भड़ास के हर पाठक से यशवंत ने मांगी रंगदारी,
हजार रुपये करें भड़ास के नाम जारी
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जेल से लौटने के बाद आर्थिक मोर्चे पर दिक्कतें ही दिक्कतें देखकर लगा कि एक अपील अपने पाठकों से की जाए, कुछ मदद मिल जाने से संकट खत्म या कम हो जाएगा. पर, कहीं से एक पैसा भी न आया......... और, ऐसा इस बार ही हुआ. पहले कभी संकट आने पर आर्थिक मदद की अपील करता तो हर तरफ से मिलाकर इतना आ जाता कि फौरी संकट हल हो जाता और हम लोगों की गाड़ी लड़खड़ाते ही सही, चलने लगती. इस बार कोर्ट कचहरी जेल थाना पुलिस सर्वर घर आफिस... में खर्च इतना हुआ कि जेल से बाहर आने पर बजट की सुई ऋण-माइनस की ओर मुड़ी मिली.
भड़ास अब तक चलाने के दौरान कुछ ऐसे लोग भी मिले जिन्होंने मुझे ''ब्लैंक चेक'' दिया कि कभी कोई दिक्कत हो, लाख दो लाख की तो लेते जाना, बिना लौटाने की सोचे. ये ऐसे लोग हैं जो अपने जीवन में आर्थिक रूप से सफल हैं और भड़ास जैसे प्रखर प्लेटफार्म के प्रशंसक हैं. ये लोग भड़ास को लगातार फालो करते हैं और जब-जब मदद की अपील की जाती रही, उचित मदद देते रहे. इनकी सदाशयता का कभी फायदा नहीं उठाया. इसीलिए पैसे इकट्ठे करने के लिए यहां वहां भिड़ा रहता. जब निजी जरूरतों के लिए पैसे कम पड़ जाते तो किसी से उधार मांग लेता, बाद में पैसे होने पर लौटा देता. ऐसे ही गाड़ी चलती रहती.
जेल से छूटने के बाद आर्थिक मोर्चे पर निराशाजनक स्थिति देखकर मैं भागकर अपने समृद्ध शुभचिंतक साथियों के यहां पहुंचा और सबसे थोड़ा-थोड़ा लेकर करीब दो लाख रुपये जुटा लाया. कुछ मदद छोटे व नए व शुभचिंतक मीडिया हाउसों ने कर दी, बिना कोई शर्त थोपे. सो, काम चल निकला है. सारा कर्ज वगैरह खत्म कर दिया. यहां तक कि मेरे जेल प्रवास के दौरान मेरे मां-पिता अपनी जेब से जो खर्च कर गए थे, उसे भी उन्हें लौटा दिया. इस तरह फिर से भड़ास के बजट की सुई धनात्मक-पाजिटिव की ओर झुक गई है. पर संकट खत्म नहीं हुआ क्योंकि भड़ास का कोई सिस्टम नहीं बना है. और, मैं सोचता हूं बन भी नहीं सकता क्योंकि जहां जहां सिस्टम बनाया गया, वहीं वहीं सिस्टम क्रैश व करप्ट हुआ. सो, पता नहीं क्यों सिस्टम बनाने को लेकर एक बेरुखी सी रहती है, पर किसी भी चीज के संचालन के लिए न्यूनतम ही सही, कोई सिस्टम तो बनाना पड़ेगा.
सोचता हूं क्या हो सकता है. विज्ञापन मिल नहीं सकता क्योंकि ऐसा कोई सगा नहीं जिसको हमने 'ठगा' नहीं. सबके खिलाफ खबरें छापी हैं और सबके खिलाफ खबरें छापने के लिए मानसिक तौर पर तैयार रहते हैं. खुद अपने खिलाफ लिखे जाने वाले लेख विश्लेषण आरोप आदि को प्रमुखता के साथ छापता रहता हूं और छापने के लिए तैयार रहता हूं. तो, विज्ञापन वाला ट्रेडीशनल बिजनेस फार्मेट यहां चलेगा नहीं. क्योंकि जिसका विज्ञापन भड़ास पर चलने लगता है, उसके खिलाफ खबरें अचानक कुछ ज्यादा ही भड़ास के पास आने लगती हैं, इस चैलेंज के साथ कि देखते हैं, भड़ास वालों में इसे छापने का बूता है या नहीं. तो, जान बूझकर भी हमें उनके उकसावे में फंसना पड़ता है क्योंकि उनकी खबरों में कई बार दम होता है.
आर्थिक मदद की अपील करने वाला फार्मेट भी नहीं चलेगा क्योंकि इसका ज्यादातर पाठक सोचता है कि यह अपील किसी और के लिए है, उनका काम तो सिर्फ पढ़ना और पढ़कर निकल लेना है. तीसरा फार्मेट, जो एक साथी ने सुझाया था कि भड़ास के लिए एक फंड इकट्ठा कर उसकी एफडी कर दी जाए और उस एफडी से महीने में तीन चार लाख रुपये ब्याज के मिलते रहे तो इस ब्याज की रकम से भड़ास का खर्च निकलता रहेगा. सोचिए, अगर दस हजार लोग एक हजार रुपये दे दें तो एक करोड़ रुपये इकट्ठा हो सकता है. और इस रकम को फिक्स्ड डिपोजिट के बतौर रख दिया जाए तो महीने के कई लाख रुपये ब्याज के रूप में मिलते रहेंगे. यह आइडिया क्लिक किया, अच्छा भी लगा. पर किन्हीं कारणों से इसे अमल में नहीं लाया जा सका. अब इस आइडिया को इंप्लीमेंट किए जाने की जरूरत है.
भले एक करोड़ नहीं आए, अगर हजार लोग भी एक हजार रुपये दे गए तो दस लाख रुपये आ जाएंगे जो एक साल के लिए तो पर्याप्त होंगे. और एक साल बाद किसने देखा है कि मेरा मन यही चलाने का करेगा या भड़ास आश्रम खोलकर कहीं एकांत में धूनी रमा लूंगा और भड़ास के संचालन को एक कुछ पागल किस्म के पत्रकारों के हवाले कर दूंगा या यह भी संभव है कि भड़ास को बंद कर दूंगा ये लिखकर कि ये न जिंदा है, न मरा है, बस अपनी उम्र तक लड़ा है या ये कि भड़ास को किसी धनपशु को बेच दूं कुछ एक लाख रुपये में और वे रुपये भड़ास आश्रम में लगा दूं... या ये कि भड़ास को कंपनी में तब्दील कर इसमें कुछ धनवाले पार्टनर शरीक कर लूं और इसे भी कारपोरेट मीडिया की तरह ''काम निकालू और पैसे उपजाऊ माध्यम'' बना डालूं.... ये सब तो बाद की बात है, फिलहाल तो बात ये है कि मेरे जैसे फटेहाल के नेतृत्व में भड़ास की गाड़ी कैसे आगे बढ़ाई जाए...
हजार रुपये भड़ास सपोर्ट फी लेना या आजीवन भड़ास सदस्यता शुल्क के रूप में हजार रुपये लेना या भड़ास कंटेंट देखने-पढ़ने जिसे अंग्रेजी में सब्सक्राइब करना कहा जाता, के बदले एक हजार रुपये जमा कराना... यह सब मिलाकर बात एक ही है और यह एक साफ साफ और स्ट्रेट किस्म का आइडिया है. इसका महत्व ये है कि इस आइडिया के जरिए भड़ास अपने पाठकों के साथ एक ज्यादा निजी किस्म का रिश्ता डेवलप करेगा. जो भी भड़ास पढ़ता है, वह न्यूनतम हजार रुपये भड़ास को कांट्रीब्यूट करे. इससे उसे भी लगेगा कि वह भड़ास का पार्ट है, भड़ास के संचालन में उसकी भूमिका है. सो, भड़ास पर वह अपना अधिकार भी जता सकता है. भड़ास की दशा-दिशा पर सवाल भी उठा सकता है.
हजार रुपये का दर्शन बहुत बड़ा है. पिछले पांच साल से भड़ास बिना कोई पैसा दिए आप सभी लोग पढ़ रहे हैं और भड़ास के संचालन का खर्च मैं अकेले यहां वहां से भाग भागकर इकट्ठा करता रहा हूं. उधार लेकर, चंदा लेकर, डोनेशन लेकर भड़ास चलाता रहा हूं. इसी उधार के चक्कर में जेल भी हो आया. हालांकि सब जानते हैं कि उधारी को रंगदारी दिखाना उन लोगों के लिए स्ट्रेटजी का एक हिस्सा था ताकि उस बहाने भड़ास को बंद कराया जा सके और यशवंत के मनोबल को तोड़ा जा सके, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. और सबसे बड़ी बात कि आप सभी लोगों ने बिना कहे यह बात जान समझ लिया कि खेल यशवंत को बदनाम करने और भड़ास को बंद कराने का है, सो, आप सबने जो मेरा भरपूर साथ दिया उससे दैनिक जागरण और इंडिया टीवी का खेला गया दांव उलटा पड़ गया. अब जबकि चीजें दुरुस्त करने में भिड़ा हुआ हूं तो शिद्दत से ये महसूस हो रहा है कि आखिर भड़ास के संचालन की पीड़ा भड़ास के पाठक भी क्यों न उठाएं.
दो ही तरीके होते हैं मीडिया या आंदोलन को संचालित करने का. या तो हम धनपशुओं और दलालों से पैसे लेकर उनके लिए काम करें, उनकी शर्तों के हिसाब से चलें या फिर आम पाठक के बीच जाकर उनसे हम पैसे व उर्जा हासिल करें. यही फार्मेट रहा है क्रांतिकारी आंदोलनों और क्रांतिकारी मीडिया संस्थानों का. ऐसे फार्मेट में भ्रष्ट होने की मजबूरी नहीं रहती, भ्रष्ट होने का कोई बहाना नहीं होता. भड़ास जैसे अनमैनेज्ड मंच के लिए आम पाठक से सपोर्ट लेकर संचालित करना ज्यादा सटीक रहेगा. सो, इस बात को आप तक रख रहा हूं. और, ये भड़ास को लेकर आर्थिक अपील की आखिरी पोस्ट होगी क्योंकि अगर इस अपील के बाद भी भड़ास के लिए कोई ठीकठाक आर्थिक माडल डेवलप नहीं कर पाया तो मैं भड़ास के काम को सीमित करके खुद को कुछ नए कामों में इनवाल्व करूंगा ताकि कुछ पैसे कमा सकूं.
मैंने अब तक भड़ास के जरिए जो भी किया, उसमें दो मकसद जुड़ा हुआ था. अपने पत्रकारीय तेवर को एक मुकाम, मंच, माध्यम, मंजिल दे सकूं.... और इसी के जरिए, इस पैशन के जरिए इतना कमा सकूं कि घर परिवार का दिल्ली में खर्च चल जाए. दोनों काम बखूबी हुआ. और इस दौरान पता चला कि भड़ास सिर्फ मेरा ही नहीं, बल्कि देश के हजारों-लाखों लोगों का पैशन बन चुका है, एक ऐसा माध्यम बन चुका है जो पूरे देश में न्यू मीडिया के आंदोलन को लीड कर रहा है. तमाम तरह के झंझावातों से दो चार होते हुए यह मंच मीडिया और मीडिया के बाहर के इलाके में बड़ी खबरों के मामले में कई धमाके करने का श्रेय हासिल कर चुका है. इस कारण भड़ास कुछ ही दिनों में मेरा निजी भड़ास न रहकर पूरे मीडिया इंडस्ट्री और फिर बाद में देश के सभी टेक सेवी संवेदनशील व पढ़े लिखे लोगों का प्यारा व प्रखर मंच बन गया.
अपने कंटेंट के दम पर भड़ास इतना पापुलर है कि अत्यधिक हिट्स के कारण इसका सर्वर का खर्च महीने के बीस हजार रुपये हैं. सर्वर हम लोगों ने होस्टगेटर के इंडिया आफिस से ले रखा है और डेडीकेटेड सर्वर है. आफिस, घर व अन्य खर्च मिलाकर महीने के लगभग दो लाख रुपये के करीब खर्च होते हैं. अभी जिस तंगी से हम लोग गुजर रहे हैं उसमें आफिस बंद कर दिया गया है. कई अन्य खर्चों में कटौती की गई है. अब गेंद आपके पाले में है. अगर आप दैनिक जागरण, हिंदुस्तान जैसे अखबारों को खरीदकर पढ़ते हैं, महीने में सौ सवा सौ रुपये इनके मालिकों को देते हैं तो आपको भड़ास के लिए भी जीवन में एक बार कुछ पैसे खर्च करने चाहिए. ज्यादातर जगहों पर एक अखबार पढ़ने का खर्च साल का हजार रुपये से ज्यादा होता है.
हम लोग पूरे जीवनकाल के लिए, मतलब ''भड़ास आजीवन सदस्यता'' के लिए एक हजार रुपये मांग रहे हैं. यह मांगना भड़ास का हक है, क्योंकि भड़ास ने अपने माध्यम से बहुत कुछ आपको दिया है, समाज को दिया है, मीडिया के पेशे को दिया है, बहुत कुछ उम्मीदें जगाई हैं, बहुत लड़ाइयां लड़ी हैं. और, आगे भी यह मंच मजबूत व ताकतवर बना रहे, कारपोरेट मीडिया को आइना दिखाता रहे, भ्रष्टाचारियों के लिए आतंक का पर्याय बना रहे, पीड़ितों के लिए न्याय का माध्यम बना रहे, इसलिए जरूरी है कि आज इसके मुश्किल वक्त में इसकी मदद की जाए.
सो, आप लोग भड़ास के कर्ज को चुकाएं, ''भड़ास आजीवन सदस्यता'' के रूप में हजार रुपये इस मंच तक पहुंचाएं. जो लोग भड़ास को इसके जन्मकाल से पढ़ रहे हैं, यानि करीब चार साल से पढ़ रहे हैं, उनसे खासकर अपील है कि वे हजार रुपये भड़ास को मदद के रूप में जरूर दें ताकि भड़ास उनकी जिंदगी का हिस्सा आगे भी बना रहे. ''भड़ास आजीवन सदस्यता'' लेने वालों का नाम पहचान गुप्त रखा जाएगा, इसलिए कोई भी जर्नलिस्ट, नान-जर्नलिस्ट यह सदस्यता ले सकता है. अगर आप भड़ास की मदद करना चाहते हैं या ''भड़ास आजीवन सदस्यता'' लेना चाहते हैं या भड़ास पढ़ने के कारण हजार रुपये देकर अपने उपर लदा भड़ास का कर्ज चुकाना चाहते हैं तो आगे आएं. हम आपका इंतजार कर रहे हैं. आपकी छोटी सी पहल हमारे लिए बहुत बड़ी ताकत साबित होगी. आपकी सहमति का इंतजार है... आपको करना ये है कि...
'1000 rs yes' लिखकर 09999330099 पर SMS कर दें.
या
'1000 rs yes' लिखकर पर मेल करके सूचित कर सकते हैं... एकाउंट नंबर यूं है..
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उम्मीद है आपको यह 'रंगदारी' देने में आनंद आएगा. और, हमें भी आपसे 'रंगदारी' लेने में पूरी खुशी मिलेगी. और हमारा आपका यह सब करना उन सभी के लिए एक सबक होगा जो सोचते हैं कि जेल भिजवाकर या पुलिस दिखाकर मनोबल तोड़ा जा सकता है, मिटाया जा सकता है. मैं यह मानकर चल रहा हूं कि हजार रुपये दस हजार लोग नहीं देंगे तो कम से कम एक हजार लोग तो जरूर देंगे. अगर एक हजार लोगों का yes 1000 rs लिखा एसएमएस या मेल नहीं आया तो मैं यह समझ लूंगा कि मुझे भड़ास बंद करके अब कुछ और काम शुरू करना चाहिए क्योंकि इस भड़ास के पाठक ही नहीं चाहते कि वो जिसे रोज पढ़ रहे हैं उसे पढ़ने के बदले एक न्यूनतम फीस, शु्ल्क दे दें ताकि उसका संचालन होता रहे, अस्तित्व बरकरार रह सके.
इस थैंक्सलेस और कृतघ्न दौर में मैं हमेशा से मानता रहा हूं कि अच्छे लोग बड़े पैमाने पर हैं, और इन्हीं अच्छे लोगों ने समय समय पर मेरी व भड़ास की सहायता करके इस मंच को इतना बड़ा और ताकतवर बनाया है. अब आप लोगों की बारी है, भड़ास के आम पाठकों की बारी है, हर उस पाठक की बारी है जो इसे खोलकर देखता पढ़ता है. पूरे जीवन के लिए हजार रुपये शुल्क देकर आप भड़ास के कंटेंट को एक तरह से सब्सक्राइव कर रहे हैं, इसके सक्रिय सदस्य बन रहे हैं, इसके शुभचिंतक बन रहे हैं. आपकी पाजिटिव प्रतिक्रिया का इंतजार है. साथ ही सुझाव भी.
मैं अपने विरोधियों, आलोचकों से कहना चाहूंगा कि वे मेरी आलोचना जारी रखें, मेरा विरोध करते रहें, इसी से मेरी शख्सीयत संवरी है, इसी विरोध के कारण भड़ास शुरू हुआ, इसी दुश्मनी के कारण जीवन में तरह तरह के अनुभव हासिल हुए और जीवन को संपूर्णता में समझ जी पा रहा हूं. और हां, वे यह भी पता करें कि आखिर हिंदी पोर्टलों में भड़ास ही ऐसा क्यों है कि इतना पापुलर है, इसको चाहने वाले, इसे पैसे देने वाले इतने लोग हैं.... जिस दिन वे इसका असली कारण जान जाएंगे, उस दिन वे थोड़े संत-से हो जाएंगे, थोड़े भड़ासी हो जाएंगे और थोड़े रुमानी भी हो लेंगे.
भड़ास के लिए आर्थिक मदद की ये आखिरी पोस्ट है, इसलिए चाहेंगे कि पीछे की उन सभी पोस्ट का लिंक दिया जाए, जिसमें समय-समय पर आर्थिक मदद की अपील की गई है
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अगर आपको लगता है कि भारत में न्यू मीडिया के प्रखर मंच भड़ास को जिंदा रखने के लिए, इसे सपोर्ट करने के लिए, इसके कंटेंट को पढ़ने के लिए, इसके कंटेंट का इस्तेमाल करने के लिए, इसके खर्चों में भागीदारी करने के लिए, इसे जनपक्षधर मंच बनाए रखने के लिए हजार रुपये खर्च कर भड़ास आजीवन सदस्यता हासिल करने में कोई दिक्कत नहीं है तो आप '1000 rs yes' लिखकर 09999330099 पर SMS कर दें. या '1000 rs yes' लिखकर पर मेल कर दें.
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