बैतूल// रामकिशोर पंवार ( टाइम्स ऑफ क्राइम)
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कांग्रेस - भाजपा के ठेकेदारो की दादागिरी के चलते नगरपालिका के अधिकारियों ने घुटने टेके
बैतूल जिले की सभी नगरपालिकाओं एवं नगर पंचायतो में जहां पर कांग्रेस एवं भाजपा के अध्यक्ष है वहां पर कांग्रेस और भाजपा के नेता आपसी गठबंधन बना कर ऐसे कार्यो का टेण्डर लेते है जिससे दोनो को फायदा मिल सके। भाजपा एवं काग्रेंसी ठेकेदार नेताओं के गुट को पूरे जिले में टेण्डर माफिया का नाम दिया गया है। चोर - चोर मौसरे भाई वाली तर्ज पर काम करने वाले इस गठबंधन द्वारा मिल बाट कर माल कमाने की चाहत के चलते जिले की नगर पालिकाओं एवं नगर पंचायतों को लाखो में नहीं बल्कि करोड़ो में चुना लग रहा है। हाल ही में उजागर एक बहुचर्चित मामले में पता चला कि कांग्रेस अध्यक्ष एवं भाजपा उपाध्यक्ष वाली जिला मुख्यालय की बैतूल नगरपालिका में करीब दो करोड़ 75 लाख रूपए के जो निर्माण कार्य के टेंडरों को स्वीकृति दी गई है उससे नगरपालिका को कम से कम 40 लाख रूपए की चपत सीधे-सीधे लगती हुई नजर आ रही है। हालत यह है कि परिषद ने भी आंख मूंदकर इन टेंडरों पर स्वीकृति की मोहर लगा दी।जब इन टेंडरों की पड़ताल की तो यह सामने आया कि ठेकेदारों ने रिंग बनाकर एबो(दर अनुसूची) का यह खेल खेला है। जिसमें नपा की भूमिका भी संदिग्ध नजर आती है। बैतूल नगर पालिका में इसके पहले जो भी टेंडर स्वीकृत हुए हैं वे सभी बिलो (एसओआर से कम) दर पर हुए हैं पर इस बार नपा ने 23 निर्माण कार्यो को परिषद में स्वीकृति दी है। करीब 44 लाख की लागत से बनने वाली आठ आंगनबाडियों में भी चार प्रतिशत एबो दर स्वीकृत की गई। लगभग 80 लाख की लागत से बनने वाला ट्रेचिंग ग्राउंड भी करीब तीन प्रतिशत एबो पर स्वीकृत किया गया है। सबसे ज्यादा एबो दर पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष आनंद प्रजापति के चुनाव क्षेत्र रहे मालवीय वार्ड में पांच लाख में बनने वाली स्टोन में से वॉल में करीब आठ प्रतिशत दी गई है। इन टेंडरों में प्रतिस्पर्घा नहीं हुई। ठेकेदारों ने बाहर ही रिंग बनाकर एबो रेट पर काम हासिल कर लिया है। बताया गया कि 23 काम के लिए 155 टेंडर फार्म उठे थे, लेकिन महज 70 फार्म ही डले। एक काम के लिए तीन टेंडर फार्म डाला जाना जरूरी है इसलिए यह 70 फार्म भी डाल गए। इसी तरह आठ आंगनबाडियों के काम के लिए करीब आधा सैकड़ा फार्म उठे, लेकिन डाले गए सिर्फ 24 फार्म। पीडब्ल्यूडी के जिस सीएसआर अप्रैल 2009 के आधार पर नगरपालिका निर्माण कार्य कराती है यदि उसी पीडब्ल्यूडी विभाग के हाल ही के टेंडरों के रेट का जब नगरपालिका के इन टेंडरों के रेट से तुलना करे तो हकीकत सामने आ जाती है। ई-टेडरिंग के माध्यम से पीडब्ल्यूडी में टेंडर होने पर 16 प्रतिशत से लेकर 20 प्रतिशत तक रेट बिलो में जा रहे हैं तो फिर उसी एसओआर पर काम कराने वाली नगरपालिका के टेंडर एबो में कैसे जा सकते हैं। नगर पालिका की ओर से तर्क दिया गया कि एबो में टेंडर डाले जाने को लेकर परिषद की बैठक के पहले प्रस्ताव में उल्लेख भी किया था। यह सही है कि पहली बार एबो रेट में नपा में टेंडर हो रहे हैं। इसके बावजूद स्वीकृति पर सीएमओ साहब ही सही प्रकाश डाल सकते हैं। सारे मामले में एई नगरपालिका बैतूल अनिल पिप्पल के अनुसार हम क्या करे बैतूल के ठेकेदारों ने बाहर रिंग बना ली तो हम इस मामले में कुछ भी करते है तो दोनो दलो के ठेकेदार रूपी नेता हमें डराते एवं धमकाते है ऐसे में हम आखिर क्या कर सकते हैं। पालिका के तर्क भी कम हास्यापद नहीं है। पालिका के एक जिम्मेदार अधिकारी कहते हैं किअधिक फार्म उठना और कम फार्म डलना हमारे हाथ में बिल्कुल नहीं है। बिलो रेट पर काम होने की बात है तो हरदा में तो 22 प्रतिशत बिलो पर कार्य स्वीकृत हुए हैं हर जगह अलग-अलग होता है। नगर पालिका के सीएमओ श्री जी के यादव कुछ और ही कहते हैं। श्री यादव का कहना है कि एसओआर का मतलब शेडयूल ऑफ रेट या दर अनुसूची कहा जाता है। जब टेंडर के रेट इस दर अनुसूची से ऊपर होते हैं तो एबो रेट कहा जाता है और जब नीचे होते हैं तो बिलो कहा जाता है। जब ठेकेदार आपस में तय कर टेंडर डालते हैं तो उसे रिंग बनाना कहते हैं।श्री यादव के अनुसार हम नौकरी करने आए है ऐसे में क्या खाक नौकरी करेगें जब एक ओर से कांग्रेसी और दुसरी ओर भाजपा के ठेकेदार , नेता ,पार्षद हमारी कालर पकड़ कर दादागिरी से काम ले लेते है। हमारी कोई नहीं सुनता है। हर कोई सड़क छाप नौकरी खाने एवं जेल भिजवाने की धमकी देकर चला जाता है। ऐसे में काम करना याने समझौता एक्सप्रेस में सफर करना जैसा है।
कांग्रेस - भाजपा के ठेकेदारो की दादागिरी के चलते नगरपालिका के अधिकारियों ने घुटने टेके
बैतूल जिले की सभी नगरपालिकाओं एवं नगर पंचायतो में जहां पर कांग्रेस एवं भाजपा के अध्यक्ष है वहां पर कांग्रेस और भाजपा के नेता आपसी गठबंधन बना कर ऐसे कार्यो का टेण्डर लेते है जिससे दोनो को फायदा मिल सके। भाजपा एवं काग्रेंसी ठेकेदार नेताओं के गुट को पूरे जिले में टेण्डर माफिया का नाम दिया गया है। चोर - चोर मौसरे भाई वाली तर्ज पर काम करने वाले इस गठबंधन द्वारा मिल बाट कर माल कमाने की चाहत के चलते जिले की नगर पालिकाओं एवं नगर पंचायतों को लाखो में नहीं बल्कि करोड़ो में चुना लग रहा है। हाल ही में उजागर एक बहुचर्चित मामले में पता चला कि कांग्रेस अध्यक्ष एवं भाजपा उपाध्यक्ष वाली जिला मुख्यालय की बैतूल नगरपालिका में करीब दो करोड़ 75 लाख रूपए के जो निर्माण कार्य के टेंडरों को स्वीकृति दी गई है उससे नगरपालिका को कम से कम 40 लाख रूपए की चपत सीधे-सीधे लगती हुई नजर आ रही है। हालत यह है कि परिषद ने भी आंख मूंदकर इन टेंडरों पर स्वीकृति की मोहर लगा दी।जब इन टेंडरों की पड़ताल की तो यह सामने आया कि ठेकेदारों ने रिंग बनाकर एबो(दर अनुसूची) का यह खेल खेला है। जिसमें नपा की भूमिका भी संदिग्ध नजर आती है। बैतूल नगर पालिका में इसके पहले जो भी टेंडर स्वीकृत हुए हैं वे सभी बिलो (एसओआर से कम) दर पर हुए हैं पर इस बार नपा ने 23 निर्माण कार्यो को परिषद में स्वीकृति दी है। करीब 44 लाख की लागत से बनने वाली आठ आंगनबाडियों में भी चार प्रतिशत एबो दर स्वीकृत की गई। लगभग 80 लाख की लागत से बनने वाला ट्रेचिंग ग्राउंड भी करीब तीन प्रतिशत एबो पर स्वीकृत किया गया है। सबसे ज्यादा एबो दर पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष आनंद प्रजापति के चुनाव क्षेत्र रहे मालवीय वार्ड में पांच लाख में बनने वाली स्टोन में से वॉल में करीब आठ प्रतिशत दी गई है। इन टेंडरों में प्रतिस्पर्घा नहीं हुई। ठेकेदारों ने बाहर ही रिंग बनाकर एबो रेट पर काम हासिल कर लिया है। बताया गया कि 23 काम के लिए 155 टेंडर फार्म उठे थे, लेकिन महज 70 फार्म ही डले। एक काम के लिए तीन टेंडर फार्म डाला जाना जरूरी है इसलिए यह 70 फार्म भी डाल गए। इसी तरह आठ आंगनबाडियों के काम के लिए करीब आधा सैकड़ा फार्म उठे, लेकिन डाले गए सिर्फ 24 फार्म। पीडब्ल्यूडी के जिस सीएसआर अप्रैल 2009 के आधार पर नगरपालिका निर्माण कार्य कराती है यदि उसी पीडब्ल्यूडी विभाग के हाल ही के टेंडरों के रेट का जब नगरपालिका के इन टेंडरों के रेट से तुलना करे तो हकीकत सामने आ जाती है। ई-टेडरिंग के माध्यम से पीडब्ल्यूडी में टेंडर होने पर 16 प्रतिशत से लेकर 20 प्रतिशत तक रेट बिलो में जा रहे हैं तो फिर उसी एसओआर पर काम कराने वाली नगरपालिका के टेंडर एबो में कैसे जा सकते हैं। नगर पालिका की ओर से तर्क दिया गया कि एबो में टेंडर डाले जाने को लेकर परिषद की बैठक के पहले प्रस्ताव में उल्लेख भी किया था। यह सही है कि पहली बार एबो रेट में नपा में टेंडर हो रहे हैं। इसके बावजूद स्वीकृति पर सीएमओ साहब ही सही प्रकाश डाल सकते हैं। सारे मामले में एई नगरपालिका बैतूल अनिल पिप्पल के अनुसार हम क्या करे बैतूल के ठेकेदारों ने बाहर रिंग बना ली तो हम इस मामले में कुछ भी करते है तो दोनो दलो के ठेकेदार रूपी नेता हमें डराते एवं धमकाते है ऐसे में हम आखिर क्या कर सकते हैं। पालिका के तर्क भी कम हास्यापद नहीं है। पालिका के एक जिम्मेदार अधिकारी कहते हैं किअधिक फार्म उठना और कम फार्म डलना हमारे हाथ में बिल्कुल नहीं है। बिलो रेट पर काम होने की बात है तो हरदा में तो 22 प्रतिशत बिलो पर कार्य स्वीकृत हुए हैं हर जगह अलग-अलग होता है। नगर पालिका के सीएमओ श्री जी के यादव कुछ और ही कहते हैं। श्री यादव का कहना है कि एसओआर का मतलब शेडयूल ऑफ रेट या दर अनुसूची कहा जाता है। जब टेंडर के रेट इस दर अनुसूची से ऊपर होते हैं तो एबो रेट कहा जाता है और जब नीचे होते हैं तो बिलो कहा जाता है। जब ठेकेदार आपस में तय कर टेंडर डालते हैं तो उसे रिंग बनाना कहते हैं।श्री यादव के अनुसार हम नौकरी करने आए है ऐसे में क्या खाक नौकरी करेगें जब एक ओर से कांग्रेसी और दुसरी ओर भाजपा के ठेकेदार , नेता ,पार्षद हमारी कालर पकड़ कर दादागिरी से काम ले लेते है। हमारी कोई नहीं सुनता है। हर कोई सड़क छाप नौकरी खाने एवं जेल भिजवाने की धमकी देकर चला जाता है। ऐसे में काम करना याने समझौता एक्सप्रेस में सफर करना जैसा है।