शराब ठेकेदारों के लिए फायदेमंद नजर आ रहा ठेका निरस्त करना |
ब्यूरो चीफ नागदा, जिला उज्जैन // विष्णु शर्मा : 8305895567
इंदौर। मध्यप्रदेश में खुली शराब दुकाने फिर से बंद हो गई है। दरसल, ठेकेदारों की मांगों को लेकर ठेकेदारों और शासन-प्रशासन के बीच तनातनी चल रही है। ग्रामों क्षेत्रों में तो शराब की दुकाने खुली ही नहीं लेकिन अन्य जिलों में भी खुली थी उन्हें भी आज से बंद करने का फैसला लिया गया है। ठेका निरस्त करवाना ज्यादा फायदेमंद नजर आ रहा है।
कर्फ्यू और लॉकडाउन के चलते लगातार शराब दुकानें बंद हैं। एक अप्रैल से नए ठेके शुरू हो जाते हैं, मगर उसके पहले 22 मार्च को लागू जनता कर्फ्यू के दिन से ही दुकानें बंद हैं, जिसके चलते नए ठेके शुरू ही नहीं हो सके। इंदौर में ठेकेदारों के समूह ने 1168 करोड़ रुपए में जिले की सभी देशी-विदेशी शराब दुकानों का ठेका लिया है, जिसमें 5 प्रतिशत ड्यूटी भी एडवांस में जमा की गई, लेकिन लॉकडाउन के चलते दुकानें ही नहीं खुल सकी।
अब लॉकडाउन-4 में प्रदेश शासन ने अपने खाली खजाने को भरने के लिए शराब दुकानें खुलवाने का निर्णय लिया और पहले चरण में ग्रीन और ऑरेंज झोन की दुकानें खुलवाई गई। और रेड झोन, जिसमें इंदौर भी शामिल है, उसमें अनुमति अनुमति नहीं दी। लिहाजा कई जिलों में शराब दुकानें खुल तो गई, लेकिन 20 से 30 प्रतिशत ही बिक्री हो रही है। ऐसे में ठेकेदारों का कहना है कि वह पूरी 100 प्रतिशत लाइसेंस फीस कैसे जमा करेंगे।
इंदौर में चूंकि सबसे अधिक महंगा ठेका दिया है और कई ठेकेदार तो चवन्नी-अठन्नी से लेकर 1 रुपए के भागीदार हैं, उनकी आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा बेहतर अन्य बड़े ठेकेदारों की तरह नहीं है, जिसके चलते वे तो पूरी तरह से बर्बाद ही हो जाएंगे। पिछले दिनों शासन के निर्देश पर कलेक्टर मनीष सिंह ने ग्रामीण क्षेत्र की 83 दुकानों को खोलने के आदेश दिए। मगर ठेकेदारों ने दुकानें नहीं खोली। कल फिर शासन ने दो माह की लाइसेंस फीस भी माफ की। यानी मार्च के स्थान पर मई तक छूट दी गई। इस आशय का गजट नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया गया, लेकिन इंदौर सहित प्रदेशभर के ठेकेदारों का कहना है कि शासन के नोटिफिकेशन में जो शर्तें हैं, वे उन्हें मंजूर नहीं है और जो दुकानें खुली हैं वह भी आज से बंद कर दी जाएगी।
ठेकेदारों का कहना है कि शासन हमारी व्यवहारिक कठिनाई को दूर करे और लाइसेंस फीस में राहत दी जाए और जितनी शराब की खपत हो उसके आधार पर लाइसेंस फीस ली जाए। अभी 20 से 25 प्रतिशत ही खपत होगी। ऐसे में पूरी 100 प्रतिशत फीस ठेकेदार कैसे भरेंगे। 10 से 15 प्रतिशत की कीमतों में भी शासन ने वृद्धि करने का निर्णय लिया, लेकिन ठेकेदारों का कहना है कि इससे कोई फायदा नहीं है। शासन ने ठेके निरस्त करने की चेतावनी दी है। इस पर भी ठेकेदारों का कहना है कि वे खुद तैयार हैं कि ठेके निरस्त हो जाएं, ताकि फिर से नीलामी होगी, तो आधी कीमत में ही ये ठेके अब सरकार को देना पड़ेंगे। 27 मई को जबलपुर हाईकोर्ट में भी इन्हीं मुद्दों पर लगाई गई याचिका पर फैसला आना है।
लिहाजा ठेकेदार और सरकार की निगाह इस फैसले पर टिकी है। इसके बाद निर्णय होगा। हालांकि ठेकेदारों का यह भी कहना है कि वे अगर हाईकोर्ट में हारे तो सुप्रीम कोर्ट भी जाएंगे। वहीं उनकी 5 प्रतिशत जमा की गई राशि भी शासन राजसात नहीं कर पाएगा। उसके लिए भी कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे और 5 प्रतिशत राशि अगर डूब भी गई तो भी ठेका चलाने की तुलना में यह कम घाटे का सौदा फायदेमंद रहेगा।
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