-संस्कृति मंत्री तक पहुंची शिकायत, हटाए जा सकते हैं
भोपाल। साहित्य, कला और संस्कृति के नाम पर अश्लीलता परोसने के मामले में भोपाल का भारत भवन कई बार विवादों में रहा है। इस बार भारत भवन के प्रशासनिक अधिकारी प्रेमशंकर शुक्ला की एक अश्लील कविता को लेकर साहित्य जगत में जबर्दस्त विवाद चल रहा है। स्त्री अंगों को लेकर लिखी गई इस कविता को साहित्य जगत में बेहद अश्लील माना जा रहा है। इस कविता की शिकायत प्रदेश के संस्कृति मंत्री ऊषा ठाकुर को की गई है। खबर है कि इस कविता को देखते हुए प्रेमशंकर शुक्ला की भारत भवन से विदाई हो सकती है।
प्रेमशंकर शुक्ला के कविता संग्रह प्रेम की कविता में मीठी पीर के नाम से एक कविता है जिसे लेकर सोशल मीडिया पर तीखा विवाद शुरु हुआ है। इस खबर में आगे बढऩे से पहले हम इस कविता को जस का तस पाठकों के सामने रखते हैं। ताकि वे स्वयं कविता के बारे में निर्णय ले सकें।
मीठी पीर
-----------
(कंचन)जंघाएँ अलसाई पड़ी हैं
योनि जागती है
सुख की तलब में
मथे गये उरोज में
उठ रही है
मीठी पीर
नाभि में जो उठ रहा है
उसी को बुदबुदा रहे हैं
होठ
साथ चली गलियों की
तलवों में
गुदगुदी है
कोयल की पुकार में
रह-रहकर
रात गड़ती है।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय मंत्री डॉ. साधना बलवटे, गौरीशंकर शंकर शर्मा गौरीश, गोकुल सोनी, घनश्याम मैथिल आदि ने संस्कृति मंत्री को पत्र लिखकर ऐसी कविता लिखने वाले विकृत मानसिकता के व्यक्ति को भारत भवन के प्रशासनिक अधिकारी के पद से हटाने की मांग की है।
सोशल मीडिया पर हंगामा
प्रेमशंकर शुक्ला की कविता को लेकर पिछले कुछ दिन से सोशल मीडिया पर भी जमकर तीखी आलोचना हो रही है। गोरखपुर के साहित्यकार गणेश पांडे ने लिखा है कि यह कविता स्त्रीद्वेषी और फुहड़ है। सत्येन सिंह ने लिखा है कि स्त्री के प्रति निहायती भ्रमित और अभद्र है। सत्यनारायण पथिक ने लिखा है कि इसे कविता कहना ही घातक है। यह चातक की तरह स्त्री देह और यौनिक सुख से अतरंजन होते हुए महाशय हैं। उमरचंद जायसवाल लिखते हैं-थू है ऐसे कवि पर। अमेरिका में छुट्टी मना रहे ग्वालियर के कवि राकेश अचल ने लिखा है कि यह अतृप्त आत्माओं के श्राद्ध की कविता है।
शुक्ला का मोबाइल बंद
इस संबंध में अग्निबाण ने प्रेमशंकर शुक्ला का पक्ष जानने के लिए उनके मोबाइल पर संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन उनका मोबाइल बंद था। बताया जाता है कि प्रेमशंकर शुक्ला ने मीडिया में इस संबंध में अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि जो लोग उन्हें भारत भवन से हटवाना चाहते हैं उन्होंने इस कविता का सहारा लिया है।
*रविंद्र जैन जी की फेसबुक वॉल से साभार