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बैतूल [रामकिशोर पंवार ] अखंड भारत के केन्द्र बिन्दू कहे जाने वाले ताप्तीचंल में बसे आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में कोल इंडिया की सहायक कंपनी वेस्टर्न कोल फिल्ड लिमीटेड नागपुर द्वारा सतपुड़ाचंल के दो जिलो बैतूल एवं छिन्दवाड़ा में संचालित तीन दर्जन से अधिक छोटी - बड़ी कोयला खदानों से निकलने वाले कोयले को लघु एवं मध्यम उद्योगो की आड़ में परमीट पर लेकर उसे खुले बाजार में बेचने के गोरखधंधे में बैतूल से भाजपा सासंद श्रीमति ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे के पुत्र पंजाल आत्मज स्वर्गीय प्रेम धुर्वे एवं उसके नौकर तक के शामील होने का सनसनीखेज मामला आरटीआई के तहत उजागर हुआ है।
आरटीआई कार्यकत्र्ता द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार मध्यप्रदेश शासन के लघु एवं मध्यम उद्योग निगम द्वारा पंजीकृत छोटे एवं मंझोले उद्योगो की इकाईयों के नाम पर कोयला का आवंटन जिला उद्योग एवं जिला कलैक्टर द्वारा किया जाता है लेकिन उद्योगो के स्थापना स्थल तक पहुंचने के बजाय उक्त कोयला पाथाखेड़ा की कोयला खदानो से सीधे दलालों तक पहुंच जाता है और वह कोयले के काले बाजार में मुंहमांगे दामों में हाथो - हाथ बिक जाता है। एक ओर प्रदेश की भाजपा सरकार बैतूल जिले में स्थित सारनी थर्मल पावर स्टेशन के लिए कोयले संकट को लेकर सडक़ो पर उतर रही है वही दुसरी ओर प्रदेश की भाजपा सरकार के कई मंत्री - संत्री प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष रूप से बैतूल एवं छिंदवाड़ा जिले की कोयला खदानो की कोयले की कालाबाजारी में लिप्त है। राज्य सरकार भले ही अपने मंत्री - संत्री को इस गोरखधंधे से दूर रखे लेकिन सच को झुठलाया नहीं जा सकता कि बैतूल एवं छिन्दवाड़ा जिले के जिला उद्योग केन्द्रो द्वारा पंजीकृत उद्योगो के संचालको से उनका याराना काफी चर्चित रहा है। बैतूल जिले से भाजपा की एक मात्र आदिवासी महिला सासंद ज्योत बेवा प्रेम धुर्वे के तो यह हाल है कि उन्होने जिले में एक नहीं दो ऐसी फर्जी इंडस्ट्रीज के नाम पर कोयले का आवंटन प्राप्त किया है जो कि अपने मूल स्वरूप में आ ही नहीं सकी।
कोयले की कालाबाजारी में सीधे तौर पर सासंद महोदय का एक मात्र पुत्र और नौकर तक शामील है जो फर्जी उद्योग के उद्योगपति तक बन बैठे है। पाथाखेड़ा के कोयले की कालाबाजारी ने कई सडक़ छाप छुटभैया नेताओं एवं बिचौलियों को देश - प्रदेश के धन्नासेठो में ला खड़ा किया है। वैसे कहा तो यहां तक जाता है कि कोयले की काली कमाई का मास्टर माइंड बैतूल का बहुचर्चित राजू बंदर की इस समय इंदौर के नामचीन उद्योगपतियों एवं धन्नासेठो के रूप में गिनती होती है। पाथाखेड़ा की कोयला खदानो से सीधे लघु उद्योगो के नाम पर परमीट पर मिलने वाले कोयले की कालाबाजारी आज की कोई नहीं बात नहीं है। बैतूल के नामचीन उद्योगपति से लेकर एक गुमटी में दुकान चलाने वाले के नाम पर बैतूल जिले के इंडस्ट्रीयल एरिया कोसमी में स्थापित तथाकथित उद्योगो को उनके नाम पर जिला उद्योग केन्द्र एवं जिला कलैक्टर की संयुक्त समिति द्वारा प्रति माह उद्योग के उपयोग के लिए रियायती दरो पर कोयले के परमीट जारी किए जाते है। उक्त रियायती दरो का कोयला ही इस कालाबाजारी का बहुचर्चित गोरखधंधा है जिसमें प्रदेश की भाजपा सरकार एवं केन्द्र की कांग्रेस सरकार से जुड़े छुटभैया नेताओं से लेकर जनप्रतिनिधि तक शामिल है। भले ही प्रदेश के मुखिया सारनी थर्मल पावर स्टेशन को घटिया कोयले की भारत सरकार की सहायक कोयला कंपनियों पर सप्लाई का आरोप लगाते चले आ रहे है लेकिन पाथाखेड़ा से बेल्ट के माध्यम से लेकर रेल मालगाडिय़ों तक से ढुलाई होने वाले कोयले को पत्थर के रूप में सप्लाई करने का कारोबार इस कोयले की कालाबाजारी से जुड़ा हुआ है। विधायक पुत्र से लेकर कोयले की कालाबाजारी में लिप्त लोगो की पुर्नवास क्षेत्र एवं घोड़ाडोंगरी क्षेत्र से एक दो नहीं बल्कि दर्जनो कोयला खदाने अवैध रूप से संचालित है जिसने कई लोगो को सडक़ से गगन चुम्बती इमारतो में पहुंचा दिया है।
कोल उद्योग के नाम पर कोल परमिट व आवंटन में दलाली का एक ऐसा असंगठित गिरोह काम कर रहा है जो पिछले तीन दशक से नियमों की धज्जियां उड़ाकर करोड़ों - अरबो - खरबो रूपए कमा चुका है और अभी भी कमा रहा है। बैतूल के इस कोलगेट में लघु उद्योग निगम से लेकर जिला उद्योग केंद्र की भूमिका नजर आ रही है। फर्जी रिपोर्ट और दस्तावेज के आधार पर कोल आवंटन कराकर बाहर के बाहर ऊंचे दाम में बेचा जाता है। कोल उद्योग के नाम पर उड़दन में एक ही घर में एक ही परिवार के 4 उद्योग हैं। शारदा कोल बिकेट के संचालक अशोक पिता एसके पांडे, मेसर्स शिवा कोल बिकेट इंड्रस्टीज के संचालक मनोज पिता एसके पांडे, मेसर्स सरस्वती इंटरप्राइजेज की संचालक कविता पिता एसके पांडे व मनोज कोल बिकेट शशिकला पत्नी एसके पांडे शामिल हैं। जिस जगह पर ये चार-चार उद्योग चल रहे हैं न तो वहां कोई बोर्ड लगा है और न ही मशनरी। इन चारों उद्योगों को लघु उद्योग निगम के माध्यम से हर साल करीब 16 हजार टन का कोल आवंटन होता है।उड़दन और आसपास में रहने वाले लोगों ने यहां कभी कोयला उतरते और यहां से कोयला जाते हुए नहीं देखा। इससे बड़ा काला सच क्या होगा कि जहां कोयले का काम होता है वहां कोयले की कालिख नजर नहीं आती। मगर इस स्थान पर एक किमी के दायरे में कहीं भी कोयला डम्प होने के भी कोई निशान नहीं हैं। कोयला डम्प हुए बगैर आखिर यह 16 हजार टन कोयला जाता कहां है?कोयले के इस खेल में जो दलाली की कमाई है वह दोगुने से भी ज्यादा की है। लघु उद्योग निगम के जरिये 2,200 रूपए टन के माध्यम से कोयला मिलता है।
यदि यह कोयला स्टीम कोल है, तो 6800 रूपए टन और गैर स्टीम है तो भी 4800 रूपए टन खुले बाजार में बिकता है। यही कारण है कि यह कोयला पाथाखेड़ा की खदानों से ट्रकों में निकलता जरूर है, लेकिन बरेठा से इसे सीधे इंदौर या अन्य जगह बेच दिया जाता है। कोयले की दलाली का यह खेल प्रॉपर चेनल में चलता है। कोल आवंटन के लिए बकायदा कलेक्टर की अध्यक्षता में एक समिति बनी हुई है, लेकिन इसके बाद भी यह सब कुछ होता है। इस खेल में जिला उद्योग केंद्र में इन उद्योगों की रिपोर्ट बनाने वाले अधिकारियों के साथ-साथ लघु उद्योग निगम के अधिकारियों की भी संदिग्ध भूमिका सामने आती है, क्योंकि कलेक्टर की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा डीआईसी की रिपोर्ट के आधार पर ही अनुशंसा की जाती है। अपनी वार्षिक रिपोर्ट में इस बार एलुअन (लघु उद्योग निगम) ने दुखती रग पर हाथ रख दिया है, उन्होंने उड़दन के इस चारों उद्योग के बिजली बिल को लेकर सवाल खड़े कर दिए।
इसमें महाप्रबंधक लघु उद्योग निगम ने डीआईसी बैतूल को 4 अगस्त 2012 और 1 सितंबर 2012 को पत्र लिखकर 1 अप्रैल 2011 से जनवरी 2012 तक के बिलों को फर्जी बताया गया और इन चारों उद्योगों का कोल आवंटन रोकने के लिए कहा गया है।आपत्ति वाली अवधि को लेकर चार-चार उद्योग के लिए एक अस्थाई कनेक्शन की बिलिंग को शो किया जा रहा है। जबकि इस कनेक्शन की सच्चाई यह है कि यह कनेक्शन वास्तव में कृषि उपयोग के लिए लिया गया कनेक्शन है, क्योंकि उड़दन के जिस क्षेत्र में यह चार उद्योग बताए जा रहे हैं वास्तव में वह खेत है जहां पर खेती होती है, यह अस्थाई कनेक्शन था। बिजली कनेक्शन को बचाव में उपयोग किया जा रहा है और एलुअन की आपत्ति को दरकिनार किया जा रहा है। इस समय जिला उद्योग केन्द्र बैतूल द्वारा नए कोल आवंटन का गणित परिभाषित किया गया है उसमें शारदा कोलबिकेट 3,627 एमटी, शिवा कोलबिकेट 3,824 एमटी, मनोज कोलबिकेट 3,524 एमटी, सरस्वती कोलबिकेट 3,561 एमटी, आरके इंड्रस्टीज 2,998 एमटी,श्रीजी इंड्रस्टीज 3,500 एमटी, तिरूपति इंड्रस्टीज 3,628 एमटी, लक्ष्मी ट्रेडिंग 2,400 एमटी इन सबके अलाचा बैतूल जिला कलैक्टर की समिति में भेजने के लिए डीआईसी का नया प्रस्ताव भी कम चौकान्ने वाला नहीं है।
कोयले की कालाबाजारी की शुरूआत छत्तिसगढ़ के कोल माफिया द्वारा की गई थी। आज कोल क्षेत्र पाथाखेड़ा के काली माई क्षेत्र का नया नाम कोल टं्रासपोर्ट नगर हो गया है जहां पर प्रतिदिन एक हजार ट्रक कोयले के परिवहन में लगे हुए है। एक ही कोयले के परमीट पर दिन में चार बार कोयले की अवैध ढुलाई करके कोयले को सलैया से लेकर मण्डीदीप तक डम्प करके संग्रहित करके उसे बेचा जाता है। इन्दौर , मण्डीदीप, प्रीथमपुर, भोपाल , अब्दुल्लागंज, तक चलने वाले अधिकांश उद्योगो को कोयले के काला बाजार का ही कोयला सप्लाई किया जाता है। अधिकांश उद्योगो में पूर्व एवं वर्तमान जनप्रतिनिधि एवं राजनेताओं की सांझेदारी बनी हुई है। आज यही कारण है कि पाथाखेड़ा पुलिस चौकी में चौकी प्रभारी अब वर्तमान में थानाप्रभारी की पोस्टींग बैतूल से न होकर भोपाल पीएचक्यू से होती है। कोयले की कालाबाजारी का गोरखधंधा बरसो से चल रहा है। अवैध परिवहन एवं ओव्हर लोंडिंग के प्रकरणो को छोड़ कर हम यदि बीते तीन दशक में कोयले की काला बाजारी के गोरखधंधे पर नकेल कसने वाले प्रकरणो को एक पंजे की ऊंगलियों पर भी नहीं गिना सकते। राजनैतिक गलियारे में खबर है कि इस समय कोसमी इंडस्ट्रीयल क्षेत्र में सवा सौ से अधिक उद्योग कागजी फाइलों में पंजीकृत है
इसी कड़ी में बैतूल की सांसद श्रीमति ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे ने भी कोयले का कारोबार में अप्रत्यक्ष रूप से भाग लिया था। श्रीमति धुर्वे ने अपने नौकर और बेटे के नाम पर लघु उद्योग निगम से कोल परमिट हासिल कर कुछ दिनों तक कोयले का कारोबार किया, लेकिन जब प्रदेश के मुखिया ने कोयले की कालाबाजारी को लेकर विपक्षी दलो पर एवं केन्द्र की कांग्रेस सरकार की ओर आरोप - प्रत्यारोप की गेंद उछाली तो मैडम को लगा कि कोयले की कालाबाजारी की कालिख उनके चेहरे पर दाग न लग जाए इसलिए आनन - फानन में श्रीमति धुर्वे ने फर्जी उद्योगो के नाम पर कोयले का अनैतिक कारोबार को बंद करने में ही अपनी भलाई समझी। सूत्रो का कहना है कि सासंद श्रीमति धुर्वे के ने अपने बेटे एवं नौकर के नाम पर आवंटित कोयले के परमिट को कुछ समय के लिए सरेंडर करवा दिया।
उल्लेखनीय है कि श्रीमति ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे ने कोसमी में स्थित दो एग्रो उद्योग स्वयं के होना स्वीकार किया, लेकिन कोल परमिट के बारे में पूछते ही उन्होंने कन्नी काट ली। श्रीमति धुर्वे ने अपने पुत्र प्रांजल आत्मज स्वर्गीय प्रेम धुर्वे के नाम पर तिरूपति एग्रो इंड्रस्टीज और अपने नौकर कैलाश धुर्वे के नाम व्यंकटेश एग्रो इंड्रस्टीज के आधार पर जनवरी 2012 में कोल आवंटन हासिल किए। हालांकि, व्यंकटेश इंड्रस्टीज में भी प्रोप्रॉइटर के रूप में प्रांजल धुर्वे के नाम का बोर्ड लगा है, जिसमें मार्च तक उन्होंने कोयले का उठाव भी किया, लेकिन मार्च में कोयले के दोनों परमिट उन्होंने सरेंडर कर दिए गए। कोसमी औद्योगिक क्षेत्र में कृषि उपकरण बनाने के यह दोनों उद्योग एक-एक कमरे से संचालित हो रहे हैं।
आश्चर्य जनक बात तो यह सामने आई कि लोहा गलाकर उपकरण बनाने के लिए संचालित यह उद्योग कोयला तो हासिल कर रहे थे, लेकिन कोयला कहां जला रहे थे इसका कोई नामों निशान तक वहां नहीं है। जहां पर उक्त बहुचर्चित उद्योग स्थापति किए गए बताए है उस स्थान पर खबर लिखे जाने तक न तो कोयला जलाने के लिए भट्टी नजर आई और न ही धुआं निकालने के लिए चिमनी। भाजपा सांसद श्रीमति ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे भाजपा सरकार में राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष भी रह चुकी है। मौजूदा समय दिल्ली में होने के कारण उनसे कोई चर्चा नहीं हो पा रही हैं। हालाकि वे स्वीकार कर चुकी है कि कोसमी में स्थित तिरूपति एग्रो और व्यंकटेश एग्रो इंड्रस्टीज बेटे एवं नौकर के नाम पर है। जिस समय बैतूल एवं छिन्दवाड़ा जिले में कोयले की कालाबाजारी के गोरखधंधे को चर्चा मिली उस समय प्रदेश के पावर हाउसों में फिर कोयले का संकट गहराने लगा है। संजय गांधी ताप विद्युत गृह बिरसिंहपुर और सतपुड़ा ताप विद्युत गृह सारणी में 6-6 दिन का कोयला बचा है। उधर, अमरकंटक ताप विद्युत गृह चचाई में 11 दिन का कोयला है। केन्द्रीय विद्युत नियामक प्राधिकरण के मापदंडों के अनुसार बिरसिंहपुर और सारणी में 15-15 दिन का कोयला होना चाहिए। बरहाल अब प्रदेश की सरकार कोयले की कालाबाजारी के इस गोरखधंधे पर क्या नकेल कस पाती है या नहीं कहा नहीं जा सकता।