अवधेश पुरोहित // Toc News
भोपाल । भय, भूख और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन का वायदा कर इस प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने वाली भारतीय जनता पार्टी के १३ वर्ष के शासनकाल में चपरासी से लेकर आईएएस और आईपीएस अधिकारी से इंजीनियर से लेकर विद्युत विभाग के लाइनमैन तक सभी के पास से काली कमाई, उजागर होने का सिलसिला जारी रहा। तो वहीं प्रदेश में हजारों राजनेता, अधिकारी, कर्मचारी, उद्योगपति और व्यवसाई भी मौजूद हैं
जिनके पास करोड़ों, अरबों रुपयों की अघोषित सम्पत्ति आज भी मौजूद है, नरेन्द्र मोदी ने भले ही विगत आठ नवम्बर को भ्रष्टाचार, काली कमाई और आतंकवादियों का नाम लेकर देश की ८६ प्रतिशत ५०० और एक हजार रुपए के नोटों को रद्दी में परिवर्तित कर दिया हो, लेकिन आज भी इस प्रदेश में अधिकारियों, राजनेताओं और कर्मचारियों के साथ-साथ राज्य की शायद ही ऐसी कोई सहकारी समितियां हो या फिर उनसे जुड़े समिति सेवक या उचित मूल्य की दुकान का कारोबार करने वाले ही नहीं इस प्रदेश की तमाम सरकारी योजनाओं में काली कमाई को अर्जित करने वाले लोगों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है
स्थिति यह है कि जो आरोप तत्कालीन भारतीय जनशक्ति की राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में सुश्री उमा भारती जिस तरह का आरोप इस प्रदेश की भाजपा में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर लगाया करती थीं कि इस शासन के आने के पहले ऐसे कई राजनेताओं की सम्पत्ति में बेतहाशा वृद्धि हुई है,
जिनके पास कल तक टूटी साइकिल खरीदने की भी स्थिति नहीं थी लेकिन वह आज आलीशान भवनों और लग्जरी कारों में फर्राटे भरते नजर आ रहे हैं, हालांकि इस तरह का आरोप सुश्री उमा भारती उस समय लगाया करती थीं लेकिन आज इस भाजपा के १३ वर्षों के शासनकाल के दौरान यह स्थिति है कि राज्य का सहकारी समिति से जुड़ा समिति सेवक जो राजधानी या महानगरों में नहीं बल्कि ठेठ आदिवासी जिला झाबुआ में पदस्थ है और झाबुआ की ऊबड़ खाबड़ सड़कों पर पजेरो वाहन में बैठकर फर्राटे भरते नजर आ रहा है,
उस जिले के दो समिति सेवकों को देखकर तो यही लगता है कि सच में इस प्रदेश में विकास की गंगोत्री बही है, तभी तो मुख्यमंत्री का वह सपना जिसमें अंतिम छोर के व्यक्ति का उद्धार हो वह साकार होता ठेठ आदिवासी जिला झाबुआ हमेशा विकास के नाम पर उपेक्षित रहा और झाबुआ जैसे जिलों के नाम पर करोड़ों रुपये आजादी के बाद इन आदिवासी जिलाों में रहने वाले लोगों के विकास के नाम पर राशि जारी की गई लेकिन उस राशि का किसको लाभ हुआ यह शोध का विषय है लेकिन यह जरूर है कि भारतीय जनता पार्टी का वह नारा जरूर सबका साथ सबका विकास को साकार कर दिखाया है
उस जिले के दो समिति सेवकों ने और विकास भी ऐसा कि जो आदिवासियों में ताड़ी, नारी और गाड़ी की परम्परा है उस परम्परा को दो समिति सेवकों ने उसको बदस्तूर आगे बढ़ाने में महारथ हासिल की है, यह अलग बात है कि इन समिति सेवकों के पास यह पजेरो भाजपा की चहुंओर विकास की अवधारणाओं की योजनाओं के नाम पर यह गाडिय़ाँ इन समिति सेवकों के पास हैं या फिर विकास के नाम पर जो गंगोत्री इस प्रदेश में बह रही है उसमें डुबकी लगाकर यह पजेरो खरीदी गई,
हालांकि इस तरह का मामला अकेले झाबुआ का नहीं बल्कि अलीराजपुर बड़वानी और शायद ही प्रदेश का ऐसा कोई जिला अछूता रहा हो जहाँ विकास की इस गंगोत्री के नाम पर भले ही जिनके लिये शिवराज के सपनों के स्वर्णिम मध्यप्रदेश बनाने की योजनाओं को साकार करने के लिये चलाई जा रही इस प्रदेश के गरीबों, आदिवासियों और बेसहारा लोगों के साथ-साथ शायद ही ऐसा कोई वर्ग बचा हो जिसके लिये मुख्यमंत्री ने कोई योजना न चलाई हो लेकिन उसका लाभ किसे और कितना मिला इसकी हकीकत तो पिछले दिनों प्रदेश के सत्ता के मुखिया द्वारा राज्यभर में अपने अधिकारियों के सूखा पर्यटन का जो आयोजन किया था और इस सूखा पर्यटन के दौरान मैदानी स्थिति का जायजा लेकर जिन अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी उसमें ऐसे कई मुद्दे सामने आए थे जिसमें शिवराज सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं पर सही से जमीनी स्तर पर पालन नहीं हो रहा है तो यह भी बात सामने आई थी कि चलाई जा रही लोकहितैषी योजनाओं का ठीक से प्रचार-प्रसार नहीं हो रहा है इसके साथ ही इस सूखा पर्यटन के बाद अधिकारियों ने जो रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी थी
उसमें इस बात का हवाला दिया गया था कि लोगों को योजनाओं के नाम पर दी जाने वाली राशि में तो हेराफेरी की जाती है तो वहीं बिना लक्ष्मी दर्शन के किसी को मुख्यमंत्री के सपनों के स्वर्णिम मध्यप्रदेश की परकिल्पना में चलाई जा रही योजनाओं का लाभ हितग्राहियों को तभी प्राप्त होता है जब वह भजकलदारम् की परम्परा को जारी रखे और शायद यही वजह है कि प्रदेश में भाजपा के शासनकाल के दौरान आईएस दम्पत्ति टीनू अरविंद जोशी के घर पड़े छापे में लाखों रुपए उजागर हुए तो वहीं ज्वैलरी, इंश्योरेंस पालिसियों और निवेशों से जुड़े तमाम दस्तवेजों का खुलासा हुआ जिनके माध्यम से प्रदेश सरकार के उस वायदे की हकीकत भी नजर आई जिसमें उसने भय, भूख और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने का वायदा किया था
तो वहीं यह भी बात समझ मेें आई कि सरकारी योजनाओं का भले ही अंतिम छोर का व्यक्ति भले ही कोई लाभ न उठाये लेकिन लोकतंत्र में प्रशासनिक व्यवस्था में अंतिम छोर के कर्मी नगर निगम उज्जैन के चपरासी नरेन्द्र देशमुख के घर पर जब जाँच एजेंसी ने छापा मारा तो दस लाख की नकदी के अतिरिक्त दस करोड़ की बेनामी सम्पत्ति से जुड़े दस्तावेजों से यह खुलासा हुआ की राज्य के अति लोकप्रिय, जनप्रिय मुख्यमंत्री के राज्य में अंतिम छोर के व्यक्ति को सरकारी योजनाओं का लाभ मिला हो लेकिन प्रशासनिक व्यवस्था के अंतिम कड़ी की दिशा और दशा परिवर्तन होने में इस सरकार की योजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, यही नहीं उस प्रशासनिक व्यवस्था के अंतिम पायदान के व्यक्ति के पास मध्यप्रदेश में ही नहीं
बल्कि महाराष्ट्र हरियाणा और इन्दौर में भी तमाम बेनामी सम्पत्तियाँ उजागर हुई तो वहीं जेलों को कृष्ण की जन्मभूमि से संबोधित करने वाले जेल के मुख्य प्रबंधक उमेश गांधी के घर पर जब छापे की कार्यवाही की गई तो २५ करोड़ की सम्पत्ति के दस्तावेज उजागर हुए और इस दौरान २.३ करोड़ की फिक्स डिपाजिट व एलआईसी में ४० लाख के निवेश के दस्तावेज चार लाख कैश, इंदौर, भोपाल, जबलपुर, रायसेन, कटनी व सागर में २५ करोड़ के मकान, दुकान, प्लाट व कई एकड़ जमीन के कागजात के अलावा लाखों रुपए की जेवरात बरामद हुए तो वहीं कई बेनामी सम्पत्ति के दस्तावेज भी इस दौरान मिले,
इस प्रदेश में विकास की योजनाओं के नाम पर किस तरह से भजकलदारम का खेल खेला गया इसका एक उदाहरण यह भी है कि जब इंदौर के वेटनरी डॉक्टर शाकिर शेख के घर पर छापे की कार्यवाही को अंजाम दिया गया तो बेनामी चल, अचल सम्पत्ति और इंदौर में दो मकानों के दस्तावेज भी जब्त हुए हैं, तो वहीं जबलपुर में आरईएस के असिस्टेंट इंजीनियर एसएस अली के तीन जिलों में स्थित घर पर जब छापे की कार्यवाही को अंजाम दिया गया था तो उनके यहाँ से बीस करोड़ रुपए की अघोषित सम्पत्ति के कागजात व नगदी जब्त हुए थे।
इन चंद घटनाओं से यह अंदाजा लगाया जा सकत है कि इस प्रदेश में बह रही विकास की गंगोत्री में डुबकी लगाकर किस तरह से लोगों ने अपनी सम्पत्ति का इजाफा किया और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के उस स्वर्णिम मध्यप्रदेश के सपने को बट्टा लगाने में किस तरह से राज्य में सक्रिय मंत्रियों, अधिकारियों, सत्ता के दलालों और ठेकेदारों के रैकेट के चलते क्या-क्या गुल इस प्रदेश में विकास के नाम पर खिलाये जा रहे हैं।
भोपाल । भय, भूख और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन का वायदा कर इस प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने वाली भारतीय जनता पार्टी के १३ वर्ष के शासनकाल में चपरासी से लेकर आईएएस और आईपीएस अधिकारी से इंजीनियर से लेकर विद्युत विभाग के लाइनमैन तक सभी के पास से काली कमाई, उजागर होने का सिलसिला जारी रहा। तो वहीं प्रदेश में हजारों राजनेता, अधिकारी, कर्मचारी, उद्योगपति और व्यवसाई भी मौजूद हैं
जिनके पास करोड़ों, अरबों रुपयों की अघोषित सम्पत्ति आज भी मौजूद है, नरेन्द्र मोदी ने भले ही विगत आठ नवम्बर को भ्रष्टाचार, काली कमाई और आतंकवादियों का नाम लेकर देश की ८६ प्रतिशत ५०० और एक हजार रुपए के नोटों को रद्दी में परिवर्तित कर दिया हो, लेकिन आज भी इस प्रदेश में अधिकारियों, राजनेताओं और कर्मचारियों के साथ-साथ राज्य की शायद ही ऐसी कोई सहकारी समितियां हो या फिर उनसे जुड़े समिति सेवक या उचित मूल्य की दुकान का कारोबार करने वाले ही नहीं इस प्रदेश की तमाम सरकारी योजनाओं में काली कमाई को अर्जित करने वाले लोगों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है
स्थिति यह है कि जो आरोप तत्कालीन भारतीय जनशक्ति की राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में सुश्री उमा भारती जिस तरह का आरोप इस प्रदेश की भाजपा में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर लगाया करती थीं कि इस शासन के आने के पहले ऐसे कई राजनेताओं की सम्पत्ति में बेतहाशा वृद्धि हुई है,
जिनके पास कल तक टूटी साइकिल खरीदने की भी स्थिति नहीं थी लेकिन वह आज आलीशान भवनों और लग्जरी कारों में फर्राटे भरते नजर आ रहे हैं, हालांकि इस तरह का आरोप सुश्री उमा भारती उस समय लगाया करती थीं लेकिन आज इस भाजपा के १३ वर्षों के शासनकाल के दौरान यह स्थिति है कि राज्य का सहकारी समिति से जुड़ा समिति सेवक जो राजधानी या महानगरों में नहीं बल्कि ठेठ आदिवासी जिला झाबुआ में पदस्थ है और झाबुआ की ऊबड़ खाबड़ सड़कों पर पजेरो वाहन में बैठकर फर्राटे भरते नजर आ रहा है,
उस जिले के दो समिति सेवकों को देखकर तो यही लगता है कि सच में इस प्रदेश में विकास की गंगोत्री बही है, तभी तो मुख्यमंत्री का वह सपना जिसमें अंतिम छोर के व्यक्ति का उद्धार हो वह साकार होता ठेठ आदिवासी जिला झाबुआ हमेशा विकास के नाम पर उपेक्षित रहा और झाबुआ जैसे जिलों के नाम पर करोड़ों रुपये आजादी के बाद इन आदिवासी जिलाों में रहने वाले लोगों के विकास के नाम पर राशि जारी की गई लेकिन उस राशि का किसको लाभ हुआ यह शोध का विषय है लेकिन यह जरूर है कि भारतीय जनता पार्टी का वह नारा जरूर सबका साथ सबका विकास को साकार कर दिखाया है
उस जिले के दो समिति सेवकों ने और विकास भी ऐसा कि जो आदिवासियों में ताड़ी, नारी और गाड़ी की परम्परा है उस परम्परा को दो समिति सेवकों ने उसको बदस्तूर आगे बढ़ाने में महारथ हासिल की है, यह अलग बात है कि इन समिति सेवकों के पास यह पजेरो भाजपा की चहुंओर विकास की अवधारणाओं की योजनाओं के नाम पर यह गाडिय़ाँ इन समिति सेवकों के पास हैं या फिर विकास के नाम पर जो गंगोत्री इस प्रदेश में बह रही है उसमें डुबकी लगाकर यह पजेरो खरीदी गई,
हालांकि इस तरह का मामला अकेले झाबुआ का नहीं बल्कि अलीराजपुर बड़वानी और शायद ही प्रदेश का ऐसा कोई जिला अछूता रहा हो जहाँ विकास की इस गंगोत्री के नाम पर भले ही जिनके लिये शिवराज के सपनों के स्वर्णिम मध्यप्रदेश बनाने की योजनाओं को साकार करने के लिये चलाई जा रही इस प्रदेश के गरीबों, आदिवासियों और बेसहारा लोगों के साथ-साथ शायद ही ऐसा कोई वर्ग बचा हो जिसके लिये मुख्यमंत्री ने कोई योजना न चलाई हो लेकिन उसका लाभ किसे और कितना मिला इसकी हकीकत तो पिछले दिनों प्रदेश के सत्ता के मुखिया द्वारा राज्यभर में अपने अधिकारियों के सूखा पर्यटन का जो आयोजन किया था और इस सूखा पर्यटन के दौरान मैदानी स्थिति का जायजा लेकर जिन अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी उसमें ऐसे कई मुद्दे सामने आए थे जिसमें शिवराज सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं पर सही से जमीनी स्तर पर पालन नहीं हो रहा है तो यह भी बात सामने आई थी कि चलाई जा रही लोकहितैषी योजनाओं का ठीक से प्रचार-प्रसार नहीं हो रहा है इसके साथ ही इस सूखा पर्यटन के बाद अधिकारियों ने जो रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी थी
उसमें इस बात का हवाला दिया गया था कि लोगों को योजनाओं के नाम पर दी जाने वाली राशि में तो हेराफेरी की जाती है तो वहीं बिना लक्ष्मी दर्शन के किसी को मुख्यमंत्री के सपनों के स्वर्णिम मध्यप्रदेश की परकिल्पना में चलाई जा रही योजनाओं का लाभ हितग्राहियों को तभी प्राप्त होता है जब वह भजकलदारम् की परम्परा को जारी रखे और शायद यही वजह है कि प्रदेश में भाजपा के शासनकाल के दौरान आईएस दम्पत्ति टीनू अरविंद जोशी के घर पड़े छापे में लाखों रुपए उजागर हुए तो वहीं ज्वैलरी, इंश्योरेंस पालिसियों और निवेशों से जुड़े तमाम दस्तवेजों का खुलासा हुआ जिनके माध्यम से प्रदेश सरकार के उस वायदे की हकीकत भी नजर आई जिसमें उसने भय, भूख और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने का वायदा किया था
तो वहीं यह भी बात समझ मेें आई कि सरकारी योजनाओं का भले ही अंतिम छोर का व्यक्ति भले ही कोई लाभ न उठाये लेकिन लोकतंत्र में प्रशासनिक व्यवस्था में अंतिम छोर के कर्मी नगर निगम उज्जैन के चपरासी नरेन्द्र देशमुख के घर पर जब जाँच एजेंसी ने छापा मारा तो दस लाख की नकदी के अतिरिक्त दस करोड़ की बेनामी सम्पत्ति से जुड़े दस्तावेजों से यह खुलासा हुआ की राज्य के अति लोकप्रिय, जनप्रिय मुख्यमंत्री के राज्य में अंतिम छोर के व्यक्ति को सरकारी योजनाओं का लाभ मिला हो लेकिन प्रशासनिक व्यवस्था के अंतिम कड़ी की दिशा और दशा परिवर्तन होने में इस सरकार की योजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, यही नहीं उस प्रशासनिक व्यवस्था के अंतिम पायदान के व्यक्ति के पास मध्यप्रदेश में ही नहीं
बल्कि महाराष्ट्र हरियाणा और इन्दौर में भी तमाम बेनामी सम्पत्तियाँ उजागर हुई तो वहीं जेलों को कृष्ण की जन्मभूमि से संबोधित करने वाले जेल के मुख्य प्रबंधक उमेश गांधी के घर पर जब छापे की कार्यवाही की गई तो २५ करोड़ की सम्पत्ति के दस्तावेज उजागर हुए और इस दौरान २.३ करोड़ की फिक्स डिपाजिट व एलआईसी में ४० लाख के निवेश के दस्तावेज चार लाख कैश, इंदौर, भोपाल, जबलपुर, रायसेन, कटनी व सागर में २५ करोड़ के मकान, दुकान, प्लाट व कई एकड़ जमीन के कागजात के अलावा लाखों रुपए की जेवरात बरामद हुए तो वहीं कई बेनामी सम्पत्ति के दस्तावेज भी इस दौरान मिले,
इस प्रदेश में विकास की योजनाओं के नाम पर किस तरह से भजकलदारम का खेल खेला गया इसका एक उदाहरण यह भी है कि जब इंदौर के वेटनरी डॉक्टर शाकिर शेख के घर पर छापे की कार्यवाही को अंजाम दिया गया तो बेनामी चल, अचल सम्पत्ति और इंदौर में दो मकानों के दस्तावेज भी जब्त हुए हैं, तो वहीं जबलपुर में आरईएस के असिस्टेंट इंजीनियर एसएस अली के तीन जिलों में स्थित घर पर जब छापे की कार्यवाही को अंजाम दिया गया था तो उनके यहाँ से बीस करोड़ रुपए की अघोषित सम्पत्ति के कागजात व नगदी जब्त हुए थे।
इन चंद घटनाओं से यह अंदाजा लगाया जा सकत है कि इस प्रदेश में बह रही विकास की गंगोत्री में डुबकी लगाकर किस तरह से लोगों ने अपनी सम्पत्ति का इजाफा किया और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के उस स्वर्णिम मध्यप्रदेश के सपने को बट्टा लगाने में किस तरह से राज्य में सक्रिय मंत्रियों, अधिकारियों, सत्ता के दलालों और ठेकेदारों के रैकेट के चलते क्या-क्या गुल इस प्रदेश में विकास के नाम पर खिलाये जा रहे हैं।