मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ के अध्यक्ष शलभ भदौरिया के खिलाफ चालान पेश, हुई जमानत
भोपाल. डाक शुल्क में छूट पाने के लिए एक पत्रिका का रजिस्ट्रेशन नंबर इस्तेमाल करके शासन को करीब दो लाख रुपए का नुकसान पहुंचाने के मामले में आर्थिक अपराध ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) ने अदालत में चालान पेश कर दिया है। करीब बीस साल पहले शलभ भदौरिया और विष्णु विद्रोही ने श्रमजीवी पत्रकार समाचार पत्र का डाक पंजीयन कराया था। इस दौरान डाक शुल्क में छूट पाने के लिए उन्होंने एक पत्रिका का रजिस्ट्रेशन नंबर का इस्तेमाल किया था। इस संबंध में शिकायत होने पर आर्थिक अपराध ब्यूरो ने जांच के बाद प्रकरण दर्ज किया था। जांच में स्पष्ट हुआ था कि गलत रजिस्ट्रेशन नंबर का इस्तेमाल कर करीब दो लाख रुपए की डाक शुल्क में छूट लेकर शासन को नुकसान पहुंचाया गया। शलभ ने चालान पेश होने के बाद पहले अग्रिम जमानत कराई और अब नियमित जमानत पर है।
भादवि 120 बी, 420,467,468,471
जानकारी के अनुसार राज्य आर्थिक अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू)भोपाल में प्रकरण क्रमांक 05/06 पंजीयन दिनांक 23.2.06 को हुआ। प्रकरण का घटना स्थल पत्रकार भवन है। प्रकरण में फरियादी गुलाबसिंह राजपूत थाना प्रभारी रा.आ.अप. अन्वेषण ब्यूरो भोपाल है जिसमें संदेही/आरोपी शलभ भदौरिया एवं विष्णु वर्मा विद्रोही है जिसकी विवेचना 30.10.2007 को पूर्ण कर पुलिस अधीक्षक सुधीर लाड़ ब्यूरो इकाई भोपाल ने की। ब्यूरो में पंजीबद्ध प्रकरण में श्रमजीवी पत्रकार मासिक पत्र का आर.एन.आई. प्रमाण पत्र क्र. 3276/72 दिनांक 12.8.72 दिया वह स्पूतनिक तेलगू पाक्षिक राजमून्दरी आंध्र प्रदेश का पाया गया।
उक्त फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर शलभ भदौरिया एवं स्व. विष्णु वर्मा विद्रोही ने डाक पंजीयन कराकर जनवरी 2003 से अगस्त 2003 तक 34.755 रु. का अवैध रूप से आर्थिक लाभ लिया। बुक पोस्ट की दरों में वृद्धि के कारण राशि 1,40625 हुई। अत: प्रथम दृष्टा अंतर्गत धारा 120बी, 420, 467, 468, 471 भादवि का दण्डनीय पाये जाने से प्रकरण पंजीबद्ध किया। पत्र के संबंद्ध में विष्णु वर्मा ने जानकारी दी कि श्रमजीवी पत्रकार की 4500 प्रतियां प्रतिमाह सदस्यों को भेजी जाती है। झूठे प्रमाण पत्र के आधार पर आरोपी शलभ भदौरिया एवं विष्णु वर्मा द्वारा सांठगांठ कर कूट रचना की। जप्त दस्तावेजों एवं शलभ भदौरिया एवं विष्णु वर्मा के द्वारा दिये दस्तावेज एवं मौखिक साक्ष्य के आधार पर आरोप पूर्ण रूप से सत्य पाये।
जनसम्पर्क विभाग की सक्रियता एवं नियमों का पालन करने के कारण विभाग ने समस्त समाचार पत्र पत्रिकाओं मासिक एवं साप्ताहिक को विज्ञापन नीति के परिपालन के लिये आर.एन.आई. प्रमाण पत्र मांगे तब श्रमजीवी पत्रकार मासिक पत्र के प्रमाण पत्र की प्रति विष्णु वर्मा द्वारा दी गई। 15.5.2002 को जांच में पाया गया कि वर्ष 1999 से 2003 तक श्रमजीवी पत्रकार समाचार पत्र के प्रधान संपादक शलभ भदौरिया थे तथा इनके द्वारा कार्यालय कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी भोपाल, प्रवर अधीक्षक डाक घर भोपाल में भी शलभ भदौरिया द्वारा हस्ताक्षरित दस्तावेज प्रस्तुत किये। फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर आर्थिक लाभ प्राप्त कर भारत शासन के साथ धोखाधड़ी कर शासन को कुल 1,74970 रुपये की आर्थिक क्षति पहुँचाई।
शलभ भदौरिया ने बनाया फर्जी आरएनआई प्रमाण पत्र
राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यरो में म.प्र. श्रमजीवी पत्रकार संघ के अध्यक्ष शलभ भदौरिया पर 120बी, 420, 467, 468, 471 भादवि धाराओं में मामला क्यों है?
क्या किया जिससे मामला दर्ज है?
प्रस्तुत है ‘श्रमजीवी पत्रकार’ मासिक पत्र का आरएनआई प्रमाण पत्र जिसे देखने से लगता है कि यह ओरिजनल है परन्तु यह फर्जी बनाया गया है। समाचार पत्र के प्रकाशक का नाम है अध्यक्ष, म.प्र. श्रमजीवी पत्रकार संघ। यह बताना चाहता हूँ कि ‘श्रमजीवी पत्रकार’ मासिक पत्र का जो आर.एन.आई. नम्बर है उसका क्रमांक-3276/72 है यानि समाचार पत्र 1972 से प्रकाशित हो रहा है। यह प्रमाण पत्र ‘स्पूतनिक’ समाचार पत्र का है जो राजमुंदरी से प्रकाशित होता है। आर.एन.आई. प्रमाण पत्र फर्जी है यह सिद्ध हो चुका है जाँच में। इस फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर क्या-क्या लाभ लिये वह भी उजागर होगी।
एम.पी.श्रमजीवी पत्रकार संघ (एस) के नाम लिये लाखों के विज्ञापन एवं चैक
धोखाधड़ी जालसाजी करने के कारण शलभ भदौरिया पर शिकायत के आधार पर पुख्ता जाँच के बाद राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो में वर्ष 2006 में प्रकरण दर्ज हुआ। मामले की शिकायत वर्ष 2003 में हुई। जाँच रिपोर्ट पुलिस अधीक्षक राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो भोपाल ने वर्ष 2007 में महानिदेशक राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो भोपाल को दे दी। जिसका चालान पेश हुआ। मामले की शिकायत राधावल्लभ शारदा ने की थी।
जब 2003 में फर्जी दस्तावेज की शिकायत हुई तब एक नई चाल चली और जनसम्पर्क विभाग से स्मारिका के नाम पर शलभ भदौरिया ने एक वर्ष में कई बार विज्ञापन लिये और उनका भुगतान भी चैक से प्राप्त किया। जिसकी राशि लगभग रुपये चार लाख है। यह घटना वर्ष 2003 की है।
सूचना के अधिकार से प्राप्त जानकारी के अनुसार एम.पी. श्रमजीवी पत्रकार संघ (एस) के नाम पर चैक लगभग रुपये चार लाख के प्राप्त किये। कोड बी117 के तहत विज्ञापन मिले। जानकारी विभाग से ली जा सकती है। एम.पी. श्रमजीवी पत्रकार संघ (एस) के नाम मिले चैक किस बैंक में किस नाम से जमा किये गये, जबकि एम.पी. श्रमजीवी पत्रकार संघ (एस) नाम की कोई भी संस्था मध्यप्रदेश में नहीं है, इस नाम पर 3 लाख के विज्ञापन प्राप्त किये।
शलभ भदौरिया ने श्रम न्यायालय को धोखा दिया
मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ के सदस्यों ने संघ का विधान देखा नहीं होगा और देखा भी होगा तो मूल विधान नहीं। संघ का पंजीयन क्रमांक 4500 है जो वर्ष 1992 दिसंबर की तीन तारीख को किया गया। इस समय नाम मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ भोपाल था। नीयत में खोट आती है तो व्यक्ति गलत या फर्जी काम करता है। संघ के अध्यक्ष शलभ भदौरिया ने पत्रकार भवन पर कब्जा करने के लिए संघ के विधान में संशोधन किया। यह संशोधन किया 27 अगस्त 1998 को। इस संशोधन में संघ के नाम को अंग्रेजी में एम.पी.वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन भी संबोधित किया जायेगा। परन्तु दुर्भाग्य शलभ का कि रजिस्ट्रार व्यावसायिक संघ ने उसे अमान्य कर दिया। मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ के संशोधित विधान की सत्यापित प्रति वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के कार्यालय में उपलब्ध है। वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के पंजीयन से घबराकर शलभ भदौरिया ने एक वाद औद्योगिक न्यायालय खण्डपीठ भोपाल के माननीय न्यायाधीश श्री जे.एस. सेंगर के समक्ष विपक्ष अधिवक्ता श्री शरद शुक्ला के द्वारा प्रस्तुत किया जिसमें वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के पंजीयन को निरस्त करने का अनुरोध किया। माननीय न्यायालय के न्यायाधीश ने पहली ही सुनवाई में उक्त अपील को प्रचलन योग्य न होने के कारण निरस्त कर दी। माननीय न्यायालय के आदेश क्रमांक-1230 दिनांक 19 अगस्त 2008 जब वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन को प्राप्त हुआ और उसे पढ़ा, देखा तब ऐसा लगा कि शलभ भदौरिया ने अपने अधिवक्ता को अंधेरे में रखकर फंसाना चाहते थे क्योंकि जो आदेश की प्रति प्राप्त हुई है उसमें मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ लिखा है। श्रम न्यायालय का आदेश पत्रकारों, अधिकारियों के अवलोकनार्थ हमारे पास है।
भोपाल. डाक शुल्क में छूट पाने के लिए एक पत्रिका का रजिस्ट्रेशन नंबर इस्तेमाल करके शासन को करीब दो लाख रुपए का नुकसान पहुंचाने के मामले में आर्थिक अपराध ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) ने अदालत में चालान पेश कर दिया है। करीब बीस साल पहले शलभ भदौरिया और विष्णु विद्रोही ने श्रमजीवी पत्रकार समाचार पत्र का डाक पंजीयन कराया था। इस दौरान डाक शुल्क में छूट पाने के लिए उन्होंने एक पत्रिका का रजिस्ट्रेशन नंबर का इस्तेमाल किया था। इस संबंध में शिकायत होने पर आर्थिक अपराध ब्यूरो ने जांच के बाद प्रकरण दर्ज किया था। जांच में स्पष्ट हुआ था कि गलत रजिस्ट्रेशन नंबर का इस्तेमाल कर करीब दो लाख रुपए की डाक शुल्क में छूट लेकर शासन को नुकसान पहुंचाया गया। शलभ ने चालान पेश होने के बाद पहले अग्रिम जमानत कराई और अब नियमित जमानत पर है।
भादवि 120 बी, 420,467,468,471
जानकारी के अनुसार राज्य आर्थिक अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू)भोपाल में प्रकरण क्रमांक 05/06 पंजीयन दिनांक 23.2.06 को हुआ। प्रकरण का घटना स्थल पत्रकार भवन है। प्रकरण में फरियादी गुलाबसिंह राजपूत थाना प्रभारी रा.आ.अप. अन्वेषण ब्यूरो भोपाल है जिसमें संदेही/आरोपी शलभ भदौरिया एवं विष्णु वर्मा विद्रोही है जिसकी विवेचना 30.10.2007 को पूर्ण कर पुलिस अधीक्षक सुधीर लाड़ ब्यूरो इकाई भोपाल ने की। ब्यूरो में पंजीबद्ध प्रकरण में श्रमजीवी पत्रकार मासिक पत्र का आर.एन.आई. प्रमाण पत्र क्र. 3276/72 दिनांक 12.8.72 दिया वह स्पूतनिक तेलगू पाक्षिक राजमून्दरी आंध्र प्रदेश का पाया गया।
उक्त फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर शलभ भदौरिया एवं स्व. विष्णु वर्मा विद्रोही ने डाक पंजीयन कराकर जनवरी 2003 से अगस्त 2003 तक 34.755 रु. का अवैध रूप से आर्थिक लाभ लिया। बुक पोस्ट की दरों में वृद्धि के कारण राशि 1,40625 हुई। अत: प्रथम दृष्टा अंतर्गत धारा 120बी, 420, 467, 468, 471 भादवि का दण्डनीय पाये जाने से प्रकरण पंजीबद्ध किया। पत्र के संबंद्ध में विष्णु वर्मा ने जानकारी दी कि श्रमजीवी पत्रकार की 4500 प्रतियां प्रतिमाह सदस्यों को भेजी जाती है। झूठे प्रमाण पत्र के आधार पर आरोपी शलभ भदौरिया एवं विष्णु वर्मा द्वारा सांठगांठ कर कूट रचना की। जप्त दस्तावेजों एवं शलभ भदौरिया एवं विष्णु वर्मा के द्वारा दिये दस्तावेज एवं मौखिक साक्ष्य के आधार पर आरोप पूर्ण रूप से सत्य पाये।
जनसम्पर्क विभाग की सक्रियता एवं नियमों का पालन करने के कारण विभाग ने समस्त समाचार पत्र पत्रिकाओं मासिक एवं साप्ताहिक को विज्ञापन नीति के परिपालन के लिये आर.एन.आई. प्रमाण पत्र मांगे तब श्रमजीवी पत्रकार मासिक पत्र के प्रमाण पत्र की प्रति विष्णु वर्मा द्वारा दी गई। 15.5.2002 को जांच में पाया गया कि वर्ष 1999 से 2003 तक श्रमजीवी पत्रकार समाचार पत्र के प्रधान संपादक शलभ भदौरिया थे तथा इनके द्वारा कार्यालय कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी भोपाल, प्रवर अधीक्षक डाक घर भोपाल में भी शलभ भदौरिया द्वारा हस्ताक्षरित दस्तावेज प्रस्तुत किये। फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर आर्थिक लाभ प्राप्त कर भारत शासन के साथ धोखाधड़ी कर शासन को कुल 1,74970 रुपये की आर्थिक क्षति पहुँचाई।
शलभ भदौरिया ने बनाया फर्जी आरएनआई प्रमाण पत्र
राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यरो में म.प्र. श्रमजीवी पत्रकार संघ के अध्यक्ष शलभ भदौरिया पर 120बी, 420, 467, 468, 471 भादवि धाराओं में मामला क्यों है?
क्या किया जिससे मामला दर्ज है?
प्रस्तुत है ‘श्रमजीवी पत्रकार’ मासिक पत्र का आरएनआई प्रमाण पत्र जिसे देखने से लगता है कि यह ओरिजनल है परन्तु यह फर्जी बनाया गया है। समाचार पत्र के प्रकाशक का नाम है अध्यक्ष, म.प्र. श्रमजीवी पत्रकार संघ। यह बताना चाहता हूँ कि ‘श्रमजीवी पत्रकार’ मासिक पत्र का जो आर.एन.आई. नम्बर है उसका क्रमांक-3276/72 है यानि समाचार पत्र 1972 से प्रकाशित हो रहा है। यह प्रमाण पत्र ‘स्पूतनिक’ समाचार पत्र का है जो राजमुंदरी से प्रकाशित होता है। आर.एन.आई. प्रमाण पत्र फर्जी है यह सिद्ध हो चुका है जाँच में। इस फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर क्या-क्या लाभ लिये वह भी उजागर होगी।
एम.पी.श्रमजीवी पत्रकार संघ (एस) के नाम लिये लाखों के विज्ञापन एवं चैक
धोखाधड़ी जालसाजी करने के कारण शलभ भदौरिया पर शिकायत के आधार पर पुख्ता जाँच के बाद राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो में वर्ष 2006 में प्रकरण दर्ज हुआ। मामले की शिकायत वर्ष 2003 में हुई। जाँच रिपोर्ट पुलिस अधीक्षक राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो भोपाल ने वर्ष 2007 में महानिदेशक राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो भोपाल को दे दी। जिसका चालान पेश हुआ। मामले की शिकायत राधावल्लभ शारदा ने की थी।
जब 2003 में फर्जी दस्तावेज की शिकायत हुई तब एक नई चाल चली और जनसम्पर्क विभाग से स्मारिका के नाम पर शलभ भदौरिया ने एक वर्ष में कई बार विज्ञापन लिये और उनका भुगतान भी चैक से प्राप्त किया। जिसकी राशि लगभग रुपये चार लाख है। यह घटना वर्ष 2003 की है।
सूचना के अधिकार से प्राप्त जानकारी के अनुसार एम.पी. श्रमजीवी पत्रकार संघ (एस) के नाम पर चैक लगभग रुपये चार लाख के प्राप्त किये। कोड बी117 के तहत विज्ञापन मिले। जानकारी विभाग से ली जा सकती है। एम.पी. श्रमजीवी पत्रकार संघ (एस) के नाम मिले चैक किस बैंक में किस नाम से जमा किये गये, जबकि एम.पी. श्रमजीवी पत्रकार संघ (एस) नाम की कोई भी संस्था मध्यप्रदेश में नहीं है, इस नाम पर 3 लाख के विज्ञापन प्राप्त किये।
शलभ भदौरिया ने श्रम न्यायालय को धोखा दिया
मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ के सदस्यों ने संघ का विधान देखा नहीं होगा और देखा भी होगा तो मूल विधान नहीं। संघ का पंजीयन क्रमांक 4500 है जो वर्ष 1992 दिसंबर की तीन तारीख को किया गया। इस समय नाम मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ भोपाल था। नीयत में खोट आती है तो व्यक्ति गलत या फर्जी काम करता है। संघ के अध्यक्ष शलभ भदौरिया ने पत्रकार भवन पर कब्जा करने के लिए संघ के विधान में संशोधन किया। यह संशोधन किया 27 अगस्त 1998 को। इस संशोधन में संघ के नाम को अंग्रेजी में एम.पी.वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन भी संबोधित किया जायेगा। परन्तु दुर्भाग्य शलभ का कि रजिस्ट्रार व्यावसायिक संघ ने उसे अमान्य कर दिया। मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ के संशोधित विधान की सत्यापित प्रति वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के कार्यालय में उपलब्ध है। वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के पंजीयन से घबराकर शलभ भदौरिया ने एक वाद औद्योगिक न्यायालय खण्डपीठ भोपाल के माननीय न्यायाधीश श्री जे.एस. सेंगर के समक्ष विपक्ष अधिवक्ता श्री शरद शुक्ला के द्वारा प्रस्तुत किया जिसमें वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के पंजीयन को निरस्त करने का अनुरोध किया। माननीय न्यायालय के न्यायाधीश ने पहली ही सुनवाई में उक्त अपील को प्रचलन योग्य न होने के कारण निरस्त कर दी। माननीय न्यायालय के आदेश क्रमांक-1230 दिनांक 19 अगस्त 2008 जब वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन को प्राप्त हुआ और उसे पढ़ा, देखा तब ऐसा लगा कि शलभ भदौरिया ने अपने अधिवक्ता को अंधेरे में रखकर फंसाना चाहते थे क्योंकि जो आदेश की प्रति प्राप्त हुई है उसमें मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ लिखा है। श्रम न्यायालय का आदेश पत्रकारों, अधिकारियों के अवलोकनार्थ हमारे पास है।
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