बैतूल // रामकिशोर पंवार (बैतूल// टाइम्स ऑफ क्राइम)
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भगवान श्री कृष्ण का खून जब खौल उठा था तो जरासंघ और कंस का वध हुआ था। न चाहते हुए भी महाभारत में हथियार न उठाने की प्रतिज्ञा को तोडऩाा पड़ा था लेकिन बैतूल जिले में स्वंय को श्री कृष्ण का वंशज मानने वाले यादवो (यदुवंशी) का खून उनकी धमनियों में खौलने के बजाय वह पानी होते जा रहा है। कहने को तो वे अपने आप को यदुवंशी कहते है लेकिन यदुवंशियों को खून पानी बनने के पीछे की कहानी भी कुछ कम चौकान्ने वाली नहीं है। ताप्तीचंल में बसे आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में वाले यादवो को अब पता नहीं कौन सी बीमारी लगी गई है कि उनका खून पानी होने लगा है।
उनकी सनसनी खेज रिपोर्ट बैतूल जिले के शासकीय चिकित्सालयों के गलियारे से आई है। चिकित्सकों का मानना है कि बैतूल जिले में रक्त से जुड़ी सिकल सेल एनिमिया बीमारी के मामले बहुत ज्यादा है और यह मामला भी क्षेत्र विशेष तथा वर्ग विशेष में खासतौर पर देखने में आ रहे हैं। खून को पानी बना देने वाली इस बीमारी को काबू में करने के लिए व्यापक सिस्टम की जरूरत है। जिस तरह से बैतूल जिले में इस बीमारी की व्यापकता है उससे स्वास्थ्य विभाग भी खासा चितिंत है इसलिए विभाग को इस बीमारी से लडऩे के लिए खास योजना पर विचार करना पड़ रहा है। बताया गया कि सिकल सेल एनिमिया से लडऩे में गुजरात पैर्टन काफी कारगर है और इसी पर स्वाथ्स्य विभाग इन दिनों काम कर रहा है। जिले में इस बीमारी के लक्षण कुछ जाति विशेष समुदाय में ज्यादा देखने में सामने आ रहे हैं। डॉक्टरों के मुताबिक यह बीमारी यादव एवं आदिवासी समुदाय में ज्यादा है। इसके अलावा कुछ अन्य जातियों में भी इसकी बहुतायत देखने को मिलती है। जिले में इसके ज्यादात संभावित मरीज बैतूल, शाहपुर, घोड़ाडोंगरी, आठनेर और आमला ब्लॉक में पाए गए हैं। सिकल सेल एनिमिया की भयावह स्थिति को देखते हुए गुजरात सरकार द्वारा सिकल सेल एनिमिया कंट्रोल प्रोग्राम प्रारंभ किया है।
उसी पैर्टन पर बैतूल जिले में भी इसकी शुरूआत की जा रही है। जिसके तहत ब्लॉक स्तर पर लैब टेक्निशियनों को स्क्रीनिंग की ट्रेनिंग देना है। ताकि वे इस बीमारी का पता लगाकर लोगों आइडेंटीफाइव किया जा सके। साथ ही आशा कार्यकर्ताओं को भी ट्रेन किया जाएगा ताकि वे सिकल सेल बीमारी के मरीजों और उनके रिश्तेदारों का पता लगा सके। इस बीमारी के लक्षण बच्चों में शुरूआत से ही मिलना शुरू हो जाते हैं। जैसे शरीर में बार-बार खून की कमी होना, जोड़ों मे दर्द होना एवं शरीर में इंफैक्शन होना शामिल है। इस बीमारी के कारण 40 से 50 दिन में शरीर में लाल रक्त कणिकाओं का बनना खत्म हो जाता है जिससे मरीज को ब्लड ट्रांसफ्यूजन करना पड़ता है। यह प्रक्रिया सतत चलती है। जिला चिकित्सालय में रक्तदाता रक्तदान करके चला जाता है इसके बाद उसकी जांच होती है और यदि जांच में एड्स, पीलिया, हैपेटाइटिस आदि संक्रमित बीमारियां भी सामने आती है।
स्वास्थ्य विभाग ऐसे ब्लड को नष्ट कर देता है लेकिन संबंधित रक्तदाता को न तो इसकी सूचना दी जाती है और न ही उसकी काउंसलिंग के लिए कोई व्यवस्था है। बैतूल शहर रक्तदान के मामले में दरियादिल है लेकिन इसके बाद भी जिला चिकित्सालय के ब्लड बैंक में रक्त का टोटा बना रहता है। बताया गया कि फिलहाल ब्लड बैंक में एबी पॉजीटिव का टोटा है। एक यूनिट ब्लड भी रिर्जव में नहीं है। कई बार ग्रामीण इस स्थिति के कारण दलालों के चक्कर में फंस जाते हैं और ठगी का शिकार भी हो जाते हैं। सिकल सेल एनिमिया एक अनुवांशिक रक्त अनियमितता है। जहां रक्त कोशिकाएं अनियमित हिमोग्लोबिन धारण करती है, जो सिकल (हसिया) हिमोग्लोबिन कहलाता है। इसके परिणाम स्वरूप लाल रक्त कणिकाएं जो सामान्यत गोल आकार की होती है हासिया का आकार धारण कर लेती है। सामान्य रक्त कोशिकाएं रक्त वाहिनियों में सरलता से निकल जाती है लेकिन सिकल आकार की रक्त कोशिकाएं रक्त वाहिनियों में फसकर रूकावट पैदा करती है। जिससे शरीर में आरबीसी(लाल रक्त कणिकाएं) नहीं बन पाती है और यही इस बीमारी का कारण है।
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