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| लोक सूचना अधिकारी के दोषी होने के बावजूद उस पर जुर्माना न लगाने पर हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण आदेश, आयुक्त पर ₹25,000 का हर्जाना (Cost) लगाया |
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लोक सूचना अधिकारी के दोषी होने के बावजूद उस पर जुर्माना न लगाने पर हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण आदेश :
इसे न्याय दृष्टांत (नजीर/ साइटेशन) के रूप में आप सूचना आयोग के समक्ष पेश कर सकते हैं .
लोक सूचना अधिकारी के दोषी होने के बावजूद उस पर जुर्माना न लगाने पर हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण आदेश,
सूचना आयुक्त पर 25,000 का हर्जाना लगाया
सूचना के अधिकार (RTI) को मजबूत करने और सूचना आयोग की जवाबदेही तय करने के लिए नजीर (Precedent) माने जाने वाले हाई कोर्ट आदेश का विवरण -
केस का नाम : डॉ. आनंद राय विरुद्ध मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य (Dr. Anand Rai vs. State of M.P. & Others)
याचिका क्रमांक : Writ Petition No. 19307/2018
कोर्ट : मध्य प्रदेश हाई कोर्ट, इंदौर बेंच
न्यायाधीश : न्यायमूर्ति श्री विवेक रूसिया
फैसले की तारीख : 20 अगस्त 2018
मामले की पृष्ठभूमि -
RTI आवेदन: याचिकाकर्ता (डॉ. आनंद राय) ने स्वास्थ्य विभाग से संबंधित जानकारी मांगी थी। जन सूचना अधिकारी (PIO) ने समय सीमा के भीतर जानकारी नहीं दी।
प्रथम अपील में भी न्याय नहीं हुआ। मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग द्वितीय द्वितीय अपील हुई।
आयोग का आदेश:
सूचना आयुक्त ने माना कि PIO ने जानकारी देने में देरी की है और लापरवाही बरती है। इसके बावजूद, आयुक्त ने PIO पर धारा 20 के तहत अनिवार्य जुर्माना (Penalty) नहीं लगाया और केवल 'चेतावनी' देकर या निर्देश देकर मामले को खत्म (Dispose) कर दिया।
अपीलार्थी ने आयोग के इस आदेश के विरुद्ध हाईकोर्ट में रिट याचिका की। उसने तर्क दिया कि जब आयोग ने यह मान लिया है कि अधिकारी दोषी है, तो जुर्माना लगाना कानूनन अनिवार्य है, यह आयोग की मर्जी पर निर्भर नहीं है।
हाई कोर्ट ने सूचना आयोग के आदेश को निरस्त करते हुए बहुत सख्त टिप्पणी की -
1. धारा 20 विवेकाधीन नहीं, अनिवार्य है (Mandatory Provision) :
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि RTI एक्ट की धारा 20(1) में "होगा/करेगा (Shall)" शब्द का प्रयोग हुआ है। इसका अर्थ है कि यदि जन सूचना अधिकारी (PIO) बिना किसी उचित कारण के जानकारी देने में देरी करता है या जानकारी छुपाता है, तो आयोग के पास जुर्माना न लगाने का विकल्प नहीं है। आयोग को जुर्माना लगाना ही होगा।
2. कोर्ट ने पाया कि सूचना आयुक्त ने बिना कोई ठोस कारण बताए एक या दो लाइनों में आदेश पारित कर दिया। कोर्ट ने कहा कि सूचना आयोग एक अर्द्ध-न्यायिक (Quasi-judicial) संस्था है। उसे अपने हर फैसले में यह विस्तार से लिखना होगा कि उसने जुर्माना क्यों लगाया या क्यों नहीं लगाया। "एक लाइन" के आदेश कानूनन मान्य नहीं हैं।
3. सूचना आयुक्त पर हर्जाना (Cost ) :
यह इस केस का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा था। कोर्ट ने कहा कि सूचना आयुक्त ने अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया और कानून की अनदेखी की। इस खामी के लिए कोर्ट ने आयुक्त पर ₹25,000 का हर्जाना (Cost) लगाया।
यह हर्जाना याचिकाकर्ता को देने का आदेश दिया।
कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि भविष्य में अगर ऐसे लापरवाही भरे आदेश दिए गए, तो यह राशि संबंधित सूचना आयुक्त के वेतन से या व्यक्तिगत रूप से वसूली जा सकती है।
यह फैसला RTI कार्यकर्ताओं और आम जनता के लिए हथियार की तरह है। इसका उपयोग आप तब कर सकते हैं जब :
सूचना आयोग यह मान ले कि PIO ने गलती की है, लेकिन फिर भी उस पर जुर्माना न लगाए।
आयोग बिना कारण बताए (Non-speaking order) आपकी अपील को खारिज कर दे।


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