाने से इनकार किया, वहीं न्यायमूर्ति कुरियन ने कहा है कि मृत्युदंड क्रियान्वित नहीं होगा. इन सब के बीच अब सीबीआई के एक पूर्व अधिकारी ने बड़ा खुलासा किया है. उन्होंने कहा कि याकूब को भारत लाने के पीछे सीबीआई का अहम किरदार था और संस्थान ने उसे सुरक्षा का भरोसा दिया था!
सीबीआई ने दिलाया था विश्वास
सीबीआई के शीर्ष अधिकारी रहे शांतनु सेन ने एक टीवी चैनल से इंटरव्यू में कहा कि सीबीआई ने पाकिस्तान में अपने सभी सूत्रों की मदद से मेमन परिवार को यह यकीन दिलाया था कि उनकी सुरक्षा भारत में ही मुमकिन है. सीरियल धमाकों के एक साल बाद जब याकूब मेमन को मुंबई की एक कोर्ट में पेश किया गया तो यह साफ नहीं था कि उसने नेपाल में सरेंडर किया या उसे नई दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था.
सीबीआई के शीर्ष अधिकारी रहे शांतनु सेन ने एक टीवी चैनल से इंटरव्यू में कहा कि सीबीआई ने पाकिस्तान में अपने सभी सूत्रों की मदद से मेमन परिवार को यह यकीन दिलाया था कि उनकी सुरक्षा भारत में ही मुमकिन है. सीरियल धमाकों के एक साल बाद जब याकूब मेमन को मुंबई की एक कोर्ट में पेश किया गया तो यह साफ नहीं था कि उसने नेपाल में सरेंडर किया या उसे नई दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था.
शांतनु उस वक्त सीबीआई की स्पेशल टास्क फोर्स के प्रमुख थे, जो मुंबई हमले की जांच कर रही थी. शांतनु ने कहा, 'हमारे सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तान में बसने को लेकर मेमन परिवार में ही एकमत नहीं था. उस वक्त याकूब और उसका भाई टाइगर दोनों कराची में थे. टाइगर ने कथित तौर पर याकूब ने भारत लौटने से मना किया था.' शांतनु ने बताया कि याकूब के परिवार में कुछ लोग पाकिस्तान में असुरक्षित महसूस करते थे. उन्हें डर था कि वे उस माहौल में रह नहीं कर पाएंगे और पाकिस्तानी उन पर भरोसा नहीं करेंगे.
'सजा को लेकर नहीं किया था कोई वादा'
शांतनु ने उन खबरों और दलीलों को खारिज किया, जिसमें कहा जा रहा है कि सीबाआई ने टाइगर और दाऊद इब्राहिम के बारे में जानकारी के बदले याकूब को छोड़ने जैसा कोई वादा किया था. उन्होंने कहा, 'हमनें उन्हें भारत की न्याय व्यवस्था में का भरोसा दिलाया. पहले दिन से ही उनकी हर हलचल पर हमारी नजर थी. हमें पता था कि वे कैसे आने वाले हैं और वे जहां भी आते, हम उन्हें गिरफ्तार करने के लिए तैयार थे, लेकिन हमने मेमन परिवार से कोई झूठा वादा नहीं किया गया था और न ही उन्हें धोखा दिया गया.'
पूर्व अधिकारी ने बताया कि याकूब ने लौटने के बाद अपने परिवार को भी वापस लाने में मदद की. इसमें उसके दो भाइयों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है. 11 लोगों में से सिर्फ चार लोगों को सजा सुनाई गई है. बाकी किसी को सजा नहीं सुनाई गई.
हालांकि, दलील यह भी है कि जब याकूब भारत लौटा तो बी रमन रॉ के टॉप अफसर थे. उन्होंने लिखा था कि याकूब ने जांच एजेंसियों की पूरी मदद की थी इसलिए उसे मौत की सजा नहीं दी जानी चाहिए.
परिवार को विश्वास था, टल जाएगी सजा
दूसरी ओर, याकूब के परिवार को भरोसा था कि बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले में याकूब मेमन की अर्जी पर न्याय होगा. गौरतलब है कि कोर्ट के आदेश के तहत 30 जुलाई यानी गुरुवार को याकूब को फांसी होनी है.