मुंबई।।
तलाक के अजीबोगरीब मामले को खारिज करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि
फैमिली प्लैनिंग को क्रूरता नहीं माना जा सकता है। पति ने इस आधार पर तलाक
की याचिका दायर की थी कि पत्नी ने कॉन्डम लगाए बिना सेक्स नहीं करने दिया।
हाई कोर्ट ने गुरुवार को फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए पति की
अर्जी खारिज कर दी।
30 वर्षीय प्रदीप बापट (बदला हुआ नाम) ने अपनी याचिका में कहा कि हनीमून के दौरान उनकी पत्नी प्रेरणा (बदला हुआ नाम) ने बिना कॉन्डम के सेक्स करने से इनकार कर दिया। प्रदीप का यह भी कहना था कि पत्नी ने आर्थिक रूप से मजबूत न होने का तर्क देकर गर्भधारण करने से भी इनकार कर दिया। जस्टिस पी. बी. मजूमदार और अनूप मोहता की डिविजनल बेंच ने अपने फैसले में कहा, 'प्रेरणा ने इच्छा जताई है कि फाइनैंशल स्टेबलिटी के बिना वह मां नहीं बनना चाहती। वह अपने बच्चे को एक बेहतर जिंदगी देना चाहती है। इसका फैसला पति-पत्नी दोनों को सहमति से करना होता है और इसके लिए पति दबाव नहीं डाल सकता है।'
अदालत की इस बात पर जब प्रदीप के वकील ने सवाल किया कि आखिर हनीमून लोग क्यों जाते हैं? इस पर कोर्ट में सब हंसने लगे।
कोर्ट ने तलाक के लिए प्रदीप की ओर से दिए गए अन्य तर्कों को भी खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि खाना बनाने न आना, धार्मिक न होना, अपनी सैलरी घर के कामों मे न लगाना और कपड़े ठीक से नहीं मोड़ना क्रूरता के दायरे में नहीं आता है।
प्रदीप के वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल का परिवार एक ऐसी वर्किंग ग्रैजुएट बहू चाहता था, जो जॉइंट फैमिली में रहे और घर के कामकाज में भी हाथ बंटाए। इस पर जस्टिस मजूमदार ने कहा, 'महिला गुलाम नहीं होती है। पत्नी अर्धांगिनी होती है। उससे अभिव्यक्ति की आजादी छीनी नहीं जा सकती है। आपने घर की आम समस्याओं को याचिका में डाल दिया। अगर इन्हें क्रूरता मान लें तो कोई शादी सुरक्षित नहीं रहेगी।'
30 वर्षीय प्रदीप बापट (बदला हुआ नाम) ने अपनी याचिका में कहा कि हनीमून के दौरान उनकी पत्नी प्रेरणा (बदला हुआ नाम) ने बिना कॉन्डम के सेक्स करने से इनकार कर दिया। प्रदीप का यह भी कहना था कि पत्नी ने आर्थिक रूप से मजबूत न होने का तर्क देकर गर्भधारण करने से भी इनकार कर दिया। जस्टिस पी. बी. मजूमदार और अनूप मोहता की डिविजनल बेंच ने अपने फैसले में कहा, 'प्रेरणा ने इच्छा जताई है कि फाइनैंशल स्टेबलिटी के बिना वह मां नहीं बनना चाहती। वह अपने बच्चे को एक बेहतर जिंदगी देना चाहती है। इसका फैसला पति-पत्नी दोनों को सहमति से करना होता है और इसके लिए पति दबाव नहीं डाल सकता है।'
अदालत की इस बात पर जब प्रदीप के वकील ने सवाल किया कि आखिर हनीमून लोग क्यों जाते हैं? इस पर कोर्ट में सब हंसने लगे।
कोर्ट ने तलाक के लिए प्रदीप की ओर से दिए गए अन्य तर्कों को भी खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि खाना बनाने न आना, धार्मिक न होना, अपनी सैलरी घर के कामों मे न लगाना और कपड़े ठीक से नहीं मोड़ना क्रूरता के दायरे में नहीं आता है।
प्रदीप के वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल का परिवार एक ऐसी वर्किंग ग्रैजुएट बहू चाहता था, जो जॉइंट फैमिली में रहे और घर के कामकाज में भी हाथ बंटाए। इस पर जस्टिस मजूमदार ने कहा, 'महिला गुलाम नहीं होती है। पत्नी अर्धांगिनी होती है। उससे अभिव्यक्ति की आजादी छीनी नहीं जा सकती है। आपने घर की आम समस्याओं को याचिका में डाल दिया। अगर इन्हें क्रूरता मान लें तो कोई शादी सुरक्षित नहीं रहेगी।'
प्रदीप और प्रेरणा की
शादी फरवरी 2007 में हुई थी और प्रेरणा ने उसी साल जून में ससुराल छोड़
दिया था। वह ससुराल लौटना चाहती है लेकिन प्रदीप उसे स्वीकार करने को तैयार
नहीं है। बेंच ने कहा कि काफी कम समय दोनों के रिश्ते इतने बिगड़ गए।
कोर्ट ने कहा,'प्रदीप ने पत्नी के साथ ऐसे व्यवहार किया जैसे वह प्रोबेशन
पर हो। महिला शादी के बाद नए वातावरण में आती है और वह प्यार व स्नेह की
अपेक्षा रखती है। पति और उसके परिवार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि
शादी करके उनके घर आई लड़की को ऐसा न लगे कि वह एकदम अनजान जगह आ गई है।'