toc news internet channel
1-सारा राजस्थान जानता है कि अशोक गहलोत के सिर पर सीपी जोशी की तलवार खुद राहुल गॉंधी द्वारा लटकायी गयी। क्योंकि सांसद चुने जाने तक सीपी जोशी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष होकर भी, प्रदेश स्तर के नेता नहीं थे, लेकिन उनको केबीनेट मंत्री बनवाकर राहुल गांधी ने राज्य में सत्ता के दो केंद्र बना दिए। जिसका असर होना ही था। ऐसे में अशोक गहलोत के पास सिवाय बचाव की मुद्रा अपनाने के सीपी जोशी का कोई तोड़ नहीं था। इस कारण अशोक गहलोत ने अपने मंत्रीमंडल में अनुभवहीन, भ्रष्ट, निकम्मे, अधारहीन और ऐसे विधायकों को शामिल किया जो मुख्यमंत्री के लिये राज्य में दूसरी राजनैतिक चुनौती नहीं बन सकें और मुख्यमंत्री सीपी जोशी से राजनैतिक रूप से निपटने के लिये समय निकाल सकें। इसका दुष्परिणाम ये हुआ कि हालांकि गहलोत सीपी जोशी से तो निपट लिए, मुख्यमंत्री पद भी बचा लिया, लेकिन शासन की गुणवत्ता प्रभावित हुई और आधारहीन मंत्री नौकरशाही पर नियंत्रण करने में पूरी तरह से असफल रहे। दुष्परिणामस्वरुप कांग्रेस बुरी तरह से हार गयी।
2-यह सर्वमान्य तथ्य है कि भ्रष्टाचार तो सर्वत्र सदैव से रहा है, लेकिन राजस्थान में नौकरशाही की मनमानियों की शुरुआत वसुन्धरा राजे की पिछली सरकार के समय से हुई और अशोक गहलोत के शासनकाल में हालात चरम पर पहुँच गये। इसका दोनों ही पार्टियों की सरकारों के पतन में योगदान रहा। हकीकत तो ये है कि दोनों के पिछले कार्यकालों में जनता अपने नौकरों (नौकरशाही) के आगे घिघियाने को विवश कर दी गयी। अशोक गहलोत के समय में आम व्यक्ति की कोई सुनने वाला नहीं था। जिसके चलते अशोक गहलोत द्वारा चलाई गयी सारी की सारी लोक-कल्यणकारी योजनाएँ पूरी तरह से विफल हो गयी। यही हाल वसुन्धरा राजे के पिछले शासन काल के दौरान कराये गए विकास कार्यों का रहा। दोनों ही मुख्यमंत्री इस बात को समझने में पूरी तरह से असफल रहे कि "जनता के मानसम्मान के बिना राज्य या देश के विकास का और लोक लुभावन योजनाओं का जनता की नजर में आज के दौर में कोई मूल्य नहीं रह गया है।"
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मैंने अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली पिछली राजस्थान सरकार के करीब दो वर्ष के शासन का आकलन करते हुए और उस समय की भ्रष्ट व निकम्मी अफसरशाही की मनमानियों और निष्क्रियताओं को दर्शाने और राज्य सरकार तथा राज्य की जनता को आईना दिखाने के मकसद से दो लेख लिखे थे। पहला-‘‘बेलगाम नौकरशाही को लूट की छूट!’’ शीर्षक से जो 14 सितम्बर, 2010 को मेरे ब्लॉग प्रेसपालिका पर प्रकाशित हुआ और दूसरा-‘‘नौकरों के आगे विवश मुख्यमन्त्री!’’ शीर्षक से जो 20 अक्तूबर, 2010 को मेरे ब्लॉग प्रेसपालिका पर प्रकाशित हुआ। इसके अलावा भी उक्त दोनों आलेख अंतरजाल पर भी अनेक न्यूज पोर्टल्स पर प्रकाशित हैं। उक्त दोनों आलेखों में मैंने उसी समय साफ-साफ लिख दिया था कि तत्कालीन सत्ताधारी दल (कांग्रेस) का पतन तय है। जो सारे आज देश के सामने है।
मैंने 14 सितम्बर, 2010 को ‘‘बेलगाम नौकरशाही को लूट की छूट!’’ शीर्षक से प्रकाशित पहले आलेख में अनेक कड़वी, किन्तु उस समय की जमीनी सच्चाई लिखी थी, जो तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कॉंग्रेसियों को खूब नागवार गुजरी थी, लेकिन आज वे सभी बातें सच सिद्ध हो चुकी हैं। मेरे उक्त पत्र में वर्णित बातों के आधार पर कॉंग्रेस की हार को समझा जा सकता है :-
1. ‘‘भाजपा की वसुन्धरा राजे सरकार को भ्रष्ट और भू-माफिया से साठगांठ रखने वाली सरकार घोषित करके जनता से विकलांग समर्थन हासिल करने वाली राजस्थान की कॉंग्रेस सरकार में भी इन दिनों भ्रष्टाचार चरम पर है। दो वर्ष से भी कम समय में जनता त्रस्त हो चुकी है। जनता साफ तौर पर कहने लगी है कि राज्य के मुख्यमन्त्री अशोक गहलोत अभी तक अपनी पिछली हार के भय से उबर नहीं हो पाये हैं। पिछली बार सत्ताच्युत होने के बाद अशोक गहलोत पर यह आरोप लगाया गया था कि कर्मचारियों एवं अधिकारियों के विरोध के चलते ही कॉंग्रेस सत्ता से बाहर हुई थी। हार भी इतनी भयावह थी कि दो सौ विधायकों की विधानसभा में 156 में से केवल 56 विधायक ही जीत सके थे।.......इस डर से राजस्थान के वर्तमान मुख्यमन्त्री इतने भयभीत हैं कि राज्य की नौकरशाही के विरुद्ध किसी भी प्रकार की कठोर कार्यवाही नहीं की कर पा रहे हैं।’’
2. सत्ता में आने के बाद कुछ माह तक मुख्यमन्त्री अशोक गहलोत ने अपने निवास पर जनता दरबार लगाकर, जनता की शिकायतें सुनने का प्रयास किया था, जिनका हश्र जानकर कोई भी कह सकता है कि राज्य की नौकरशाही पूरी तरह से निरंकुश एवं सरकार के नियन्त्रण से बाहर हो चुकी है। प्राप्त शिकायतों पर मुख्यमन्त्री के विशेषाधिकारी (आईएएस अफसर) की ओर से कलक्टरों एवं अन्य उच्च अधिकारियों को चिठ्ठी लिखी गयी कि मुख्यमन्त्री चाहते हैं कि जनता की शिकायतों की जॉंच करके सात/दस दिन में अवगत करवाया जावे। इन पत्रों का एक वर्ष तक भी न तो जवाब दिया गया है और न हीं किसी प्रकार की जॉंच की गयी है। इसके विपरीत मुख्यमन्त्री से मिलकर फरियाद करने वाले लोगों को अफसरों द्वारा अपने कार्यालय में बुलाकर धमकाया भी जा रहा है। साफ शब्दों में कहा जाता है कि मुख्यमन्त्री ने क्या कर लिया? मुख्यमन्त्री को राज करना है तो अफसरशाही के खिलाफ बकवास बन्द करनी होगी। ऐसे हालात में राजस्थान की जनता की क्या दशा होगी, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है।’’
3. ‘‘मनरेगा में काम करने वाली गरीब जनता को तीन महिने तक मजदूरी नहीं मिलती है। शिकायत करने पर कोई कार्यवाही नहीं होती है।’’
4. ‘‘सूचना अधिकार के तहत जानकारी मांगने पर जनता को लोक सूचना अधिकारी एवं प्रथम अपील अधिकारी द्वारा सूचना या जानकारी देना तो दूर कोई जवाब तक नहीं दिया जाता है। राज्य सूचना आयुक्त के पास दूसरी अपील पेश करने पर भी ऐसे अफसरों के विरुद्ध किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं होना आश्चर्यजनक है।’’
5. ‘‘पुलिस थानों में खुलकर रिश्वतखोरी एवं मनमानी चल रही है। अपराधियों के होंसले बलुन्द हैं। अपराधियों में किसी प्रकार का भय नहीं है। सरेआम अपराध करके घूमते रहते हैं।’’
6. ‘‘कहने को तो पिछली (भाजपा) सरकार द्वारा खोली गयी शराब की दुकानों में से बहुत सारी बन्द की जा चुकी हैं, लेकिन जितनी बन्द की गयी हैं, उससे कई गुनी बिना लाईसेंस के अफसरों की मेहरबानी से धड़ल्ले से चल रही हैं।’’
7. ‘‘राज्य में मिलावट का कारोबार जोरों पर है। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि राजस्थान से बाहर रहने वाले राजस्थानी शर्मसार होने लगे हैं। मसाले, घी, दूध, आटा, कोल्ड ड्रिंक, तेल, सीमेण्ट सभी में लगातार मिलावटियों के मामले सामने आ रहे हैं। आश्चर्यजनक रूप से मिलावटियों को किसी प्रकार का डर नहीं है। नकली एवं एक्सपायर्ड दवाईयॉं भी खूब बिक रही हैं। मैडीकल व्यवसाय से जुडे़ लोग 80 प्रतिशत तक गैर-कानूनी दवाई व्यवसाय कर रहे हैं।’’
8. ‘‘भाजपा राज में भू-माफिया के खिलाफ बढचढकर आवाज उठाने वाली कॉंग्रेस के वर्तमान नगरीय आवास मन्त्री (शान्ति धारीवाल) ने जयपुर में नया जयपुर बनाकर आगरा रोड एवं दिल्ली रोड पर आम लोगों द्वारा वर्षों की मेहनत की कमाई से खरीदे गये गये भूखण्डों को एवं किसानों को अपनी जमीन को औने-पौने दाम पर बेचने को विवश कर दिया है।’’
9. ‘‘जयपुर विकास प्राधिकरण द्वारा 90 बी (भू-रूपान्तरण) पर तो पाबन्दी लगादी है, लेकिन भू-बेचान जारी रखने के लिये रजिस्ट्रिंयॉं चालू हैं। अवाप्ती की तलवार लटका दी गयी है। जिसका सीधा सा सन्देश है कि सरकार द्वारा द्भषि भूमि को आवासीय भूमि में परिवर्तन नहीं किया जायेगा, लेकिन सस्ती दर पर भू-माफिया को खरीदने की पूरी आजादी है।’’
10. ‘‘केवल इतना ही नहीं, बल्कि आगरा रोड एवं दिल्ली रोड पर प्रस्ताविक नये जयपुर के लिये घोषित क्षेत्र में निर्माण पर भी पाबन्दी लगा दी गयी है और साथ ही यह भी सन्देश प्रचारित कर दिया गया है कि जिस किसी के प्लाट में मकान निर्माण हो चुका है, उसे अवाप्त नहीं किया जायेगा। इसके चलते इस क्षेत्र में हर माह कम से कम 500 नये मकानों की नींव रखी जा रही है। यह तब हो रहा है, जबकि नये मकानों के निर्माण की रोकथाम के लिये विशेष दस्ता नियुक्त किया गया है। यह दस्ता मकान निर्माण तो नहीं रोक पा रहा, लेकिन हर मकान निर्माता पचास हजार से एक लाख रुपये तक जयपुर विकास प्राधिकरण के इन अफसरों को भेट चढाकर आसानी से मकान निर्माण जरूर कर पा रहा है। जो कोई रिश्वत नहीं देता है, उसके मकान को ध्वस्त कर दिया जाता है। क्या राजस्थान के आवासीय मन्त्री (जो राज्य के गृहमन्त्री भी हैं) और मुख्यमन्त्री इतने भोले और मासूम हैं कि उन्हें जयपुर विकास प्राधिकरण के अफसरों के इस गोरखधन्धे की कोई जानकारी ही नहीं है।’’
11. ‘‘सच्चाई तो यह है कि जनता द्वारा हर महिने इस बारे में सैकड़ों शिकायतें मुख्यमन्त्री एवं आवासीय मन्त्री को भेजी जाती हैं, जिन्हें उन्हीं भ्रष्ट अफसरों को जरूरी कार्यवाही के लिये अग्रेषित कर दिया जाता है, जिनके विरुद्ध शिकायत की गयी होती है। जहॉं पर क्या कार्यवाही हो सकती है, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है।’’
12. ‘‘कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि राज्य की नौकरशाही पूरी तरह से बेलगाम हो चुकी है और सरकार का या तो नौकरशाही पर नियन्त्रण नहीं है या पिछली बार कॉंग्रेस एवं अशोक गहलोत से नाराज हो चुकी नौकरशाही को खुश करने के लिये स्वयं सरकार ने ही खुली छूट दे रखी है कि बेशक जितना कमाया जावे, उतना कमा लो, लेकिन मेहरबानी करके नाराज नहीं हों। अब तो ऐसा लगने लगा है कि राज्य सरकार को जनता का खून पीने से कोई फर्क ही नहीं पड़ता।’’
13. ‘‘कुछ लोग तो यहॉं तक कहने लगे हैं कि राहुल गॉंधी का वरदहस्त प्राप्त केन्द्रीय ग्रामीण विकास मन्त्री (जो राजस्थान में कॉंग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं) सीपी जोशी के लगातार दबाव एवं राज्य सरकार के मामलो में दखलांजी के चलते अशोक गहलोत को इस कार्यकाल के बाद मुख्यमन्त्री बनने की कोई उम्मीद नहीं है, इसलिये वे किसी भी तरह से अपना कार्यकाल पूर्ण करना चाहते हैं। अगली बार कॉंग्रेस हारे तो खूब हारे उन्हें क्या फर्क पड़ने वाला है!’’
उक्त लेख प्रकाशित होने और इसके बारे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को व्यक्तिगत रूप से अवगत करवाने के बाद भी स्थिति में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला। इसके कुछ समय बाद मैंने 20 अक्तूबर, 2010 को ‘‘नौकरों के आगे विवश मुख्यमन्त्री!’’ शीर्षक से प्रकाशित दूसरे आलेख में लिखा था कि-
1. ‘‘पिछले दिनों राजस्थान के मुख्यमन्त्री अशोक गहलोत ने राज्य के जिला कलेक्टरों एवं कमिश्नरों की मीटिंग बुलाई और राज्य की शासन व्यवस्था के बारे में जानकारी लेने के साथ-साथ जरूरी दिशा निर्देश भी जारी किये। मुख्यमन्त्री का इरादा राज्य प्रशासन को आम लोगों के प्रति जिम्मेदार एवं संवेदनशील बनाने का था, परन्तु बैठक के दौरान कलेक्टरों की ओर से साफ शब्दों में कहा गया कि जनता का काम हो कैसे, जबकि निचले स्तर के कर्मचारी न तो कार्यालयों में समय पर उपस्थित होते हैं और न हीं जनता का काम करते हैं! इतनी गम्भीर बात पर भी मुख्यमन्त्री की ओर से यह नहीं कहा गया कि ऐसे अनुशासनहीन एवं निकम्मे लोग सरकारी सेवा में क्यों हैं? बल्कि इस गम्भीर मामले पर मुख्यमन्त्री की चुप्पी विरोधियों की इस बात को बल प्रदान करती है कि अभी भी मुख्यमन्त्री के दिलोदिमांग में पिछली हार का भूत जिन्दा है। जिसमें यह प्रचारित किया गया था कि कर्मचारियों की नाराजगी के चलते भी गहलोत सरकार को हार का सामना करना पड़ा था।’’
2. इस आलेख में मैंने आगे लिखा था कि- ‘‘कलेक्टर चाहे और प्रशासन काम नहीं करे, यह कैसे सम्भव है? या तो कलेक्टर, कलेक्टर के पद के योग्य नहीं रहे या फिर कर्मचारियों को कलेक्टरों का भय समाप्त हो गया? दोनों ही स्थितियॉं प्रशासन की भयावह एवं निष्क्रिय स्थिति की ओर संकेत करती हैं। राज्य के मुख्यमन्त्री के समक्ष कलेक्टर और कमिश्नर बेबशी व्यक्त करें, इससे बुरे प्रशासनिक हालात और क्या हो सकते हैं?’’
3. ‘‘राज्य की सत्ता की डोर कॉंग्रेस के अनुभवी माने जाने वाले राजनेता अशोक गहलोत के हाथ में है, जिनके पास वर्तमान में पूर्ण बहुत है। राज्य की जनता ने भाजपा की वसुन्धरा राजे सरकार के भ्रष्टाचार एवं मनमानी से मुक्ति दिलाने के लिये कॉंग्रेस को और अशोक गहलोत को राज्य की कमान सौंपी थी और साथ ही आशा भी की थी कि इस बार अशोक गहलोत प्रशासनिक भ्रष्टाचार एवं मनमानी पर अंकुश लगाने में सफल होंगे। जिससे जनता को सुकून मिलेगा। परन्तु कलेक्टरों की बैठकों में सामने आये राज्य के प्रशासनिक हालातों को देखकर तो यही लगता है कि सत्ता का भय प्रशासन में है ही नहीं। भय नहीं होना भी उतना बुरा भी नहीं है, लेकिन राज्य की सत्ता का सम्मान तो जरूरी है। छोटा सा कर्मचारी भी यह कहता सुना जा सकता है कि मुख्यमन्त्री को सत्ता में रहना है तो कर्मचारियों के खिलाफ बोलने की गलती नहीं करें, अन्यथा परिणाम घातक होंगे।’’
4. ‘‘हम आम लोग अर्थात् सत्ता की चाबी के असली मालिक, जिन्हें सरकारी कर्मचारी एवं अधिकारी कहते हैं, असल में वे सब जनता के नौकर होते हैं, जिन्हें संविधान में लोक सेवक कहा गया है। जनता की गाढी कमाई से संग्रहित राजस्व से वेतन पाते हैं। इन जनता के नौकरों से काम लेने के लिये जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है। जिनकी सरकार के जरिये शासन का संचालन होता है। यदि लोकतन्त्र में भी जनता के नौकर जनता, जन प्रतिनिधि एवं जनता की सरकार को दांत दिखाने लगें तो फिर लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था को बद से बदतर होने से कैसे रोका जा सकता? मुख्यमन्त्री के साथ इस विषय में जनता को भी गम्भीरता पूर्वक सोच विचार करने की जरूरत है। अन्यथा प्रशासनिक मनमानी एवं निकम्मेपन के चलते जनता का शोषण एवं सत्ताधारी दल का पतन तय है।’’
उपरोक्त दोनों आलेखों में जो कुछ मैंने लिखा था, वह आज सारे देश और दुनिया के सामने है। राजस्थान की जनता ने कॉंग्रेस को विधानसभा में 96+6 (बसपा से कांग्रेस में आये)=102 से 21 पर ला दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनकी कॉंग्रेस को और साथ ही साथ भाजपा की वर्तमान मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे को भी अब तो समझ में आ ही जाना चाहिये कि किसी भी दल या पार्टी को जनता ही हराती या जिताती है। जनता ही राज्याभिषेक करती है। नौकरशाही सिर्फ मलाई खाती है! आज यदि हम देखते हैं कि राजस्थान में कॉंग्रेस क्यों हारी तो इसके लिये उपरोक्त बताये गये कारणों के प्रकाश में कॉंग्रसियों को निम्न बातों को समझना होगा :-
1. हकीकत तो यही है कि वसुन्धरा राजे के पिछले कार्यकाल के दौरान अफसरशाही की मनमानियों और भ्रष्टाचार से तंग आकर जनता ने न चाहते हुए भी अनमने मन से कॉंग्रेस को सत्ता की अधूरी (विधानसभा के कुल 200 सदस्यों में से कॉंग्रेस के मात्र 96) बागडोर सौंपी थी। जिसे पूर्ण करने के लिये अशोक गहलोत ने बहुजन समाज पार्टी के सभी विजयी विधायकों का कॉंग्रेस में विलय कर लिया और कुछ निर्दलियों को भी अपने साथ कर लिया। जिसके चलते सभी को मंत्री और संसदीय सचिवों के पदों से नवाजा गया। जिसमें अन्दरखाने हुई डील भी जनता को समझ में आ गयी। परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार तो बढ़ाना ही था!
2. तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा जनता को समझने में की गयी अक्षम्य गलती के चलते राज्य की जनता ने अनपढ गोलमा देवी को मंत्री के रूप में झेला और गोलमा देवी के पति एवं दौसा से विजयी निर्दलीय सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा के धरने-प्रदर्शनों को झेलने को भी जनता को विवश होना पड़ा। जिससे कॉंग्रेस और राज्य सरकार की लगातार बेइज्जति होती रही। तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा गोलमा देवी को मंत्री पद से हटाने में अत्यधिक विलम्ब किया गया।
3. अशोक गहलोत द्वारा वसुन्धरा राजे को भ्रष्ट बताकर सत्ता संभाली, लेकिन जॉंच बिठाकर भी वे कुछ कर नहीं पाये। इससे राज्य की जनता ने अपने आप को छला हुआ अनुभव किया।
4. अशोक गहलोत द्वारा नि:शुल्क दवाई एवं नि:शुल्क जॉंच योजना जैसे क्रान्तिकारी कदम उठाये, लेकिन इसमें पलीता लगाया राज्य की भ्रष्ट नौकरशाही ने! लोगों को जॉंच के लिये दस-दस दिन चक्कर लगाने पडें, दवाई लेने के लिये घंटों लाइन में लगने के बाद भी दवाई अनुपलब्ध बता दी जावे। इससे रोगी घर पर कैसी मनस्थिति लेकर के वापस लौटेगा?
5. राज्य में गुटखा एवं प्लास्टिक की थैली पर पाबंदी लगाई, लेकिन ये पाबंदी कागजी ही साबित हुई! बल्कि इन दोनों निर्णयों से इंस्पेलटरों की कमाई अवश्य बढ़ गयी।
6. यह सर्वमान्य तथ्य है कि भ्रष्टाचार तो सर्वत्र सदैव से रहा है, लेकिन राजस्थान में नौकरशाही की मनमानियों की शुरुआत वसुन्धरा राजे की पिछली सरकार के समय से हुई और अशोक गहलोत के शासनकाल में हालात चरम पर पहुँच गये। इसका दोनों ही पार्टियों की सरकारों के पतन में योगदान रहा। हकीकत तो ये है कि दोनों के पिछले कार्यकालों में जनता अपने नौकरों (नौकरशाही) के आगे घिघियाने को विवश कर दी गयी। अशोक गहलोत के समय में आम व्यक्ति की कोई सुनने वाला नहीं था। जिसके चलते अशोक गहलोत द्वारा चलाई गयी सारी की सारी लोक-कल्यणकारी योजनाएँ पूरी तरह से विफल हो गयी। यही हाल वसुन्धरा राजे के पिछले शासन काल के दौरान कराये गए विकास कार्यों का रहा। दोनों ही मुख्यमंत्री इस बात को समझने में पूरी तरह से असफल रहे कि "जनता के मानसम्मान के बिना राज्य या देश के विकास का और लोक लुभावन योजनाओं का जनता की नजर में आज के दौर में कोई मूल्य नहीं रह गया है।"
7. अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कॉंग्रेस की राज्य सरकार की हार का एक बड़ा कारण राहुल गॉंधी द्वारा राज्य में सीपी जोशी को जरूरत से ज्यादा महत्व दिया जाना भी रहा है और आज भी जारी है । जिसके चलते गहलोत के सिर पर हमेशा मुख्य्मंत्री पद से कभी भी हटाये जाने की तलवारी टंगी रही। इसके चलते जहॉं एक ओर वे नौकरशाही के भय से नहीं उबर पा रहे थे, वहीं दूसरी ओर अपने पद को बचाये रखने में लगातार मशगूल रहे। दुष्परिणामस्वरूप उन्हें सत्ता को संभालने के लिये स्वतन्त्रता पूर्वक काम करने का माकूल अवसर और समय (राजनैतिक आजादी) ही नहीं मिला।
8. सारा राजस्थान जानता है कि अशोक गहलोत के सिर पर सीपी जोशी की तलवार खुद राहुल गॉंधी द्वारा लटकायी गयी। क्योंकि सांसद चुने जाने तक सीपी जोशी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष होकर भी, प्रदेश स्तर के नेता नहीं थे, लेकिन उनको केबीनेट मंत्री बनवाकर राहुल गांधी ने राज्य में सत्ता के दो केंद्र बना दिए। जिसका असर होना ही था। ऐसे में अशोक गहलोत के पास सिवाय बचाव की मुद्रा अपनाने के सीपी जोशी का कोई तोड़ नहीं था। इस कारण अशोक गहलोत ने अपने मंत्रीमंडल में अनुभवहीन, भ्रष्ट, निकम्मे, अधारहीन और ऐसे विधायकों को शामिल किया जो मुख्यमंत्री के लिये राज्य में दूसरी राजनैतिक चुनौती नहीं बन सकें और मुख्यमंत्री सीपी जोशी से राजनैतिक रूप से निपटने के लिये समय निकाल सकें। इसका दुष्परिणाम ये हुआ कि हालांकि गहलोत सीपी जोशी से तो निपट लिए, मुख्यमंत्री पद भी बचा लिया, लेकिन शासन की गुणवत्ता प्रभावित हुई और आधारहीन मंत्री नौकरशाही पर नियंत्रण करने में पूरी तरह से असफल रहे। दुष्परिणामस्वरुप कांग्रेस बुरी तरह से हार गयी।
9. उपरोक्त हालातों में जैसे तैसे राज्य की बागडोर संभाल रहे अशोक गहलोत को कांग्रेस हाई कमान ने चुनाव से पूर्व साफ़ संकेत दे दिया गया कि अगली बार मुख्यमंत्री किसी और को बनाया जायेगा। ये कांग्रेस हाई कमान की सबसे बड़ी भूल थी। इसके चलते गहलोत ने प्रचार-प्रसार भी उसी अंदाज में किया! यही नहीं राज्य की चुनाव अभियान समिती का प्रमुख उस सीपी जोशी को बना दिया जो पिछले कार्यकाल में गहलोत मंत्रीमंडल में एक साधारण सा मंत्री हुआ करता था। केवल इतना ही नहीं इस समिती में गहलोत को सदस्य के रूप में शामिल किया गया! जिसके चलते गहलोत बेशक चुनाव अभियान समिती की बैठकों के दौरान बीमार हो गए, लेकिन सीपी जोशी की अध्यक्षता वाली चुनाव अभियान समिती की बैठकों में शामिल नहीं हुए! उनके लिए कांग्रेस को जिताने से कहीं अधिक अपने आत्म-स्वाभिमान कि रक्षा करना ज्यादा जरूरी हो गया!
10. उपरोक्त के आलावा भी कांग्रेस की हार का एक और अत्यंत महत्वपूर्ण कारण रहा, जिसके चलते पिछले करीब चार साल से सत्ता की बागडोर तो अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी के हाथों में थी, लेकिन टॉप लेबल का प्रशासन भाजपा के लिए काम कर रहा था! इस विषय पर पर सारे तथ्य जुटाने के बाद अलग से फिर कभी सम्भव हुआ तो पूर्ण लेख लिखा जाएगा!
उपरोक्त वजहों से आज अशोक गहलोत और कांग्रेस राजस्थान की सत्ता से बाहर हैं और वसुन्धरा राजे के पास प्रचण्ड बहुमत वाली राज्य की सत्ता है। देखना होगा कि वर्तमान मुख्यमंत्री अपनी खुद की पुरानी गलतियों और अशोक गहलोत की गलतियों से कितना सबक सीख पाती हैं?-19.12.2013
-लेखक :जयपुर से प्रकाशित पाक्षिक समाचार पत्र ‘प्रेसपालिका’ के प्रकाशक एवं सम्पादक हैं। दाम्पत्य सलाहकार और होम्योपैथ चिकित्सक हैं। लेखक को पत्रकारिता व लेखन क्षेत्र में योगदान के लिये अनेक राष्ट्रीय सम्मानों से विभूषित किया जा चुका है। इसके अलावा लेखक 21 राज्यों में सेवारत प्रतिष्ठित संगठन ‘‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)’’ के मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और ‘‘जर्नलिस्ट्स, मीडिया एवं राइटर्स वैलफेयर एशोसिएशन’’ के नेशनल चेयरमैन भी हैं।-09828502666
1-सारा राजस्थान जानता है कि अशोक गहलोत के सिर पर सीपी जोशी की तलवार खुद राहुल गॉंधी द्वारा लटकायी गयी। क्योंकि सांसद चुने जाने तक सीपी जोशी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष होकर भी, प्रदेश स्तर के नेता नहीं थे, लेकिन उनको केबीनेट मंत्री बनवाकर राहुल गांधी ने राज्य में सत्ता के दो केंद्र बना दिए। जिसका असर होना ही था। ऐसे में अशोक गहलोत के पास सिवाय बचाव की मुद्रा अपनाने के सीपी जोशी का कोई तोड़ नहीं था। इस कारण अशोक गहलोत ने अपने मंत्रीमंडल में अनुभवहीन, भ्रष्ट, निकम्मे, अधारहीन और ऐसे विधायकों को शामिल किया जो मुख्यमंत्री के लिये राज्य में दूसरी राजनैतिक चुनौती नहीं बन सकें और मुख्यमंत्री सीपी जोशी से राजनैतिक रूप से निपटने के लिये समय निकाल सकें। इसका दुष्परिणाम ये हुआ कि हालांकि गहलोत सीपी जोशी से तो निपट लिए, मुख्यमंत्री पद भी बचा लिया, लेकिन शासन की गुणवत्ता प्रभावित हुई और आधारहीन मंत्री नौकरशाही पर नियंत्रण करने में पूरी तरह से असफल रहे। दुष्परिणामस्वरुप कांग्रेस बुरी तरह से हार गयी।
2-यह सर्वमान्य तथ्य है कि भ्रष्टाचार तो सर्वत्र सदैव से रहा है, लेकिन राजस्थान में नौकरशाही की मनमानियों की शुरुआत वसुन्धरा राजे की पिछली सरकार के समय से हुई और अशोक गहलोत के शासनकाल में हालात चरम पर पहुँच गये। इसका दोनों ही पार्टियों की सरकारों के पतन में योगदान रहा। हकीकत तो ये है कि दोनों के पिछले कार्यकालों में जनता अपने नौकरों (नौकरशाही) के आगे घिघियाने को विवश कर दी गयी। अशोक गहलोत के समय में आम व्यक्ति की कोई सुनने वाला नहीं था। जिसके चलते अशोक गहलोत द्वारा चलाई गयी सारी की सारी लोक-कल्यणकारी योजनाएँ पूरी तरह से विफल हो गयी। यही हाल वसुन्धरा राजे के पिछले शासन काल के दौरान कराये गए विकास कार्यों का रहा। दोनों ही मुख्यमंत्री इस बात को समझने में पूरी तरह से असफल रहे कि "जनता के मानसम्मान के बिना राज्य या देश के विकास का और लोक लुभावन योजनाओं का जनता की नजर में आज के दौर में कोई मूल्य नहीं रह गया है।"
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मैंने अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली पिछली राजस्थान सरकार के करीब दो वर्ष के शासन का आकलन करते हुए और उस समय की भ्रष्ट व निकम्मी अफसरशाही की मनमानियों और निष्क्रियताओं को दर्शाने और राज्य सरकार तथा राज्य की जनता को आईना दिखाने के मकसद से दो लेख लिखे थे। पहला-‘‘बेलगाम नौकरशाही को लूट की छूट!’’ शीर्षक से जो 14 सितम्बर, 2010 को मेरे ब्लॉग प्रेसपालिका पर प्रकाशित हुआ और दूसरा-‘‘नौकरों के आगे विवश मुख्यमन्त्री!’’ शीर्षक से जो 20 अक्तूबर, 2010 को मेरे ब्लॉग प्रेसपालिका पर प्रकाशित हुआ। इसके अलावा भी उक्त दोनों आलेख अंतरजाल पर भी अनेक न्यूज पोर्टल्स पर प्रकाशित हैं। उक्त दोनों आलेखों में मैंने उसी समय साफ-साफ लिख दिया था कि तत्कालीन सत्ताधारी दल (कांग्रेस) का पतन तय है। जो सारे आज देश के सामने है।
मैंने 14 सितम्बर, 2010 को ‘‘बेलगाम नौकरशाही को लूट की छूट!’’ शीर्षक से प्रकाशित पहले आलेख में अनेक कड़वी, किन्तु उस समय की जमीनी सच्चाई लिखी थी, जो तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कॉंग्रेसियों को खूब नागवार गुजरी थी, लेकिन आज वे सभी बातें सच सिद्ध हो चुकी हैं। मेरे उक्त पत्र में वर्णित बातों के आधार पर कॉंग्रेस की हार को समझा जा सकता है :-
1. ‘‘भाजपा की वसुन्धरा राजे सरकार को भ्रष्ट और भू-माफिया से साठगांठ रखने वाली सरकार घोषित करके जनता से विकलांग समर्थन हासिल करने वाली राजस्थान की कॉंग्रेस सरकार में भी इन दिनों भ्रष्टाचार चरम पर है। दो वर्ष से भी कम समय में जनता त्रस्त हो चुकी है। जनता साफ तौर पर कहने लगी है कि राज्य के मुख्यमन्त्री अशोक गहलोत अभी तक अपनी पिछली हार के भय से उबर नहीं हो पाये हैं। पिछली बार सत्ताच्युत होने के बाद अशोक गहलोत पर यह आरोप लगाया गया था कि कर्मचारियों एवं अधिकारियों के विरोध के चलते ही कॉंग्रेस सत्ता से बाहर हुई थी। हार भी इतनी भयावह थी कि दो सौ विधायकों की विधानसभा में 156 में से केवल 56 विधायक ही जीत सके थे।.......इस डर से राजस्थान के वर्तमान मुख्यमन्त्री इतने भयभीत हैं कि राज्य की नौकरशाही के विरुद्ध किसी भी प्रकार की कठोर कार्यवाही नहीं की कर पा रहे हैं।’’
2. सत्ता में आने के बाद कुछ माह तक मुख्यमन्त्री अशोक गहलोत ने अपने निवास पर जनता दरबार लगाकर, जनता की शिकायतें सुनने का प्रयास किया था, जिनका हश्र जानकर कोई भी कह सकता है कि राज्य की नौकरशाही पूरी तरह से निरंकुश एवं सरकार के नियन्त्रण से बाहर हो चुकी है। प्राप्त शिकायतों पर मुख्यमन्त्री के विशेषाधिकारी (आईएएस अफसर) की ओर से कलक्टरों एवं अन्य उच्च अधिकारियों को चिठ्ठी लिखी गयी कि मुख्यमन्त्री चाहते हैं कि जनता की शिकायतों की जॉंच करके सात/दस दिन में अवगत करवाया जावे। इन पत्रों का एक वर्ष तक भी न तो जवाब दिया गया है और न हीं किसी प्रकार की जॉंच की गयी है। इसके विपरीत मुख्यमन्त्री से मिलकर फरियाद करने वाले लोगों को अफसरों द्वारा अपने कार्यालय में बुलाकर धमकाया भी जा रहा है। साफ शब्दों में कहा जाता है कि मुख्यमन्त्री ने क्या कर लिया? मुख्यमन्त्री को राज करना है तो अफसरशाही के खिलाफ बकवास बन्द करनी होगी। ऐसे हालात में राजस्थान की जनता की क्या दशा होगी, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है।’’
3. ‘‘मनरेगा में काम करने वाली गरीब जनता को तीन महिने तक मजदूरी नहीं मिलती है। शिकायत करने पर कोई कार्यवाही नहीं होती है।’’
4. ‘‘सूचना अधिकार के तहत जानकारी मांगने पर जनता को लोक सूचना अधिकारी एवं प्रथम अपील अधिकारी द्वारा सूचना या जानकारी देना तो दूर कोई जवाब तक नहीं दिया जाता है। राज्य सूचना आयुक्त के पास दूसरी अपील पेश करने पर भी ऐसे अफसरों के विरुद्ध किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं होना आश्चर्यजनक है।’’
5. ‘‘पुलिस थानों में खुलकर रिश्वतखोरी एवं मनमानी चल रही है। अपराधियों के होंसले बलुन्द हैं। अपराधियों में किसी प्रकार का भय नहीं है। सरेआम अपराध करके घूमते रहते हैं।’’
6. ‘‘कहने को तो पिछली (भाजपा) सरकार द्वारा खोली गयी शराब की दुकानों में से बहुत सारी बन्द की जा चुकी हैं, लेकिन जितनी बन्द की गयी हैं, उससे कई गुनी बिना लाईसेंस के अफसरों की मेहरबानी से धड़ल्ले से चल रही हैं।’’
7. ‘‘राज्य में मिलावट का कारोबार जोरों पर है। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि राजस्थान से बाहर रहने वाले राजस्थानी शर्मसार होने लगे हैं। मसाले, घी, दूध, आटा, कोल्ड ड्रिंक, तेल, सीमेण्ट सभी में लगातार मिलावटियों के मामले सामने आ रहे हैं। आश्चर्यजनक रूप से मिलावटियों को किसी प्रकार का डर नहीं है। नकली एवं एक्सपायर्ड दवाईयॉं भी खूब बिक रही हैं। मैडीकल व्यवसाय से जुडे़ लोग 80 प्रतिशत तक गैर-कानूनी दवाई व्यवसाय कर रहे हैं।’’
8. ‘‘भाजपा राज में भू-माफिया के खिलाफ बढचढकर आवाज उठाने वाली कॉंग्रेस के वर्तमान नगरीय आवास मन्त्री (शान्ति धारीवाल) ने जयपुर में नया जयपुर बनाकर आगरा रोड एवं दिल्ली रोड पर आम लोगों द्वारा वर्षों की मेहनत की कमाई से खरीदे गये गये भूखण्डों को एवं किसानों को अपनी जमीन को औने-पौने दाम पर बेचने को विवश कर दिया है।’’
9. ‘‘जयपुर विकास प्राधिकरण द्वारा 90 बी (भू-रूपान्तरण) पर तो पाबन्दी लगादी है, लेकिन भू-बेचान जारी रखने के लिये रजिस्ट्रिंयॉं चालू हैं। अवाप्ती की तलवार लटका दी गयी है। जिसका सीधा सा सन्देश है कि सरकार द्वारा द्भषि भूमि को आवासीय भूमि में परिवर्तन नहीं किया जायेगा, लेकिन सस्ती दर पर भू-माफिया को खरीदने की पूरी आजादी है।’’
10. ‘‘केवल इतना ही नहीं, बल्कि आगरा रोड एवं दिल्ली रोड पर प्रस्ताविक नये जयपुर के लिये घोषित क्षेत्र में निर्माण पर भी पाबन्दी लगा दी गयी है और साथ ही यह भी सन्देश प्रचारित कर दिया गया है कि जिस किसी के प्लाट में मकान निर्माण हो चुका है, उसे अवाप्त नहीं किया जायेगा। इसके चलते इस क्षेत्र में हर माह कम से कम 500 नये मकानों की नींव रखी जा रही है। यह तब हो रहा है, जबकि नये मकानों के निर्माण की रोकथाम के लिये विशेष दस्ता नियुक्त किया गया है। यह दस्ता मकान निर्माण तो नहीं रोक पा रहा, लेकिन हर मकान निर्माता पचास हजार से एक लाख रुपये तक जयपुर विकास प्राधिकरण के इन अफसरों को भेट चढाकर आसानी से मकान निर्माण जरूर कर पा रहा है। जो कोई रिश्वत नहीं देता है, उसके मकान को ध्वस्त कर दिया जाता है। क्या राजस्थान के आवासीय मन्त्री (जो राज्य के गृहमन्त्री भी हैं) और मुख्यमन्त्री इतने भोले और मासूम हैं कि उन्हें जयपुर विकास प्राधिकरण के अफसरों के इस गोरखधन्धे की कोई जानकारी ही नहीं है।’’
11. ‘‘सच्चाई तो यह है कि जनता द्वारा हर महिने इस बारे में सैकड़ों शिकायतें मुख्यमन्त्री एवं आवासीय मन्त्री को भेजी जाती हैं, जिन्हें उन्हीं भ्रष्ट अफसरों को जरूरी कार्यवाही के लिये अग्रेषित कर दिया जाता है, जिनके विरुद्ध शिकायत की गयी होती है। जहॉं पर क्या कार्यवाही हो सकती है, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है।’’
12. ‘‘कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि राज्य की नौकरशाही पूरी तरह से बेलगाम हो चुकी है और सरकार का या तो नौकरशाही पर नियन्त्रण नहीं है या पिछली बार कॉंग्रेस एवं अशोक गहलोत से नाराज हो चुकी नौकरशाही को खुश करने के लिये स्वयं सरकार ने ही खुली छूट दे रखी है कि बेशक जितना कमाया जावे, उतना कमा लो, लेकिन मेहरबानी करके नाराज नहीं हों। अब तो ऐसा लगने लगा है कि राज्य सरकार को जनता का खून पीने से कोई फर्क ही नहीं पड़ता।’’
13. ‘‘कुछ लोग तो यहॉं तक कहने लगे हैं कि राहुल गॉंधी का वरदहस्त प्राप्त केन्द्रीय ग्रामीण विकास मन्त्री (जो राजस्थान में कॉंग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं) सीपी जोशी के लगातार दबाव एवं राज्य सरकार के मामलो में दखलांजी के चलते अशोक गहलोत को इस कार्यकाल के बाद मुख्यमन्त्री बनने की कोई उम्मीद नहीं है, इसलिये वे किसी भी तरह से अपना कार्यकाल पूर्ण करना चाहते हैं। अगली बार कॉंग्रेस हारे तो खूब हारे उन्हें क्या फर्क पड़ने वाला है!’’
उक्त लेख प्रकाशित होने और इसके बारे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को व्यक्तिगत रूप से अवगत करवाने के बाद भी स्थिति में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला। इसके कुछ समय बाद मैंने 20 अक्तूबर, 2010 को ‘‘नौकरों के आगे विवश मुख्यमन्त्री!’’ शीर्षक से प्रकाशित दूसरे आलेख में लिखा था कि-
1. ‘‘पिछले दिनों राजस्थान के मुख्यमन्त्री अशोक गहलोत ने राज्य के जिला कलेक्टरों एवं कमिश्नरों की मीटिंग बुलाई और राज्य की शासन व्यवस्था के बारे में जानकारी लेने के साथ-साथ जरूरी दिशा निर्देश भी जारी किये। मुख्यमन्त्री का इरादा राज्य प्रशासन को आम लोगों के प्रति जिम्मेदार एवं संवेदनशील बनाने का था, परन्तु बैठक के दौरान कलेक्टरों की ओर से साफ शब्दों में कहा गया कि जनता का काम हो कैसे, जबकि निचले स्तर के कर्मचारी न तो कार्यालयों में समय पर उपस्थित होते हैं और न हीं जनता का काम करते हैं! इतनी गम्भीर बात पर भी मुख्यमन्त्री की ओर से यह नहीं कहा गया कि ऐसे अनुशासनहीन एवं निकम्मे लोग सरकारी सेवा में क्यों हैं? बल्कि इस गम्भीर मामले पर मुख्यमन्त्री की चुप्पी विरोधियों की इस बात को बल प्रदान करती है कि अभी भी मुख्यमन्त्री के दिलोदिमांग में पिछली हार का भूत जिन्दा है। जिसमें यह प्रचारित किया गया था कि कर्मचारियों की नाराजगी के चलते भी गहलोत सरकार को हार का सामना करना पड़ा था।’’
2. इस आलेख में मैंने आगे लिखा था कि- ‘‘कलेक्टर चाहे और प्रशासन काम नहीं करे, यह कैसे सम्भव है? या तो कलेक्टर, कलेक्टर के पद के योग्य नहीं रहे या फिर कर्मचारियों को कलेक्टरों का भय समाप्त हो गया? दोनों ही स्थितियॉं प्रशासन की भयावह एवं निष्क्रिय स्थिति की ओर संकेत करती हैं। राज्य के मुख्यमन्त्री के समक्ष कलेक्टर और कमिश्नर बेबशी व्यक्त करें, इससे बुरे प्रशासनिक हालात और क्या हो सकते हैं?’’
3. ‘‘राज्य की सत्ता की डोर कॉंग्रेस के अनुभवी माने जाने वाले राजनेता अशोक गहलोत के हाथ में है, जिनके पास वर्तमान में पूर्ण बहुत है। राज्य की जनता ने भाजपा की वसुन्धरा राजे सरकार के भ्रष्टाचार एवं मनमानी से मुक्ति दिलाने के लिये कॉंग्रेस को और अशोक गहलोत को राज्य की कमान सौंपी थी और साथ ही आशा भी की थी कि इस बार अशोक गहलोत प्रशासनिक भ्रष्टाचार एवं मनमानी पर अंकुश लगाने में सफल होंगे। जिससे जनता को सुकून मिलेगा। परन्तु कलेक्टरों की बैठकों में सामने आये राज्य के प्रशासनिक हालातों को देखकर तो यही लगता है कि सत्ता का भय प्रशासन में है ही नहीं। भय नहीं होना भी उतना बुरा भी नहीं है, लेकिन राज्य की सत्ता का सम्मान तो जरूरी है। छोटा सा कर्मचारी भी यह कहता सुना जा सकता है कि मुख्यमन्त्री को सत्ता में रहना है तो कर्मचारियों के खिलाफ बोलने की गलती नहीं करें, अन्यथा परिणाम घातक होंगे।’’
4. ‘‘हम आम लोग अर्थात् सत्ता की चाबी के असली मालिक, जिन्हें सरकारी कर्मचारी एवं अधिकारी कहते हैं, असल में वे सब जनता के नौकर होते हैं, जिन्हें संविधान में लोक सेवक कहा गया है। जनता की गाढी कमाई से संग्रहित राजस्व से वेतन पाते हैं। इन जनता के नौकरों से काम लेने के लिये जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है। जिनकी सरकार के जरिये शासन का संचालन होता है। यदि लोकतन्त्र में भी जनता के नौकर जनता, जन प्रतिनिधि एवं जनता की सरकार को दांत दिखाने लगें तो फिर लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था को बद से बदतर होने से कैसे रोका जा सकता? मुख्यमन्त्री के साथ इस विषय में जनता को भी गम्भीरता पूर्वक सोच विचार करने की जरूरत है। अन्यथा प्रशासनिक मनमानी एवं निकम्मेपन के चलते जनता का शोषण एवं सत्ताधारी दल का पतन तय है।’’
उपरोक्त दोनों आलेखों में जो कुछ मैंने लिखा था, वह आज सारे देश और दुनिया के सामने है। राजस्थान की जनता ने कॉंग्रेस को विधानसभा में 96+6 (बसपा से कांग्रेस में आये)=102 से 21 पर ला दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनकी कॉंग्रेस को और साथ ही साथ भाजपा की वर्तमान मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे को भी अब तो समझ में आ ही जाना चाहिये कि किसी भी दल या पार्टी को जनता ही हराती या जिताती है। जनता ही राज्याभिषेक करती है। नौकरशाही सिर्फ मलाई खाती है! आज यदि हम देखते हैं कि राजस्थान में कॉंग्रेस क्यों हारी तो इसके लिये उपरोक्त बताये गये कारणों के प्रकाश में कॉंग्रसियों को निम्न बातों को समझना होगा :-
1. हकीकत तो यही है कि वसुन्धरा राजे के पिछले कार्यकाल के दौरान अफसरशाही की मनमानियों और भ्रष्टाचार से तंग आकर जनता ने न चाहते हुए भी अनमने मन से कॉंग्रेस को सत्ता की अधूरी (विधानसभा के कुल 200 सदस्यों में से कॉंग्रेस के मात्र 96) बागडोर सौंपी थी। जिसे पूर्ण करने के लिये अशोक गहलोत ने बहुजन समाज पार्टी के सभी विजयी विधायकों का कॉंग्रेस में विलय कर लिया और कुछ निर्दलियों को भी अपने साथ कर लिया। जिसके चलते सभी को मंत्री और संसदीय सचिवों के पदों से नवाजा गया। जिसमें अन्दरखाने हुई डील भी जनता को समझ में आ गयी। परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार तो बढ़ाना ही था!
2. तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा जनता को समझने में की गयी अक्षम्य गलती के चलते राज्य की जनता ने अनपढ गोलमा देवी को मंत्री के रूप में झेला और गोलमा देवी के पति एवं दौसा से विजयी निर्दलीय सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा के धरने-प्रदर्शनों को झेलने को भी जनता को विवश होना पड़ा। जिससे कॉंग्रेस और राज्य सरकार की लगातार बेइज्जति होती रही। तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा गोलमा देवी को मंत्री पद से हटाने में अत्यधिक विलम्ब किया गया।
3. अशोक गहलोत द्वारा वसुन्धरा राजे को भ्रष्ट बताकर सत्ता संभाली, लेकिन जॉंच बिठाकर भी वे कुछ कर नहीं पाये। इससे राज्य की जनता ने अपने आप को छला हुआ अनुभव किया।
4. अशोक गहलोत द्वारा नि:शुल्क दवाई एवं नि:शुल्क जॉंच योजना जैसे क्रान्तिकारी कदम उठाये, लेकिन इसमें पलीता लगाया राज्य की भ्रष्ट नौकरशाही ने! लोगों को जॉंच के लिये दस-दस दिन चक्कर लगाने पडें, दवाई लेने के लिये घंटों लाइन में लगने के बाद भी दवाई अनुपलब्ध बता दी जावे। इससे रोगी घर पर कैसी मनस्थिति लेकर के वापस लौटेगा?
5. राज्य में गुटखा एवं प्लास्टिक की थैली पर पाबंदी लगाई, लेकिन ये पाबंदी कागजी ही साबित हुई! बल्कि इन दोनों निर्णयों से इंस्पेलटरों की कमाई अवश्य बढ़ गयी।
6. यह सर्वमान्य तथ्य है कि भ्रष्टाचार तो सर्वत्र सदैव से रहा है, लेकिन राजस्थान में नौकरशाही की मनमानियों की शुरुआत वसुन्धरा राजे की पिछली सरकार के समय से हुई और अशोक गहलोत के शासनकाल में हालात चरम पर पहुँच गये। इसका दोनों ही पार्टियों की सरकारों के पतन में योगदान रहा। हकीकत तो ये है कि दोनों के पिछले कार्यकालों में जनता अपने नौकरों (नौकरशाही) के आगे घिघियाने को विवश कर दी गयी। अशोक गहलोत के समय में आम व्यक्ति की कोई सुनने वाला नहीं था। जिसके चलते अशोक गहलोत द्वारा चलाई गयी सारी की सारी लोक-कल्यणकारी योजनाएँ पूरी तरह से विफल हो गयी। यही हाल वसुन्धरा राजे के पिछले शासन काल के दौरान कराये गए विकास कार्यों का रहा। दोनों ही मुख्यमंत्री इस बात को समझने में पूरी तरह से असफल रहे कि "जनता के मानसम्मान के बिना राज्य या देश के विकास का और लोक लुभावन योजनाओं का जनता की नजर में आज के दौर में कोई मूल्य नहीं रह गया है।"
7. अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कॉंग्रेस की राज्य सरकार की हार का एक बड़ा कारण राहुल गॉंधी द्वारा राज्य में सीपी जोशी को जरूरत से ज्यादा महत्व दिया जाना भी रहा है और आज भी जारी है । जिसके चलते गहलोत के सिर पर हमेशा मुख्य्मंत्री पद से कभी भी हटाये जाने की तलवारी टंगी रही। इसके चलते जहॉं एक ओर वे नौकरशाही के भय से नहीं उबर पा रहे थे, वहीं दूसरी ओर अपने पद को बचाये रखने में लगातार मशगूल रहे। दुष्परिणामस्वरूप उन्हें सत्ता को संभालने के लिये स्वतन्त्रता पूर्वक काम करने का माकूल अवसर और समय (राजनैतिक आजादी) ही नहीं मिला।
8. सारा राजस्थान जानता है कि अशोक गहलोत के सिर पर सीपी जोशी की तलवार खुद राहुल गॉंधी द्वारा लटकायी गयी। क्योंकि सांसद चुने जाने तक सीपी जोशी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष होकर भी, प्रदेश स्तर के नेता नहीं थे, लेकिन उनको केबीनेट मंत्री बनवाकर राहुल गांधी ने राज्य में सत्ता के दो केंद्र बना दिए। जिसका असर होना ही था। ऐसे में अशोक गहलोत के पास सिवाय बचाव की मुद्रा अपनाने के सीपी जोशी का कोई तोड़ नहीं था। इस कारण अशोक गहलोत ने अपने मंत्रीमंडल में अनुभवहीन, भ्रष्ट, निकम्मे, अधारहीन और ऐसे विधायकों को शामिल किया जो मुख्यमंत्री के लिये राज्य में दूसरी राजनैतिक चुनौती नहीं बन सकें और मुख्यमंत्री सीपी जोशी से राजनैतिक रूप से निपटने के लिये समय निकाल सकें। इसका दुष्परिणाम ये हुआ कि हालांकि गहलोत सीपी जोशी से तो निपट लिए, मुख्यमंत्री पद भी बचा लिया, लेकिन शासन की गुणवत्ता प्रभावित हुई और आधारहीन मंत्री नौकरशाही पर नियंत्रण करने में पूरी तरह से असफल रहे। दुष्परिणामस्वरुप कांग्रेस बुरी तरह से हार गयी।
9. उपरोक्त हालातों में जैसे तैसे राज्य की बागडोर संभाल रहे अशोक गहलोत को कांग्रेस हाई कमान ने चुनाव से पूर्व साफ़ संकेत दे दिया गया कि अगली बार मुख्यमंत्री किसी और को बनाया जायेगा। ये कांग्रेस हाई कमान की सबसे बड़ी भूल थी। इसके चलते गहलोत ने प्रचार-प्रसार भी उसी अंदाज में किया! यही नहीं राज्य की चुनाव अभियान समिती का प्रमुख उस सीपी जोशी को बना दिया जो पिछले कार्यकाल में गहलोत मंत्रीमंडल में एक साधारण सा मंत्री हुआ करता था। केवल इतना ही नहीं इस समिती में गहलोत को सदस्य के रूप में शामिल किया गया! जिसके चलते गहलोत बेशक चुनाव अभियान समिती की बैठकों के दौरान बीमार हो गए, लेकिन सीपी जोशी की अध्यक्षता वाली चुनाव अभियान समिती की बैठकों में शामिल नहीं हुए! उनके लिए कांग्रेस को जिताने से कहीं अधिक अपने आत्म-स्वाभिमान कि रक्षा करना ज्यादा जरूरी हो गया!
10. उपरोक्त के आलावा भी कांग्रेस की हार का एक और अत्यंत महत्वपूर्ण कारण रहा, जिसके चलते पिछले करीब चार साल से सत्ता की बागडोर तो अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी के हाथों में थी, लेकिन टॉप लेबल का प्रशासन भाजपा के लिए काम कर रहा था! इस विषय पर पर सारे तथ्य जुटाने के बाद अलग से फिर कभी सम्भव हुआ तो पूर्ण लेख लिखा जाएगा!
उपरोक्त वजहों से आज अशोक गहलोत और कांग्रेस राजस्थान की सत्ता से बाहर हैं और वसुन्धरा राजे के पास प्रचण्ड बहुमत वाली राज्य की सत्ता है। देखना होगा कि वर्तमान मुख्यमंत्री अपनी खुद की पुरानी गलतियों और अशोक गहलोत की गलतियों से कितना सबक सीख पाती हैं?-19.12.2013
-लेखक :जयपुर से प्रकाशित पाक्षिक समाचार पत्र ‘प्रेसपालिका’ के प्रकाशक एवं सम्पादक हैं। दाम्पत्य सलाहकार और होम्योपैथ चिकित्सक हैं। लेखक को पत्रकारिता व लेखन क्षेत्र में योगदान के लिये अनेक राष्ट्रीय सम्मानों से विभूषित किया जा चुका है। इसके अलावा लेखक 21 राज्यों में सेवारत प्रतिष्ठित संगठन ‘‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)’’ के मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और ‘‘जर्नलिस्ट्स, मीडिया एवं राइटर्स वैलफेयर एशोसिएशन’’ के नेशनल चेयरमैन भी हैं।-09828502666
No comments:
Post a Comment