TOC NEWS @ अवधेश पुरोहित
भोपाल । प्रदेश में इन दिनों आयेदिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छता अभियान के अंतर्गत शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अनिवार्य रूप से लोगों से यह उपेक्षा की जा रही है कि वह खुले में शौच न करें और अपने घरों में शौचालय बनायें, लेकिन सवाल यह उठता है कि जिस प्रदेश में राजधानी के कई इलाकों सहित पर्याप्त लोगों को पानी उपलब्ध नहीं हो रहा है तो पानी के अभाव में शौच का उपयोग कैसे करें इस सवाल को लेकर हर कोई परेशान है
, क्योंकि सरकार एक ओर खुले में शौच करने से रोकने के लिये तरह-तरह के तरीके अपना रही है कभी खुले में शौच करने वालों को फू ल भेंटकर तो कभी सीटी बजाकर उन्हें अपमानित किया जा रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि इस सबके पीछे सरकार अपनी उस अव्यवस्था को छुपाने में लगी हुई है जिसके तहत वह लोगों को पर्याप्त पानी उपलब्ध नहीं करवा पा रही है जिसकी वजह से घरों में बने शौचालय का उपयोग लोग नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि उनकी सफाई के लिए उनके पास पर्याप्त पानी नहीं है।
राज्य शासन की यह स्थिति है कि प्रदेश की आधी आबादी को यह सरकार ठीक से पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं करवा पा रही है तो शौचालय के उपयोग के लिए पानी कहाँ से आये यह समस्या प्रदेश की आधी से अधिक आबादी के सामने मुंह बांये खड़ी हुई है तारे वहीं कर्ज पर कर्ज लेकर इस प्रदेश को कर्जदार तो बनाया जा रहा है तो वहीं राज्य के खाली खजाने में प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में चल रही नल-जल योजनाओं की भी यह स्थिति है कि संबंधित विभाग के पास बजट न होने के कारण राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों की अधिकांश योजनाओं की बिजली कटी पड़ी है और संबंधित विभाग उनका पैसा नहीं भर पा रहा है,
जिसकी वजह से ग्रामीण क्षेत्रों की यह पेयजल योजनाएं पूरी तरह से ठप्प पड़ी हैं और लोग पानी की समस्या से दिन-रात जूझ रहे हैं कई गांवों की तो यह स्थिति है कि लोग आज भी कई सामान्य वर्षा से अधिक वर्षा होने के बावजूद भी पानी को ठीक से नहीं रोका गया, जिसकी वजह से कई गांव आज भी पानी के संकट से जूझ रहे हैं और उन्हें अपने नित्य उपयोग के पानी लाने के लिये मीलों दूर चलना पड़ता है, अब सवाल यह उठता है कि गांवों में पानी की आपूर्ति करने वाले विभाग और ग्राम पंचायतेें राज्य शासन की तरह आर्थिक अभाव से जूझ रही हैं तो वहीं संबंधित विभाग के अधिकारी जब-जब राज्य के वित्त विभाग में अपनी योजनाओं की राशि लेने के लिए जाते हैं तो उन्हें माफ करो आगे बढ़ो की नीति अपनाकर वित्त विभाग के अधिकारी चलता कर देते हैं।
लेकिन इन वित्त विभाग के अधिकारियों को जमीनी स्तर से जूझ रहे उन अधिकारियों की परेशानी का ज्ञान नहीं है जो पेयजल से संबंधित विभाग के अधिकारियों के समक्ष आये दिन राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों की बंद पड़ी पेयजल योजनाओं की समस्याओं को लेकर उनसे रोज ग्राम पंचायत और पंचायतों के सरपंच आयेदिन हुज्जत करते हैं और वह इन सबका मुकाबला बड़े ही शांतिपूर्वक करते दिखाई देते हैं, यदि राज्य में यही स्थिति रही तो पेयजल से जुड़े अधिकारियों के समक्ष उनकी सुरक्षा को लेकर भी चिंता हमेशा सतताती है।
कुल मिलाकर राज्य में चलाए जा रहे स्वच्छता अभियान की तो जोर-शोर से हल्ला मचाया जा रहा है लेकिन वहीं दूसरी ओर ग्रामीण और शहरी पेयजल से जुड़े विभागों के पास धन का अभाव होने के कारण वह शौचालय के लिये तो छोड़ो लोगों को ठीक से पीने का पानी तक मुहैया नहीं करावा पा रहे हैं तभी तो आये दिन यह खबरें सुर्खियों में रहती हैं कि लोगों द्वारा बनाये गये अपने शौचालय में कहीं कंडे तो कहीं, भूसा को कहीं घर का कबाड़ा भर रखा है और वह शौचालय का उपयोग न कर खुले में शौच करने को मजबूर हैं इसके पीछे जो मुख्य समस्या ग्रामीणों के सामने आ रही है वह है शौचालय के उपयोग के लिये किये जाने वाले पानी का अभाव, सवाल यह उठता है कि एक ओर जहां सरकार लोगों में खुले में शौच न करने पर पाबंदी लगा रही है तो वहीं दूसरी ओर वह उनके घरों में बने शौचालय के उपयोग की सफाई के लिए पपनी उपलब्ध नहीं करा पा रही है
ऐसे में दोहरी मार्ग झेल रहे ग्रामणों के समक्ष अब इधर कु आ और उधर खाई जैसी समस्या खड़ी हो रही है और वह यह सोचने को मजबूर हैं कि आखिर वह अपने घरों में बने शौचालय का उपयोग पानी के अभाव में कैसे करें और यदि सरकारी दबाव के चलते वह अपने निजी शौचालय का उपयोग करते हैं तो जहाँ उन्हें एक और बस स्टेण्डों व रेलवे स्टेशनों की तरह शौचालय की गंदगी और बदबू से दो-चार होना पड़ेगा, तो वहीं उनके घर में बने शौचालय की गंदगी से उन्हें तमाम बीमारियों की चपेट में भी आने से भी नहीं बच पाएंगे। लेकिन इसके बावजूद भी सरकार प्रदेश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के निवासियों पर यह दबाव तो बनाने में लगी हुई है कि वह अपने शौचालयों का उपयोग करें
लेकिन इस तरह के दबाव के पहले वह ग्रामीण क्षेत्रों में बंद पड़ी ग्रामीण पेयजल योजनाओं को चालू करने की दिशा में नई सोच रही है यदि यह स्थिति रही तो राज्यभर में चलाए जा रहे इस स्वच्छता अभियान के विरुद्ध लोगों में आक्रोश पनपेगा और इसके परिणाम क्या होंगे यह तो भविष्य बताएगा क्योंकि यह बात ग्रामीण क्षेत्र के रहवासियों पर सरकार अपने शौचालयों का उपयोग करने का दबाव तो बना रही है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों की बंदी पड़ी नल-जल योजनाओं ाके चलाने की दिशा में कोई सार्थक निर्णय नहीं ले पा रही है जिसके कई गावों में सरकारी लक्ष्य के अनुसार बने शौचालय होने के बावजूद भी लोग उन शौचालयों का पानी के अभाव में उपयोग नहीं कर पा रहे हैं?
भोपाल । प्रदेश में इन दिनों आयेदिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छता अभियान के अंतर्गत शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अनिवार्य रूप से लोगों से यह उपेक्षा की जा रही है कि वह खुले में शौच न करें और अपने घरों में शौचालय बनायें, लेकिन सवाल यह उठता है कि जिस प्रदेश में राजधानी के कई इलाकों सहित पर्याप्त लोगों को पानी उपलब्ध नहीं हो रहा है तो पानी के अभाव में शौच का उपयोग कैसे करें इस सवाल को लेकर हर कोई परेशान है
, क्योंकि सरकार एक ओर खुले में शौच करने से रोकने के लिये तरह-तरह के तरीके अपना रही है कभी खुले में शौच करने वालों को फू ल भेंटकर तो कभी सीटी बजाकर उन्हें अपमानित किया जा रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि इस सबके पीछे सरकार अपनी उस अव्यवस्था को छुपाने में लगी हुई है जिसके तहत वह लोगों को पर्याप्त पानी उपलब्ध नहीं करवा पा रही है जिसकी वजह से घरों में बने शौचालय का उपयोग लोग नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि उनकी सफाई के लिए उनके पास पर्याप्त पानी नहीं है।
राज्य शासन की यह स्थिति है कि प्रदेश की आधी आबादी को यह सरकार ठीक से पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं करवा पा रही है तो शौचालय के उपयोग के लिए पानी कहाँ से आये यह समस्या प्रदेश की आधी से अधिक आबादी के सामने मुंह बांये खड़ी हुई है तारे वहीं कर्ज पर कर्ज लेकर इस प्रदेश को कर्जदार तो बनाया जा रहा है तो वहीं राज्य के खाली खजाने में प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में चल रही नल-जल योजनाओं की भी यह स्थिति है कि संबंधित विभाग के पास बजट न होने के कारण राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों की अधिकांश योजनाओं की बिजली कटी पड़ी है और संबंधित विभाग उनका पैसा नहीं भर पा रहा है,
जिसकी वजह से ग्रामीण क्षेत्रों की यह पेयजल योजनाएं पूरी तरह से ठप्प पड़ी हैं और लोग पानी की समस्या से दिन-रात जूझ रहे हैं कई गांवों की तो यह स्थिति है कि लोग आज भी कई सामान्य वर्षा से अधिक वर्षा होने के बावजूद भी पानी को ठीक से नहीं रोका गया, जिसकी वजह से कई गांव आज भी पानी के संकट से जूझ रहे हैं और उन्हें अपने नित्य उपयोग के पानी लाने के लिये मीलों दूर चलना पड़ता है, अब सवाल यह उठता है कि गांवों में पानी की आपूर्ति करने वाले विभाग और ग्राम पंचायतेें राज्य शासन की तरह आर्थिक अभाव से जूझ रही हैं तो वहीं संबंधित विभाग के अधिकारी जब-जब राज्य के वित्त विभाग में अपनी योजनाओं की राशि लेने के लिए जाते हैं तो उन्हें माफ करो आगे बढ़ो की नीति अपनाकर वित्त विभाग के अधिकारी चलता कर देते हैं।
लेकिन इन वित्त विभाग के अधिकारियों को जमीनी स्तर से जूझ रहे उन अधिकारियों की परेशानी का ज्ञान नहीं है जो पेयजल से संबंधित विभाग के अधिकारियों के समक्ष आये दिन राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों की बंद पड़ी पेयजल योजनाओं की समस्याओं को लेकर उनसे रोज ग्राम पंचायत और पंचायतों के सरपंच आयेदिन हुज्जत करते हैं और वह इन सबका मुकाबला बड़े ही शांतिपूर्वक करते दिखाई देते हैं, यदि राज्य में यही स्थिति रही तो पेयजल से जुड़े अधिकारियों के समक्ष उनकी सुरक्षा को लेकर भी चिंता हमेशा सतताती है।
कुल मिलाकर राज्य में चलाए जा रहे स्वच्छता अभियान की तो जोर-शोर से हल्ला मचाया जा रहा है लेकिन वहीं दूसरी ओर ग्रामीण और शहरी पेयजल से जुड़े विभागों के पास धन का अभाव होने के कारण वह शौचालय के लिये तो छोड़ो लोगों को ठीक से पीने का पानी तक मुहैया नहीं करावा पा रहे हैं तभी तो आये दिन यह खबरें सुर्खियों में रहती हैं कि लोगों द्वारा बनाये गये अपने शौचालय में कहीं कंडे तो कहीं, भूसा को कहीं घर का कबाड़ा भर रखा है और वह शौचालय का उपयोग न कर खुले में शौच करने को मजबूर हैं इसके पीछे जो मुख्य समस्या ग्रामीणों के सामने आ रही है वह है शौचालय के उपयोग के लिये किये जाने वाले पानी का अभाव, सवाल यह उठता है कि एक ओर जहां सरकार लोगों में खुले में शौच न करने पर पाबंदी लगा रही है तो वहीं दूसरी ओर वह उनके घरों में बने शौचालय के उपयोग की सफाई के लिए पपनी उपलब्ध नहीं करा पा रही है
ऐसे में दोहरी मार्ग झेल रहे ग्रामणों के समक्ष अब इधर कु आ और उधर खाई जैसी समस्या खड़ी हो रही है और वह यह सोचने को मजबूर हैं कि आखिर वह अपने घरों में बने शौचालय का उपयोग पानी के अभाव में कैसे करें और यदि सरकारी दबाव के चलते वह अपने निजी शौचालय का उपयोग करते हैं तो जहाँ उन्हें एक और बस स्टेण्डों व रेलवे स्टेशनों की तरह शौचालय की गंदगी और बदबू से दो-चार होना पड़ेगा, तो वहीं उनके घर में बने शौचालय की गंदगी से उन्हें तमाम बीमारियों की चपेट में भी आने से भी नहीं बच पाएंगे। लेकिन इसके बावजूद भी सरकार प्रदेश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के निवासियों पर यह दबाव तो बनाने में लगी हुई है कि वह अपने शौचालयों का उपयोग करें
लेकिन इस तरह के दबाव के पहले वह ग्रामीण क्षेत्रों में बंद पड़ी ग्रामीण पेयजल योजनाओं को चालू करने की दिशा में नई सोच रही है यदि यह स्थिति रही तो राज्यभर में चलाए जा रहे इस स्वच्छता अभियान के विरुद्ध लोगों में आक्रोश पनपेगा और इसके परिणाम क्या होंगे यह तो भविष्य बताएगा क्योंकि यह बात ग्रामीण क्षेत्र के रहवासियों पर सरकार अपने शौचालयों का उपयोग करने का दबाव तो बना रही है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों की बंदी पड़ी नल-जल योजनाओं ाके चलाने की दिशा में कोई सार्थक निर्णय नहीं ले पा रही है जिसके कई गावों में सरकारी लक्ष्य के अनुसार बने शौचालय होने के बावजूद भी लोग उन शौचालयों का पानी के अभाव में उपयोग नहीं कर पा रहे हैं?
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