बलात्कार-वह भी पति द्वारा पत्नी के साथ?
यह कितनी उल्टी और चौंकाने वाली बात है लेकिन आप चौंकिए मत। यह निर्विवाद सत्य है कि अनेक पति अपनी पत्नियों के साथ शारीरिक जबरदस्ती करते हैं यानी बलात्कार करते हैं।
यह कठोर सत्य है कि विवाह सूत्र में बंधने के पश्चात् पति-पत्नी के शारीरिक संबंधों को धार्मिक, सामाजिक तथा कानूनी मान्यता मिल जाती है।
फिर भला बलात्कार जैसा शब्द दंपति के मध्य आने का कोई औचित्य ही नहीं। इसकी कोई जरूरत ही नहीं लेकिन विडम्बना यह है कि एक ही नहीं वरन् अनेक पत्नियां ऐसी ही परिस्थितियों का शिकार हो जाती हैं कि वे अपने पति से शारीरिक संबंध रखना नहीं चाहती किन्तु पति एक ऐसे भूखे भेडि़ए के समान होते हैं जो जोर जबरदस्ती द्वारा अपना अधिकार जता कर पत्नी के विरोध के बावजूद भी उससे सहवास करते हैं। यहां तक कि कई पति तो मार-पीटकर भी पत्नियों को सहवास करने के लिए बाध्य करते हैं। कई भुक्तभोगी पत्नियों का कहना है कि उस समय मुझे वैसा ही महसूस होता है जैसा बलात्कार के दौर से गुजरी हुई किसी भी नारी को होता है।
प्रश्न यह उठता है कि आखिर इन सब पत्नियों की कौन सी मजबूरी है जिसके कारण वे इस क्रि या से जो अन्यथा सुख, तृप्ति व आनंद के साथ वैवाहिक संबंधों को सुदृढ़ करती हैं, पति की कामुकता के समय दुख या कष्ट का अनुभव करती हैं। यह सब बातें जानने के लिए कई महिलाओं से बातचीत की। प्रस्तुत हैं उसकी एक झलक:-
सबसे पहले मैंने गीताजी से मुलाकात की। वे एक प्राइमरी स्कूल की अध्यापिका हैं। वह कहती हैं- कभी-कभी मैं कामकाज के दौरान बहुत थक जाती हूं या सिर दर्द से पीडि़त होती हूं। तब मुझे कुछ भी नहीं सुहाता। अब अगर ऐसे में पति जबरदस्ती करे तो मेरी आंखों में आंसू आने लगते हैं यानी मैं जोर-जोर से रोने लगती हूं। उस समय मुझे यही अनुभव होता है कि ये पति लोग कितने स्वार्थी होते हैं। इन्हें पत्नियों से प्यार मुहब्बत तो होती नहीं, बस मशीनी ढंग से अपना मतलब सीधा करते रहते हैं। उस समय तो मुझे सरासर बलात्कार की तरह लगता है। इस कारण तो कभी-कभी बोलचाल भी महीनों तक बन्द हो जाती है। तब मेरे पति सुरेश न मुझसे बात करेंगे और न ही प्यार का इजहार करेंगे। बस पराए पुरूष की तरह बलात्कार पर उतर आएंगे। ऐसी घड़ी में कितनी मानसिक व शारीरिक पीड़ा होती है, यह तो भुक्त-भोगी पत्नी ही जान सकती है।
35 वर्षीय संगीता जी बातचीत के दौरान इस संबंध में कहती हैं- मेरे पति तो हद से भी गुजर चुके हैं। घर में चार-चार जवान लड़कियां हैं। उनके सामने ही वे मुझे जबरदस्ती कमरे में बंद कर लेते हैं। मेरे समझाने-बुझाने, रोने-चिल्लाने और गिड़गिड़ाने पर भी उन पर कोई असर नहीं पड़ता। कमरे से बाहर निकलने पर मैं लड़कियों के सामने शर्म से गड़ जाती हूं और लड़कियां भी मुझे अजीब सी निगाहों से देखती हैं तथा अपने पिता से नफरत करने लगती हैं। यह सब बताते-बताते वे जोर-जोर से रोने लगी। उनका कहना है कि अब इस उम्र में मैं इन चार-चार लड़कियों को लेकर भला कहां जाऊं?
और यही सब अपनी आंखों में सत्य प्रमाणित करने के लिए मैंने सुनीता देवी के शयनकक्ष में चुपके से सेंध सी लगाई। वह घटना जब भी मुझे स्मरण आती है तो एक अबला नारी की विवशता देख मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
आइए, अब मैं सुनीता भाभी की शयनकक्ष वाली बात आपके सम्मुख रखता हूं-शयन कक्ष से आती सुनीता भाभी की आवाजें, अरे छोड़ दे मुझे. छोड़ दे। मैं कहती हू मुझे छोड़ दे दुष्ट, नहीं तो मैं जहर खा लूंगी, आत्महत्या कर लूंगी। जब-जब ये आवाजें हमारे कानों में पड़ती, हमारी आंखों के सामने एक विवश नारी का एक दृश्य अंकित होने लगता है जो अपने को बचाने के लिए आखिरी दम तक संघर्ष करती है। जब तक मैंने सुनीता भाभी की व्यथा को नहीं जाना था, तब तक मुझे उनके पति के प्रति हमदर्दी थी लेकिन जब उन्होंने रोते हुए अपनी व्यथा कही तो हम सहानुभूति दिखाने के अलावा कुछ न कर सके।
सुनीता भाभी ने बताया - मेरे पति के कई स्त्रियों से नाजायज संबंध हैं, इसलिए मुझे इनसे इतनी नफरत हो गई है कि मैं इनका मुंह भी देखना नहीं चाहती। मेरा 15 वर्ष का एक लड़का है। उसे हम दोनों की स्थिति का पूरा पता है। उसे यह भी पता है कि मैं तीन-चार वर्षों से अपनी पति से बातचीत भी नहीं करती हू। मेरा बेटा ही हम दोनों पति-पत्नी की बातचीत का माध्यम बना हुआ है। जो कुछ भी कहना-सुनना होता है, हम उसके द्वारा ही कहते-सुनते हैं।
मैंने उनसे साफ-साफ कह दिया है जब आप अपनी इच्छापूर्ति घर से बाहर कर लेते हैं तो मुझे भला क्यों तंग किया करते हो मगर वे क्रोध में भरे हुए मुझ पर झपट पड़ते हैं तो मैं बलात्कार का ही अनुभव करती हूं।
ऐसी ही शिकायत मेरे पड़ोस में रहने वाली सुशीला सिन्हा की है। वे कहती हैं- मेरे पति शराबी हैं। जब भी वे नशे में होते हैं, शयनकक्ष लड़ाई का अखाड़ा ही बन जाता है। झगड़ा यहां तक कि दिन-रात मार-पीट होती रहती है। अब इतने जालिम पति को भला कोई पत्नी कैसे प्यार दे सकती है। जिस पति को बीवी के दुख-दर्द से कोई सरोकार नहीं, उस पति के पास तो बैठना भी नहीं सुहाता। ऐसे में जबरदस्ती शारीरिक संबंध, यह तो सरासर बलात्कार है। ऐसे में पतियों के लिए पत्नियों के मन में प्यार और सम्मान कैसे हो सकता है। ये कुछ उदाहरण हैं उन विवश पत्नियों की व्यथा कथा के। वास्तव में इससे सिद्ध होता है कि पति भी अपनी पत्नियों से बलात्कार करते हैं। जिस क्रि या से अवर्णनीय सुख व आनन्द मिलता है, उसे ही कुछ नासमझ व निष्ठुर पति कितना वीभत्स बनाकर पत्नियों को पीड़ा पहुंचाते हैं। यदि पति अपना व्यवहार मधुर रखते हुए मर्यादा का पालन करें तो उम्र कोई भी हो, हर पत्नी समर्पण के लिए अपने पति से ज्यादा लालायित रह सकती है। इसी में दांपत्य जीवन की सार्थकता भी है।
- सत्यदेव कुमार
यह कितनी उल्टी और चौंकाने वाली बात है लेकिन आप चौंकिए मत। यह निर्विवाद सत्य है कि अनेक पति अपनी पत्नियों के साथ शारीरिक जबरदस्ती करते हैं यानी बलात्कार करते हैं।
यह कठोर सत्य है कि विवाह सूत्र में बंधने के पश्चात् पति-पत्नी के शारीरिक संबंधों को धार्मिक, सामाजिक तथा कानूनी मान्यता मिल जाती है।
फिर भला बलात्कार जैसा शब्द दंपति के मध्य आने का कोई औचित्य ही नहीं। इसकी कोई जरूरत ही नहीं लेकिन विडम्बना यह है कि एक ही नहीं वरन् अनेक पत्नियां ऐसी ही परिस्थितियों का शिकार हो जाती हैं कि वे अपने पति से शारीरिक संबंध रखना नहीं चाहती किन्तु पति एक ऐसे भूखे भेडि़ए के समान होते हैं जो जोर जबरदस्ती द्वारा अपना अधिकार जता कर पत्नी के विरोध के बावजूद भी उससे सहवास करते हैं। यहां तक कि कई पति तो मार-पीटकर भी पत्नियों को सहवास करने के लिए बाध्य करते हैं। कई भुक्तभोगी पत्नियों का कहना है कि उस समय मुझे वैसा ही महसूस होता है जैसा बलात्कार के दौर से गुजरी हुई किसी भी नारी को होता है।
प्रश्न यह उठता है कि आखिर इन सब पत्नियों की कौन सी मजबूरी है जिसके कारण वे इस क्रि या से जो अन्यथा सुख, तृप्ति व आनंद के साथ वैवाहिक संबंधों को सुदृढ़ करती हैं, पति की कामुकता के समय दुख या कष्ट का अनुभव करती हैं। यह सब बातें जानने के लिए कई महिलाओं से बातचीत की। प्रस्तुत हैं उसकी एक झलक:-
सबसे पहले मैंने गीताजी से मुलाकात की। वे एक प्राइमरी स्कूल की अध्यापिका हैं। वह कहती हैं- कभी-कभी मैं कामकाज के दौरान बहुत थक जाती हूं या सिर दर्द से पीडि़त होती हूं। तब मुझे कुछ भी नहीं सुहाता। अब अगर ऐसे में पति जबरदस्ती करे तो मेरी आंखों में आंसू आने लगते हैं यानी मैं जोर-जोर से रोने लगती हूं। उस समय मुझे यही अनुभव होता है कि ये पति लोग कितने स्वार्थी होते हैं। इन्हें पत्नियों से प्यार मुहब्बत तो होती नहीं, बस मशीनी ढंग से अपना मतलब सीधा करते रहते हैं। उस समय तो मुझे सरासर बलात्कार की तरह लगता है। इस कारण तो कभी-कभी बोलचाल भी महीनों तक बन्द हो जाती है। तब मेरे पति सुरेश न मुझसे बात करेंगे और न ही प्यार का इजहार करेंगे। बस पराए पुरूष की तरह बलात्कार पर उतर आएंगे। ऐसी घड़ी में कितनी मानसिक व शारीरिक पीड़ा होती है, यह तो भुक्त-भोगी पत्नी ही जान सकती है।
35 वर्षीय संगीता जी बातचीत के दौरान इस संबंध में कहती हैं- मेरे पति तो हद से भी गुजर चुके हैं। घर में चार-चार जवान लड़कियां हैं। उनके सामने ही वे मुझे जबरदस्ती कमरे में बंद कर लेते हैं। मेरे समझाने-बुझाने, रोने-चिल्लाने और गिड़गिड़ाने पर भी उन पर कोई असर नहीं पड़ता। कमरे से बाहर निकलने पर मैं लड़कियों के सामने शर्म से गड़ जाती हूं और लड़कियां भी मुझे अजीब सी निगाहों से देखती हैं तथा अपने पिता से नफरत करने लगती हैं। यह सब बताते-बताते वे जोर-जोर से रोने लगी। उनका कहना है कि अब इस उम्र में मैं इन चार-चार लड़कियों को लेकर भला कहां जाऊं?
और यही सब अपनी आंखों में सत्य प्रमाणित करने के लिए मैंने सुनीता देवी के शयनकक्ष में चुपके से सेंध सी लगाई। वह घटना जब भी मुझे स्मरण आती है तो एक अबला नारी की विवशता देख मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
आइए, अब मैं सुनीता भाभी की शयनकक्ष वाली बात आपके सम्मुख रखता हूं-शयन कक्ष से आती सुनीता भाभी की आवाजें, अरे छोड़ दे मुझे. छोड़ दे। मैं कहती हू मुझे छोड़ दे दुष्ट, नहीं तो मैं जहर खा लूंगी, आत्महत्या कर लूंगी। जब-जब ये आवाजें हमारे कानों में पड़ती, हमारी आंखों के सामने एक विवश नारी का एक दृश्य अंकित होने लगता है जो अपने को बचाने के लिए आखिरी दम तक संघर्ष करती है। जब तक मैंने सुनीता भाभी की व्यथा को नहीं जाना था, तब तक मुझे उनके पति के प्रति हमदर्दी थी लेकिन जब उन्होंने रोते हुए अपनी व्यथा कही तो हम सहानुभूति दिखाने के अलावा कुछ न कर सके।
सुनीता भाभी ने बताया - मेरे पति के कई स्त्रियों से नाजायज संबंध हैं, इसलिए मुझे इनसे इतनी नफरत हो गई है कि मैं इनका मुंह भी देखना नहीं चाहती। मेरा 15 वर्ष का एक लड़का है। उसे हम दोनों की स्थिति का पूरा पता है। उसे यह भी पता है कि मैं तीन-चार वर्षों से अपनी पति से बातचीत भी नहीं करती हू। मेरा बेटा ही हम दोनों पति-पत्नी की बातचीत का माध्यम बना हुआ है। जो कुछ भी कहना-सुनना होता है, हम उसके द्वारा ही कहते-सुनते हैं।
मैंने उनसे साफ-साफ कह दिया है जब आप अपनी इच्छापूर्ति घर से बाहर कर लेते हैं तो मुझे भला क्यों तंग किया करते हो मगर वे क्रोध में भरे हुए मुझ पर झपट पड़ते हैं तो मैं बलात्कार का ही अनुभव करती हूं।
ऐसी ही शिकायत मेरे पड़ोस में रहने वाली सुशीला सिन्हा की है। वे कहती हैं- मेरे पति शराबी हैं। जब भी वे नशे में होते हैं, शयनकक्ष लड़ाई का अखाड़ा ही बन जाता है। झगड़ा यहां तक कि दिन-रात मार-पीट होती रहती है। अब इतने जालिम पति को भला कोई पत्नी कैसे प्यार दे सकती है। जिस पति को बीवी के दुख-दर्द से कोई सरोकार नहीं, उस पति के पास तो बैठना भी नहीं सुहाता। ऐसे में जबरदस्ती शारीरिक संबंध, यह तो सरासर बलात्कार है। ऐसे में पतियों के लिए पत्नियों के मन में प्यार और सम्मान कैसे हो सकता है। ये कुछ उदाहरण हैं उन विवश पत्नियों की व्यथा कथा के। वास्तव में इससे सिद्ध होता है कि पति भी अपनी पत्नियों से बलात्कार करते हैं। जिस क्रि या से अवर्णनीय सुख व आनन्द मिलता है, उसे ही कुछ नासमझ व निष्ठुर पति कितना वीभत्स बनाकर पत्नियों को पीड़ा पहुंचाते हैं। यदि पति अपना व्यवहार मधुर रखते हुए मर्यादा का पालन करें तो उम्र कोई भी हो, हर पत्नी समर्पण के लिए अपने पति से ज्यादा लालायित रह सकती है। इसी में दांपत्य जीवन की सार्थकता भी है।
- सत्यदेव कुमार
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