Tuesday, October 11, 2016

गैमन इंडिया पर सरकार की इतनी मेहरबानी, 7000 करोड़ के घोटाले की कहानी

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गैमन इंडिया ने मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के हॉट कामर्शियल स्पॉट न्यू मार्केट की बेशकीमती जमीन पर नियमों को ताक पर रखकर कब्जा हासिल किया। अब राज्य सरकार भी उसे फायदा पहुंचाने के लिए हरसंभव तरीके से काम कर रही है। खोजी पोर्टल कोबरापोस्ट के मुताबिक गैमन इंडिया को ठेका देने से लेकर प्रोजेक्ट की जमीन को फ्री-होल्ड करने तक कई तरह से फायदा पहुंचाया गया। यह करीब 7000 करोड़ रुपए का घोटाला है, जिसका खुलासा आरटीआई एक्टिविस्ट देवेंद्र मिश्रा के माध्यम से हुआ है
हैरानी इस बात की है कि गैमन इंडिया ने ठेका हासिल करने के बाद स्पेशल पर्पज कंपनी के तौर पर जिस दीपमाला इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड को खड़ा किया, वह तो महज एक लाख रुपए पूंजी के साथ छह महीने पहले शुरू हुई थी। इस संबंध में अफसरों के काम करने की तेजी भी सवालों के घेरे में हैं।
खोजी पोर्टल कोबरापोस्ट डॉट कॉम ने बड़ा खुलासा किया है। टीटी नगर की बेशकीमती 17 एकड़ सरकारी जमीन जिस तरह गैमन इंडिया को सौंपा गया, उस पर रौशनी डाली है। बताया है कि किस तरह नियमों को तोड़-मरोड़कर गैमन इंडिया को चुना गया। जिसने अपनी कथित सहायक कंपनी दीपमाला इंफ्रास्ट्रक्चर को यह काम सौंप दिया। इससे कई सवाल उठ रहे हैं। जिनका जवाब कोई भी देने को तैयार नहीं है।
17 मई 2007 को शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली मध्यप्रदेश की बीजेपी सरकार ने साउथ टीटी नगर में 15 एकड़ सरकारी जमीन के पुनर्घनत्वीकरण के लिए टेंडर बुलाए थे। तब तक तो सब ठीक था। निविदा प्रक्रिया में दो चरण थे, टेक्निकल और फाइनेंशियल। बोली लगाने वाली कंपनी को दोनों ही चरणों में सफल होना था। 29 कंपनियों ने टेंडर डाले थे। 17 को शॉर्टलिस्ट किया। इनमें ओरिएंटल स्ट्रक्चरल इंजीनियर्स, डीएलएफ लिमिटेड, लार्सन एंड टूब्रो, रिलायंस इंजीनियरिंग, रिलायंस एनर्जी, यूनिटेक लिमिटेड, गैमन इंडिया लिमिटेड और पार्श्वनाथ डेवलपर्स जैसी देश की नामी कंपनियों ने बोली लगाई थी। 2005 में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर पुनर्घनत्वीकरण का प्रोजेक्ट शुरू किया गया था।

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इसमें एक हिस्से को सरकारी काम के लिए विकसित किया जाना था और बाकी जमीन को ठेका लेने वाली कंपनी को अपने फायदे के लिए। इतनी बड़ी कंपनियों के बीच सिर्फ गैमन इंडिया लिमिटेड ही क्वालिफाई कर सकी और कॉन्ट्रेक्ट भी हासिल कर लिया। बाकी कंपनियां तो वक्त पर अपनी फाइनेंशियल बिड्स ही जमा नहीं कर पाईं। कहानी इतनी सहज नहीं है। कोबरापोस्ट की जांच में पता चला कि टेंडर प्रक्रिया में ही गैमन इंडिया लिमिटेड और उसकी स्पेशल प्रोजेक्ट कंपनी दीपमाला इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड को फायदा पहुंचाने की कोशिश की गई। इतना ही नहीं लीज डीड में न तो गैमन इंडिया और न ही दीपमाला इंफ्रास्ट्रक्चर की जवाबदेही तय की गई। सरकार ने इस प्रोजेक्ट के लिए सर्कल रेट्स घटाकर करीब आधे कर दिए। इतना ही नहीं जमीन को फ्री-होल्ड भी कर दिया। इससे पहले 2012 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ऐसे ही आदेश को खारिज कर चुकी है।
किस तरह एक कंपनी को फायदा पहुंचाया गया, यह इस बात से साफ होता है कि पहले चरण में रिलायंस एनर्जी सबसे आगे थी। उसने 23 नवंबर 2007 को फाइनेंशियल बिड के लिए एक महीने का वक्त मांगा था। प्रोजेक्ट की नोडल एजेंसी मध्य प्रदेश हाउसिंग बोर्ड ने ध्यान ही नहीं दिया। जबकि दिसंबर 2007 तक टेंडर खत्म नहीं हुए थे। जैसा कि हाउसिंग बोर्ड ने शुरुआत में कहा था।
तीन महीने बाद 29 मार्च 2008 को पुनर्घनत्वीकरण प्रोजेक्ट गैमन इंडिया लिमिटेड को दे दिया गया। इसके एक महीने पहले 8 फरवरी को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ही अध्यक्षता में कैबिनेट ने प्रस्ताव मंजूर किया। 29 मार्च 2008 को राज्य सरकार ने गैमन इंडिया को अनुबंध पर हस्ताक्षर करने बुलाया। 19 दिन बाद 17 अप्रैल 2008 को गैमन इंडिया ने राज्य सरकार को बताया कि उसने इस प्रोजेक्ट के लिए स्पेशल पर्पज कंपनी के तौर पर दीपमाला इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड बनाई है।
यही कंपनी एग्रीमेंट की शर्तों को पूरा करेगी। यहां से कहानी ही बदल गई। गैमन इंडिया ने दावा किया था कि दीपमाला इंफ्रास्ट्रक्चर एक एसपीसी है, जिसे पुनर्घनत्वीकरण प्रोजेक्ट के लिए बनाया गया है। लेकिन हकीकत यह है कि इसके दो प्रमोटर थे- मनोज रूपराम चमौली और रेखा मनोज कुमार चमौली। 3 अक्टूबर 2007 को टेंडर प्रक्रिया शुरू होने के छह महीने पहले इस कंपनी की पूंजी थी एक लाख रुपए। गैमन इंडिया ने रातोंरात इस कंपनी में 51 प्रतिशत शेयर खरीदे और उसे अपना एसपीसी घोषित कर दिया। 10 और 16 अप्रैल 2008 के बीच कंपनी का मालिकाना हक गैमन इंडिया को हस्तांतरित हुआ। गैमन इंडिया के ठेका स्वीकार करने और दीपमाला इंफ्रास्ट्रक्चर को एसपीसी घोषित करने के एक दिन बाद।
कोबरापोस्ट का दावा है कि इसके बाद घटनाक्रम में तेजी आ गई। यह पत्र मुंबई से भोपाल पहुंचने में एक दिन का वक्त भी नहीं लगा। राज्य के राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव ने भोपाल कलेक्टर को निर्देश दिया कि डेवलपमेंट कॉन्ट्रेक्ट डीआईपीएल से किया जाए। राज्य सरकार, हाउसिंग बोर्ड कमिश्नर और डीआईपीएल के बीच तीन तरफा करार 17 अप्रैल 2008 को हुआ। यह तेजी कई सवालों को जन्म देती है। इसका कारण यह है कि एग्रीमेंट होने के बाद मुख्यमंत्री कार्यालय हरकत में आया। 100 दिन के एक्शन प्लान के तहत प्रोजेक्ट को क्लीयरेंस दिया। दीपमाला इंफ्रास्ट्रक्चर को जितनी भी दिक्कतें आई, उन्हें दूर किया।
मुख्यमंत्री के दफ्तर से अब सीधे-सीधे इसी कंपनी का पत्र-व्यवहार होने लगा। मुख्यमंत्री ने भी 13 दिसंबर 2008 को स्थल का निरीक्षण किया था। रोचक तथ्य यह है कि तीन-तरफा करार 100 रुपए के गैर-न्यायिक स्टाम्प पर हुआ था। इसे न तो कभी रजिस्टर्ड किया गया और न ही नोटरी किया गया। कोर्ट में इसका कोई वैधानिक आधार नहीं बनता। इससे भी बढ़कर एग्रीमेंट में डीआईपीएल के किसी भी डायरेक्टर का नाम नहीं है।
इसमें यह भी नहीं कहा गया है कि डीआईपीएल गैमन इंडिया की एसपीसी है। न ही इसमें गैमन इंडिया और डीआईपीएल के बीच हुए करार का जिक्र है। यदि डीआईपीएल किसी भी स्तर पर नाकाम रहती है तो उस पर या गैमन इंडिया पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती, क्योंकि गैमन इंडिया तो करार में पक्षकार भी नहीं है। इतना ही नहीं, तीन-तरफा करार में दीपमाला इंफ्रास्ट्रक्चर को डेवलपर कहा गया है, लीजधारक नहीं। इसका मतलब यह है कि दीपमाला इंफ्रास्ट्रक्चर सिर्फ जमीन को विकसित करने वाली है, उसका जमीन पर कोई दावा नहीं रहेगा। इसका मतलब यह है कि 30 साल तक 15 एकड़ जमीन पर कंपनी का कोई दावा नहीं रहेगा।
क्या यह जान-बूझकर किया गया, या कहीं कोई गलती हुई है।
आरटीआई एक्टिविस्ट देवेंद्र प्रकाश मिश्रा इस केस को नजदीक से देख रहे हैं। वे सवाल करते हैं पूरे प्रोजेक्ट के लिए कंपनी की जवाबदेही तय करने वाले इतने महत्वपूर्ण दस्तावेज को रजिस्टर्ड क्यों नहीं किया गया? उसकी कोई वैधानिकता नहीं है। इससे राज्य सरकार की भूमिका पर सवाल उठते हैं। इतना ही नहीं एक कंपनी किसी और के साथ करार करने का पत्र कैसे लिख सकती है, यह सब एक दिन में कैसे संभव है?

दीपमाला इंफ्रास्ट्रक्चर को इस तरह पहुंचाया फायदा

1. सरकार को एक साल के भीतर 338 करोड़ रुपए का लीज रेंट जमा कराना था। लेकिन दीपमाला इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड ने यह राशि तीन साल में किस्तों में जमा कराई।
2. एक लाख रुपए की पूंजी वाली कोई कंपनी 338 करोड़ रुपए सरकार को कैसे चुका सकती है?
3. ऐसी कंपनी को 7000 करोड़ रुपए का कोई प्रोजेक्ट कैसे दिया जा सकता है? जिसने अपने फंड के स्रोत के बारे में कोई जानकारी न दी हो?
4. दीपमाला इंफ्रास्ट्रक्चर ने 5.80 करोड़ रुपए इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट एंड फाइनेंस कंपनी को राज्य सरकार के साथ लायजनिंग के लिए दिए। यह कहां से आए?
5. गैमन इंडिया को एक दिन में ठेका देने वाले अधिकारियों ने लीज डीड पर काम करने के लिए तीन साल ले लिए। 22 सितंबर 2011 को लीज डीड लागू हुई।
6. सरकार ने एक ही दिन में दो सेल डीड रजिस्टर्ड किए। एक 12 पेज की और दूसरी 11 पेज की। दोनों में कंटेंट एक-सा है। एक में लीज लेने वाले का फोटो है और लीज ली गई जमीन का नक्शा। जबकि दूसरे में नहीं। डीड्स में सरकार को दिया गया पैसा लीज ली गई जमीन के प्रीमियम के तौर पर नहीं बल्कि प्रोजेक्ट पेमेंट के तौर पर दिया गया था।

निगम की जमीन पर कब्जा 

रीडेंसीफिकेशन योजना के तहत लिंक रोड नंबर-1 से सटी जमीन पर गगनचुंबी इमारतें तैयार कर रही गैमन इंडिया कंपनी ने नगर निगम की जमीन पर अवैध कब्जा कर लिया है। यहां निगम ने रेडक्रास अस्पताल से कमला नेहरू स्कूल तक सर्विस रोड का निर्माण किया था। कंपनी ने पेट्रोल पंप साइड पर शॉपिंग कॉम्पलेक्स का हिस्सा आगे बढ़ाकर बना लिया है, इसके चलते 500 मीटर हिस्से से सर्विस रोड गायब हो गई है। इस गोलमाल पर अफसर चुप्पी साधे हैं।
गैमन इंडिया कंपनी लिंक रोड नंबर-1 से सटी करीब 15 एकड़ जमीन को विकसित करने के नाम पर 23 मंजिल के चार टॉवर तैयार कर रही है। मौके पर बिजनेस सेंटर और शॉपिंग कॉम्पलेक्स भी बनाया जा रहा है। शॉपिंग मॉल का मुख्य द्वार लिंक रोड नंबर-1 की तरफ खोला गया है, जिसकी सीढिय़ों का हिस्सा सर्विस रोड पर आ गया है, बाकी हिस्से पर फर्श बनाकर बाकायदा पार्किंग स्लॉट दिया गया है, जिससे मुख्य मार्ग यहां आकर बॉटल-नेक की तरह संकरा हो गया है।
इस मामले में भोपाल के महापौर आलोक शर्मा का कहना है कि अधिकारियों से जानकारी ली जाएगी। यदि गैमन इंडिया ने कहीं भी नियमों के खिलाफ जाकर काम किया है तो उस पर कार्रवाई की जाएगी। इसमें किसी तरह की कोताही बरतने का सवाल ही नहीं उठता। हालांकि, गैमन इंडिया के भोपाल में पदस्थ अधिकारी पवन वर्मा का कहना है कि हमें कुछ नहीं पता। मुंबई स्थित दफ्तर में डिजाइन तैयार हुए थे। सरकार के पास इसकी प्रतियां भी हैं। ऐसे में हमें इस संबंध में ज्यादा जानकारी नहीं है।

गैमन इंडिया पर फिर मेहरबानी

गैमन इंडिया पर फिर मेहरबानी हुई है, जिस कंपनी की जमीन को फ्री होल्ड करने से सरकार ने हाईकोर्ट में इनकार किया था, उसी को अचानक चुपचाप फ्री होल्ड कर दिया। खास यह है कि हाईकोर्ट में सरकार ने साफ किया था कि जमीन को फ्री होल्ड नहीं करने जा रही है। साथ ही अपने उस आदेश को वापस भी ले लिया था, जिसमें फ्री होल्ड किया गया था। गैमन को जमीन आवंटित होने के बाद से ही विवादों का साया रहा। कंपनी पर मेहरबानी के आरोप भी लगे, क्योंकि जमीन को लीज होल्ड से जून 12 में फ्री होल्ड कर दिया गया। विवाद बढ़ा तो मामला कोर्ट पहुंच गया। जहां सरकार ने फैसले को नवंबर 12 में वापस ले लिया। मामला फिर विवाद में है। आरटीआई कार्यकर्ता देवेंद्र प्रकाश मिश्रा ने दस्तावेज हासिल किए हैं। जुलाई 2015 में फ्री होल्ड सम्बंधी आदेश में अपर आयुक्त एनपी डेहरिया के हस्ताक्षर हैं।

देवेंद्र प्रकाश ने बताया करोड़ों का गणित 

आरटीआई कार्यकर्ता देवेंद्र प्रकाश मिश्रा का आरोप है कि राज्य में किसी भी जमीन के प्रीमियम का साढ़े सात प्रतिशत वार्षिक लीज रेंट लगता है और 30 वर्ष बाद जब लीज का नवीनीकरण कराया जाता है तो यह दर छह गुना हो जाती है। यह लीज भी 30 वर्ष के लिए होती है। इस तरह पहले 30 वर्षो में सरकार को लीज रेंट के तौर पर 750 करोड़ रुपये और अगले 30 वर्ष में 4500 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि प्राप्त होती। इस तरह सिर्फ लीज रेंट से ही साठ वर्ष में लगभग 5200 करोड़ रुपये मिलते और फ्लोर एरिया रेशियो (एफआरए) सहित अन्य राशि को जोड़ा जाए तो वह लगभग सात हजार करोड़ रुपये के आसपास बैठती हैं।
गैमन इंडिया द्वारा बनाए जा रहे सेंट्रल बिजनेस डिस्ट्रिक्ट को भोपाल नगर निगम ने 6 करोड़ 27 लाख रुपए संपत्ति कर जमा करने का नोटिस दिया है। जोनल अधिकारी अर्जुन मेघानी ने बताया कि गैमन इंडिया की स्थानीय कंपनी ने 9 लाख रुपए संपत्ति कर जमा करने का सेल्फ डिक्लेरेशन दिया था। प्रोजेक्ट को निर्माणाधीन बताया गया। केवल रेसीडेंशियल एरिया की ही गणना की गई। स्वयं के निवास पर मिलने वाली पचास फीसदी छूट क्लेम की गई। जांच हुई तो मालूम पड़ा कि 15 एकड़ के स्थान पर केवल 7.5 एकड़ का संपत्ति कर दिया है। प्रोजेक्ट को निर्माणाधीन बताया, जबकि यहां दुकानें शुरू हो गईं हैं। कमर्शियल एरिया के संपत्ति कर की गणना नहीं की गई। छूट तो मकान के आवंटन पर उसके मालिक को मिल सकती थी।

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