भोपाल //अवधेश पुरोहित
मध्यप्रदेश में जहां भ्रष्टाचार को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं आम हैं तो वहीं राज्य के पूर्व मंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने पिछले दिनों ऊपर से लेकर नीचे तक भ्रष्टाचार होने का खुलासा किया था तो वहीं राज्य के ग्रामीण एवं विकास मंत्री का यह दावा है कि वह बीस साल तक विपक्ष की राजनीति में रहे लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार में इतना भ्रष्टाचार नहीं हुआ जितना भ्रष्टाचार भय, भूख और भ्रष्टाचार से इस प्रदेश की जनता को मुक्ति दिलाने के वायदे के साथ भाजपा सरकार सत्ता में बैठी है,
इस भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान इतना भ्रष्टाचार है, तो वहीं राज्य के कई सेवा निवृत्त आईएएस और आईपीएस अधिकारियों का प्रदेश में फैल रहे भ्रष्टाचार को लेकर तमाम तरह के आरोप हैं, यही नहीं राज्य के आईएफएस अफसर आजाद सिंह डबास के द्वारा भी कई बार प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर प्रमुख सचिव और मुख्यमंत्री तक को पत्र लिखे गये यही नहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सत्ता पर काबिज होने के कुछ ही वर्षों बाद तत्कालीन भारतीय जनशक्ति के राष्ट्रीय महामंत्री प्रहलाद पटेल द्वारा मुख्यमंत्री को लिखे २८ सितम्बर २००७ के एक पत्र में लिखा था कि आपने मुझसे क्षमा मांगी और मैंने उस मर्यादा का पालन किया लेकिन आप मेरे तथ्यात्मक पत्र का उत्तर देने का साहस नहीं जुटा पाएंगे, आपको श्रीमती साधना सिंह को पत्नी स्वीकार करने में दस दिन लग गए हैं और क्षमावाणी पर यह कह रहे हैं कि वह आपकी मार्जिन मनी से लिये गये ट्रक हैं यदि आपके थे तो बेचे क्यों, क्या बेचने का ब्यौरा आप सार्वजनिक करने की हिम्मत जुटाएंगे? नैतिक रूप से मुख्यमंत्री के पद पर बैठे हुए व्यक्ति को इस लेन-देन को सार्वजनिक करना चाहिए (हालांकि पटेल के पत्र के बाद से लेकर आज तक इस बात का ब्यौरा मुख्यमंत्री ने अभी तक सार्वजनिक नहीं किया) प्रहलाद पटेल ने २८ सितम्बर २००७ को लिखे पत्र में आगे लिखा था कि आपके मिथ्याभिमान से मैं जरूर अहत हूँ, क्योंकि पद पर बैठकर आप बहुरूपिए हो गए हैं, मैं तो मानता था कि आप स्वयं दागदार नहीं हैं। लेकिन आज से मेरी धारणा बदल गई है। आप स्वयं भ्रष्टाचार के जनक हैं। आपकी कमजोरी, आपके निर्णय न कर पाने की प्रवृत्ति और अब झूठ बोलना, आर्थिक अपराधियों को खुला संरक्षण दे रहे हैं। आपके विकास का ढोल भूखों की भूख तो भले ही समाप्त न कर पा रहा हो भ्रष्टाचारियों का संरक्षण जरूर कर रहा है। तत्कालीन भारतीय जनशक्ति के राष्ट्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के द्वारा लिखे गये इस पत्र के एक-एक शब्द आज इस मध्यप्रदेश की राजनीति पर सही साबित हो रहा है। लेकिन मजे की बात यह है कि २००७ से लेकर २०१६ तक के मुख्यमंत्री के सफरनामे में एक नहीं अनेकों भ्रष्टाचार सुर्खियों में रहे हैं तो वहीं व्यापमं जैसा इस प्रदेश की राजनीतिक का ऐतिहासिक घोटाला भी हुआ है और इसके चलते सैंकड़ों नौजवानों का भविष्य तबाह बर्बाद हुआ है। प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जनता के समख यह लोरी सुनाते रहे हैं कि मैं राजनीति मेंदरिद्र नारायण की सेवा करने आया हूँ न कि राजनीति करने आया हूँ। मुख्यमंत्री के मुखाग्र बिन्दु से इस तरह के वाक्य यह जनता को सुनते-सुनते उनके कार्यकाल के लगभग १२ वर्ष हो गए हैं, लेकिन राज्य में आज भी न तो भ्रष्टाचार मिटा है और न ही भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कोई ऐसी कार्यवाही हुई है जिससे भ्रष्टाचारियों ने सबक लिया हो, हाँ यह जरूर है कि मुख्यमंत्री के १२ वर्षों के कार्यकाल के बाद अब संघ से लेकर स्वयं मुख्यमंत्री तक और राज्य के सत्ता और संगठन से जुड़े लोग इस बात का चिंतन और मनन करने में लगे हुए हैं कि आखिर प्रदेश में भ्रष्टाचार क्यों और कैसे पनप रहा है, जबकि मुख्यमंत्री से लेकर हर कोई जनता के सामने यह प्रवचन देते नजर आएंगे कि भ्रष्टाचारियों को बख्शा नहीं जाएगा। शिवराज सरकार में ऐसे कई मंत्री तो हैं ही तो वहीं भाजपा का नेता और कार्यकर्ता भी आज करोड़पति नजर आ रहा है। यह सब कैसे हुआ इस शोध में राज्य के तमाम शोधकर्ता तो लगे हुए ही हैं तो वहीं भाजपा के नेता भी इस मुद्दे को लेकर चिंतन और मनन कर रहे हैं, राज्य में भ्रष्टाचार की गंगोत्री के चलते जहां भाजपा के वह नेत जिनके पास शिवराज के सत्ता पर काबिज होने के पहले जिनकी स्थिति टूटी साइकिल खरीदने तक की नहीं थी आज वह आलीशान भवनों और लग्जरी वाहनों में फर्राटे लेते नजर आ रहे हैं, तो वहीं राज्य के मंत्रियों और आईएएस अधिकारियों के पास भी करोड़ों रुपए की बेनामी सम्पत्ति होने की खबरें समय-समय पर सुर्खियों में रही हैं। शायद यही वजह है कि इन शिवराज मंत्रीमण्डल के मंत्रियों और आईएएस अधिकारियों ने अपनी करोड़ों रुपए की बेनामी सम्पत्ति रमानी ग्रुप जैसे कारोबारियों के कारोबार में लगा रखी हैं और हाल ही में पड़े रमानी ग्रुप के यहां आयकर के छापे में इस बात के प्रमाण भी मिले हैं कि उनके दस्तावेजों में मिस्टर एक्स का कई जगह उल्लेख आयकर टीम को मिला। जब इस बात की उक्त टीम द्वारा खोजबीन की गई तो यह पाया गया कि यह सब प्रदेश के प्रमुख मंत्रियों और आला दर्जे के अधिकारियों के द्वारा लगाई गई राशि है। हालांकि रमानी ग्रुप के पहले राज्य के एक शराब कारोबारी के यहां भी भाजपा नेताओं के लेनदेन और पूंजी लगाने के मामले सामने आ चुके हैं। खैर मामला जो भी हो लेकिन राज्य में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल के दौरान जिस तरह की गंगोत्री बही है शायद उसके ही परिणाम हैं कि आज राज्य में भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लग पा रहा है, लेकिन यह जरूर है कि भाजपा के नेता और राज्य के सत्ताधीश ब्यूरोक्रेसी को भ्रष्ट कहकर अपनी बला अधिकारियों पर टालने की कोशिश कर रहे हैं, ऐसा नहीं है कि भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कई प्रयास नहीं किये गये हों और इसी के चलते प्रदेश में १४ साल के भाजपा शासनकाल के दौरान १२ जांच आयोग बने और सिर्फ तीन में ही जांच पूर्ण हो सकी, तेंदूपत्ता घोटाला १९९०, पेंशन घोटाला और सिंहस्थ घोटाला २००७ समेत व्यापमं घोटाले जैसी अन्य जांचें आज भी लम्बित हैं और इनकी रिपोर्टें आज तक नहीं आ पाईं, तो वहीं लोकायुक्त द्वारा अभी तक जिन अधिकारियों और कर्मचारियों पर छापे की कार्यवाही की गई उनकी जाँच पूरी होने के बाद भी उनपर न्यायालय में प्रकरण चलाने की स्वीकृति ना दिये जाने के पीछे भी तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं, मजे की बात तो यह है कि जिस लोकायुक्त संगठन द्वारा प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने की जिम्मेदारी है उसकी कार्यप्रणाली पर भी तमाम तरह के सवालिया निशान उठ रहे हैं। लोकायुक्त की कार्यवाही के दौरान पकड़ी गई सम्पत्ति और उसकी जांच पूरी होने पर जो अंतर लोकायुक्त द्वारा दिखाया जाता है उस तरह के मामले भी सामने आ गए कि यह सब क्यों और कैसे किये जाते हैं, इस बात का भी खुलासा हो जाने के बाद लोकायुक्त की कार्यवाही पर भी सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं तो वहीं लोकायुक्त के द्वारा छापे की कार्यवाही के दौरान तैयार की जाने वाली वीडियो सीडी जब न्यायालय में प्रस्तुत की जाती है तो वह ब्लैंक कैसे हो जाती है, इस बात को लेकर भी तमाम चर्चाएं व्याप्त हैं। कुल मिलाकर राज्य में सत्ता, संगठन और अधिकारियों की मिलीभगत से जिस तरह का भ्रष्टाचार का तांडव इस प्रदेश में चल रहा है शायद उसी की बदौलत राज्य के भाजपा के नेता और मंत्रियों की आकूत सम्पत्ति के प्रमाण भी समय-समय पर मिलते रहे हैं। यही नहीं राज्य में सत्ताधीशों के परिजनों द्वारा खरीदी जा रही जमीनें और बेनामी सम्पत्ति भी इस बात का प्रमाण हैं कि राज्य में सत्ता और संगठन में बैठे नेताओं के साथ-साथ अधिकारियों की भी सम्पत्ति में इजाफा कैसे और क्यों हो राहा है, हालांकि इन्हीं सब कारनामों के कारण भाजपा की गिरती साख को लेकर संघ परेशान है और वह चिंतन, मनन और मंथन के दौर में लगा हुआ है, लेकिन इसके साथ ही यह तय नहीं हो पा रहा है कि आखिर यह भ्रष्टाचार किस अदृश्य शक्ति की बदौलत इस प्रदेश में पनप रहा है जबकि मुख्यमंत्री और उनके मंत्रीमण्डल के सदस्य भ्रष्टाचार के खिलाफ यह कहकर कि भ्रष्टाचारियों को बख्शा नहीं जाएगा की जंग छेड़े हुए हैं और मंत्रीमण्डल के सदस्य यह कहते नजर आ रहे हैं कि इतना भ्रष्टाचार मैंने विपक्षी सदस्य होने के नाते कांग्रेस कार्यकाल में नहीं देखा जितना भ्रष्टाचार अब राज्य में भाजपा शासनकाल में व्याप्त है, इस बात का संकेत है कि राज्य में भ्रष्टाचार की गंगोत्री बह रही है और उसमें सत्ता संगठन से लेकर राज्य के अधिकारी व कर्मचारी डुबकी लगाने में लगे हुए हैं। मजे की बात तो यह है कि भ्रष्टाचारियों को बक्शा नहीं जाएगा का ढिंढोरा पीटने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इर्द-गिर्द ऐसे अधिकारियों काकस मौजूद है जिनके भ्रष्टाचार के कारनामे से राज्य क हर अधिकारी और राजनेता भलीभांति परिचित है। मजे की बात यह है कि कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं के निवाले पर डाका डालकर अपनी तिजोरी भरने वाले अधिकारी भी मुख्यमंत्री के चहेतों की सूची में शामिल हैं, तो राज्य में भ्रष्टाचार कैसे खत्म होगा इसको लेकर भी तरह-तरह की चर्चाएं लोगों में व्याप्त हैं।
मध्यप्रदेश में जहां भ्रष्टाचार को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं आम हैं तो वहीं राज्य के पूर्व मंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने पिछले दिनों ऊपर से लेकर नीचे तक भ्रष्टाचार होने का खुलासा किया था तो वहीं राज्य के ग्रामीण एवं विकास मंत्री का यह दावा है कि वह बीस साल तक विपक्ष की राजनीति में रहे लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार में इतना भ्रष्टाचार नहीं हुआ जितना भ्रष्टाचार भय, भूख और भ्रष्टाचार से इस प्रदेश की जनता को मुक्ति दिलाने के वायदे के साथ भाजपा सरकार सत्ता में बैठी है,
इस भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान इतना भ्रष्टाचार है, तो वहीं राज्य के कई सेवा निवृत्त आईएएस और आईपीएस अधिकारियों का प्रदेश में फैल रहे भ्रष्टाचार को लेकर तमाम तरह के आरोप हैं, यही नहीं राज्य के आईएफएस अफसर आजाद सिंह डबास के द्वारा भी कई बार प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर प्रमुख सचिव और मुख्यमंत्री तक को पत्र लिखे गये यही नहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सत्ता पर काबिज होने के कुछ ही वर्षों बाद तत्कालीन भारतीय जनशक्ति के राष्ट्रीय महामंत्री प्रहलाद पटेल द्वारा मुख्यमंत्री को लिखे २८ सितम्बर २००७ के एक पत्र में लिखा था कि आपने मुझसे क्षमा मांगी और मैंने उस मर्यादा का पालन किया लेकिन आप मेरे तथ्यात्मक पत्र का उत्तर देने का साहस नहीं जुटा पाएंगे, आपको श्रीमती साधना सिंह को पत्नी स्वीकार करने में दस दिन लग गए हैं और क्षमावाणी पर यह कह रहे हैं कि वह आपकी मार्जिन मनी से लिये गये ट्रक हैं यदि आपके थे तो बेचे क्यों, क्या बेचने का ब्यौरा आप सार्वजनिक करने की हिम्मत जुटाएंगे? नैतिक रूप से मुख्यमंत्री के पद पर बैठे हुए व्यक्ति को इस लेन-देन को सार्वजनिक करना चाहिए (हालांकि पटेल के पत्र के बाद से लेकर आज तक इस बात का ब्यौरा मुख्यमंत्री ने अभी तक सार्वजनिक नहीं किया) प्रहलाद पटेल ने २८ सितम्बर २००७ को लिखे पत्र में आगे लिखा था कि आपके मिथ्याभिमान से मैं जरूर अहत हूँ, क्योंकि पद पर बैठकर आप बहुरूपिए हो गए हैं, मैं तो मानता था कि आप स्वयं दागदार नहीं हैं। लेकिन आज से मेरी धारणा बदल गई है। आप स्वयं भ्रष्टाचार के जनक हैं। आपकी कमजोरी, आपके निर्णय न कर पाने की प्रवृत्ति और अब झूठ बोलना, आर्थिक अपराधियों को खुला संरक्षण दे रहे हैं। आपके विकास का ढोल भूखों की भूख तो भले ही समाप्त न कर पा रहा हो भ्रष्टाचारियों का संरक्षण जरूर कर रहा है। तत्कालीन भारतीय जनशक्ति के राष्ट्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के द्वारा लिखे गये इस पत्र के एक-एक शब्द आज इस मध्यप्रदेश की राजनीति पर सही साबित हो रहा है। लेकिन मजे की बात यह है कि २००७ से लेकर २०१६ तक के मुख्यमंत्री के सफरनामे में एक नहीं अनेकों भ्रष्टाचार सुर्खियों में रहे हैं तो वहीं व्यापमं जैसा इस प्रदेश की राजनीतिक का ऐतिहासिक घोटाला भी हुआ है और इसके चलते सैंकड़ों नौजवानों का भविष्य तबाह बर्बाद हुआ है। प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जनता के समख यह लोरी सुनाते रहे हैं कि मैं राजनीति मेंदरिद्र नारायण की सेवा करने आया हूँ न कि राजनीति करने आया हूँ। मुख्यमंत्री के मुखाग्र बिन्दु से इस तरह के वाक्य यह जनता को सुनते-सुनते उनके कार्यकाल के लगभग १२ वर्ष हो गए हैं, लेकिन राज्य में आज भी न तो भ्रष्टाचार मिटा है और न ही भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कोई ऐसी कार्यवाही हुई है जिससे भ्रष्टाचारियों ने सबक लिया हो, हाँ यह जरूर है कि मुख्यमंत्री के १२ वर्षों के कार्यकाल के बाद अब संघ से लेकर स्वयं मुख्यमंत्री तक और राज्य के सत्ता और संगठन से जुड़े लोग इस बात का चिंतन और मनन करने में लगे हुए हैं कि आखिर प्रदेश में भ्रष्टाचार क्यों और कैसे पनप रहा है, जबकि मुख्यमंत्री से लेकर हर कोई जनता के सामने यह प्रवचन देते नजर आएंगे कि भ्रष्टाचारियों को बख्शा नहीं जाएगा। शिवराज सरकार में ऐसे कई मंत्री तो हैं ही तो वहीं भाजपा का नेता और कार्यकर्ता भी आज करोड़पति नजर आ रहा है। यह सब कैसे हुआ इस शोध में राज्य के तमाम शोधकर्ता तो लगे हुए ही हैं तो वहीं भाजपा के नेता भी इस मुद्दे को लेकर चिंतन और मनन कर रहे हैं, राज्य में भ्रष्टाचार की गंगोत्री के चलते जहां भाजपा के वह नेत जिनके पास शिवराज के सत्ता पर काबिज होने के पहले जिनकी स्थिति टूटी साइकिल खरीदने तक की नहीं थी आज वह आलीशान भवनों और लग्जरी वाहनों में फर्राटे लेते नजर आ रहे हैं, तो वहीं राज्य के मंत्रियों और आईएएस अधिकारियों के पास भी करोड़ों रुपए की बेनामी सम्पत्ति होने की खबरें समय-समय पर सुर्खियों में रही हैं। शायद यही वजह है कि इन शिवराज मंत्रीमण्डल के मंत्रियों और आईएएस अधिकारियों ने अपनी करोड़ों रुपए की बेनामी सम्पत्ति रमानी ग्रुप जैसे कारोबारियों के कारोबार में लगा रखी हैं और हाल ही में पड़े रमानी ग्रुप के यहां आयकर के छापे में इस बात के प्रमाण भी मिले हैं कि उनके दस्तावेजों में मिस्टर एक्स का कई जगह उल्लेख आयकर टीम को मिला। जब इस बात की उक्त टीम द्वारा खोजबीन की गई तो यह पाया गया कि यह सब प्रदेश के प्रमुख मंत्रियों और आला दर्जे के अधिकारियों के द्वारा लगाई गई राशि है। हालांकि रमानी ग्रुप के पहले राज्य के एक शराब कारोबारी के यहां भी भाजपा नेताओं के लेनदेन और पूंजी लगाने के मामले सामने आ चुके हैं। खैर मामला जो भी हो लेकिन राज्य में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल के दौरान जिस तरह की गंगोत्री बही है शायद उसके ही परिणाम हैं कि आज राज्य में भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लग पा रहा है, लेकिन यह जरूर है कि भाजपा के नेता और राज्य के सत्ताधीश ब्यूरोक्रेसी को भ्रष्ट कहकर अपनी बला अधिकारियों पर टालने की कोशिश कर रहे हैं, ऐसा नहीं है कि भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कई प्रयास नहीं किये गये हों और इसी के चलते प्रदेश में १४ साल के भाजपा शासनकाल के दौरान १२ जांच आयोग बने और सिर्फ तीन में ही जांच पूर्ण हो सकी, तेंदूपत्ता घोटाला १९९०, पेंशन घोटाला और सिंहस्थ घोटाला २००७ समेत व्यापमं घोटाले जैसी अन्य जांचें आज भी लम्बित हैं और इनकी रिपोर्टें आज तक नहीं आ पाईं, तो वहीं लोकायुक्त द्वारा अभी तक जिन अधिकारियों और कर्मचारियों पर छापे की कार्यवाही की गई उनकी जाँच पूरी होने के बाद भी उनपर न्यायालय में प्रकरण चलाने की स्वीकृति ना दिये जाने के पीछे भी तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं, मजे की बात तो यह है कि जिस लोकायुक्त संगठन द्वारा प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने की जिम्मेदारी है उसकी कार्यप्रणाली पर भी तमाम तरह के सवालिया निशान उठ रहे हैं। लोकायुक्त की कार्यवाही के दौरान पकड़ी गई सम्पत्ति और उसकी जांच पूरी होने पर जो अंतर लोकायुक्त द्वारा दिखाया जाता है उस तरह के मामले भी सामने आ गए कि यह सब क्यों और कैसे किये जाते हैं, इस बात का भी खुलासा हो जाने के बाद लोकायुक्त की कार्यवाही पर भी सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं तो वहीं लोकायुक्त के द्वारा छापे की कार्यवाही के दौरान तैयार की जाने वाली वीडियो सीडी जब न्यायालय में प्रस्तुत की जाती है तो वह ब्लैंक कैसे हो जाती है, इस बात को लेकर भी तमाम चर्चाएं व्याप्त हैं। कुल मिलाकर राज्य में सत्ता, संगठन और अधिकारियों की मिलीभगत से जिस तरह का भ्रष्टाचार का तांडव इस प्रदेश में चल रहा है शायद उसी की बदौलत राज्य के भाजपा के नेता और मंत्रियों की आकूत सम्पत्ति के प्रमाण भी समय-समय पर मिलते रहे हैं। यही नहीं राज्य में सत्ताधीशों के परिजनों द्वारा खरीदी जा रही जमीनें और बेनामी सम्पत्ति भी इस बात का प्रमाण हैं कि राज्य में सत्ता और संगठन में बैठे नेताओं के साथ-साथ अधिकारियों की भी सम्पत्ति में इजाफा कैसे और क्यों हो राहा है, हालांकि इन्हीं सब कारनामों के कारण भाजपा की गिरती साख को लेकर संघ परेशान है और वह चिंतन, मनन और मंथन के दौर में लगा हुआ है, लेकिन इसके साथ ही यह तय नहीं हो पा रहा है कि आखिर यह भ्रष्टाचार किस अदृश्य शक्ति की बदौलत इस प्रदेश में पनप रहा है जबकि मुख्यमंत्री और उनके मंत्रीमण्डल के सदस्य भ्रष्टाचार के खिलाफ यह कहकर कि भ्रष्टाचारियों को बख्शा नहीं जाएगा की जंग छेड़े हुए हैं और मंत्रीमण्डल के सदस्य यह कहते नजर आ रहे हैं कि इतना भ्रष्टाचार मैंने विपक्षी सदस्य होने के नाते कांग्रेस कार्यकाल में नहीं देखा जितना भ्रष्टाचार अब राज्य में भाजपा शासनकाल में व्याप्त है, इस बात का संकेत है कि राज्य में भ्रष्टाचार की गंगोत्री बह रही है और उसमें सत्ता संगठन से लेकर राज्य के अधिकारी व कर्मचारी डुबकी लगाने में लगे हुए हैं। मजे की बात तो यह है कि भ्रष्टाचारियों को बक्शा नहीं जाएगा का ढिंढोरा पीटने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इर्द-गिर्द ऐसे अधिकारियों काकस मौजूद है जिनके भ्रष्टाचार के कारनामे से राज्य क हर अधिकारी और राजनेता भलीभांति परिचित है। मजे की बात यह है कि कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं के निवाले पर डाका डालकर अपनी तिजोरी भरने वाले अधिकारी भी मुख्यमंत्री के चहेतों की सूची में शामिल हैं, तो राज्य में भ्रष्टाचार कैसे खत्म होगा इसको लेकर भी तरह-तरह की चर्चाएं लोगों में व्याप्त हैं।