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इन दिनों यही मांजरा इंदौर संभागीय जनसम्पर्क विभाग का हो रहा हैं, मौका है उज्जैन सिंहस्थ 2016 के कवरेज में शामिल होने वाले पत्रकारों के पास बनने का हैं। जिसमे जनसम्पर्क विभाग द्वारा जारी आवेदन फार्म में स्पष्ट तौर पर प्रिंट मिडिया, इलेक्ट्रानिक मिडिया, न्यूज एजेंसी एवं वेब मिडिया के पत्रकारों को अघोषित आमंत्रण के रूप में पास हेतु बुलाया जा रहा हैं, जिसमे पत्रकारों से कई तरह के दस्तावेजों की प्रतियाँ ली भी जा रही हैं ,किन्तु जब कोई अदना सा पत्रकार विभाग में पहुँचता हैं तो वहा बैठे जिम्मेदार अफ़सरान कई तरह से घोषित रुकावटे पैदा करने से बाज नहीं आते जैसे की वेबमीडिया को नहीं मिलेंगे पास, साप्ताहिक अख़बार वालों का सिंहस्थ ने क्या काम, उनके पास जारी नहीं होंगे, फलां संस्थान से 2 पास होंगे, फलां का सर्कुलेशन ज्यादा हैं उसे ज्यादा होंगे, और भी ना जाने कितनी रुकावटे, कितनी बातें।
आखिर एक बात ये जिम्मेदार अफसरशाही तो बताएं की उन पास से पासधारी पत्रकार को क्या विभाग कुछ अन्य सुविधा भी दे रहा हैं , क्या कोई जमीन का टुकड़ा या अन्य कोई विशेष उपहार भी अर्पण कर रहा हैं?
जब इन सवालों का जवाब ना हैं तो फिर इतनी रोक टोक क्यों?
और जब जारी ही नहीं करना थे पास तो फिर फार्मेट में खानापूर्ति का ढोंग क्यों?
जब लगभग 150 करोड़ के विज्ञापनों की बंदरबाट करनी थी तो चुन लिया वेबमिडिया को, जब कहाँ थी ये पारखी नजरें, जिन्हें आज वेबमीडिया वाले या साप्ताहिक अख़बारों के संचालक पत्रकार नहीं मानो गुनहगार नजर आ रहे हैं,
जब अपने, साहब के, फलाँ के खास दिखने वालो के पास जारी करने वालो पर कोई नियम धर्म नहीं, बस वहाँ तो सब्जबाग़ देखते ही लटूमने चले गए और जब आज वास्तविक कवरेज हेतु मिडिया पास का ढोंग और बखेड़ा खड़ा किया तो स्वयंभू अपने कटघरे में ही सब को गुनहगार मान लिया।
अब 5 वर्ष/10 वर्ष और ना जाने कितना तमाशा, क्या 3 साल फिल्ड में काम करने वाला इनकी नजर ने पत्रकार नहीं, जब तीन वर्ष नियमित साप्ताहिक अख़बार चलाने वालों को ये अधिमान्यता बाट देते हैं तो फिर ये पास में क्या रखा हैं, और तो और दारू के बड़े कारोबारी भी रुतबे के दम पर बिना अनुभव के अधिमान्य पत्रकार बन बैठे हैं यहाँ तक की अपने परिवारजनो में भी 18 अधिमान्यता कार्ड धारी पत्रकार बना सकते हैं तो वास्तविक पत्रकार को कटघरे में शामिल क्यों किया जा रहा हैं।
क्या जो सही करे वो इनकी नजर में गलत हैं और जो गलत करे, वो मसीहा?
आखिर किस हक़ से वर्षो से कुर्सियों को चिकनी करने बैठे हैं ये अफ़सरान, जिन्हें केवल अपनों को ही रेवड़ियां बाटना आता हैं?
क्या आला अधिकारीयों की भी मिली भगत हैं इसमें या फिर कारण कुछ और,
वक़्त की मार में शायद आवाज नहीं होती, जल्द ही पास वितरण की अनियमितता भी उजागर होगी।
जय हिन्द
इन दिनों यही मांजरा इंदौर संभागीय जनसम्पर्क विभाग का हो रहा हैं, मौका है उज्जैन सिंहस्थ 2016 के कवरेज में शामिल होने वाले पत्रकारों के पास बनने का हैं। जिसमे जनसम्पर्क विभाग द्वारा जारी आवेदन फार्म में स्पष्ट तौर पर प्रिंट मिडिया, इलेक्ट्रानिक मिडिया, न्यूज एजेंसी एवं वेब मिडिया के पत्रकारों को अघोषित आमंत्रण के रूप में पास हेतु बुलाया जा रहा हैं, जिसमे पत्रकारों से कई तरह के दस्तावेजों की प्रतियाँ ली भी जा रही हैं ,किन्तु जब कोई अदना सा पत्रकार विभाग में पहुँचता हैं तो वहा बैठे जिम्मेदार अफ़सरान कई तरह से घोषित रुकावटे पैदा करने से बाज नहीं आते जैसे की वेबमीडिया को नहीं मिलेंगे पास, साप्ताहिक अख़बार वालों का सिंहस्थ ने क्या काम, उनके पास जारी नहीं होंगे, फलां संस्थान से 2 पास होंगे, फलां का सर्कुलेशन ज्यादा हैं उसे ज्यादा होंगे, और भी ना जाने कितनी रुकावटे, कितनी बातें।
आखिर एक बात ये जिम्मेदार अफसरशाही तो बताएं की उन पास से पासधारी पत्रकार को क्या विभाग कुछ अन्य सुविधा भी दे रहा हैं , क्या कोई जमीन का टुकड़ा या अन्य कोई विशेष उपहार भी अर्पण कर रहा हैं?
जब इन सवालों का जवाब ना हैं तो फिर इतनी रोक टोक क्यों?
और जब जारी ही नहीं करना थे पास तो फिर फार्मेट में खानापूर्ति का ढोंग क्यों?
जब लगभग 150 करोड़ के विज्ञापनों की बंदरबाट करनी थी तो चुन लिया वेबमिडिया को, जब कहाँ थी ये पारखी नजरें, जिन्हें आज वेबमीडिया वाले या साप्ताहिक अख़बारों के संचालक पत्रकार नहीं मानो गुनहगार नजर आ रहे हैं,
जब अपने, साहब के, फलाँ के खास दिखने वालो के पास जारी करने वालो पर कोई नियम धर्म नहीं, बस वहाँ तो सब्जबाग़ देखते ही लटूमने चले गए और जब आज वास्तविक कवरेज हेतु मिडिया पास का ढोंग और बखेड़ा खड़ा किया तो स्वयंभू अपने कटघरे में ही सब को गुनहगार मान लिया।
अब 5 वर्ष/10 वर्ष और ना जाने कितना तमाशा, क्या 3 साल फिल्ड में काम करने वाला इनकी नजर ने पत्रकार नहीं, जब तीन वर्ष नियमित साप्ताहिक अख़बार चलाने वालों को ये अधिमान्यता बाट देते हैं तो फिर ये पास में क्या रखा हैं, और तो और दारू के बड़े कारोबारी भी रुतबे के दम पर बिना अनुभव के अधिमान्य पत्रकार बन बैठे हैं यहाँ तक की अपने परिवारजनो में भी 18 अधिमान्यता कार्ड धारी पत्रकार बना सकते हैं तो वास्तविक पत्रकार को कटघरे में शामिल क्यों किया जा रहा हैं।
क्या जो सही करे वो इनकी नजर में गलत हैं और जो गलत करे, वो मसीहा?
आखिर किस हक़ से वर्षो से कुर्सियों को चिकनी करने बैठे हैं ये अफ़सरान, जिन्हें केवल अपनों को ही रेवड़ियां बाटना आता हैं?
क्या आला अधिकारीयों की भी मिली भगत हैं इसमें या फिर कारण कुछ और,
वक़्त की मार में शायद आवाज नहीं होती, जल्द ही पास वितरण की अनियमितता भी उजागर होगी।
जय हिन्द