ब्यूरो प्रमुख उ।प्र.// सूर्यनारायण शुक्ला (इलाहाबाद// टाइम्स ऑफ क्राइम)
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कोरांव इलाहाबाद। जन सूचना अधिकार अधिनियम 2005 को सामाजिक वानिकी वन प्रभाग प्रभागीय निदेशक इलाहाबाद के जन सूचनाअधिकारी महत्व नहीं देेते जो चर्चा का विषय बना हुआ है।ज्ञात हो कि ए।ए। सिद्दी की पत्रकार ने आर.टी.आई के तहत उक्त निदेशक के जन सूचनाधिकारी से वन विभाग का कुछ आवश्यक सूचनाएं वर्ष 2009 मे मांगी थी। जो कोरांव रेंज में मनरेगा की धनराशि से कराये गये कार्य व स्थलों, व्यय प्रपत्र तथा कुछ जी. ओ जिसमें एक ही जिले कार्यालय में 25-30 वर्ष से कुछ कर्मियों को तैनात कर बंधुआ बना दिया गया है व कुछ अवैध खनन से संबंधित पेपर्स मांगे गये थे। इन संदर्भ में सूचना न देने पर प्रमुख वन संरक्षक उ.प्र. लखनऊ से भी वांछित सूचनाएं मांगी गयी। उन्होंने जन सूचनाअधिकारी प्रभागीय निदेेशक सा.वा.वन प्रभाग इलाहाबाद को वांछित सूचनाएं मुहैय्या कराने का स्पष्ट आदेश दिया था। सूचना देने में फंस रही कुछ गर्दनों से उक्तनिदेशक ने आनाकानी की। सूचना माँगकत्र्ता ने प्रदेश के वन मंत्री, प्रमुख सचिव वन आदि सक्षम वनाधिकारी व अपीलीय वनाधिकारी वन संरक्षण इलाहाबाद वृत्त इलाहाबाद से की है।इस संदर्भ में अपीलीय वनाधिकारी ने वन निदेशक को सूचनाएं प्रदान करने का फैसला सुनाया। इस पर भी उक्त जन सूचनाअधिकारी ने सूचनाएं देने के लिए व समय नष्ट करने के लिए पच्चास हजार रूपये की मांग इस आशय से सूचना मांग कत्र्ता को पत्र देकर किया। की उक्त सूचनाएं देने मे पच्चास हजार रूपए लगेगा और जमा करने पर ही सूचना मिलेगी। अपीलीय अधिकारी से पुन: उक्त डिमान्ड राशि की शिकायत की गयी और उक्त यह अवगत कराया गया कि सूचना देने हेतु प्रति पेज 2 रूपया ही प्राप्त करने का प्राविधान है। तब जाकर प्रभागीय वन निदेशक सूचनाधिकारी सूचना देने हेतु हामी भरे और सूचना मांगकत्र्ता ने 18.11.2010 को एक सौ रूपया मनीआर्डर भेजा। और पुन: प्रार्थना पत्र भेजा। उक्त धनराशि निदेशक कार्यालय को वापस भेज दी गयी।