सहज संवाद / डा. रवीन्द्र अरजरिया |
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सहज संवाद / डा. रवीन्द्र अरजरिया
प्रकृति का प्रकोप चरम सीमा पर दिखाई देने लगा है। देश की वर्फीली पहाडियों से घिरे क्षेत्र में आग का दावानल, समुद्र के तटवर्ती इलाकों में बाढ का तांडव और विश्व मंच पर ज्लालामुखी से लेकर विभिन्न प्रकार की बीमारियों का मुखरित होना सहज नहीं है। स्वनियंत्रित विधान को मानवीय नियंत्रण में लेने के प्रयासों का परिणाम सुखद कदापि नहीं कहा जा सकता। विज्ञान के अविष्कारों पर अपनी पीठ स्वयं थपथपाने वाले पराविज्ञान की उपलब्धियों को अंधविश्वास जैसे शब्दों से परिभाषित करते रहे हैं।
पुष्पक विमान से लेकर अग्नि बाण तक के कथानकों को कपोल कल्पित कल्पनायें निरूपित करने वाले वंशसूत्रों के जनक बनने तक के आकांक्षी बन बैठे हैं। वर्तमान में घटित होने वाली आपदाओं का मानसिक विश्लेषण चल ही रहा था कि गाडी एक झटके के साथ रूक गई। विचारों का प्रवाह रुक गया। ड्राइवर रुक रुककर हार्न बजा रहा था परन्तु सडक पर खडे आवारा पशु हटने का नाम ही नहीं ले रहे थे। शहर के मध्य में जानवरों का झुंड मस्ती कर रहा था। सडक की दुकानों के बोर्डों पर उत्तर प्रदेश का फर्रुखाबाद जिला मुख्यालय अंकित था। यानी अभी हम कानपुर से 130 किलोमीटर दूर थे। दौनों ओर की गाडियां पहले निकलने की होड में आडी तिरछी होकर फंस चुकीं थी। जाम की स्थिति निर्मित हो गई थी। कुछ देर बाद पुलिसकर्मियों की हलचल दिखाई दी।
सडक से मवेशियों को हटाने का क्रम चल निकला। खाकी वर्दीधारियों की तेजी देखते ही बनती थी। जैसे तैसे जानवरों को हटाया गया। गाडियों को क्रम से निकाला जाने लगा। हमारी गाडी भी धीमी गति से बढ रही थी तभी विपरीत दिशा से आती पुलिस अफसर की गाडी हमारे बगल से निकल गई। भ्रम की स्थिति निर्मित हुई। उसमें बैठे अधिकारी का चेहरा लखनऊ विश्वविद्यालय के हमारे सहपाठी त्रिभुवन सिंह से काफी मेल खाता था। हमने फोन बुक में उनका नम्बर खोजा और डायल कर दिया। जबाब आते ही भ्रम समाप्त हो गया। आवाज से लेकर अंदाज तक, सब कुछ पुराना ही था।
हमें अपने शहर में मौजूद पाकर उनका उल्लास चार गुना बढ गया। अनौपचारिक भाषा में अपनत्व का पुट लगाते हुए उन्होंने तत्काल रुकने का हुक्म सुना दिया। अगले चौराहे से यू टर्न लेकर उनकी सरकारी गाडी वापिस आई। तब तक हम भी अपनी गाडी से बाहर आ चुके थे। वर्षों पुराने मित्रों के प्रत्यक्ष मिलन ने भावनाओं के ज्वार को संवेदनाओं के भाटे के साथ स्थापित करना शुरू कर दिया। सार्वजनिक स्थल पर पद की गरिमा ने तपाक से गले लगने और सामाजिक अनुशासन के उलंघन की अनुमति नहीं दी। गर्मजोशी से हाथ मिलाने की औपचारिकता से ही काम चलाना पडा। चल, घर चलते हैं, केवल यह शब्द ही फूटे पुलिस अफसर के मुंह से। हम दौनों उनकी गाडी में बैठे। हमारी गाडी पीछा करने लगी।
कुछ कहने से पहले बहुत कुछ महसूस करने का क्रम चल निकला। विश्वविद्यालय परिसर में स्थापित हबीबुल्लाह होस्टल, होस्टल का कमरा नम्बर 10, जिसमें हमारी पढाई कम, मित्रों की चौपाल ज्यादा होती थी। कल्लू का मैस, रामप्रसाद का खाना, सब कुछ याद आने लगा। गाडी रुक चुकी थी। अर्दली ने हमारी तरफ का गेट खोल दिया था। बीती स्मृतियों के मधुर स्पन्दन से निकलने का मन ही नहीं कर रहा था। शालीनता से चलते हुए हम दौनों अफसर कालौनी के बंगला नम्बर बी-5, के ड्राइंग रूम पहुंच गये। उनके गनर ने बैग, फाइल आदि सेंटर टेबिल पर रखी दी और बाहर निकल गया। एकांत पाकर हम दौनों के सब्र का बांध फट पडा। गले लगकर आत्मीयता का आदान प्रदान किये बिना संतुष्टि मिलना सम्भव थी ही नहीं।
विश्वविद्यालय का अध्ययन पूर्ण करने के बाद से हम दौनों की फोन पर तो कई बार बात हुई, परन्तु प्रत्यक्ष मिलना पहली बार हुआ। सहपाठियों से लेकर शिक्षकों तक को उनके चरित्र चित्रण के साथ याद करने का क्रम चल निकला। अतीत को कुरेदने के बाद हमने वर्तमान का राग अलापना शुरू कर दिया। पुलिस के एक जिम्मेदार अफसर के साथ मानवीय कृत्यों की समीक्षा शुरू हो गई। प्रकृति की स्वनियंत्रित व्यवस्था को स्वयं के नियंत्रण में करने के प्रयासों को रेखांकित करते हुए हमने वर्तमान आपदाओं पर उनका दृष्टिकोण जानने का प्रयास किया। वैदिक साहित्य के आंशिक ज्ञान के आधार पर होने वाली वैज्ञानिक उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि पराविज्ञान तक पहुंचने के लिए सक्षम उपकरणों के साथ साथ व्यक्तिगत ऊर्जा चक्र के विस्तार की महती आवश्यकता होती है।
शोधात्मक प्रक्रिया में परमाणु विस्फोटों से लेकर विभिन्न गैसों के उत्सर्जन तक को मूर्त रूप दिया जा रहा है। ऊष्मा का फैलाव अनियंत्रित होता जा रहा है। वनस्पतियों, जीवधारियों तथा विभिन्न खनिजों को प्रयोग का संसाधन बनाया जा रहा है। आज अस्तित्व की कीमत पर लडी जा रही है वर्चस्व की जंग। ऐसे में सार्थक परिणामों की अपेक्षा करना, मृगमारीचिका के पीछे भागकर पानी प्राप्त कर लेने जैसा ही है। चर्चा चल ही रही थी कि नौकर ने ट्रे में पानी के गिलास, चाय के प्याले, नमकीन और मिठाइयों की प्लेटे लाकर कमरे की सेंटर टेबिल पर सजाना शुरू कर दिया।
वार्तालाप में अवरोध उत्पन्न हुआ। परन्तु तब तक हमें अपनी सोच को पुष्ट करने का साधन मिल गया था। अनुभवी पुलिस अफसर के विचारों ने हमारे चिन्तन को सही दिशा में गतिशील होने की प्रमाणिकता दी। इतना ही काफी था। इस विषय पर किसी विशेषज्ञ से भविष्य में चर्चा करने का मन बना लिया था। सो भोज्य पदार्थों का सम्मान करने की नियति से हम सोफे छोडकर सेन्टर टेबिल की ओर बढ गये। इस बार बस इतना ही, अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए खुदा हाफिज।
ravindra.arjariya@yahoo.com
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