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‘तीन तलाक’ के खिलाफ व्यापक मुहिम चलाने वाले ऑल इण्डिया मुस्लिम वूमेन पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमडब्ल्यूपीएलबी) ने इस सिलसिले में पिछले दिनों लोकसभा में पारित विधेयक की आलोचना करते हुए कहा है कि परिवारों को बर्बाद करने वाले इस कदम के खिलाफ आंदोलन चलाया जाएगा।
बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अम्बर ने कहा कि कानून तो कुरान शरीफ की सूरे तलाक के हिसाब से बनना चाहिए। उसमें सुलह की गुंजाइश है। तलाक तो सुलह और मसालहत के बाद का रास्ता है। मगर विधेयक में तो इस पहलू को सिरे से नकार दिया गया है। दूसरा, हिन्दू मैरिज एक्ट में तलाक के लिए एक साल की सजा का प्रावधान है, जबकि तीन तलाक रोधी विधेयक में उसी गुनाह के लिए तीन साल की सजा मुकर्रर की गयी है। यह अवैध है।
शाइस्ता अम्बर ने कहा ‘‘जब हमारे इस्लामी कानून के हिसाब से कानून नहीं बन रहा है तो फिर इस कानून का कोई मतलब नहीं है। कोई मुस्लिम मर्द तो क्या कोई औरत भी इस कानून को कुबूल नहीं करेगी। अगर यह कानून राहत के बजाय सजा बन जाएगा तो इसके खिलाफ आंदोलन चलाया जाएगा।’’
शाइस्ता अम्बर ने कहा कि इस विधेयक में तीन तलाक को आपराधिक कृत्य माना गया है, जिसे कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस्लाम में तलाक कोई सजा नहीं बल्कि राहत का रास्ता है। यह आपराधिक सजा का रास्ता नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस विधेयक में औरत को कुछ नहीं मिल रहा है। इससे परिवार खतरे में पड़ जाएंगे। अब कोई भी मां-बाप अपने बेटे की शादी करने से डरेंगे कि कहीं अगर कोई बात हो गयी और बीवी जाकर झूठी शिकायत कर दे तो उसे मान लिया जाएगा और वह अपराध बन जाएगा।
शाइस्ता अम्बर ने एक सवाल पर कहा कि सरकार की नीयत में मुस्लिम महिलाओं के प्रति हमदर्दी तो नहीं दिखती। कानून बनाने का मकसद यह होना चाहिए कि परिवार सुरक्षित और खुश हो। मगर इस कानून में तो जबर्दस्ती ही जबर्दस्ती है। इस कानून से औरत को तो कुछ मिल ही नहीं रहा है।
उधर, सामाजिक कार्यकर्ता नाइश हसन कहती हैं कि सरकार द्वारा लोकसभा में पारित कराया गया विधेयक मुस्लिम औरतों के किसी काम का नहीं है। इसमें महिलाओं के ही सवालों की अनदेखी की गयी है। मुस्लिम महिलाओं ने अपने अनेक सुझाव पेश किये थे जिन्हें इस विधेयक में शामिल करना जरूरी नहीं समझा गया।
उन्होंने कहा कि तीन तलाक के जुर्म में जब शौहर तीन साल के लिए जेल चला जाएगा, तब बीवी और बच्चों का खर्च कौन उठाएगा, इसका कोई रास्ता इस विधेयक में नहीं सुझाया गया है। इसके अलावा जो शौहर बिना तलाक दिए अपनी बीवी, बच्चों को छोड़कर उनका खर्च उठाये बगैर लापता रहते हैं उन्हें भी इस विधेयक के दायरे में लाया जाना चाहिए था, मगर वह भी नहीं हुआ।
नाइश के मुताबिक, इससे औरत पर तिहरा बोझ बढ़ेगा। शौहर अपनी जमानत के लिये अदालत के चक्कर लगाएगा और औरत भरण-पोषण के लिए दर-दर भटकेगी। तीन साल की सजा भी ज्यादा है। यह भी परिवार को बरबाद करने के लिए काफी है। मालूम हो कि मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक-2018 गत 27 दिसम्बर को लोकसभा में पारित कर दिया गया था।
अब इसे राज्यसभा में रखा जाना है। पूर्व में भी इसे लोकसभा में पारित किया जा चुका था मगर उच्च सदन में इसे मंजूरी नहीं मिल सकी थी।