सहज संवाद / डा. रवीन्द्र अरजरिया
व्यक्ति के रागात्मक पक्षों की संतुष्टि से सकारात्मक सोच का जन्म होता है। चित्त की स्थिरता के लिए इन्द्रीयजनित कारकों को पूर्णता तक पहुचाना नितांत आवश्यक हो गया है। एकाग्रता के गर्भ से ही सफलता का जन्म होता है। इसके लिए मानसिक स्तर पर तैयारियां की जाती हैं जिनके आधार पर वातावरण का निर्माण, योजना का संतुलन और क्रियान्वयन की नीतियां निर्धारित होती है।
विचारों का फैलाव दसों दिशाओं में हो रहा था किन्तु रागात्मकता के बहुआयामी पक्षों की पुनरावृत्ति होने से चिन्तन ने ललित कलाओं की ओर बढना शुरू कर दिया। जीवित जीवनियों के इस पक्ष का विस्तार अनन्त तक प्रतीत होने लगा। तभी काल बेल के मधुर संगीत ने मानसिक हलचल पर अल्प विराम लगाया। मुख्य द्वार पर डाक्टर सुधीर कुमार छारी की छवि सीसीटीवी कैमरे की स्क्रीन पर उभरी। मन प्रसन्न हो उठा। वे महाराजा कालेज के ललित कला विभाग के प्रमुख हैं। चिन्तन को पंख लगे की स्थिति निर्मित हो गई थी।
हमने आगे बढकर उनकी अगवानी की। अभिवादन के आदान-प्रदान के बाद अब हम अपने ड्राइंग रूम में थे। एक-दूसरे का कुशलक्षेम जानने के बाद बातचीत का दौर प्रारम्भ होता, उसके पहले ही नौकर ने पानी के गिलास टेबिल पर रखकर ठंडा या गर्म लाने की बात कही। हमने प्रश्नवाचक दृष्टि से सुधीर जी को निहारा। उन्होंने ठंडा पीने की इच्छा जाहिर की। नौकर के जाने के बाद ड्राइंग रूम में अब हम दौनों ही थे, और था हमारे मन में चल रहे ललित कला से जुडे प्रश्नों का अम्वार। हमने अपनी जिग्यासा से उन्हें अवगत कराया।
मानसिक संतुष्टि के लिए शारीरिक प्रयासों की अनिवार्यता को रेखांकित करते हुए उन्होंने रागात्मक पक्षों को चेतनात्मक उपस्थिति के रूप में परिभाषित किया। अभीष्ट को पांच भागों में विभक्त करते हुये वीजुअल आर्ट में चित्रकला और मूर्तिकला को, प्रोफार्मिंग आर्ट में गायन, वादन, नृत्य और अभिनय को, लिटरेचर में साहित्य सृजन को, सोसल स्टडी में समाज कार्यों को और कांस्टेक्शन में वास्तु को स्थापित किया। जीवन के अनुशासन को इस वर्गीकरण की सीमा में बांधते हुए वे अपने छात्र जीवन के अतीत में डूबते चले गये। स्नातकोत्तर का अध्ययन काल एक बार फिर जीवित हो उठा।
खजुराहो के वास्तु पर आधारित लघु शोध प्रबन्ध ‘खजुराहो के मूर्ति शिल्प का सौन्दर्यात्मक अध्ययन‘ का एक-एक अक्षर उभरने लगा। वे धारा प्रवाह बोलने लगे। खजुराहो के वास्तु को विश्व के लिए आदर्श बताने वाले सुधीर जी ने कहा कि सौन्दर्य बोध की सुखद अनुभूतियों को सुगन्धित वायु की तरह मन की गहराइयों तक पहुंचते देर नहीं लगती। संवेदनायें जाग्रत होने लगतीं हैं। तात्कालिक परिस्थितियों की तरंगीय उपस्थिति की दस्तक मस्तिष्क के मुहान पर होने लगती है जिसे समझने के लिए एकाग्रता, भावनात्मकता और विकसित पात्रता का होने नितांत आवश्यक होता है। भौतिक उपस्थिति के संकेतों की डोर पकडकर ही इतिहास के झरोखे तक पहुंचा जा सकता है।
विषय को गूढता की गहराई से समाता देखकर हमने उन्हें सौन्दर्य बोध से लेकर रागात्मकता तक की सीमा में बांधने की गरज से बीच में ही टोक दिया। वे चौंक गये। मानो किसी निद्रा से जागे हों। उनके प्रवाह में अवरोध उत्पन्न हो गया था। अतीत की स्मृतियों से बाहर निकलकर वर्तमान से साक्षात्कार होते ही उन्होंने तत्काल सहज होने की कोशिश की। गम्भीर से अति गम्भीर होते संवाद के लिए दुःख प्रगट करते हुए उन्होंने कहा कि मानवीय प्रकृति की अतृप्त इच्छाओं को पूर्ति तक पहुंचना ही रागात्मक संतुष्टि है जिसके लिए ललित कलाओं का सहारा लिया जाता है।
ललित कला के माध्यम से ही जीवन का मानसिक लक्ष्य भेदन सम्भव होता है। बातचीत चल ही रही थी कि तभी नौकर ने ट्रे लेकर कमरे में प्रवेश किया। ठंडे पेय के गिलासों के साथ बिस्कुट,नमकीन की प्लेटें टेबिल पर सजा दीं गईं। निरंतरता टूट गई थी परन्तु हमें अपने चिन्तन की आकार देने के लिए पर्याप्त सामग्री प्राप्त हो गई थी। सो हमने चर्चा को अगली भेंट तक के लिए स्थगित करके पेय सहित खाद्य वस्तुओं का सदुपयोग करना शुरू कर दिया। इस बार बस इतना ही। अगले हफ्ते एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए खुदा हाफिज।