बैतूल से रामकिशोर पंवार की रिपोर्ट....
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साले से अब इसका क्या करू...?
बैतूल, आपने प्यार में धोखा खाते तो जरूर सुना होगा लेकिन क्या कोई प्यार के अलावा भी एक नहीं दो बार धोखा खा चुका होगा....? ऐसा सवाल आपके दिलो - दिमाग में जरूर उठा होगा। बैतूल जिले की एक शर्मनाक घटना ने दिल्ली से लेकर बैतूल तक स्वास्थ विभाग की हम दो हमारे दो की योजना पर ही पानी फेर दिया। एक नहीं दो बार सरकारी चिकित्सालय में हुई नसबंदी के फेल हो जाने के बाद सरकारी लक्ष्यपूर्ति पर ही प्रश्रवाचक चिन्ह लग गया है। कहीं सरकारी लक्ष्यपूर्ति के चक्कर में हुई जल्दबाजी नसबंदी के फेल होने का कारण है या इंफेक्शन यह जांच का विषय है। ताप्तीचंल में बसे आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले एक गरीब ने तीन संतान के बाद छोटा परिवार सुखी परिवार का फायदा समझकर सरकारी नसबंदी शिविर से अपनी पत्नी का एलटीटी ऑपरेशन करा दिया, लेकिन उसकी किस्मत ऐसी खराब निकली कि चौथी संतान के रूप में उसके यहां बेटी आ गई। बेटी है तो कल है का सरकारी फरमान समझ कर उसने इस नसबंदी फेल की भूल को किस्मत मानकर एक बार फिर सरकारी टारगेट पर दांव खेला, लेकिन इस बार फिर उसके घर में पांचवीं संतान के आने की खबर से उसके हाथ - पांव फूल गए। उसकी दो बार नसबंदी आपरेशन करवा चुकी पत्नी तकलीफ में है। उसे मिशनरी के पाढऱ चिकित्सालय में भर्ती कराया गया है। उसके दर्द को बाटने एवं उसे सरकारी मदद देने के लिए कोई भी आगे नहीं आ रहा है। इधर अपना मुंह छुपाए घुम रहा सरकारी तंत्र इस पूरे घटनाक्रम पर मौनीबाबा के रूप में तमाशा देख रहा है। सरकारी लक्ष्यपूर्ति के चक्कर में दो बार धोखा खा चुकी महिला प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान की मुंह बोली बहन है जो कि मुलताई तहसील के डिवटिया ग्राम निवासी जगदीश विश्वकर्मा की जीवन संगनी है। जगदीश विश्वकर्मा को अपने साले साहब की कथनी और करनी के साथ - साथ उसके चाल - चरित्र और चेहरे पर भी शक होने लगा है। जगदीश सवाल करता है कि उसने दो बेटी और एक बेटे के बाद अपने मुंहबोले साले शिवराज सिंह और उसकी सरकारी योजना पर भरोसा करके अपनी पत्नी माला का 2007 में दुनावा के नसबंदी शिविर में एलटीटी ऑपरेशन करवाया था। इस ऑपरेशन के बाद फिर उसकी पत्नी को गर्भ ठहरा और चौथी संतान के रूप में तीसरी बेटी का जन्म हुआ। जगदीश ने फिर एक बार अपनी पत्नी का दुनावा में ही आयोजित नसबंदी के सरकारी शिविर में 16 फरवरी 2012 को ऑपरेशन करवाया लेकिन इसके बाद उसकी पत्नी को फिर सात माह का गर्भ ठहर गया है। पीडि़ता श्रीमति माला जगदीश विश्वकर्मा को रक्तस्त्राव होने पर सरकारी चिकित्सालय मुलताई के बाद जिला चिकित्सालय बैतूल लाया था जहां से उसे पाढर स्थित मिशनरी के चिकित्सालय भेज दिया गया। जिला चिकित्सालय से पाढर चिकित्सालय रेफर करते समय कहा गया था कि तुम्हारे पास बीपीएल का कार्ड है वहां पैसा नहीं लगेगा लेकिन पाढर चिकित्सालय में पहुंचने पर पता लगा कि यहां भी धोखा हो गया और पैसा ही मांगा जा रहा है। अब तक उससे पाढर चिकित्सालय में दो हजार खर्च करवा दिए गए। इधर पूरे मामले में जिला सीएमएचओ डॉ. एसएस वास्कले कहते है कि पीडि़त महिला माला जगदीश विश्वकर्मा को किसी इंफेक्शन की वजह से ऐसा हुआ होगा। प्रकरण देखने के बाद महिला को मुआवजा राशि दिलाई जाएगी। सवाल यहां पर यह उठता है कि क्या सरकारी योजना मूर्ख बनाने के लिए होती है या लक्ष्य की पूर्ति के लिए क्योकि ऐसी योजनाओं के भ्रम जाल में फस कर माला जैसी कई महिलाए आज भी मुआवजा के लिए दर - दर की ठोकरे खा रहे है।
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