बीजिंग। चीन के शिचुआन में स्थित यांग्सी गांव दुनिया के अन्य गांवों से काफी अलग है। इसकी वजह है यहां की आधी आबादी का बौना होना। यहां की 50 प्रतिशत आबादी की लंबाई मात्र 2 से 3 फीट है। इसके कारण यह गांव बौनों के गांव के नाम से प्रसिद्ध है।
इस गांव में बौने लोगों की आबादी होने के पीछे क्या रहस्य है इसका पता वैज्ञानिक पिछले 60 सालों से लगा रहे हैं, लेकिन अभी तक इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी है। वैज्ञानिकों ने यहां का पानी, खाना, वायु, और मिट्टी हर किसी पर रिसर्च की है मगर अभी तक वैज्ञानिकों को इस रहस्य के बारे में कुछ पता नहीं लगा है
गांव के बुजुर्गों की मानें तो उनका कहना है कि इस गांव को दशकों पहले किसी बीमारी ने घेर लिया था जिसके चलते वहां के लोग अजीबो-गरीब हरकतें करने लगे थे। अब गांव के कुछ लोग इसे बुरी ताकत का प्रभाव मानते हैं, तो कुछ लोगों का कहना है कि खराब फेंगशुई के चलते ऐसा हो रहा है। वहीं, कुछ का कहना ये भी है कि ये सब अपने पूर्वजों को सही तरीके से दफन ना करने के चलते हो रहा है।
इस इलाके में बौनों को देखे जाने की खबरें 1911 से ही आती रही हैं। 1947 में एक अंग्रेज वैज्ञानिक ने भी इसी इलाके में सैकड़ों बौनों को देखने की बात कही थी। हालांकि आधिकारिक तौर पर इस खतरनाक बीमारी का पता 1951 में चला जब प्रशासन को पीडि़तों के अंग छोटे होने की शिकायत मिली।
1985 में जब जनगणना हुई तो गांव में ऐसे करीब 119 मामले सामने आए। समय के साथ ये रुकी नहीं, पीढ़ी दर पीढ़ी ये बीमारी भी आगे बढ़ती गई। इसके डर से लोगों ने गांव छोड़ कर जाना शुरू कर दिया ताकि बीमारी उनके बच्चो में ना आये। हालांकि 60 साल बाद अब जाकर कुछ हालात सुधरे हंै अब नई पीढ़ी में यह लक्षण कम नजर आ रहे हैं।
इस गांव में बौने लोगों की आबादी होने के पीछे क्या रहस्य है इसका पता वैज्ञानिक पिछले 60 सालों से लगा रहे हैं, लेकिन अभी तक इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी है। वैज्ञानिकों ने यहां का पानी, खाना, वायु, और मिट्टी हर किसी पर रिसर्च की है मगर अभी तक वैज्ञानिकों को इस रहस्य के बारे में कुछ पता नहीं लगा है
गांव के बुजुर्गों की मानें तो उनका कहना है कि इस गांव को दशकों पहले किसी बीमारी ने घेर लिया था जिसके चलते वहां के लोग अजीबो-गरीब हरकतें करने लगे थे। अब गांव के कुछ लोग इसे बुरी ताकत का प्रभाव मानते हैं, तो कुछ लोगों का कहना है कि खराब फेंगशुई के चलते ऐसा हो रहा है। वहीं, कुछ का कहना ये भी है कि ये सब अपने पूर्वजों को सही तरीके से दफन ना करने के चलते हो रहा है।
इस इलाके में बौनों को देखे जाने की खबरें 1911 से ही आती रही हैं। 1947 में एक अंग्रेज वैज्ञानिक ने भी इसी इलाके में सैकड़ों बौनों को देखने की बात कही थी। हालांकि आधिकारिक तौर पर इस खतरनाक बीमारी का पता 1951 में चला जब प्रशासन को पीडि़तों के अंग छोटे होने की शिकायत मिली।
1985 में जब जनगणना हुई तो गांव में ऐसे करीब 119 मामले सामने आए। समय के साथ ये रुकी नहीं, पीढ़ी दर पीढ़ी ये बीमारी भी आगे बढ़ती गई। इसके डर से लोगों ने गांव छोड़ कर जाना शुरू कर दिया ताकि बीमारी उनके बच्चो में ना आये। हालांकि 60 साल बाद अब जाकर कुछ हालात सुधरे हंै अब नई पीढ़ी में यह लक्षण कम नजर आ रहे हैं।
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