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ऩई दिल्ली। आज सारी दुनिया महात्मा गांधी यानि की भारत के राष्ट्रपित बापू को श्रद्धाजंलि दे रही है। देश के तमाम राजनेता बापू को राजघाट पर पुष्ट अर्पित कर नमन कर रहे है। सारी दुनिया जानती है कि गांधी जी सत्य-अहिंसा के सिद्धांतों पर चलते थे। चाहे वो दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका में अश्वेतों के अधिकारों की लड़ाई हो या म्यांमार में लोकतंत्र की, या फिर बात हो भारत की आजादी की। जब पूरे भारत ने लाठी उठाकर अंग्रेजों का विरोध किया तब गांधी जी ने अहिंसा का नारा देकर पूरे देश को आंदोलन करने के लिए कहा। आज दुनिया के कई देश बापू की बातों को अपना रहे है, लेकिन भारत के ही लोग बापू की बातों को भुलाते जा रहे है। विदेशी परंपरा को अपनाने की इतनी होड़ है कि लोग भारत की सरजमीं के मूल सिद्धांत देने वालों को भुला चुके है। तो उनके जन्मदिन पर हम आपको बताने जा रहे है बापू की कुछ खास बातें जो दुनिया ने सीख ली लेकिन हम भूल गए...
घी का दिया...
सेवा ग्राम में बापू के जन्मदिन के मौके पर बा ने एक बार घी का दिया जलाया। बापू एकटक घी के दीपक को देखते रहे। घी के दिया जलाने के बारे में बापू की बा ने कहा कि यदि घी का दिया ना जलता तो कोई फर्क नहीं पड़ता। बा का कहना था कि हमारे पास खाने का एक टुकड़ा तक नहीं है ऐसे में घी का दिया जलाना किसी पाप से कम नहीं है। कई अफ्रीकी देशों में इस बात को सराहा जाता है वहां के लोग घी का दिया या मोमबत्ती जलाने से बेहतर लोगों के पेट को भरने में समझते है। लेकिन जिस जमीन से ये बात कही गई थी वहां के लोग आज भी घी का दिया जलाना ज्यादा बेहतर समझते है। गरीब-असहाय लोगों से अपनी दूरी बनाए रखते है, 21 सदी में हम चांद को छूने चले है लेकिन खुद के बच्चों को कुपोषण की दलहीज तक पार नहीं करवा पाए है। हर साल ना जाने कितने ही बच्चे कुपोषण और भूखमरी का शिकार होकर दम तोड़ देते हैं।
शिक्षा
गांधीजी ने कहा था, शिक्षा व्यवस्था ऐसी हो, जिसमें विद्यार्थी दो हुनर भी जरूर सीखें। विद्यार्थी जीवन व्यतीत करके वह अपने भोजन का खर्च खुद निकलाने में सक्षम होना चाहिए। ऐसे में भारत जैसे देशों में सभी बच्चों के लिए शिक्षा का इंतजाम करना सरकार और खुद परिजनों के लिए आसान काम होगा। गांधी जी ने ये भी कहा था कि भारत के बच्चों को सिर्फ अंग्रेजी भाषा पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें जितना ज्ञान अंग्रेजी भाषा का होना चाहिए, उतना ही ज्ञान हिंदी भाषा का जरूरी है। लेकिन आज तक हम सिद्धांत को अपना नहीं पाए है।
दूसरों को आगे लाइए
गांधीजी ने कहा था, स्वाधीनता के लिए आर्थिक समानता जरूरी है। आर्थिक समानता के लिए पूंजी और श्रम के संघर्ष को पाटना होगा। जिन लोगों के पास धन है, वे इसे गरीबों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने में लगाएं। यह काम तब तक चलना चाहिए जब तक आर्थिक खाई पट नहीं जाती। लेकिन कम ही लोग समानता लाने की कोशिश कर रहे हैं। धनी लोगों ने इसे नहीं अपनाया। विदेशों में बिलगेट्स, वॉरेन बफे और मार्क जकरबर्ग जैसे लोगों ने अपनी 99फीसदी सम्पत्ति तक लोगों को बुनियादी सुविधा देने में लगा दी है। इससे फर्क आ रहा है।
खुद की मिसाल
गांधीजी हमेशा स्वयं उदाहरण पेश करने में भरोसा रखते थे। उन्होंने पूरी दुनिया को सादगी का संदेश दिया तो खुद भी उसी राह पर चले। गांधी जी इस तरह समाज के सामने नजीर बनने और खुद परेशानी उठाने के उदाहरण कम ही देखने को मिलते हैं। जबकि विदेशों में ऐसा हो रहा है और भारत भी इसी राह पर चल रहा है।
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