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भोपाल से शताब्दी में झांसी के लिये रवाना होते हुये ही लग गया था कि इस बार यूपी की भीषण गर्मी से दो चार होना होगा। झांसी स्टेशन पर उतरते ही पहला झटका हमारे एबीपी के साथी चंद्रकांत यादव ने दिया। सर कल थोडा जल्दी उठना होगा। चुनावी चौपाल के लिये हमने सबको सुबह आठ बजे का समय दिया है। आठ बजे यार ये कैसे होगा इतनी जल्दी लोग कैसे आयेंगे। नाम भले ही नुक्कड बहस हो मगर इसके लिये भी कम से कम पच्चीस तीस लोग तो चाहिये। लोगों की चिंता आप नहीं करिये आप तो जल्दी तैयार हो जाइयेगा। गर्मी से बचने के लिये यहां पर लोग पांच बजे से काम में जुट जाते हैं अपन तो लोगों को आठ बजे बुला रहे हैं। अगले दिन झांसी के नगर निगम के रानी लक्ष्मीबाई पार्क में अपनी नुक्कड बहस जम गयी। साढे सात बजे से ही लोग और नेता आने लगे थे। गर्मी का आतंक ही इतना था कि हर कोई जल्दी ही अपना काम निपटाना चाहता था। नेताओं की बडी बडी गाडियों ने जल्दी ही पार्क घेर लिया। पार्क में सुबह की सैर करने आये बूढे और बच्चे भी हैरान थे कि अचानक सुबह सुबह हो क्या रहा है। झांसी की चौपाल जम गयी और जब पहला सवाल पूछा गया कि क्या चाहती है झांसी की जनता तो वहां खडे एक वरिप्ठ ने जोर से जबाव दिया सरकार में परिवर्तन। बस फिर क्या था जनता की परिवर्तन की मांग के आगे सपा नेता पूरे वक्त सफाई देते रहे। दस मिनिट बाद जब नुक्कड बहस खत्म हुयी तब तक शर्ट पसीने पसीना हो चुकी थी। हमारे कैमरामैन साथी होमेंन्द्र के कपड़े भी भीग चुके थे। बाकी जनता भी बहस की गर्मी के साथ मौसम की गर्मी से बेहाल हो गयी थी।
अगला पडाव ललितपुर था। जहाँ साढे दस बजे नुक्कड बहस होनी थी। यहां भी पार्क चुना था। तेज गर्मी में तौलिया और गमछे के सहारे नेता और जनता यहाँ भी इकटठी हो गयी थी। एक दिन पहले ही कांग्रेस के लोगों ने पेयजल संकट को लेकर मटके फोडे थे इसलिये उनमें उत्साह ज्यादा था। ललितपुर और झांसी में अलग बुंदेलखंड राज्य के नाम पर कई मोर्चे दल और पार्टियां बनीं हैं। जनाधार तो नहीं मगर मीडिया के भरोसे बयानबाजी कर अपना अस्तित्तव ऐसे दल संगठन बनाये रहते हैं। ललितपुर में बुंदेलखंड नागरिक मोर्चा और बुंदेलखंड विकास सेना के लोग बहस में आये जो इलाके में पडे सूखा और बिजली पानी की किल्लत के मुददे तो उठा रहे थे मगर इस संकट से उबरने का एकमात्र उपाय उनकी नजर मे अलग बुंदेलखंड राज्य बनाना ही रहा। विधायक यहंा बीएसपी के थे जो सारी समस्या के लिये सपा सरकार को ही जिम्मेदार ठहराने के अलावा कुछ बोल नहीं पा रहे थे।
अब हमारी मंजिल जालौन जिले का उरई कस्बा था। कहने को जालौन को जनपद या जिला कहा जाता है मगर सरकार के सारे दफतर उरई में ही हैं। झांसी से उरई के हाईवे पर हमने जो नजारा देखा वो हैरान करने वाला था यहाँ पर गिटटी और रेत भरकर ले जा रहे डंपरों की लंबी लंबी कतारें थीं। डंपर भी उंचे से भी उंचे थे। जितनी कंपनी से बन कर आये थे उनको और उंचा किया गया था जिस वजह से ज्यादा रेत गिटटी भरकर साक्षात ओवर लोडिंग करते दिखे। ओवर लोडिंग वाले ऐसे टक डंपर उरई से लेकर महोबा बांदा और चित्रकूट तक दिखे। अच्छे खासे हाईवे की दुर्गति इन ओवरलोडिंग वाले डंपरों ने ही की है। हमने अपने बांदा के सहयोगी अभय निगम से कहा कि यार यहां तो खुल्लमखुल्ला अवैध खनन हो रहा है कभी आते हैं यहंा पर खनन की कहानी करने। अभय का जबाव था सर आने से कुछ दिन पहले बता देना तो कुछ तैयारी कर लेंगे। कैसी तैयारी भाई। अरे सर खनन वाली जगहों पर जाने से पहले कुछ उन दोस्तों को साथ ले जाने के लिये तैयार करना पडता है जिनके पास लाइसेंसी हथियार होते हैं वरना वहां जाकर कैमरे से शूट करना खतरे से भरा होता है। बात बात पर गोलियां चलाते हैं ठेकेदार के आदमी। हमने अपनी स्टोरी का आइडिया फिलहाल तो स्थगित किया। उरई के टाउन हाल पहुचंते पहुंचते दस बज गये थे तेज गर्मी में किसी तरह नुक्कड बहस की। यहां भी सूखा छाया रहा।
हमीरपुर को बुंदेलखंड का प्रवेश द्वार कहा जाता है ये 1855 में बनाया गया जिला है। यूपी के बुंदेलखंड के आज के सारे जिले इसी को तोडकर बने है। यहाँ मिले समर्थ फौन्डेशन के देवेन्द्र गांधी जो बुंदेलखंड में चल रही सरकारी योजनाओ पर नजर रखते हैं। उनका कहना था कि सूखा यहंा हर साल पड रहा है कि अब तो लोगों को सूखे की आदत सी हो गयी है। सूखा राहत के लिये करोडों रूप्ये आते हैं मगर गरीब और प्रभावित जनता तक ये नहीं पहुंचते है। हमीरपुर के आगे ही है महोबा है जो आल्हा उदल का इलाका रहा है। सूखे से जूझ रहे इस इलाके में रोटी बैंक चलता है। तारा पाटकर नामके शख्स लोगों के घर से बचा खाना इकटठा कर उसे जरूरतमंदों तक बांटने का काम बहुत व्यवस्थित तरीके से करते आ रहे हैं। पाटकर कहते हैं कि इस इलाके के लोगों की तकलीफों का अंत नहीं है इन दिनों बढे हुये बिजली के बिल आ रहे है मजदूरी और रिकशा चलाने वालों के घर के बिल लाखों रूप्ये के आ रहे है। महोबा की नुक्कड बहस में हमारे मेहमान बनकर आये पूर्व खनिज मंत्री सिद्गोपाल साहू। साहू जी से जब अवैध खनन की बात की गयी तो जबाव सुनिये। आपको सडकों पर अवैध खनन दिख रहा है मगर गांवों में बन रहे तालाब नहीं दिख रहे। अभी चलिये आपको तालाब दिखाते हैं जो सूखे से उबारेंगे। काफी बहस के बाद भी पूर्व मंत्री जी खनन पर बोलने से बचते रहे। मालुम पडा कि नेता जी के गिटटी बनाने के कई क्रेशर चलते है। कहा गया कि सूखे से उबरने के लिये तालाब की योजनाएं आयीं हैं मगर उनमें भी पार्टी के नेता बंदरबांट कर लेते हैं। इसमें सबसे ज्यादा फायदे में रहते हैं सत्ताधारी सपा के नेता और उनके ठेकेदार। अगली बहस बांदा में थी जहाँ नेताओं की भीड में मिले पुष्पेन्द्र भाई और बुजुर्ग जीवनलाल चोरसिया। पुष्पेन्द्र ने इलाके मे ज्यादा से ज्यादा तलब बनवाने तो जीवनलाल ने बुंदेलखंड में मनरेगा के घोटालों को सामने लाने का काम किया है। जीवनलाल की शिकायतों पर कई अफसर जेल गये हैं। झांसी से लेकर चित्रकूट तक के बुंदेलखंड पर सूखे का साया है। बिजली पानी की किल्लत गांवों से लेकर शहर तक है। सरकारी राहत इंतजाम सत्तारूढ दल से जुडे लोग तक ही सिमट गये है। बुंदेलखंड में सूखे से उपजी गरीबी बेकारी की निराशा में देवेन्द्र गांधी, तारा पाटकर, पुष्पेन्द्र और जीवनलाल चोरसिया जैसे लोग ही उम्मीद जगाते हैं। वरना उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनने में तो अभी सदियां लगेंगीं।
ब्रजेश राजपूत
भोपाल से शताब्दी में झांसी के लिये रवाना होते हुये ही लग गया था कि इस बार यूपी की भीषण गर्मी से दो चार होना होगा। झांसी स्टेशन पर उतरते ही पहला झटका हमारे एबीपी के साथी चंद्रकांत यादव ने दिया। सर कल थोडा जल्दी उठना होगा। चुनावी चौपाल के लिये हमने सबको सुबह आठ बजे का समय दिया है। आठ बजे यार ये कैसे होगा इतनी जल्दी लोग कैसे आयेंगे। नाम भले ही नुक्कड बहस हो मगर इसके लिये भी कम से कम पच्चीस तीस लोग तो चाहिये। लोगों की चिंता आप नहीं करिये आप तो जल्दी तैयार हो जाइयेगा। गर्मी से बचने के लिये यहां पर लोग पांच बजे से काम में जुट जाते हैं अपन तो लोगों को आठ बजे बुला रहे हैं। अगले दिन झांसी के नगर निगम के रानी लक्ष्मीबाई पार्क में अपनी नुक्कड बहस जम गयी। साढे सात बजे से ही लोग और नेता आने लगे थे। गर्मी का आतंक ही इतना था कि हर कोई जल्दी ही अपना काम निपटाना चाहता था। नेताओं की बडी बडी गाडियों ने जल्दी ही पार्क घेर लिया। पार्क में सुबह की सैर करने आये बूढे और बच्चे भी हैरान थे कि अचानक सुबह सुबह हो क्या रहा है। झांसी की चौपाल जम गयी और जब पहला सवाल पूछा गया कि क्या चाहती है झांसी की जनता तो वहां खडे एक वरिप्ठ ने जोर से जबाव दिया सरकार में परिवर्तन। बस फिर क्या था जनता की परिवर्तन की मांग के आगे सपा नेता पूरे वक्त सफाई देते रहे। दस मिनिट बाद जब नुक्कड बहस खत्म हुयी तब तक शर्ट पसीने पसीना हो चुकी थी। हमारे कैमरामैन साथी होमेंन्द्र के कपड़े भी भीग चुके थे। बाकी जनता भी बहस की गर्मी के साथ मौसम की गर्मी से बेहाल हो गयी थी।
अगला पडाव ललितपुर था। जहाँ साढे दस बजे नुक्कड बहस होनी थी। यहां भी पार्क चुना था। तेज गर्मी में तौलिया और गमछे के सहारे नेता और जनता यहाँ भी इकटठी हो गयी थी। एक दिन पहले ही कांग्रेस के लोगों ने पेयजल संकट को लेकर मटके फोडे थे इसलिये उनमें उत्साह ज्यादा था। ललितपुर और झांसी में अलग बुंदेलखंड राज्य के नाम पर कई मोर्चे दल और पार्टियां बनीं हैं। जनाधार तो नहीं मगर मीडिया के भरोसे बयानबाजी कर अपना अस्तित्तव ऐसे दल संगठन बनाये रहते हैं। ललितपुर में बुंदेलखंड नागरिक मोर्चा और बुंदेलखंड विकास सेना के लोग बहस में आये जो इलाके में पडे सूखा और बिजली पानी की किल्लत के मुददे तो उठा रहे थे मगर इस संकट से उबरने का एकमात्र उपाय उनकी नजर मे अलग बुंदेलखंड राज्य बनाना ही रहा। विधायक यहंा बीएसपी के थे जो सारी समस्या के लिये सपा सरकार को ही जिम्मेदार ठहराने के अलावा कुछ बोल नहीं पा रहे थे।
अब हमारी मंजिल जालौन जिले का उरई कस्बा था। कहने को जालौन को जनपद या जिला कहा जाता है मगर सरकार के सारे दफतर उरई में ही हैं। झांसी से उरई के हाईवे पर हमने जो नजारा देखा वो हैरान करने वाला था यहाँ पर गिटटी और रेत भरकर ले जा रहे डंपरों की लंबी लंबी कतारें थीं। डंपर भी उंचे से भी उंचे थे। जितनी कंपनी से बन कर आये थे उनको और उंचा किया गया था जिस वजह से ज्यादा रेत गिटटी भरकर साक्षात ओवर लोडिंग करते दिखे। ओवर लोडिंग वाले ऐसे टक डंपर उरई से लेकर महोबा बांदा और चित्रकूट तक दिखे। अच्छे खासे हाईवे की दुर्गति इन ओवरलोडिंग वाले डंपरों ने ही की है। हमने अपने बांदा के सहयोगी अभय निगम से कहा कि यार यहां तो खुल्लमखुल्ला अवैध खनन हो रहा है कभी आते हैं यहंा पर खनन की कहानी करने। अभय का जबाव था सर आने से कुछ दिन पहले बता देना तो कुछ तैयारी कर लेंगे। कैसी तैयारी भाई। अरे सर खनन वाली जगहों पर जाने से पहले कुछ उन दोस्तों को साथ ले जाने के लिये तैयार करना पडता है जिनके पास लाइसेंसी हथियार होते हैं वरना वहां जाकर कैमरे से शूट करना खतरे से भरा होता है। बात बात पर गोलियां चलाते हैं ठेकेदार के आदमी। हमने अपनी स्टोरी का आइडिया फिलहाल तो स्थगित किया। उरई के टाउन हाल पहुचंते पहुंचते दस बज गये थे तेज गर्मी में किसी तरह नुक्कड बहस की। यहां भी सूखा छाया रहा।
हमीरपुर को बुंदेलखंड का प्रवेश द्वार कहा जाता है ये 1855 में बनाया गया जिला है। यूपी के बुंदेलखंड के आज के सारे जिले इसी को तोडकर बने है। यहाँ मिले समर्थ फौन्डेशन के देवेन्द्र गांधी जो बुंदेलखंड में चल रही सरकारी योजनाओ पर नजर रखते हैं। उनका कहना था कि सूखा यहंा हर साल पड रहा है कि अब तो लोगों को सूखे की आदत सी हो गयी है। सूखा राहत के लिये करोडों रूप्ये आते हैं मगर गरीब और प्रभावित जनता तक ये नहीं पहुंचते है। हमीरपुर के आगे ही है महोबा है जो आल्हा उदल का इलाका रहा है। सूखे से जूझ रहे इस इलाके में रोटी बैंक चलता है। तारा पाटकर नामके शख्स लोगों के घर से बचा खाना इकटठा कर उसे जरूरतमंदों तक बांटने का काम बहुत व्यवस्थित तरीके से करते आ रहे हैं। पाटकर कहते हैं कि इस इलाके के लोगों की तकलीफों का अंत नहीं है इन दिनों बढे हुये बिजली के बिल आ रहे है मजदूरी और रिकशा चलाने वालों के घर के बिल लाखों रूप्ये के आ रहे है। महोबा की नुक्कड बहस में हमारे मेहमान बनकर आये पूर्व खनिज मंत्री सिद्गोपाल साहू। साहू जी से जब अवैध खनन की बात की गयी तो जबाव सुनिये। आपको सडकों पर अवैध खनन दिख रहा है मगर गांवों में बन रहे तालाब नहीं दिख रहे। अभी चलिये आपको तालाब दिखाते हैं जो सूखे से उबारेंगे। काफी बहस के बाद भी पूर्व मंत्री जी खनन पर बोलने से बचते रहे। मालुम पडा कि नेता जी के गिटटी बनाने के कई क्रेशर चलते है। कहा गया कि सूखे से उबरने के लिये तालाब की योजनाएं आयीं हैं मगर उनमें भी पार्टी के नेता बंदरबांट कर लेते हैं। इसमें सबसे ज्यादा फायदे में रहते हैं सत्ताधारी सपा के नेता और उनके ठेकेदार। अगली बहस बांदा में थी जहाँ नेताओं की भीड में मिले पुष्पेन्द्र भाई और बुजुर्ग जीवनलाल चोरसिया। पुष्पेन्द्र ने इलाके मे ज्यादा से ज्यादा तलब बनवाने तो जीवनलाल ने बुंदेलखंड में मनरेगा के घोटालों को सामने लाने का काम किया है। जीवनलाल की शिकायतों पर कई अफसर जेल गये हैं। झांसी से लेकर चित्रकूट तक के बुंदेलखंड पर सूखे का साया है। बिजली पानी की किल्लत गांवों से लेकर शहर तक है। सरकारी राहत इंतजाम सत्तारूढ दल से जुडे लोग तक ही सिमट गये है। बुंदेलखंड में सूखे से उपजी गरीबी बेकारी की निराशा में देवेन्द्र गांधी, तारा पाटकर, पुष्पेन्द्र और जीवनलाल चोरसिया जैसे लोग ही उम्मीद जगाते हैं। वरना उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनने में तो अभी सदियां लगेंगीं।
ब्रजेश राजपूत