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(भोपाल )। भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में घोटाला और फर्जीवाड़ा होना एक आम बात है फिर चाहे वह किसानों के नाम पर किया गया हो या फिर ग्रामीण विकास की मनरेगा और अन्य योजनाओं का मामला हो या फिर व्यापमं महाघोटाले की बात हो, घोटाले दर घोटाला लगता है इस सरकार की नीति बनकर रह गई है। नकली दवाईयों की खरीदी के नाम पर स्वास्थ्य विभाग ने घोटाला एक आम बात है, लेकिन अब इंजेक्शन घोटाला भी सामने आया है। चिकित्सा विभाग (डीएमई) से संबद्ध अस्पतालों में इंजेक्शन की खरीदी में अधिप्राप्ति क्रय और उच्च स्तरीय समिति इंदौर (सीपीसी) और टेंडर नियम का पालन करते हुए कंपनी को एक करोड़ की राशि दे दी।
विभागीय सूत्रों ने बताया कि सीएमई से संबद्ध रीवा के श्यामशाह अस्पताल और ग्वालियर के जेए अस्पताल के डीन ने मैरोपनेम एक ग्राम इंजेक्शन की खरीदी की गई। दोनों को अस्पतालों में यह खरीदी साल २०१२-१३ के बीच की गई। सीपीसी ने इस डीजे नेम द्वारा निर्मित इंजेक्शन की अनुमोदित दर ३८५ रुपए प्रति चाइल रखी थी। नियमानुसार इसकी खरीदी कम टेंडर वाली दवा कंपनी से खरीदी की जानी थी। सांई बाबा इंटरप्राइजेज नामक दवा कंपनी ने मेरोपीनेम एक ग्राम इंजेक्शन की कीमत २११.९० रुपए प्रति वाइल रखी, लेकिन दोनों अस्पतालों के प्रबंधन ने इमरजेंसी बताते हुए सीपीसी की दर ३८५ रुपए प्रति वाइल से हिसाब से इसका भुगतान किया।
रीवा में कंपनी को ३० लाख रुपए दिए गए वहीं ग्वालियर में १.२० करोड़ का अतिरिक्त भुगतान कंपनी को किया, कुल मिलाकर इमरजेंसी से नाम पर अफसरों ने १.५ करोड़ का घोटाला कर दिया। लोकायुक्त कर रही जांच - सूत्रों ने बताया कि डीएमई ने अंदरुनी स्तर पर जांच में पाया कि दो नों अस्पतालों में नियम विरुद्ध भुगतान किया गया है। अब इसकी जांच लोकायुक्त द्वारा की जा रही है। वहीं शासन अभी कंपनी से केवल पचास प्रतिशत ही राशि वसूली कर पाई है। इसके अलावा विभाग ने दोषियों पर भी अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की।
जब डीएमई से सम्बद्ध अस्पतालों के बिलों का क्रॉस वेरिफिकेशन किया जा रहा था, तो ग्वालियर और रीवा का मामला पकड़ में आया। २०१३-१४ की जांच में पाया गया कि इंदौर के एमवाय अस्पताल में इंजेक्शन मेरोपेन की खरीदी १९० रुपए प्रति बाटल की दर पर की गई। भोपाल के हमीदिया अस्पताल में इंजेक्शन २१०.३० रुपए प्रति बाइल की दर से खरीदा गया तथा ग्वालियर और रीवा के अस्पताल द्वारा यह ३८५ रुपस प्रति वाइल की दर से दवा कंपनी को भुगतान किया गया। डीएमई से संबंद्ध अस्पतालों से दवा खरीदी के लिए सीपीसी इंदौर रेट निर्धारित करता है।
इसके अलावा डीएमर्ठ से संबद्ध अस्पतालों में अधिवक्ता भंडार क्रय नियम के तहत सीएमएचओ और सिविल सर्जन इमरजेंसी में कम्पनियों के निम्न भरे गए टेंडर के हिसाब से दवा और मेडिकल उपकरण खरीद सकते हैं। कुल मिलाकर राज्य के स्वास्थ्य विभाग में कभी दवाओं के नाम पर तो कभी भर्ती के नाम पर कुछ न कुछ घोटालों का सिलसिला जारी है देखना अब यह है कि भय, भूख और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने वायदा कर सत्ता में आई यह भाजपा सरकार के कार्यकाल में और कितने घोटाले और फर्जीवाड़े का सिलसिला कब तक चलता रहेगा।
(भोपाल )। भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में घोटाला और फर्जीवाड़ा होना एक आम बात है फिर चाहे वह किसानों के नाम पर किया गया हो या फिर ग्रामीण विकास की मनरेगा और अन्य योजनाओं का मामला हो या फिर व्यापमं महाघोटाले की बात हो, घोटाले दर घोटाला लगता है इस सरकार की नीति बनकर रह गई है। नकली दवाईयों की खरीदी के नाम पर स्वास्थ्य विभाग ने घोटाला एक आम बात है, लेकिन अब इंजेक्शन घोटाला भी सामने आया है। चिकित्सा विभाग (डीएमई) से संबद्ध अस्पतालों में इंजेक्शन की खरीदी में अधिप्राप्ति क्रय और उच्च स्तरीय समिति इंदौर (सीपीसी) और टेंडर नियम का पालन करते हुए कंपनी को एक करोड़ की राशि दे दी।
विभागीय सूत्रों ने बताया कि सीएमई से संबद्ध रीवा के श्यामशाह अस्पताल और ग्वालियर के जेए अस्पताल के डीन ने मैरोपनेम एक ग्राम इंजेक्शन की खरीदी की गई। दोनों को अस्पतालों में यह खरीदी साल २०१२-१३ के बीच की गई। सीपीसी ने इस डीजे नेम द्वारा निर्मित इंजेक्शन की अनुमोदित दर ३८५ रुपए प्रति चाइल रखी थी। नियमानुसार इसकी खरीदी कम टेंडर वाली दवा कंपनी से खरीदी की जानी थी। सांई बाबा इंटरप्राइजेज नामक दवा कंपनी ने मेरोपीनेम एक ग्राम इंजेक्शन की कीमत २११.९० रुपए प्रति वाइल रखी, लेकिन दोनों अस्पतालों के प्रबंधन ने इमरजेंसी बताते हुए सीपीसी की दर ३८५ रुपए प्रति वाइल से हिसाब से इसका भुगतान किया।
रीवा में कंपनी को ३० लाख रुपए दिए गए वहीं ग्वालियर में १.२० करोड़ का अतिरिक्त भुगतान कंपनी को किया, कुल मिलाकर इमरजेंसी से नाम पर अफसरों ने १.५ करोड़ का घोटाला कर दिया। लोकायुक्त कर रही जांच - सूत्रों ने बताया कि डीएमई ने अंदरुनी स्तर पर जांच में पाया कि दो नों अस्पतालों में नियम विरुद्ध भुगतान किया गया है। अब इसकी जांच लोकायुक्त द्वारा की जा रही है। वहीं शासन अभी कंपनी से केवल पचास प्रतिशत ही राशि वसूली कर पाई है। इसके अलावा विभाग ने दोषियों पर भी अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की।
जब डीएमई से सम्बद्ध अस्पतालों के बिलों का क्रॉस वेरिफिकेशन किया जा रहा था, तो ग्वालियर और रीवा का मामला पकड़ में आया। २०१३-१४ की जांच में पाया गया कि इंदौर के एमवाय अस्पताल में इंजेक्शन मेरोपेन की खरीदी १९० रुपए प्रति बाटल की दर पर की गई। भोपाल के हमीदिया अस्पताल में इंजेक्शन २१०.३० रुपए प्रति बाइल की दर से खरीदा गया तथा ग्वालियर और रीवा के अस्पताल द्वारा यह ३८५ रुपस प्रति वाइल की दर से दवा कंपनी को भुगतान किया गया। डीएमई से संबंद्ध अस्पतालों से दवा खरीदी के लिए सीपीसी इंदौर रेट निर्धारित करता है।
इसके अलावा डीएमर्ठ से संबद्ध अस्पतालों में अधिवक्ता भंडार क्रय नियम के तहत सीएमएचओ और सिविल सर्जन इमरजेंसी में कम्पनियों के निम्न भरे गए टेंडर के हिसाब से दवा और मेडिकल उपकरण खरीद सकते हैं। कुल मिलाकर राज्य के स्वास्थ्य विभाग में कभी दवाओं के नाम पर तो कभी भर्ती के नाम पर कुछ न कुछ घोटालों का सिलसिला जारी है देखना अब यह है कि भय, भूख और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने वायदा कर सत्ता में आई यह भाजपा सरकार के कार्यकाल में और कितने घोटाले और फर्जीवाड़े का सिलसिला कब तक चलता रहेगा।