अवधेश पुरोहित // TOC NEWS
लेकिन उसके बावजूद भी इस दिशा में कोई बड़ा काम नजर नहीं आया। यही नहीं प्रदेश सरकार लगातार इन्दौर सहित कई जिलों का प्रशासन मुख्यमंत्री के सपनों के ईवेंट को सफल बनाने की दिशा में दिन-रात लगा रहा लेकिन इसके बाद भी नतीजे शून्य ही रहे, हाँ यह जरूर है कि इस समिट के नाम पर निवेशकों को दिखाने के लिये मध्य प्रदेश का चेहरा झाड़-पोंछकर चमकाया जाता रहा, तो वहीं इस पूरे आयोजन के माध्यम से निवेशकों को यह समझाने की कोशिश की गई कि प्रदेश में निवेश की अपार संभावना है
लेकिन इस उद्देश्य को किनारे करके इसे सिर्फ और सिर्फ भव्य सरकारी समारोह की तरह यह ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट एक भव्य समारोह की तरह आयोजित कर कर्जदार प्रदेश के खाली खजाने पर करोड़ों रुपये का भार डाल दिया जाता है, क्योंकि इस पूरे आयोजन में राज्य की नौकरशाही का केवल और केवल यह प्रमुख उद्देश्य रहता है कि समिट सफल हो या ना हो लेकिन इसके नाम पर अपने हिस्से का मक्खन वह निकालने में लगे हुए होते हैं और उसकी छाछ इस सरकार के कर्जदार खजाने पर ढोल देते हैं। यदि अभी तक शिवराज सरकार में सम्पन्न हुई सभी ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट की जमीनी हकीकत पर शोध की जांच पड़ताल की जाए तो यह सब सामने आ जाएगा कि यह सब खेल केवल और केवल एक दिखावा है ना तो इस तरह के समिट के चलते निवेशक मध्यप्रदेश में निवेश को लेकर गंभीर हैं और न सरकार इस तरह के भव्य आयोजन कर कुछ पाने की चाहत में हैं। मजे की बात यह है कि अभी तक सम्पन्न हुई सभी समिट के बाद इस आयोजन में लगे सरकारी अफसर ऐसे दिखाई देते हैं जैसे कि उन्होंने कोई बेटी की शादी निपटाने के बाद बेटी का पिता चैन की सांस लेते हुए दिखाई देता है।
मजे की बात यह है कि समिट के नाम पर जो गोरखधंधा वर्षों से इस प्रदेश में चल रहा है। यदि उसका ठीक से आंकलन किया जाए तो स्थिति यह है कि सरकार और उसके कर्ताधर्ता इन्वेस्टर्स मीट की तैयारी तो बड़ी जोर-शोर से करते हैं लेकिन जहां निवेशकों को अपना निवेश स्थापित करता है वहां की जमीनी हकीकत यह होती है कि बात यदि प्रदेश के सबसे बड़े माने जाने वाले औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर की करें तो वहाँ उद्योगों को ठीक से उनकी आश्यकतानुसार पानी भी उपलब्ध यह सरकार नहीं करा पाती है और लगभग यही स्थिति देवास में स्थापित औद्योगिक क्षेत्र की है। इस संबंध में उद्योगपतियों का कहना है कि २००७ में १४ रुपये प्रति हजार लीटर की दर पर पानी दिया जाता था, लेकिन अब उसे बढ़ाकर ३४.६१ रुपये प्रति हजार लीटर कर दिया गया।
इन उद्योगपतियों का मानना है कि औद्योगिक क्षेत्र के लिये यह दर बहुत अधिक है हालांकि शासन नर्मदा का पानी पीथमपुर में पहुंचाने की घोषणा किये जाने के बाद उद्योगपति थोड़ा उत्साहित दिखाई दे रहे हैं लेकिन नर्मदा-क्षिप्रा लिंक से ९० एमएलटी पानी का प्रस्ताव वर्ष २०१४ में तैयार किया गया था, लेकिन दो साल बाद इसके टेण्डर जारी नहीं हो सके जबकि शासन की ओर से यह दावा किया जा रहा है कि यह कार्य २०१८ में पूरा हो जाएगा। जबकि उद्योगपतियों का यह दा वा है कि यदि सरकार चाहे तो अगले छ: महीने में नर्मदा का पानी पीथमपुर पहुंचाया जा सकता है। जिस तरह से पीथमपुर और देवास के औद्योगिक क्षेत्र में पानी की समस्या की यह स्थिति है वैसे ही प्रदेश के अधिकांश औद्योगिक क्षेत्रों में ठीक से सड़कों की हालत भी खस्ता बनी हुई है, मजे की बात यह है कि जिस तरह से मुख्यमंत्री ने अपने नवरत्न चहेते अधिकारियों को कई विभागों की जिम्मेदारी दे रखी है उन्हीं रवरत्नों में उनके चहेते अधिकारी सुलेमान को उद्योग विभाग और निवेशकों की समस्या दूर करने का जिम्मा दे रखा है, लेकिन पिछले दिनों सुलेमान की कार्यप्रणाली को लेकर उद्योगपतियों के द्वारा सवाल खड़े किए गए। इस तरह की खबरें सुर्खियों में रहीं,
जहाँ तक बात सुलेमान की है तो सुलेमान की कारगुजारी से मध्यप्रदेश ही नहीं देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी भलीभांति अवगत हैं कि उन्होंने इस प्रदेश में बिजली खरीदी और बिजली के विकास के नाम पर अपनी कलाबाजी दिखाकर कितनी सम्पत्ति विदेशों में अपने रिश्तेदारों के नाम पर बनाई है इसका खुलासा भी मुख्यमंत्री के उस दावे नहीं नहीं जो वो अक्सर दोहराया करते हैं कि भ्रष्टाचारियों को बक्शा नहीं जाएगा बल्कि देश के वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिनकी नीति यह है कि ना खाएंगे और ना खाने देंगे की नीति के चलते सुलेमान की इस प्रदेश की जनता के साथ की गई कारगुजारी का खुलासा हुआ। प्रदेश के मंत्रालय में सुलेमान की कारगुजारी को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं लोग चटकारे लेकर करते दिखाई देते हैं
तो वहीं जिन सुलेमान के भरोसे इस इन्वेस्टर्स समिट का सारा दारोमदार है तो उसको लेकर लोग यह कह रहे हैं कि विद्युत विभाग में किये कारनामों की तरह कुछ कलाकारी सुलेमान यहां भी दिखाने में पीछे नहीं रहेंगे यही नहीं राज्य के मंत्रालय और आम जनता में यह चर्चा आम है कि अभी तक के सम्पन्न हुए समिट की तरह २२ और २३ अक्टूबर को होने वाली ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट को कागजों में सफलता का झंडा गाडऩे के लिये भोपाल से लेकर इन्दौर तक के अधिकारी दिन-रात एक करके निवेशकों को सब्जबाग दिखाए जा रहे हैं लेकिन प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्रों की वास्तविकता क्या है यह तो प्रदेश के उद्योगपतियों के उद्योग स्थापित हैं वह इस प्रदेश की नौकरशाही और उस क्षेत्र की वास्तविक स्थिति से भली भांति परिचित हैं।
भोपाल। यूँ तो प्रदेश में औद्योगिक विकास को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में २०१० में खजुराहो में और २०१२ व २०१४ में इन्दौर में इसके साथ ही सागर और जबलपुर में भी इन्वेस्टर्स मीटों का आयोजन किया गया और इन इनवेस्टर्स मीटों के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च इस कर्जदार प्रदेश के खाली खजाने से तो खर्च कर दिए गए तो वहीं प्रदेश में उद्योग लगाने के लिये निवेशकों को आकर्षित करने के नाम पर मुख्यमंत्री की मण्डली में जमकर सैर-सपाटे भी किये।
लेकिन उसके बावजूद भी इस दिशा में कोई बड़ा काम नजर नहीं आया। यही नहीं प्रदेश सरकार लगातार इन्दौर सहित कई जिलों का प्रशासन मुख्यमंत्री के सपनों के ईवेंट को सफल बनाने की दिशा में दिन-रात लगा रहा लेकिन इसके बाद भी नतीजे शून्य ही रहे, हाँ यह जरूर है कि इस समिट के नाम पर निवेशकों को दिखाने के लिये मध्य प्रदेश का चेहरा झाड़-पोंछकर चमकाया जाता रहा, तो वहीं इस पूरे आयोजन के माध्यम से निवेशकों को यह समझाने की कोशिश की गई कि प्रदेश में निवेश की अपार संभावना है
लेकिन इस उद्देश्य को किनारे करके इसे सिर्फ और सिर्फ भव्य सरकारी समारोह की तरह यह ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट एक भव्य समारोह की तरह आयोजित कर कर्जदार प्रदेश के खाली खजाने पर करोड़ों रुपये का भार डाल दिया जाता है, क्योंकि इस पूरे आयोजन में राज्य की नौकरशाही का केवल और केवल यह प्रमुख उद्देश्य रहता है कि समिट सफल हो या ना हो लेकिन इसके नाम पर अपने हिस्से का मक्खन वह निकालने में लगे हुए होते हैं और उसकी छाछ इस सरकार के कर्जदार खजाने पर ढोल देते हैं। यदि अभी तक शिवराज सरकार में सम्पन्न हुई सभी ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट की जमीनी हकीकत पर शोध की जांच पड़ताल की जाए तो यह सब सामने आ जाएगा कि यह सब खेल केवल और केवल एक दिखावा है ना तो इस तरह के समिट के चलते निवेशक मध्यप्रदेश में निवेश को लेकर गंभीर हैं और न सरकार इस तरह के भव्य आयोजन कर कुछ पाने की चाहत में हैं। मजे की बात यह है कि अभी तक सम्पन्न हुई सभी समिट के बाद इस आयोजन में लगे सरकारी अफसर ऐसे दिखाई देते हैं जैसे कि उन्होंने कोई बेटी की शादी निपटाने के बाद बेटी का पिता चैन की सांस लेते हुए दिखाई देता है।
मजे की बात यह है कि समिट के नाम पर जो गोरखधंधा वर्षों से इस प्रदेश में चल रहा है। यदि उसका ठीक से आंकलन किया जाए तो स्थिति यह है कि सरकार और उसके कर्ताधर्ता इन्वेस्टर्स मीट की तैयारी तो बड़ी जोर-शोर से करते हैं लेकिन जहां निवेशकों को अपना निवेश स्थापित करता है वहां की जमीनी हकीकत यह होती है कि बात यदि प्रदेश के सबसे बड़े माने जाने वाले औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर की करें तो वहाँ उद्योगों को ठीक से उनकी आश्यकतानुसार पानी भी उपलब्ध यह सरकार नहीं करा पाती है और लगभग यही स्थिति देवास में स्थापित औद्योगिक क्षेत्र की है। इस संबंध में उद्योगपतियों का कहना है कि २००७ में १४ रुपये प्रति हजार लीटर की दर पर पानी दिया जाता था, लेकिन अब उसे बढ़ाकर ३४.६१ रुपये प्रति हजार लीटर कर दिया गया।
इन उद्योगपतियों का मानना है कि औद्योगिक क्षेत्र के लिये यह दर बहुत अधिक है हालांकि शासन नर्मदा का पानी पीथमपुर में पहुंचाने की घोषणा किये जाने के बाद उद्योगपति थोड़ा उत्साहित दिखाई दे रहे हैं लेकिन नर्मदा-क्षिप्रा लिंक से ९० एमएलटी पानी का प्रस्ताव वर्ष २०१४ में तैयार किया गया था, लेकिन दो साल बाद इसके टेण्डर जारी नहीं हो सके जबकि शासन की ओर से यह दावा किया जा रहा है कि यह कार्य २०१८ में पूरा हो जाएगा। जबकि उद्योगपतियों का यह दा वा है कि यदि सरकार चाहे तो अगले छ: महीने में नर्मदा का पानी पीथमपुर पहुंचाया जा सकता है। जिस तरह से पीथमपुर और देवास के औद्योगिक क्षेत्र में पानी की समस्या की यह स्थिति है वैसे ही प्रदेश के अधिकांश औद्योगिक क्षेत्रों में ठीक से सड़कों की हालत भी खस्ता बनी हुई है, मजे की बात यह है कि जिस तरह से मुख्यमंत्री ने अपने नवरत्न चहेते अधिकारियों को कई विभागों की जिम्मेदारी दे रखी है उन्हीं रवरत्नों में उनके चहेते अधिकारी सुलेमान को उद्योग विभाग और निवेशकों की समस्या दूर करने का जिम्मा दे रखा है, लेकिन पिछले दिनों सुलेमान की कार्यप्रणाली को लेकर उद्योगपतियों के द्वारा सवाल खड़े किए गए। इस तरह की खबरें सुर्खियों में रहीं,
जहाँ तक बात सुलेमान की है तो सुलेमान की कारगुजारी से मध्यप्रदेश ही नहीं देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी भलीभांति अवगत हैं कि उन्होंने इस प्रदेश में बिजली खरीदी और बिजली के विकास के नाम पर अपनी कलाबाजी दिखाकर कितनी सम्पत्ति विदेशों में अपने रिश्तेदारों के नाम पर बनाई है इसका खुलासा भी मुख्यमंत्री के उस दावे नहीं नहीं जो वो अक्सर दोहराया करते हैं कि भ्रष्टाचारियों को बक्शा नहीं जाएगा बल्कि देश के वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिनकी नीति यह है कि ना खाएंगे और ना खाने देंगे की नीति के चलते सुलेमान की इस प्रदेश की जनता के साथ की गई कारगुजारी का खुलासा हुआ। प्रदेश के मंत्रालय में सुलेमान की कारगुजारी को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं लोग चटकारे लेकर करते दिखाई देते हैं
तो वहीं जिन सुलेमान के भरोसे इस इन्वेस्टर्स समिट का सारा दारोमदार है तो उसको लेकर लोग यह कह रहे हैं कि विद्युत विभाग में किये कारनामों की तरह कुछ कलाकारी सुलेमान यहां भी दिखाने में पीछे नहीं रहेंगे यही नहीं राज्य के मंत्रालय और आम जनता में यह चर्चा आम है कि अभी तक के सम्पन्न हुए समिट की तरह २२ और २३ अक्टूबर को होने वाली ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट को कागजों में सफलता का झंडा गाडऩे के लिये भोपाल से लेकर इन्दौर तक के अधिकारी दिन-रात एक करके निवेशकों को सब्जबाग दिखाए जा रहे हैं लेकिन प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्रों की वास्तविकता क्या है यह तो प्रदेश के उद्योगपतियों के उद्योग स्थापित हैं वह इस प्रदेश की नौकरशाही और उस क्षेत्र की वास्तविक स्थिति से भली भांति परिचित हैं।
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