बैतूल // राम किशोर पंवार (टाइम्स ऑफ क्राइम)
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बैतूल हो या भोपाल पूरे प्रदेश में अवैध कॉलोनियां एवं कॉलोनाइजरों को वैध करने का गोरखधंधा जबदस्त चल रहा हैं। सरकारी अफसर से लेकर चपरासी तक ऐड़ा बना कर पेड़ा खा रहे हैं। पूरे मामले में राज्य सरकार का दोहरा चरित्र सामने आ रहा हैं। जहां एक ओर मध्यप्रदेश की राजधानी में मिनाल में अवैध निर्माण ढहाने वाली राज्य सरकार ने दूसरी तरफ प्रदेश भर की ऐसी ही 1500 से अधिक अवैध कॉलोनियों को वैध करने करने जा रही है जिसने मोटी रकम लेकर बिचौलिए के माध्यम से सौदा हो चुका हैं। बैतूल जैसे आदिवासी बाहुल्य जिले में इस समय 360 से अधिक अवैध कॉलोनियां हैं जिन्हे ले - देकर वैध करने का काम चोरी छुपे हो रहा हैं। जिले से छपने वाले समाचार पत्र पूरे मामले को तूल न दे इसलिए अवैध कॉलोनियों को वैध करने की प्रक्रिया में आवश् आम सूचना का प्रकाशन कुछ गिने चुने समाचार पत्रों में छपवाया जा रहा हैं। प्रशसन और पटवारी के साथ मिल कर कुछ पत्रकार भी कॉलोनियां को वैध करवाने के गोरखधंधे में शामिल हो गए हैं। बताया जाता हैं कि बैतूल जिले के कुछ कॉलोनाइजरो का जिले के एक प्रशासनिक अधिकारी के संग याराना भी कम चर्चा का विषय बना हुआ हैं। पूरे गोरखधंधे से अवैध कॉलोनियां बनाने वालों के हौसले बुलंद होंगे, वहीं नियम-कायदों का पालन करने वाले बिल्डरों का मनोबल गिरेगा। राज्य सरकार ने अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने के लिए भोपाल में हाल ही में नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद उपसमिति गठित की थी। समिति की दो-तीन बैठं हो चुकी हैं, लेकिन अब तक इसने अंतिम रिपोर्ट नहीं दी है। इससे पहले ही नगरीय प्रशासन आयुक्त की ओर से गत 13 मई को ही सभी नगर निगमों को एक आदेश जारी कर अवैध कॉलोनियों के नियमितीकरण की कार्यवाही करने को कहा गया है। नगरीय प्रशासन विभाग की मंशा है कि इस कार्यवाही से सम्पत्ति कर और अन्य करों की वसूली से निगमों का राजस्व बढ़ेगा और इससे उनका संचालन सुचारू व सुगम होगा। यह पहला अवसर नहीं है जब सरकार अवैध कॉलोनियों को वैध करने जा रही है। बैतूल जिले में वह सरकारी आकड़े की माने तो 3 सौ से अधिक अवैध कॉलोनियों में से मात्र इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 26 ही वैध हो चुकी हैं जिसकी पर्दे की पीछे की कहानी कुछ कम चौकान्ने वाली नहीं हैं। प्रशासन द्वारा यह तर्क दिया जा रहा हैं कि अवैध होने के कारण कॉलोनियों में व्यवस्थित विकास नहीं हुआ है। ऐसे कॉलोनाइजर के झांसे में आने वाले रहवासियों के साथ ही अन्य लोगों को भी बड़ी असुविधा झेलनी पड़ती है। ऐसे कॉलोनियां बनाने वालों ने राज्य सरकार के कई शुल्कों की चोरी भी की है। इसके बावजूद उनकी कॉलोनियां वैध हो गर्ई तो उन्हें शह तो मिलेगा साथ ही दलाली का धंधा जबरदस्त फल -फूलने लगेगा। बैतूल से लेकर पूरे प्रदेश में ऐसे निर्माण की बाढ़ आ जाएगी जो कि सरकारी मंशा को ठेंगा दिखाते नजर आएगें। ग्राम निवेश विभाग, नगर निगम और नजूल से सारी वैधानिक प्रक्रिया पूरी कर कॉलोनियां बनाने वाले बिल्डर और कॉलोनाइजर खुद को ठगा महसूस करेंगे। शुल्क देने और नियम कायदे के पालन के कारण उन पर आर्थिक बोझ ज्यादा पड़ता है। उनके मकान, फ्लैट व बंगले की लागत बढ़ जाती है। ऐसे में उन्हें ज्यादा दुश्वारियां झेलनी पड़ती हैं। वैसे तो कहा यह भी जा रहा हैं कि पूरे प्रदेश में 2000 से ज्यादा अवैध कॉलोनियां हैं। आदेश में ग्र्रीन बेल्ट, पार्क, सडक़, नाले, जलस्त्रोत की भूमि पर बनी कॉलोनियों को छोडक़र बाकी को नियमित करने को कहा गया है। इस श्रेणी में प्रदेश भर में करीब 1500 कॉलोनियां आ रही हंै। सरकारी आकड़े की बाजीगरी देखे तो पता चलता हैं अवैध कॉलोनियों को नियमित करने के लिए बनी उपसमिति की बैठक जरूर हुई है, लेकिन अभी उसने अपनी रिपोर्ट नहीं दी है। रिपोर्ट आने के बाद ही कोई निर्णय लिया जाएगा। अभी मामला प्रक्रियाधीन है। बैतूल में तो यह हालात हैं कि अवैध कॉलोनियों के संचालक पीछे के दरवाजे से अपनी - अपनी धोने में लगे हुए हैं।