कानून और न्याय के सवालो की जद में पुलिस थाना
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बैतूल। हमारी अदालते भारत के राष्ट्रपति, सुप्रिम कोर्ट जज, और लोक सभा अध्यक्ष के खिलाफ जमानती वारंट जारी कर अपराधिक लापरवाही का इतिहास रच चुकी हैं। इस बार न्यायालय ने मृतक महिला के खिलाफ पुलिस का आरोप पत्र स्वीकार करते हुए बिना न्यायिक विवेक का प्रयोग किए, कानून की प्रक्रिया का यंत्रवत् संचालन करते हुए आरोपीगण को न्यायालय के समक्ष पेशी तारीख पर उपस्थित होकर जमानत प्रस्तुत करने के आदेश प्रसारित करने का एक मामला प्रकाश में आया हैं। कानूृन और न्याय के जानकारो के बीच अब यह सवाल उठ गया हैं कि क्या किसी लोक सेवक को गलत जानकारी देकर किसी मृतक के विरूद्ध न्यायालय की कार्यवाही करवाई जा सकती हैं? क्या न्यायालय पुलिस दस्तावेजो को यंत्रवत् स्वीकार कर आदेश प्रसारित कर न्यायोचित कार्य करती हैं? आम आदमी का सवाल तो यह हैं कि न्यायालय को गुमराह करके न्यायिक आदेश का मजाक बनाने वाले पुलिस अधिकारी की वैधानिक जिम्मेदारी क्या तय की जायेगी?
क्या हैं मामला
पुलिस थाना बोरदेही के अंतर्गत ग्राम छिपन्या पिपरिया के रामचरण पिता झनकु के शिकायत आवेदन पत्र पर पुलिस ने जांच करते हुए और शिकायत को सही पाकर शंकर, चैतीबाई, सरस्वतीबाई और कांशीबाई के विरूद्ध दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 107,116 का अभियोग पत्र राजस्व न्यायालय कार्यपालिक दण्डाधिकारी, आमला के समक्ष प्रस्तुत कर दिया गया। दण्डाधिकारी दिनेश सावले द्वारा परिशांति भंग करने का अभियोग पत्र स्वीकार करते हुए दण्डिक प्रकरण क्रमांक 411/13 में दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 111 के तहत 6 माह की अवधि तक परिशंति कायम रखने के लिए का आरोपीगण को पेशी तारीख 14 जनवरी को उपस्थित होकर प्रत्येक को 5 हजार रूपए का बंध पत्र दाखिल करने के आदेश जारी किए गए हैं।
मृतक के विरूद्ध आदेश
कार्यपालिक दण्डाधिकारी द्वारा आदेश भले ही कानून के प्रावधानो के अनुसार हो लेकिन वह मानवाधिकारो के सवालो की जद में आ गया हैं। आरोपीगण के विरूद्ध जारी आदेश में एक महिला कांशीबाई मृत हैं। परिजन शंकर मोहबे बताते हैं कि बहन कांशीबाई की वृद्धावस्था के कारण 2004 में शोभापुर कालोनी, पाथाखेड़ा में मृत्यु हो चुकी थी। बहन चैतीबाई वृद्धावस्था के कारण मरणासन्न अवस्था में हैं जिनका मुकाम छिन्दवाड़ा जिले में हैं तो दूसरी बहन सरस्वीबाई अपने ससुराल में ग्राम खेड़लीबाजार की रहने वाली हैं। दण्डाधिकारी द्वारा जारी आदेश में तीनो बहनो का पता ग्राम छिपन्या पिपरिया का बताया गया हैं। न्यायालय के सक्षम पेशी दिनांक को मृतक कांशीबाई उपस्थित नहीं हो सकती हैं तो दूसरी अन्य बहने अति वृद्ध होने से चलने फिरने में असमर्थ हैं। न्यायालय के आदेश का पालन कर पाना तीनो के लिए कठिन हैं।
पुलिस जांच पर सवाल
पुलिस थाना बोरदेही विधि, न्याय और मानवाधिकारो के सवालो की जद में हैं। पुलिस ने रामचरण मोहबे के शिकायत आवेदन पर जांच की हैं और अपराधिक घटना को सत्य पाकर अभियोग पत्र न्यायालय में पेश कर चुकी हैं जिसे न्यायालय द्वारा पंजीबद्ध कर आदेश जारी कर दिया गया हैं। पुलिस ने जांच के दौरान गवाहो के ब्यान दर्ज करती हैं, घटना स्थल का नक्षा बनाती हैं और फिर अंतिम जांच प्रतिवेदन पर अपनी राय लिखकर न्यायालय में अभियोग पत्र दाखिल करती हैं। इस मामले में पुलिस ने थाने में बैठे बैठे ही अपनी कागजी कार्यवाही को पूरा करना मालूम पड़ता हैं। आरोपीगण से घटना की सत्यता को लेकर कोई पूछताछ नहीं की गई हैं जिसके चलते न्यायालय को गुमराह करने का अपराधिक कृत्य पुलिस कर चुकी हैं।
क्या हो सकता हैं
अपराध विधि के जानकार भारत सेन अधिवक्ता बताते हैं कि किसी लोक सेवक को झूठी रिपोर्ट कर उसकी कानून की शक्ति का दुरूपयोग करना अपराध हैं। इसलिए दण्डाधिकारी को न्यायालय अवमानना कानून के तहत पुलिस के विरूद्ध कार्यवाही करना चाहिए। पुलिस को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 182, 211 की कार्यवाही कर रामचरण के विरूद्ध प्रकरण न्यायालय में प्रस्तुत करना चाहिए और मप्र शासन की ओर आरोपीगण के विरूद्ध विचाराधीन मामले को वापस उठाने की कार्यवाही प्रारंभ करना चाहिए। किसी नागरिक को कानून की शक्ति का दुरूपयोग कर न्यायालय की कार्यवाही का सामना करने के लिए मजबूर करना कानून की आड़ में अत्याचार हैं, न्याय के नाम पर सबसे बड़ा अन्याय हैं और मानवाधिकारो का हनन हैं। दण्डाधिकारी के समक्ष अब मानवाधिकारों की रक्षा का सवाल हैं। सुप्रिम कोर्ट कहती हैं कि न्याय होना ही नहीं न्याय होता दिखना भी चाहिए। नोट: न्यायालय का कैरिकेचर लगाए
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