सरकारी जमीन पर तना है चंद्रशेखर पटवारी का आलीशान महल
क्राइम रिपोर्टर// लखनलाल (कटनी// टाइम्स ऑफ क्राइम)
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कटनी. कटनी में वैसे तो हर पटवारी अपना जेब खर्च के अपनी महीने की सैलरी के अलवा आम जनता की जेब तो काटता ही है किन्तु चंद्रशेखर कोरी पटवारी की तो बात ही निराली है क्योंकि इनका पंट इतना बड़ा है की जरा से अवैध कमाई में पेट भरता ही नहीं है जैसे की टाइम्स ऑफ क्राइम की टीम ने चंद्रशेखर कोरी पटवारी के कई राज एवं बड़ी अवैध कमाई की पोल खोला था उस अवैध कमाई का एक छोटी सी पोल सूत्रों के द्वारा पता करने पता चला है कि इन्होंने नजूल अधिकारी से सांठ-गांठ कर सरकारी जमीनों में तो काफ ी गोल माल किया है ऐसा ही एक कारनामा जिले के हाऊसिंग बोर्ड कालोनी के ठीक सामने पड़ी नजूल की भूमि में कब्जा कर अपनी आलीसान कोठी तैयार किया एवं उस नजूल की भूमि पर और अधिक कब्जा किया गया था जिसमें कि कुछ जमीन बेची भी जा चूकी है इस पर भी न तो शासन ने कभी घ्यान दिया और नहीं प्रष्शसन ने जबकि सूत्रों के द्वारा पता चला है कि नजूल अधिकारी से इनके सम्बंध बड़े मधुर इसी लिये इनके पुराने प्रकरण का भी आनन-फानन में नजूल अधिकारी ने जांच करके मामला रफा-दफा भी करवा दिया नजूल अधिकारी ने शासन की जमीन को हराम की समझ कर बिना जांच किये ही अन्य अखबारों के माध्यम से सही को गलत साबित किया और पटवारी चंद्रशेखर को साफ तौर पर बचाया गया।
इससे साबित होता है कि नजूल अधिकारी से इनके कितने अच्छे सम्बंध है। कलेक्टर के आदेश का भी पालन नहीं हुआ जब कलेक्टर महोदय के सामने सरकारी जमीन का मामला टाइम्स ऑंफ क्राइम की टीम ने रखा तो कलेक्टर अशोक सिंह जी ने अखबार को अपने फाइल में रखते हुये टीम को आश्वासन दिया था कि में इस मामले की जांच करा कर आरोपी के विरूद्ध कार्यवाही जरूर की जायेगी किन्तु कलेक्टर अशोक सिंह को भी नजूल अधिकारी ने अपनी दी हुई जांच रिर्पोट से भ्रमित किया है क्योंकि किसी के विरूद्ध कार्यवाही करने के लिये सम्पूर्ण साक्ष्य की जरूरत होती है साक्ष्य तो पूरी तरह मौजूद थे किन्तु जांच रिर्पोट दर्शाये गये तथ्य ही भ्रामक थे लिहाजा जैसी जांच रिपोर्ट बनाई जायेगी कार्यवाही भी वैसी ही होगी।
सर्वविदित है की बचाव के लिये आंकड़ों का उलट फेर और बंदोबस्त और चकबंदी जैसे भ्रमित करने वाले नियम कायदों का सहारा लेकर पटवारी के पक्ष में क्लीन चिट दे दी गई जबकि भू-अभिलेखों में यह देखने की जहमत न तो जांच कर्ता ने उठाई और न ही किसी सक्षम अधिकारी द्वारा यह देखा गया कि उक्त भू-अभिलेखों में कांट-छांट कर नये नम्बर दर्ज करने वाली हैंडराईटिंग किसकी है और यह अवैधानिक कार्य किसके द्वारा अंजाम दिया गया है। क्या इसकी जांच किसी राइटिंग विशेषज्ञ से कराई गई? यदि नही तो क्यों? क्या ऐसी ही जांचें होती हैं यदि हां तो ऐसी आदेश किसके द्वारा जारी हुआ यह भी एक जांच का विषय है। आज के समय में 15 से 20 हजार रूपयेें पगार पाने वाला पटवारी सिर्फ घर की दाल रोटी ही चला सकता है न कि आलीशान काठी के साथ दो-चार बंगलों के साथ-साथ आलीशान दो-चार कारें जुटाना एक पटवारी के लिये सपने जैसा काम है किन्तु पटवारी चंद्रशेखर कोरी ने अपनी अवैध कमाई के चलते ऐश-ओ-आराम के सारे संसाधन जुटा रखे हैं।
इनके ऐशो-आराम की जिन्दगी से साफ जाहिर होता है कि इनकी सरकारी तनखाह तो 15-20 हजार है किन्तु पटवारी चंद्रशेखर की अवैध कमाई महीने की 10-20 लाख के आसपास होगी तभी तो छोटी पगार पाने वाला पटवारी ये सारी आराम दायक वस्तुयें रखे हुये हैं। इनकी और ऐसी कई जमीनें हैं जो इनके परिवार के नाम भू-अभिलेखों में दर्ज हैं ताकि इन पर कोई जांच न बैठ पाये। फिर भी टाइम्स ऑंफ क्राइम की टीम द्वारा इनके सारे कारनामों की प्रमाणित तथ्यों के साथ खोज बीन जारी है। ऐसा नहीं है कि पटवारी चंद्रशेखर ने कटनी में ही ऐसे कारनामों को अंजाम दिया है अपितु ये जहां-जहां पदस्थ थे वहां कई जगहों में ऐसे कारनामों को अंजाम दिया है। इस बात अनुमान लगाया जा सकता है कि जब जिले के कलेक्ट्रेट से लगे हुऐ ऐरिया हाऊसिंग बोर्ड कालोनी में कुछ जमीन सरकारी है उस पर यदि कोई अन्य व्यक्ति या फि र कोई पटवारी कब्जा करके आलीशान कोठी तैयार कर लेता है और नजूल विभाग मौन बैठ कर तमाशा देखता रहता है इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि जिले के सक्ष्म अधिकारी न्याय एवं शासकीय सम्पत्ति की सुरक्षा के लिये कितने जिम्मेदार एवं सतर्क हैं!
गौरतलब है कि पटवारी चंद्रशेखर कोरी ने सिर्फ शासन को ही चकमा देकर चूना भर नहीं लगाया बल्कि इनके हल्का नम्बर के बहुतायत ग्रामीण किसानों को इस कदर परेशान कर रखा है जिसके उदाहरण में सक्षम अधिकारी मौका मुआयना करे तो स्पष्ट हो जायेगा कि सीधे-साधे आदिवासी किसानों की जमीनों के नम्बरों में हेर-फेर कर उन्हें शहरी रसूखदारों से लड़वाया जा रहा है और उनकी पुस्तों से चली आ रही जमीनों का या तो नाप-जोख नहीं किया जा रहा या फिर उनकी जमीनों को अन्यत्र बताया जा रहा है। अधिकारियों के पास शिकायतों के बावजूद भी उन दीन-हीन निरीहों की गुहार आज भी कोई सुनने को तैयार नहीं है। इन स्थितियों में यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि सारे जिला प्रशासन पर भारी, एक मात्र चंद्रशेखर पटवारी।
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